इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने लोक गायिका नेहा सिंह राठौर द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया है। दरअसल, नेहा सिंह राठौर के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पहलगाम आतंकी हमले को लेकर आपत्तिजनक पोस्ट करने के आरोप में FIR दर्ज की गई थी। इसी मामले में गिरफ्तारी से बचने के लिए नेहा हाई कोर्ट पहुँची थीं।नेहा सिंह राठौर और इलाहाबाद हाईकोर्ट (फोटो साभार: इंडिया टीवी)
नेहा सिंह राठौर पर क्या हैं आरोप?
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 11 पन्नों के आदेश में नेहा पर लगाए आरोपों की जानकारी दी गई है। आदेश के मुताबिक, 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तान समर्थित आतंकियों ने धर्म पूछकर हिंदू पर्यटकों को गोली मार दी थी जिसमें 26 पर्यटकों की मौत हो गई। भारत सरकार भी इस हमले का बदला लेने की तैयारी करते हुए Indus Water Treaty को रोकने समेत पाकिस्तान पर कई कड़े कदम उठाए।
आदेश में कहा गया है, “इसी माहौल में लोकगायिका और स्वयं को कवयित्री बताने वाली नेहा सिंह राठौर अपने X अकाउंट (Neha Singh Rathore @nehafolksinger) से लगातार ऐसे आपत्तिजनक पोस्ट कर रही थीं जो राष्ट्रीय एकता के खिलाफ थे और जो लोगों को धर्म और जाति के आधार पर एक-दूसरे के खिलाफ अपराध करने के लिए भड़का सकते हैं। सोशल मीडिया पर उनके द्वारा कई वीडियो भी शेयर किए जा रहे हैं।”
साथ ही, पाकिस्तान में नेहा सिंह राठौर के वायरल बयानों का भी जिक्र किया गया है। आदेश में लिखा है, “नेहा राठौर के सभी भारत विरोधी बयान पाकिस्तान में लगातार वायरल हो रहे हैं और वहाँ उनकी तारीफ की जा रही है। पाकिस्तान की मीडिया इन देश-विरोधी बयानों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ कर रही है और भारत पर सवाल उठाए जा रहे हैं। नेहा सिंह राठौर के भारत विरोधी बयानों से भारत के कवि समुदाय की प्रतिष्ठा ही नहीं बल्कि पूरे देश का सम्मान भी आहत हो रहा है।”
नेहा सिंह राठौर के वकील ने दीं क्या दलीलें?
नेहा सिंह राठौर के वकील ने अपने पक्ष में दलीलें देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया। वकील ने 2001 के आनंद चिंतामणि दिघे और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य फैसले का हवाला दिया। इसमें कहा गया है, “भारत के संविधान के आर्टिकल 19(1)(a) के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी की गारंटी को मौजूदा नजरिए से पढ़ा जाना चाहिए और सरकार के काम के खिलाफ आवाज उठाने का मतलब यह नहीं है कि एप्लीकेंट (नेहा) ने देश के खिलाफ कोई अपराध किया है।”
साथ ही, वकील ने 2025 के इमरान प्रतापगढ़ी बनाम गुजरात राज्य और अन्य फैसले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का भी हवाला दिया है। इसमें कहा गया है, “विचारों और नजरियों को व्यक्त करने की आजादी के बिना, भारत के संविधान के आर्टिकल 21 के तहत सम्मानजनक जीवन जीना नामुमकिन है।” वकील ने कहा, “एप्लीकेंट द्वारा इस्तेमाल किया गया ट्विटर हैंडल अभिव्यक्ति की आज़ादी की गारंटी देता है और उसने जो कुछ भी कहा है, वह सरकार के खिलाफ उसकी असहमति वाली आवाज़ है और इसे देशद्रोह के आरोप के तौर पर नहीं माना जाना चाहिए।”
सरकार के वकील ने क्या कहा?
वहीं, सरकार के वकील ने नेहा सिंह राठौर द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट में ही दायर की गई इसी केस से जुड़ी FIR रद्द करने की पुरानी याचिका का हवाला दिया। वकील ने बताया कि कोर्ट ने लोक गायिका की पुरानी याचिका खारिज कर उन्हें मामले में सहयोग देने को कहा गया था। हालाँकि, इसके खिलाफ नेहा ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था और वहाँ भी उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी। वकील ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी हवाला दिया।
वकील ने नेहा की अग्रिम जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें FIR में लगे आरोपों से जुड़े मुद्दों को आरोप तय किए जाते समय उठाने की आजादी दी थी। अगर चार्जशीट दाखिल हो चुकी है तो उचित समय पर अदालत में डिस्चार्ज की माँग कर सकती थीं। इसलिए हाई कोर्ट को अभी इस मामले पर विचार नहीं करना चाहिए।
सरकारी वकील ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा याचिका खारिज किए जाने के बाद आवेदक को जाँच अधिकारी के सामने पेश होना चाहिए था लेकिन वह पुलिस जाँच से बच रही हैं। इसलिए, उन्हें किसी भी तरह की राहत नहीं मिलनी चाहिए। साथ ही, इस आदेश में नेहा का कुछ ट्वीट्स को भी जिक्र किया गया है।नेहा सिंह राठौर के ट्वीट्स (फोटो साभार: इलाहाबाद हाईकोर्ट)
बीमारी का बहाना कर जाँच से बच रहीं नेहा
कोर्ट के आदेश में हजरतगंज के थाना प्रभारी द्वारा 27 नवंबर 2025 को भेजे गए लिखित निर्देशों का भी जिक्र किया गया है। इसमें लिखा है, “नेहा सिंह राठौर की गिरफ्तारी के प्रयास जारी हैं। नेहा को उपस्थित होने के निर्देश दिए गए थे लेकिन वह बीमारी का बहाना बनाते हुए उपस्थित नहीं हुई। उनके ठिकानों पर दबिश दी गई है लेकिन उनकी कोई जानकारी नहीं मिली है। नेहा सिंह राठौर बार-बार अपना निवास बदल रही है।”
पाकिस्तान में नेहा का समर्थन
सरकारी वकील ने आगे कहा कि आवेदक का ट्विटर अकाउंट दुनिया भर में खासकर पाकिस्तान में बहुत प्रसिद्ध हो चुका है और जाँच के दौरान पाकिस्तान से भी बहुत सारे पोस्ट मिले हैं जो आवेदक के ट्वीट्स का समर्थन कर रहे हैं। वकील के मुताबिक, पहलगाम आतंकी हमले के बाद उस समय देश की सुरक्षा और अखंडता खतरे में थी और सरकार ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए हर संभव कदम उठाए थे लेकिन नेहा ने संवेदनशील स्थिति में ही ट्वीट करने शुरू कर दिए थे। ऐसे ट्वीट लोगों की भावनाओं को भड़का सकते थे।
सरकारी वकील ने यह भी दावा किया कि ऐसा लगता है कि नेहा की भारतीय जनता पार्टी और उसके नेताओं जैसे प्रधानमंत्री के प्रति मंशा सही नहीं थी। वकील ने कहा, “उन्होंने (नेहा) हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच नफरत पैदा करने की भी कोशिश की ताकि देश का बुनियादी सामाजिक ताना-बाना बिगड़ सके।”
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्या कहा?
हाईकोर्ट ने कहा कि FIR को दर्ज हुए 7 महीने से अधिक का समय बीत गया है लेकिन नेहा अभी भी जाँच में सहयोग नहीं कर रही हैं। कोर्ट ने कहा, “जहाँ तक अग्रिम जमानत का सवाल है, संविधान के अनुच्छेद 19 से नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार मिलता है लेकिन यह अधिकार लोक व्यवस्था, शालीनता और नैतिकता के लिए लगाए गए उचित प्रतिबंधों के अधीन होता है।”
जस्टिस सिंह ने कहा कि आवेदक ने कुछ ट्वीट उस संवेदनशील समय पर किए थे जब पहलगाम का दुर्भाग्यपूर्ण हमला हुआ था। कोर्ट ने कहा, “केस डायरी और FIR दोनों से यह पता चलता है कि आवेदक द्वारा किए गए ट्वीट भारत के प्रधानमंत्री के खिलाफ थे। प्रधानमंत्री का नाम अनादरपूर्ण तरीके से इस्तेमाल किया गया था।”
जस्टिस ब्रज लाल ने कहा कि 27 नवंबर के निर्देश और रिकॉर्ड देखने के बाद पता चलता है कि आवेदक (नेहा) जाँच में सहयोग नहीं कर रही हैं। उन्होंने कहा, “नेहा की FIR के खिलाफ दर्ज की गई रिट याचिका को इसी कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज किया था कि वहा जाँच में सहयोग करेंगी और जाँच अधिकारी के सामने पेश होंगी।” साथ ही, उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी SLP पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है।
हाईकोर्ट ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने आवेदक द्वारा दायर की गई स्पेशल लीव पिटिशन में यह कहा कि उस समय याचिकाकर्ता के वकील की दलीलें सुनने के बाद भी बगावत (mutiny) और अन्य धाराओं के तहत लगे आरोपों को रद्द करने का कोई आधार नहीं बनता था। इससे साफ है कि सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि जिस FIR को आवेदक ने हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच में चुनौती दी थी, उसमें उसकी दलीलों में दम नहीं है।”
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नेहा सिंह राठौर की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी और कहा कि वह कानून के दायरे में कोई भी दूसरा उपाय अपना सकती हैं।
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