मेनका गाँधी : सफर मॉडलिंग से संसद तक

मेनका गांधी अक्सर अपने फैसलों के कारण विवादों में रहती आई है। विवादों में रहने का उनका शौक नया नहीं है बल्कि शुरुआत से ही मेनका और विवाद साए की तरह साथ चलते आए हैं गाँधी परिवार की बहु बनने से पहले मेनका गांधी एक मॉडल हुआ करती थी।  उन्होंन एक प्रोडक्ट के लिए टॉवेल पहनकर विज्ञापन किया जिसने उस समय खूब हंगामा मचाया। ये अलग बात है कि  यही विज्ञापन मेनका और संजय गांधी की नजदीकियों का कारण बना। 

बात है 1973 की जब मनेका गाँधी मॉडल हुआ करती थी । उन्होंने कई विज्ञापन में काम किया था जिसमें से एक विज्ञापन टॉवेल का था। उस ऐड में मनेका गाँधी टॉवेल पहने कड़ी हुई हैं। उस ज़माने के हिसाब से मनेका गांधी की ये तस्वीर काफी बोल्ड थी। उस ज़माने में महिलाओं को इस तरह टॉवेल पहनकर विज्ञापन करना आम बात नहीं थी। इस टॉवेल ऐड की वजह से मनेका गाँधी के पर्सनल लाइफ में भी कई प्रॉब्लम आई।
संजय गांधी, मनेका गाँधी के प्यार करते थे और उनसे शादी करना चाहते थे। लेकिन गाँधी परिवार के बाकी सदस्य जैसे की इंदिरा गाँधी, सोनिया गांधी और राजीव गांधी इस शादी के खिलाफ थे। उन्हें मनेका के मॉडलिंग कैरियर के प्रॉब्लम थी और ख़ास करके उस टॉवेल विज्ञापन से। गाँधी परिवार को ऐसा लगता था की उस टॉवेल विज्ञापन की वजह से परिवार की इमेज खराब हो सकती है। रिपोर्ट्स के मुताबिक मनेका गाँधी का नाम पहले मेनका था लेकिन इंदिरा गाँधी को नाम पसंद नहीं था, क्योंकि इतिहास में मेनका नाम को अच्छा नहीं माना जाता क्योंकि मेनका अप्सरा ने अपनी ख़ूबसूरती से विश्वामित्र की तपस्या भंग की थी। इंदिरा गांधी को लगता था ये मेनका भी वैसी ही जो अपने अपने मोह में उनके बेटे को फंसा रही है। 
मेनका अपना मॉडलिंग कैरियर भी छोड़ने के लिए तैयार थी लेकिन इंदिरा गाँधी नहीं मानी। संजय गाँधी सिर्फ मनेका से ही शादी करना चाहते थे और आखिरकार उन्होंने अपने परिवार को मना लिया। इंदिरा गाँधी राज़ी तो हुई लेकिन एक शर्त पर, उन्होंने अपनी बहु का नाम मेनका से बदलवा कर मनेका करवाया।

जब मेनका गांधी की एक सीडी ने तबाह किया बाबू जगजीवन राम का राजनैतिक करियर

70के  दशक में बाबू जगजीवन राम दलितों के एकछत्र नेता थे और  भारतीय राजनीति में उनका कद काफी बड़ा माना जाता था। भारत की पहली गैरकांग्रेसी यानि जनता पार्टी की सरकार में वो प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे लेकिन चौधरी चरण सिंह और जनसंघ की वजह से ये संभव नहीं हो पाया। इसके बावजूद पार्टी में उनकी हैसियत प्रधानमंत्री से भी बड़ी थी। लेकिन मेनका गांधी ने बाबू जगजीवन राम के खिलाफ ऐसी चाल चली कि उनका राजनैतिक करियर की तबाह हो गया 
1978 में  जगजीवन राम के बेटे सुरेश राम एक सेक्‍स स्‍कैंडल में फंस गए। कहा जाता है कि जाने-माने नेता जगजीवन राम के बेटे सेक्स स्कैंडल में न फंसे होते तो वह देश के पहले दलित पीएम बन सकते थे।  सूर्या नाम की एक पत्रिका में कुछ तस्वीरें छपीं थी जिसमें जगजीवन राम के बेटे सुरेश राम एक महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाते हुए आपत्तिजनक स्थिति में दिखे थे। इन तस्वीरों ने सियासी गलियारे में भूचाल ला दिया था। कहते है कि ये स्‍कैंडल जगजीवन राम के राजनीतिक करीयर को खत्‍म करने के लिए सामने लाया गया था।
जिस पत्रिका में ये तस्‍वीरें छपी थी उसकी संपादक कोई और नहीं बल्कि इंदिरा गांधी की बहू मेनका गांधी थीं। मेनका गांधी ने इस मामले को काफी उछाला और दलितों के मसीहा माने जाने वाले जगजीवन राम  राजनीति में अछूत बन कर रह गए 
उस समय सत्ता के गलियारों में यह भी चर्चा थी कि जगजीवन के राजनीतिक जीवन को समाप्त करने इन्दिरा गाँधी के इशारे पर यह षड्यंत्र खेला गया था। क्योंकि जगजीवन ने बहुत ही विषम स्थिति में कांग्रेस का साथ छोड़ प्रधानमन्त्री बनने की लालसा में जनता पार्टी में शामिल हो गए थे। और इन्दिरा मेनका के सहयोग से इस षड्यंत्र में सफल हुईं। 
लेकिन मेनका अधिक समय तक अपनी इस पत्रिका को अपने नियंत्रण में रखने में असफल रहीं। वर्तमान राजस्थान मुख्यमन्त्री वसुंधरा राजे की माताश्री विजयराजे सिंधिया के सचिव अँगरे ने वसुंधरा और अकबर अहमद डम्पी के माध्यम से मेनका की  पत्रिका को खरीद लिया। जिस तरह इस पत्रिका का सौदा हुआ था, तब भी मेनका गाँधी विवादों में आ गयीं थी।     

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