इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस सौमित्र दयाल और जस्टिस संदीप जैन ने बर्क पर 12 साल तक बिजली चोरी के लिए लगाई गई 1.91 करोड़ की पेनल्टी पर रोक लगा दी और उसे मनमाना करार दिया (arbitrary)।जजों ने फैसले में कहा कि बिजली की चोरी हुई भी, तब भी सरकार को 12 साल का आंकलन (assessment) करने का अधिकार नहीं है क्योंकि केवल एक साल का आंकलन किया जा सकता है। बिजली विभाग बर्क को “गैर कानूनी मांग का 50% जमा करने के लिए नहीं कह सकता।
जज जवाब दें कि अगर एक साल से ज्यादा का आंकलन नहीं हो सकता फिर संपत्ति कर, आयकर और अन्य करों का एक साल से ऊपर का क्यों आंकलन कर वसूली की जाती है? कोर्ट के इस फैसले ने देश में बिजली चोरी करने वालों को जड़ीबूटी दे दी। चोरों को जड़ीबूटी देने वाले जजों को कोटि कोटि नमन करना चाहिए। जब देश में ऐसे जज होंगे अपराध कम नहीं हो सकते। क्या नेताओं को बिजली चोरी करने का अधिकार है? इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बिजली चोरी करने वालों के एक ऐसी मिसाल रख दी है उसकी तुलना किससे की जाए कहना मुश्किल है। देश को ऐसे जजों की बहुत जरुरत है।
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साथ में यह भी आदेश देना चाहिए था कि आगे भी बर्क से बिजली के बिल का भुगतान करने के लिए न कहा जाए।
यह एक ऐसा निर्णय है जिसका मतलब है अदालत नेताओं को बिजली चोरी करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। बर्क के घर में 2 किलोवाट बिजली की खपत sanctioned थी और वह 16 किलोवाट खपत कर रहा था। बिजली का बिल देने का तो मतलब ही नहीं था।
यह नियम कहां से निकाला हाई कोर्ट के जजों ने कि केवल 12 महीने का आकलन किया जा सकता है, उससे ज्यादा का नहीं? इसका मतलब साफ़ हो गया कि कोर्ट की नज़र में बर्क को 12 साल तक बिजली चोरी करने का और उसका बिल भी न अदा करने का अधिकार था।
मुझे याद है मेरे घर का लोड करीब 2 महीने के लिए बढ़ गया था। बिजली विभाग से तुरंत बिजली रीडर आया और लोड ज्यादा होने पर आपत्ति की। मैंने उसे बताया कि घर में मेहमान आए हुए थे, इसलिए खपत कुछ ज्यादा थी। तब उसे कुछ समझ आया।
लेकिन यहां तो बर्क ने 12 साल मौज लूटी और अब हाई कोर्ट कह रहा है कि 1.91 करोड़ की मांग Arbitrary है। कहां ले जाना चाहती हैं अदालते देश को? भ्रष्टाचारियों पर लगाम लगाने की बजाय उन्हें खुली छूट देने का काम कर रही हैं अदालतें।
जैसे मैंने अपना मामला बताया, वैसे ही क्या किसी साधारण आदमी को इतने समय तक बिजली का बिल न देने पर माफ़ कर सकते हैं? एक महीने का बिल अगर न अदा किया जाए तो बिजली विभाग बिजली काटने तुरंत पहुंच जाता है लेकिन बर्क भी सांसद है और उसके पिता भी लंबे समय तक सांसद रहे। इसलिए बिजली विभाग उनके खिलाफ कोई भी कार्रवाई करने से बचता रहा होगा? संभल के दंगे न होते तो शायद यह मामला अब भी दबा रहता।
बर्क की इस गैर कानूनी हरकत को बचाने वाले गैर कानूनी आदेश के खिलाफ यूपी सरकार को सुप्रीम कोर्ट में अपील कर पेनल्टी अदा करने पर रोक के आदेश को रद्द करने की मांग करनी चाहिए। कुछ दिन पहले चीफ जस्टिस योगी जी की तारीफ़ कर रहे थे। उसी योगी के प्रशासन पर हाई कोर्ट ने हथौड़ा चलाया है। CJI बीआर गवई साहेब ध्यान दीजिए।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट से भी क्या उम्मीद की जा सकती है जब वह जस्टिस यशवंत वर्मा पर ही कोई कार्रवाई करने को तैयार नहीं है।
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