चुनाव affadavit में गलत शिक्षा की जानकारी देने पर भी केस दर्ज हो; क्या समस्या है जांच करने में कि “सोनिया गांधी का नाम बिना नागरिकता लिए वोटर लिस्ट में जोड़ा गया”

सुभाष चन्द्र

2014 चुनाव से पहले तथाकथित नेहरू-गाँधी परिवार किसी राजा-रजवाड़े से कम नहीं समझता था। वही बीमारी आज तक चल रही है। और उसी घुमारी में राहुल गाँधी की बौखलाहट ही परिवार को संकट में डाल रही है। हवाई जहाज में जन्मदिन मनते थे, विक्रांत में बैठ मौज मस्ती की जाती थी। राहुल गाँधी और इसके गुलाम जो वोट चोरी का शोर मचाते हैं सोनिया के खिलाफ दर्ज केस सबके मुंह पर झन्नाटेदार तमाचा है। राहुल द्वारा संवैधानिक संस्थाओं पर हमला करने की असली वजह परिवार द्वारा की गयी घोटाले नहीं खुलने की वजह है। इतना ही नहीं चुनाव नामांकन में दर्ज गलत एजुकेशनल जानकारी पर भी मुकदमा दर्ज होना चाहिए। जिसकी शिकायत डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मनोहर जोशी को लिखित में दी थी, और जब अध्यक्ष द्वारा सोनिया से पूछने पर सोनिया ने कहा "typing mistake" कहा था। तत्कालीन अध्यक्ष ने मामले को रफादफा कर दिया। सोनिया ने कभी कॉलेज में कदम नहीं रखा।     

विकास त्रिपाठी, अधिवक्ता और vice president of the Central Delhi Court Bar Association of the Rouse Avenue courts ने मजिस्ट्रेट को शिकायत दर्ज करके कहा कि सोनिया गांधी का नाम वोटर लिस्ट में 1983 में भारतीय नागरिकता मिलने के 3 साल पहले 1980 और फिर 1983 में शामिल कर दिया गया था। सोनिया को नागरिकता मिलने की तारीख है 30 अप्रैल 1983

अपने 11 सितंबर, 2025 के आदेश में मजिस्ट्रेट ने बढ़िया अंग्रेजी लिख कर शिकायत खारिज करते हुए कहा “the complaint was "fashioned with the object of clothing the court with jurisdiction through allegations which are legally untenable, deficient in substance, and beyond the scope of this forum's authority". 

मजिस्ट्रेट ने आगे और भी कहा कि "mere bald assertions, unaccompanied by the essential particulars required to attract the statutory elements of cheating and forgery" cannot substitute a legally sustainable accusation.

The plea was merely relying upon an extract of the electoral roll, which was "a photocopy of a photocopy of an alleged extract of an uncertified electoral roll" of 1980”.

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चाहे फोटोकॉपी की फोटोकॉपी थी, लेकिन यह जांच भी तो की जा सकती है कि 1980 और 1983 के शुरू में वोटर लिस्ट में सोनिया गांधी का नाम था या नहीं और इसका उत्तर तो जांच में चुनाव आयोग ही दे सकता है। फिर मजिस्ट्रेट को जांच के आदेश देने में क्या समस्या थी?

लगता है मजिस्ट्रेट ने कांग्रेस के लिए अपनी श्रद्धा भक्ति के सबूत दे दिए और बता दिया कि वह बहुत ऊपर तक जाएगा। मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ स्पेशल जज विशाल गोगने ने सोनिया गांधी और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया है और अगली तारीख 6 जनवरी तय की है। 

इसी के लिए SIR की जरूरत होती है लेकिन कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने तो SIR को ही गैर संवैधानिक बताते हुए कहा है कि किसी कानून में SIR का प्रावधान नहीं है। मतलब सुप्रीम कोर्ट जो कह रहा है कि SIR करना चुनाव आयोग का दायित्व है, वो भी कानून के खिलाफ भाषा बोल रहा है

प्रियंका वाड्रा अपनी माँ का बचाव करते हुए दावा कर रही है कि सोनिया गांधी ने नागरिकता मिलने के बाद ही वोट दिया था। फिर यह खुद ही बता दो कि नागरिकता कब मिली और सबसे पहली बार वोट कब डाला सोनिया गांधी ने? और यह भी बता दो कि राजीव गांधी से 1968 में विवाह के बाद 1983 तक सोनिया गांधी ने नागरिकता क्यों नहीं ली? नागरिकता मांगने पर ही दी जा सकती है, अपने आप कोई सरकार किसी को नागरिकता नहीं देती

मामला अभी तो निचली अदालत में लेकिन जब हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाएगा तो कांग्रेस का वकील अभिषेक मनु सिंघवी दलील देगा कि 45 वर्ष के बाद मामला उठाने का कोई औचित्य नहीं है। शिकायत में अगर दम था तो 1980 में ही करनी चाहिए थी। अब यह शिकायत आधारहीन ही नहीं बल्कि सोनिया गांधी को परेशान करने वाली है

एडवोकेट विकास त्रिपाठी को इस विषय में चुनाव आयोग को भी पार्टी बनाना चाहिए जो सत्यापित कर सके कि सोनिया गांधी का नाम सबसे पहले वोटर लिस्ट में कब जोड़ा गया

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