मध्य प्रदेश: कसौटी पर देवरानी-जेठानी के रिश्ते

MP Chunav 2018: ग्‍वालियर में इस बार कसौटी पर देवरानी-जेठानी के रिश्ते
भाजपा महिला मोर्चे की जिलाध्यक्ष खुशबू गुप्ता और पूर्व महापौर समीक्षा गुप्ता देवरानी-जेठानी 
चुनावी समर में यूं तो कई बार मित्रता और दूर के रिश्ते आमने-सामने टकराते रहे हैं,लेकिन यहां ग्वालियर दक्षिण विधानसभा में तो इस बार देवरानी-जेठानी के रिश्ते ही कसौटी पर हैं।
इस सीट से पूर्व महापौर समीक्षा गुप्ता भाजपा छोड़कर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरी हैं। दूसरी ओर देवरानी खुशबू गुप्ता, जो कि महिला मोर्चा की जिलाध्यक्ष और इसी क्षेत्र की निवासी हैं। उन्हें पार्टी प्रत्याशी नारायण सिंह के प्रचार में पार्टी का झंडा थामकर उनके प्रचार में निकलना होगा।
भाजपा महिला मोर्चे की जिलाध्यक्ष खुशबू गुप्ता और पूर्व महापौर समीक्षा गुप्ता देवरानी-जेठानी हैं। दोनों के ससुर सगे भाई है। चूंकि अब से पहले श्रीमती समीक्षा गुप्ता भाजपा में ही थी, इस कारण रिश्तों के बीच कभी इस तरह की टकराहट की स्थिति भी नहीं बनी।
13 नवम्बर को ही समीक्षा गुप्ता ने पार्टी के तमाम पदों से इस्तीफे और ग्वालियर दक्षिण विधानसभा सीट से निर्दलीय मैदान में डटे रहने की घोषणा की है। उनके इस निर्णय से कहीं न कहीं पार्टी को आघात लगा है और पार्टी का यहां प्रचार पर विशेष फोकस रहेगा। डैमेज कंट्रोल के लिए पार्टी इस क्षेत्र में अपना असर रखने वाली उनकी देवरानी खुशबू गुप्ता को महिलाओं के बीच प्रचार का जिम्मा देगी।
बनेगी आमने-सामने स्थिति
प्रचार के दौरान कई बार यह स्थिति भी बनना लगभग तय है,जब एक ओर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में प्रचार करते हुए समीक्षा गुप्ता निकलेंगी। दूसरी ओर श्रीमती खुशबू गुप्ता पार्टी प्रत्याशी नारायण सिंह कुशवाह का प्रचार करते हुए निकलेंगी। आमने-सामने की स्थिति रोचक रहेगी।
बैठक में बनाई रणनीति
नवम्बर 14 को ग्वालियर दक्षिण विधानसभा क्षेत्र की एक बैठक हुई। इस बैठक में खुशबू गुप्ता भी उपस्थित रहीं। अन्य नेताओं की तरह उन्होंने भी पार्टी प्रत्याशी नारायण सिंह के समर्थन में प्रचार,प्रसार की रणनीति बनाई।
मेरे लिए पार्टी सर्वोपरि: खुशबू
खुशबू गुप्ता का कहना है कि उनके लिए पार्टी ही सर्वोपरि है। वह पार्टी की बहुत साधारण लेकिन समर्पित कार्यकर्ता हैं। उन्होंने साफ किया कि वह महिला मोर्चे के जिलाध्यक्ष होने के नाते ग्वालियर दक्षिण विधानसभा में भी पार्टी प्रत्याशी नारायण सिंह के प्रचार के लिए उसी तरह काम करेंगी,जैसे अब तक करती रहीं थी। उनके लिए रिश्तों से पहले पार्टी है।
वैसे राजनीती अपने स्वार्थ के लिए कब किस परिवार में फूट डलवा दे, कहना असम्भव है। लेकिन बुद्धिमान परिवार राजनेताओं की इस कमी को भुनाने में पीछे नहीं रहते। अब इस पारिवारिक चुनावी लड़ाई को लीजिए, देवरानी-जेठानी में से कोई भी जीते या हारे, पद परिवार में ही रहा। समस्त परिवार को मिलेगा उसका लाभ, जिसे कोई दल रोक नहीं पायेगा। 
ऐसे में स्मरण होती हैं, हास्य कवि सुरेन्द्र शर्मा की "चार लाइना", बेटा अपने पिता से राजनीती के बारे में पूछता है, बाप बेटे को मकान की पहली मंज़िल पर जाने को बोलता है, पहली मंज़िल पर चढ़ने बाद पूछता है, अब क्या करूँ, कूद जा, मै लपक लूंगा, जब वह कूदा बाप ने लपका नहीं, जमीन पर गिर उसकी हड्डियाँ टूट गयी, बेटे ने कहा ये क्या किया पिताजी, मैंने तो आपसे राजनीती की शिक्षा के बारे में पूछा था। पिता ने कहा बेटा राजनीती में अपने बाप पर भी विश्वास मत करो।"     

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