जब कोई मुद्दा हिन्दुओं से जुड़ा होता सुप्रीम कोर्ट के आंख और कान सब खुले रहते हैं और जब इस्लाम से जुड़ा कोई मुद्दा होता है तो टालने में महारत। अगर इस्लामिक समस्या पर फैसला देने से डर लगता है तो क्यों नहीं मौलाना, मौलवी और इस्लामिक विद्वानों को बुलाकर राय ली जाती? ऐसे मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट को निचली अदालतें पीछे छोड़ देती हैं। कुरान की जिन विवादित आयतों पर मुक़दमा दर्ज पर सुप्रीम कोर्ट जुर्माना ठोक देती है। जुर्माना ठोकने से पहले सुप्रीम कोर्ट को दिल्ली की निचली अदालत तीस हज़ारी के मेट्रोपोलिटन जज 31 जुलाई 1986 को Z A Lohat द्वारा दिए निर्णय को देखना था। इतना ही Calcutta High Court में कुरान पेटिशन की गवाहियों को देखना था, फैसला चाहे कुछ भी आया हो, देखने में सुप्रीम कोर्ट को शायद अपनी बेइज्जती महसूस हुई। दोनों मामलों में कट्टरपंथियों में मातम छा गया था। क्योकि कोई मौलाना, मौलवी, इमाम और इस्लामिक विद्वान उन विवादित आयतों के विरुद्ध नहीं बोल पाए। अगर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने मुस्लिम तुष्टिकरण करते उन्हें अमल नहीं होने दिया।
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बेनजीर हिना ने 2 मई 2022 को पहला नोटिस पति के वकील के जरिए मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई कि उसे इस गैर-इस्लामिक तलाक़ (जैसा उसका सोचना था) से बचाया जाए लेकिन 9 दिन बाद सुनवाई में चंद्रचूड़ ने तुरंत सुनवाई करने से मना कर दिया और कहा कि -
“Due process must be followed and merely sending an email would not suffice to list a case out of turn; Parties could not dictate the court’s functioning by insisting on an immediate hearing through informal channels like email and established rules and procedures are to बे adhered to for listing of cases before SC.”
ये सारे कायदे कानून इस बेशर्म चंद्रचूड़ के चीफ जस्टिस रहते हुए 19 जुलाई, 2023 को तीस्ता सीतलवाड़ को जमानत देने के लिए ख़ाक में मिला दिए गए थे। वकील अश्वनी कुमार दुबे द्वारा दायर बेनजीर हिना की याचिका पर तुरंत सुनवाई करके उसकी शादी को चंद्रचूड़ बचा सकता था मगर “अकड़ और अहंकार” में मदमस्त रहता था। बेनजीर हीना को दूसरा नोटिस 19 मई को दिया उसके पति ने और अंतिम नोटिस 20 जून, 2022 को दिया। हिना कोई आम गरीब मुस्लिम महिला नहीं थी बल्कि पढ़ी लिखी पत्रकार थी।
सुप्रीम कोर्ट में अब तक बेनजीर हिना के अलावा 9 और याचिकाएं दायर हो चुकी है जिनमे कुछ PIL भी हैं। उसके पति ने इस मामले को “maintainability and Locus” के आधार पर ख़ारिज करने के लिए कहा लेकिन कोर्ट ने ऐसा करने से मना कर दिया। 18 नवम्बर को ये मामला सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जवल भुइया और जस्टिस NK Singh की पीठ में सुना गया और जस्टिस सूर्यकांत ने इसे गंभीर मानते हुए 5 जजों की संविधान पीठ को भेजने का इशारा किया।
अदालत ने तल्ख़ टिप्पणी करते हुए कहा कि इसमें gender bias साफ़ झलकता है and how it aligns with the dignity of women in a modern constitutional democracy.
When a practice affects society at a large and if it is gross discriminatory practices, the court has to interfere; How can you promote this in 2025; should a civilized society allow this kind of practice”.
कोर्ट ने कुछ अन्य संस्थाओं से भी विचार भेजने को कहा जिससे मामले के निपटान में मदद मिल सके। वे संस्थाएं है :-
-National Human Rights Commission (NHRC);
-National Commission for women (NCW); and
- National Commission for Protection of Child Rights (NCPCR)
मैं केवल यह दर्शाना चाहता था कि चंद्रचूड़ किस किस्म का तानाशाह जज था जो कानून और नियमों को अपने मतलब से तोड़ने मरोड़ने में माहिर था। एक उसका और ड्रामा था कि कभी तो सरकार से जानकारी “Sealed Envelope” में मांगता था और जब मोदी सरकार को नीचा दिखाना होता था तो कहता था “sealed Cover” क्यों होना चाहिए, सब कुछ खुले में होना चाहिए।
वैसे मुस्लिमों को Constitutional Democracy अपनी सुविधा के अनुसार ही अच्छी लगती है वरना तो उन्हें केवल शरिया ही पसंद है। Gender Bias तो खुल कर दिखाई देता है इस्लामिक समाज में जिसे दूर करने के लिए ट्रिपल तलाक़ ख़त्म किया गया लेकिन किसी मुस्लिम संस्था ने उसे अभी तक सही नहीं माना है। मुस्लिम समाज अब डॉक्टरों के बड़े पैमाने पर नरसंहार के षड़यंत्र के सामने आने पर भी उनका विरोध नहीं कर रहे और अब बुर्के पर प्रतिबंध की मांग भी उठ सकती है क्योंकि जब डॉक्टर के भेष में “दानव” मिल सकता है तो वह “बुर्का” ओढ़े हुए भी मिल सकता है।

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