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कटरा नील, चांदनी चौक |
अंग्रेजों के जमाने में यह नील कारोबारियों का मोहल्ला होता था। यहां महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू भाषण देने आते थे। तब यहां रहने वाले लोग अपने घर में ही ‘नील’ का कारोबार करते थे। उस समय यहां से देश-विदेश में नील की सप्लाई होती थी। लेकिन समय के साथ नील कारोबारियों का यह मोहल्ला व्यापारिक हब के रूप में विकसित होता गया। अब यहां सालाना 1000 करोड़ रुपए का कारोबार होता है। लेकिन यह कारोबार नील का नहीं बल्कि गारमेंट्स का है। पुरानी दिल्ली का इलाका वर्तमान में कटरा नील के नाम से जाना जाता है। यहां अब 500 से अधिक दुकानें काम कर रही है।
कटरा नील मार्केट के प्रधान अरविंदर सिंह ने Moneybhaskar.com से हुई बातचीत में बताया कि 200 साल पुराने इस बाजार में आज भी कई ऐसी दुकानें देख सकते हैं जो मुगल के जमाने से चली आ रही हैं। आज यह मार्केट पूरी तरह लेडी गारमेंट्स की है और यहां 500 से अधिक दुकानें हैं। सिंह ने बताया कि इस मार्केट में लेडी गारमेंट्स जैसे कि सलवार-कमीज, दुपट्टा, कुर्ती अन्य की कीमत 500 रुपए से लेकर 10,000 रुपए तक है। इस मार्केट में मुख्य रूप से होलसेल का काम होता है, लेकिन अब यहां रिटेल में भी कारोबार किया जा रहा है।
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कटरा नील मार्केट, चांदनी चौक |
इस मार्केट से जुड़ी रोचक तथ्य
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में पहली गोली इसी कटरा नील के मुख्य दरवाजे पर चली थी जिससे एक क्रांतिकारी की जान चली गई थी। कटरा नील की हर गली में मंदिर है। एेतिहासिक मंदिर घंटेश्वर मंदिर और बाबे लालू जशराज की पीठ समेत दो मस्जिद भी हैं। इनमें पूजा-अर्चन और नमाज के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।
समय के साथ बदला ‘कटरा नील’ बाजार संकीर्ण गलियों के बीच हलवाई की दुकान और मंदिर-मस्जिद इस मार्केट की खास पहचान है। भारत में बड़े स्तर पर यहां से लेडी गारमेंट्स का सप्लाई किया जाता है। यूएसए, जापान और दुबई तक में यहां से लेडी गारमेंट्स पहुंचाए जाते हैं। सिंह ने बताया कि मार्केट का सलाना टर्नओवर लगभग 1 हजार करोड़ रुपए का हैं। कमाई के मामले में यह मार्केट पुरानी दिल्ली का सबसे मशहूर बाजार है।
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