हलाला ने ट्रेजेडी क्वीन मीना कुमारी को तोड़ दिया था

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आर.बी.एल.निगम, फिल्म समीक्षक 
तीन तलाक से करोड़ों मुस्लिम  महिलाओं को आजादी तो मिल गई, लेकिन इस मौके पर यह याद दिलाना जरूरी है कि कैसे इस्लाम की इस दकियानूसी परंपरा ने लाखों मुस्लिम महिलाओं से जिंदगी जीने का उनका अधिकार तक छीने रखा था। इन लाखों आम महिलाओं के अलावा कई खास महिलाएं भी हैं जो तीन तलाक का शिकार बन चुकी हैं। इनमें सबसे बड़ा नाम है बीते दौर की सुपरस्टार मीना कुमारी का। उनका निकाह उस दौर के जाने-माने फिल्म संवाद लेखक-डायरेक्टर कमाल अमरोही से हुई थी। कमाल अमरोही मीना कुमारी की सुपरहिट फिल्म ‘पाकीज़ा’ के डायरेक्टर भी थे। मीना कुमारी का असली नाम महजबीं बानो था। दोनों की शादी इस्लामी तौर-तरीके से हुई थी। 

मीना कुमारी का हुआ था हलाला!

Image result for meena kumariएक दिन कमाल अमरोही ने किसी बात पर गुस्से में आकर मीनाकुमारी को ‘तीन तलाक’ कह दिया। बाद में पछतावा होने पर उन्होंने फिर मीना कुमारी से निकाह करना चाहा, लेकिन तब इस्लामी मौलवी बीच में आ गए। कहा गया कि दोबारा निकाह करने लिए पहले मीना कुमारी का हलाला करवाना पड़ेगा। हलाला यानी महिला की शादी किसी गैर-मर्द से कर दी जाएगी। मीना कुमारी इसके लिए कतई तैयार नहीं थीं। इसके बावजूद कमाल अमरोही ने जबर्दस्ती मीनाकुमारी का निकाह ने अपने ही दोस्त अमानुल्ला खान से करवा दिया। अमानुल्ला ख़ान अभिनेत्री जीनत अमान के पिता थे। मीना कुमारी को अपने नए शौहर अमानुल्ला ख़ान के साथ हमबिस्तर होना पड़ा और फिर इद्दत यानी मासिक आने के बाद उन्होंने नए शौहर से तलाक़ लेकर दोबारा कमाल अमरोही से निकाह कर लिया।

हलाला के बाद टूट गईं मीना कुमारी

Image result for meena kumariImage result for meena kumariमीनाकुमारी ने एक जगह लिखा है कि “जब मुझे मजहब के नाम पर, अपने जिस्म को किसी दूसरे मर्द को सौंपना पड़ा तो फिर मुझमें और किसी वेश्या में क्या फर्क रहा? इस घटना ने मीना कुमारी को मानसिक तौर पर तोड़कर रख दिया था और इसी तनाव में उन्होंने शराब पीनी शुरू कर दी। वो लगातार भारी डिप्रेशन में रहीं और शराब पी-पीकर उन्होंने अपनी सेहत भी खराब कर ली। 
मजहब के नाम पर, अपने जिस्म को किसी दूसरे मर्द को सौंपना पड़ा तो फिर मुझमें और किसी वेश्या में क्या फर्क रहा?
बाद में यही मीनाकुमारी बेहद गरीबी बेमौत मरीं। सिर्फ 39 साल की उम्र में 31 मार्च 1972 को मीनाकुमारी का निधन हो गया। उनके जैसी खूबसूरत और कामयाब हीरोइन की जिंदगी को तीन तलाक और हलाला ने बर्बाद कर दिया।
गुरुदत्त निर्मित सदाबहार फिल्म "साहब, बीवी और गुलाम" का चर्चित गीत "ना जाओ सइयां, छुड़ाकर कर बहियाँ" गीत मीना कुमारी की निजी ज़िन्दगी को दर्शा रहा था कि गुरुदत्त से गीत का फिल्मांकन शराब पीकर करने की ज़िद्द करने पर गुरु ने फिल्मांकन उपरान्त देने को कहा। लेकिन मीना कुमारी ने कहा "नहीं, अगर गाने का फिल्मांकन शराब पीकर ही होगा, वरना नहीं।" अंत में गुरुदत्त को मीना की आगे झुकना पड़ा था। 
फिल्म "पाकीज़ा" के निर्माण से आया जीवन में उबाल   
दरअसल, फिल्म " पाकीज़ा" के महूरत के समय पंडित जी कहा था "कमाल साहब, फिल्म एकदम हिट होगी, लेकिन आपको नुकसान होगा।" कमाल साहब ने पहेली पर से पर्दा हटवाने के लिए बहुत प्रयास किया, लेकिन पंडितजी महाराज ने केवल इतना ही कहा, "वह आपका अपना नुकसान होगा, फिल्म या कम्पनी को नहीं।" घर की फिल्म होने के कारण मीना ने हर रोल को जीवंत करने, परिश्रम भी खूब किया था। कब्रिस्तान के दृश्य फिल्माने से पहले ही, अपने खाली समय में कब्रिस्तान जाकर स्वयं अभिनय करने का प्रयास करती थी। उस समय अगर फिल्म बन गयी होती, बड़े बजट की फिल्म बनती। क्योकि उस समय मीना कुमारी ने कई अभिनेता अनुबंदित करवाए थे, अभिनेता गोबिंदा के पिताश्री अरुण भी उनमे से एक थे। मीना-कमाल के बीच पनपे विवाद के कारण फिल्म बीच में ही रुक गयी, जो पंडितजी की एक बात तो पूरी कर रही थी, यानि नुकसान और दूसरी, जब कई वर्षों उपरान्त फिल्म पूरी होने उपरांत प्रदर्शन के तीसरे सप्ताह में ही मीना कुमारी के निधन ने असफल हो रही फिल्म को हमेशा के लिए अमर कर गयीं। यानि पंडितजी महाराज के सत्य होते वचन। 
इतना ही नहीं घरेलू नौकर द्वारा घर में चोरी कर भाग गया, जिसे जयपुर में पकड़ा गया। पुलिस द्वारा बुलाने पर कमाल साहब ने पिताश्री को ही मामला सुलझाने के लिए भेज दिया।     
कमाल अमरोही एक नेक इन्सान थे 
पिताश्री एम.बी.एल.निगम 
वैसे कमाल साहब यारों के यार थे। बहुत ही नेक दिल इंसान थे। मेरे पिताश्री एम.बी.एल.निगम, जो 50 के दशक के नामी फिल्म वितरकों में से एक थे। फिल्म "लाल दुप्पट्टा" ने रिलीज़ होते ही उनके कार्यालय प्रीमियर पिक्चर्स पर ताला लग गया था। इस फिल्म के प्रदर्शन से पूर्व पिताश्री  तीन बड़े बजट की फिल्मों में लगभग एक लाख रूपए निवेश कर चुके थे। दुर्भाग्यवश, तीनो मुसलमान निर्माता भारत छोड़  पाकिस्तान चले गए। जिस कारण पिताश्री की कम्पनी गंभीर आर्थिक संकट में थी। इस बात का रहस्योघाटन 17 मार्च 2005 को अपनी जीवनलीला पूर्ण होने से लगभग एक सप्ताह पूर्व किया था। कर्जे में डूबे पिताश्री के लिए कमाल साहब और अभिनेता-निर्माता-निर्देशक कुमार साहब ने डूबते को तिनका का सहारा देकर किया।
अवलोकन करिए:--

PROFILE SINCE the Indian films came into existence, so many film distributors,producers and directors came and will come on the scene but...
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कमाल साहब ने पिताश्री को अपने प्रोडक्शन महल पिक्चर्स का कार्यभार सम्भालने बम्बई (वर्तमान मुंबई)बुला लिया। जहाँ लगभग पांच वर्ष कार्य करते काफी कर्ज उतारने में सफल हुए। लेकिन वहां रहते मीना जी को बहुत नजदीक से देखा था। उस समय हज़ारों रूपए प्रतिदिन कमाने वाली मीना जी में घमण्ड लेशमात्र  नहीं था, एक पैसा अपने पास नहीं रखती थी। कमाल साहब की गैरहाजिरी में भोजन तक नहीं लेती थी। खाने की मेज पर प्रतीक्षा करते बैठे-बैठे सो जाती थीं। इस बात का विस्तार में अपने लेख शीर्षक "एक ड्राइवर ने बर्बाद कर दी थी मीना की ज़िंदगी", में विस्तार से लिखा था, जिसे अपनी पुस्तक "भारतीय फिल्मोद्योग-- एक विवेचन" में भी समाहित किया है।  
मरते दम तक कमाल साहब की ही बीबी कहलवाना चाहती हूँ 
एक दिन फुर्सत के क्षणों में, पति-पत्नी के बीच चल रहे रोज़ के झगड़ों पर चल रही चर्चा के दौरान पिताश्री को मीना जी ने बताया कि "निगम बाबू कई लोग कहते हैं, कमाल से तलाक लेकर किसी और से निकाह कर लो।" पिताश्री द्वारा दूसरों की बातों का समर्थन करना ही था कि तुरन्त मीना जी ने कहा "निगम बाबू मै हर सितम सहने को तैयार हूँ, लेकिन तलाक नहीं। मै मरते दम तक कमाल अमरोही की बीबी कहलवाना चाहती हूँ, किसी और की नहीं।" उस पर पिताश्री ने कहा "अगर तलाक की बात सुनते ही अमरोही साहब हो सकता है, सब झगड़ों पर खाक डाल दें।" मीना जी ने कहा " निगम बाबू आप हिन्दू हैं, नहीं जानते कि कभी गलती से भी तलाक देकर दुबारा उसी से निकाह आसान नहीं। मुझे हलाला करना पड़ेगा, जो मै नहीं चाहती कि फिल्मों के अलावा कोई मेरे जिस्म को भी छुए।" खैर, जब तक पिताश्री मुंबई रहे, दोनों एक ही छत के नीचे रहे। यदि पिताश्री के रहते पाकीज़ा रुकने की बजाए पूरी हो गयी होती, प्रोडक्शन कंट्रोलर में पिताश्री का ही नाम होता। मीना जी को हलाला करना पड़ा वास्तव में उनकी आत्मा रो पड़ी होगी। हकीकत में हलाला होने पर अंदर से टूट गयीं होंगी। काश ! उस समय पिताश्री दिल्ली आने की बजाए वहीँ रह रहे होते। तलाक देने से पहले कमाल साहब को रोकने का पिताश्री में साहस था।  
अब जब तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट ने पाबंदी लगा दिया है ये और इससे जुड़ी हलाला की परंपरा भी खुद-ब-खुद खत्म हो गई है। अगर मुस्लिम समाज ने पहले इसे खत्म करने की पहल की होती तो लाखों मुस्लिम महिलाओं को जिल्लत की जिंदगी जीने को मजबूर नहीं होना पड़ा होता।

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