दिल्ली पहुंचकर खत्म हुई 'किसान क्रांति पदयात्रा'

भारतीय किसान यूनियन के बैनर तले 'किसान क्रांति पदयात्रा' दिल्ली के किसान घाट पहुंचकर बुधवार(अक्टूबर 3) को देर रात को खत्म हो गई. मंगलवार (02 अक्टूबर) को केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के साथ पहले दौर की वार्ता विफल हो जाने के बाद यूपी गेट पर डेरा डाले करीब तीस हजार किसानों को मंगलवार (03 अक्टूबर) देर रात एक बजे दिल्ली पुलिस ने महात्मा गांधी की समाधि राजघाट या किसान घाट जाने की अनुमति दे दी. आधी रात में यूपी गेट पर लगाए गए बैरिकेड हटा लिए गए. पुलिस ने पैदल किसानों को बसों में भरकर चौधरी चरण सिंह के स्मृति स्थल किसान घाट तक भेजने का प्रबंध किया. जहां पहुंचकर किसानों ने आंदोलन को खत्म किया. 
दिल्ली के किसान घाट जाने की अनुमति मिलने की ख़बर सुनकर किसान खुशी से नाचने लगे. अपने प्रोटेस्ट के आगे सरकार को झुकते देख किसान ने ट्रैक्टरों में भरकर किसान घाट की तरफ कूच किया. हजारों की संख्या में ट्रैक्टर, टेम्पो और गाड़ियों में सवार किसान अक्षरधाम को पार करते चले गए. देर रात करीब 1 बजकर 45 मिनट में हजारों की संख्या में किसान राजघाट से होते हुए किसान घाट पहुंचें. 
kisan kranti padyatra ended on Kisan Ghat late nightयहां पर भी भारी पुलिस बल तैनात था. करीब 3 बजे किसान घाट पहुंचकर भारतीय किसान यूनियन के राष्‍ट्रीय अध्यक्ष नरेश टिकैत ने किसान आंदोलन को खत्म करने की घोषणा की, जिसके बाद पुलिस ने राहत की सांस ली. उन्होंने कहा कि सरकार ने उनकी मांगे नहीं मांगीं और सरकार के रवैये से बेहद निराश है. वहीं, किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि सरकार अपने वायदे दिए गए समय पर पूरा करें वरना दिल्ली दूर नहीं है.
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इससे पहले दिन में यूपी गेट पर दिल्ली पुलिस के साथ तगड़ी झड़प हुई. किसानों ने ट्रैक्टर चढ़ाकर बैरिकेड तोड़ दिए. उन्हें रोकने के लिए दिल्ली पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा और रबर बुलेट और आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े. झाड़ियों से दिल्ली में घुसने का प्रयास कर रहे किसानों पर लाठियां भी भांजीं. इस दौरान कई किसान चोटिल भी हुए. वहीं, दिल्ली पुलिस के एक एसीपी समेत सात पुलिसकर्मी भी गंभीर रूप से घायल हो गए. 
इस दौरान, केंद्र व राज्य के मंत्री और आला अफसर भी किसानों की मान मनौव्वल में जुटे रहे. केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री व प्रदेश के मंत्रियों ने मौके पर आकर सरकार की ओर से आश्वासन भी दिया, लेकिन किसानों ने विरोध जताते हुए उनकी ओर जूता उछाल दिया. आपको बता दें कि भारतीय किसान यूनियन के बैनर तले हरिद्वार से किसान क्रांति यात्रा लेकर चले किसानों को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश की जिला गाजियाबाद और दिल्ली पुलिस ने द्वीचक्रीय सुरक्षा इंतजाम किए थे. 
दिल्ली पुलिस ने यूपी बॉर्डर पर बैरिकेडिंग कर बड़ी संख्या में पुलिसबल तैनात किया था. किसानों ने जब प्रदर्शन उग्र और बैरिकेडिंग तोड़ने की कोशिश की तो पुलिस ने किसानों पर बल प्रयोग करते हुए रबर बुलेट और आंसू गैस के गोले किसानों पर फेंके और लाठियां भांजी. किसानों का ये आंदोलन कुल 11 मांगें थी, लेकिन सरकार ने अब तक सात मुद्दों पर हामी भरी है जिनमें से चार मुद्दे अभी भी अटके हैं.
प्रदर्शन करने वाले किसानों और प्रदर्शन को प्रोत्साहन देने वालों से ज्वलन्त प्रश्न: --
1. कितने किसान इस प्रदर्शन में सम्मिलित थे और कितने बाहरी तत्व थे?
2. क्या ये प्रदर्शन उन किसानों के पक्ष में था जो कर्जा लेकर पंचायत से लेकर संसद तक में जा बैठे हैं?
3. भूख-प्यास और कर्जे में डूबा व्यक्ति रोटी के एक छोटे से नवाले तक को नहीं फेंकता, विपरीत इसके भूख-प्यास और कर्जे में डूबा किसान अपने ही हाथों टनों दूध, फल और सब्ज़ी यानि अपने ही उत्पादन को सड़क पर फेंके, यह भूख-प्यास और कर्जे में डूबा कोई इन्सान नहीं कर सकता। आखिर यह सब ड्रामा किन पूंजीपतियों के इशारे पर होता है?
4. कोई भी महाजन/साहूकार किसी वस्तु को गिरवी रखे बिना एक पैसा उधार नहीं देता, फिर बैंकों ने कैसे दे दिया? सरकार को इस बात की भी जाँच करनी चाहिए। सम्भव है, भोले-भाले अनपढ़ किसानों या कृषि श्रमिकों को थोड़ा धन देकर बड़े किसानों ने कर्जा लिया हो, गंभीरता से इसकी भी जाँच होनी चाहिए। 
5. आंदोलन के दौरान जो भी किसान भाई घायल हुए हैं उसके जिम्मेदार आंदोलनकारियों के बीच शामिल अराजकता फैलाने वाले असामाजिक तत्वों द्वारा फैलाई गई अफरा-तफरी, इसका कारण है कि पुलिस को आंसू गैस के गोले और पानी की बौछारों का इस्तेमाल करना पड़ा जब उन तत्वों के द्वारा जबरदस्ती बैरिकेडिंग व पुलिस वालों पर ट्रैक्टर चढ़ाने की कोशिश की गयी।        

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