
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आजाद हिंद सरकार की 75वीं वर्षगांठ पर अक्टूबर 21 को लाल किले पर राष्ट्रध्वज फहराया। इस मौके पर पीएम ने कहा, 'आज मैं उन माता पिता को नमन करता हूं जिन्होंने नेता जी सुभाष चंद्र बोस जैसा सपूत देश को दिया। मैं नतमस्तक हूं उस सैनिकों और परिवारों के आगे जिन्होंने स्वतंत्रता की लड़ाई में खुद को न्योछावर कर दिया।'
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आजाद हिंद फौज के दिग्गज श्री lalti रामजी ने आज नई दिल्ली में फंक्शन से पहले अपनी वर्दी में |
पीएम मोदी ने पाकिस्तान और चीन पर भी निशाना साधा. उन्होंने कहा हम दूसरे की भूमि पर नजर नहीं डालते. लेकिन भारत की संप्रभुता के लिए जो भी चुनौती बनेगा, उसको दोगुनी ताकत से जवाब देंगे.' पीएम मोदी ने कहा 'भारत उस सेना के निर्माण में आगे बढ़ रहा है जो सपना नेताजी ने देखा था. हमारी सेना दिनोंदिन सशक्त बन रही है. सर्जिकल स्ट्राइक हमारी सरकार का फैसला था.दौरान कहा 'नेताजी (सुभाष चंद्र बोस) ने ऐलान किया था कि इसी लाल किले पर एक दिन तिरंगा फहराया जाएगा.
उन्होंने कहा 'हमने कई बलिदानों के बाद स्वराज हासिल किया. अब यह हमारा कर्तव्य है कि हम इस 'स्वराज' को 'सुराज' के साथ बनाए रखें.' उन्होंने कहा कि वन रैंक, वन पेंशन को सरकार ने अपने वायदे के मुताबिक पूरा किया. पूर्व सैनिकों को एरियर भी पहुंचाया गया. 7वें वेतन आयोग का भी फायदा भी पहुंचाया गया.'
प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से फिर फहराया
तिरंगा; एक साल में दूसरी बार किया ऐसा
नेताजी के नाम से पुलिस सम्मान
इस दौरान उन्होंने कहा 'एक परिवार के लिए देश के सपूतों को भुलाया गया. देश के शहीदों को भुलाने की कोशिश की गई. पहले के शासकों ने भारत को इंग्लैंड के चश्मे से देखा.' पीएम मोदी ने कहा 'नेताजी का एक ही उद्देश्य था, एक ही मिशन था भारत की आजादी. यही उनकी विचारधारा थी और यही उनका कर्मक्षेत्र था. भारत अनेक कदम आगे बढ़ा है, लेकिन अभी नई ऊंचाइयों पर पहुंचना बाकी है. इसी लक्ष्य को पाने के लिए आज भारत के 130 करोड़ लोग नए भारत के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहे हैं. एक ऐसा नया भारत, जिसकी कल्पना सुभाष बाबू ने भी की थी.' अपनी जान जोखिम में डालकर लोगों की जान बचाने वाले पुलिसकर्मियों को अब हर साल नेताजी के जन्मदिन पर 23 जनवरी को उनके नाम से सम्मान दिया जाएगा.
PM @narendramodi hoists the national flag at the #RedFort in New Delhi today to commemorate the 75th anniversary of #AzadHindGovernment.
नेताजी का सपना पूरा कर रही सरकार

अवलोकन करें:--

अंडमान से छिड़ी थी आजादी की जंग


नेताजी सुभाषचंद्र बोस के बाद उनकी आजाद हिंद फौज का मनोबल बुरी तरह से गिर गया। लेकिन आजाद हिंद फौज तब तक अंग्रेजी राज की जड़ें हिला चुकी थी। अंग्रेजों को पता था कि नेताजी की सेना से निपटना उनके लिए आसान नहीं होगा और कुछ साल में ही वो उनसे भारत की सत्ता छीन लेंगे। क्योंकि अंग्रेजों की सेना के भारतीय जवानों की बगावत और तेज़ हो गई थी और उनके बिना लड़ाई लड़ पाना नामुमकिन था। 18 फरवरी 1946 को बंबई में नौसैनिकों ने विद्रोह कर दिया। यह बगावत कराची से लेकर कोलकाता तक फैल गई। इसके कुछ दिन बाद ही जबलपुर में फौजी बगावत हो गई। इन हालात में अंग्रेजों ने फौरन भारत की आजादी को लेकर कांग्रेस के नेताओं के साथ सौदेबाजी शुरू कर दी।
इस दौरान सत्ता की खींचतान में ही भारत और पाकिस्तान के बंटवारे का भी फैसला हो गया। दूसरे विश्वयुद्ध में जर्मनी का साथ देने के कारण नेताजी सुभाषचंद्र बोस अंग्रेजों की नजरों में युद्ध अपराधी थे। हैरानी यह थी कि गांधी-नेहरू जैसे कांग्रेसी नेताओं ने भी नेताजी के साथ अपराधियों जैसा ही सलूक किया। माना जाता है कि आजादी के बाद कई साल तक नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने गुमनामी में जीवन बिताया। हाल ही में जारी पुराने दस्तावेजों से साफ हो चुका है कि तब के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू नेताजी के परिवार की जासूसी करवाया करते थे।
आजाद हिंद फौज थी अपने आप में नायाब
नेताजी सुभाषचंद्र बोस की सेना कई मायनों में बहुत खास थी। माना जाता है कि उन्होंने करीब एक लाख सैनिकों को अपने साथ जुटा लिया था। सेना में सभी रैंकों पर सभी धर्मों और जातियों के लोगों को समान रूप से जगह दी गई थी। ताकि किसी को अपने साथ नाइंसाफी होती न लगे। यहां तक कि महिलाओं की अलग रेजीमेंट भी थी। आजाद हिंद फौज ने भारत में सबसे पहले नगालैंड के रास्ते प्रवेश किया था। वहां से जंग जीतते हुए यह सेना मणिपुर तक पहुंच गई थी। आजाद हिंद फौज के सैनिक इन सभी जगहों पर अपना ध्वज फहराते हुए आगे बढ़े। इसलिए तकनीकी तौर पर देखें तो आजाद भारत की धरती पर आजादी का झंडा आजाद हिंद फौज ने ही फहराया था।
रेडियो मैसेज में क्या कहना चाहते थे नेताजी बोस
आजादी के करीब 70 साल बाद नेताजी सुभाषचंद्र बोस से जुड़ी कुछ सीक्रेट फाइलें सामने आई हैं। कुल 64 फाइलें पश्चिम बंगाल सरकार ने जारी की हैं। जिनमें फाइल नंबर-62 से बड़ा खुलासा हुआ है। इसमें साफ-साफ लिखा है कि 1945 के बाद नेताजी जिंदा थे और बंगाल में इंटेलिजेंस ब्यूरो उनके परिवार वालों की जासूसी कर रहा था। इसलिए ताकि अगर वो परिवार के संपर्क में आएं तो उन्हें पकड़ा जा सके। जिन 64 फाइलों को जारी किया गया है उनमें कुल 12744 पन्ने हैं। मतलब ये कि सारी बातें सामने आने में अभी काफी वक्त लग सकता है।
जो फाइलें जारी की गई हैं, उनमें एक चिट्ठी भी है। 18 नवंबर 1949 की ये चिट्ठी नेताजी के भतीजे अमियनाथ बोस ने अपने भाई शिशिर बोस को भेजी थी। शिशिर उस वक्त लंदन में डॉक्टरी कर रहे थे, जबकि अमिय कोलकाता में रहते थे। इस चिट्ठी में लिखा गया है- “करीब महीने भर से रेडियो पर एक अजीबोगरीब आवाज़ सुनाई दे रही है। शॉर्ट वेव पर 16एमएम फ्रीक्वेंसी पर जाते ही आवाज आने लगती है कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस ट्रांसमीटर ए कौथा बोलते चाये (नेताजी सुभाषचंद्र बोस ट्रांसमीटर पर बात करना चाहते हैं) । यही बात बार-बार घंटों तक दोहराई जाती रहती थी। हमें पता नहीं कि ये मैसेज कहां से आ रहा है।” केंद्र की खुफिया एजेंसियां नेताजी के परिवार की एक-एक चिट्ठी खोलकर पढ़ते थे। उसी दौरान ये चिट्ठी उनके हाथ लगी थी।
परिवार से संपर्क की दूसरी कोशिश
फाइलों के मुताबिक नेताजी ने संभवत: एक बार फिर संपर्क करने की कोशिश की थी। एक फाइल में नेताजी के ही भतीजे एसके बोस की चिट्ठी है, जो उन्होंने नेताजी के बड़े भाई शरतचंद्र बोस को 12 दिसंबर 1949 को भेजी थी। इसमें उन्होंने लिखा है कि- “सिंगापुर में रेडियो पीकिंग ने बताया हैकि नेताजी थोड़ी देर में अपना मैसेज ब्रॉडकास्ट करेंगे। हमने हॉन्गकॉन्ग ऑफिस में इसे सुनने की कोशिश की, लेकिन फ्रीक्वेंसी मैच नहीं हुई। और हम कुछ सुन नहीं पाए।”
1970 तक होती रही थी जासूसी
बोस परिवार की 1970 तक की चिट्ठियां और उनके कहीं भी आने-जाने पर नज़र रखी गई। ये सारा कुछ सीक्रेट वीकली सर्वे के तहत इन फाइलों में दर्ज है। इस पूरे दौर में पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की सरकार हुआ करती थी और सिद्धार्थ शंकर राय मुख्यमंत्री थे। जाहिर है आज के समय में भी किसी आतंकवादी या अपराधी पर इस तरह नज़र नहीं रखी जाती होगी, जिस तरह से उस दौर में नेताजी सुभाषचंद्र और उनके परिवार के साथ किया गया।
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