फरवरी 2006 में इसी ब्लॉग पर शीर्षक "The story of two Lals --Motilal and Jawaharlal"(नीचे लिंक में देखें) लिखा था, कि नेहरू परिवार कोई ब्राह्मण नहीं, वास्तव में ब्रिटिश पुलिस के डर से मुस्लिम से परिवर्तित हिन्दू हैं। इन्दिरा गाँधी फ़िरोज़ से निकाह कर मैमुना बेगम बन गयी, परन्तु मोती लाल से लेकर राजीव गाँधी तक सभी का अंतिम संस्कार हिन्दू रीति-रिवाज़ से ही हुआ। इनमें से किसी एक मुस्लिम रीति-रिवाज से दफनाया जाने पर जनता इनके ढोंग को समझ जाती। कई बार सोशल मीडिया पर भी इस परिवार की वंश श्रृंखला प्रकाशित होती रहती है, जिसे वास्तविकता से अज्ञान अफवाह समझ लेते हैं, लेकिन है कटु सच्चाई। यही कारण है कि जवाहरलाल से लेकर वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी तक सभी हिन्दू मन्दिरों और त्योहारों में कोई न कोई अवरोध खड़ा करते रहे हैं। और इतिहास की वास्तविकता बताने एवं लिखने वालों को कांग्रेस और इनके समर्थक देश तोड़ने वाले साम्प्रदायिक बताकर देश की जनता को गुमराह करते हैं।
अयोध्या में रामजन्मभूमि मंदिर का उदाहरण सबके सामने हैं। समस्त मन्दिर विरोधी--हिन्दू हों या मुस्लिम-- सभी सच्चाई जानते हैं। उनके सामने समस्या यह है कि जिस दिन विरोध बंद कर दिया, जनता के समक्ष इतिहास के साथ की गयी छेड़छाड़ जगजाहिर हो जाएगी; परिणामस्वरूप, जनता के साथ-साथ उनके अपने परिवार भी उनको अपमानित करने में जरा भी संकोच नहीं करेंगे।
क्या ये दोनों सरदार पटेल और डॉ राजेन्द्र प्रसाद का इतिहास दोहराएंगे? |
सब जानते हैं कि आज़ादी के बाद से ही नेहरू-गांधी ख़ानदान ने हिंदुओं को नीचा दिखाया और उनका मनोबल तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसकी शुरुआत आज़ादी के बाद से ही हो गई थी। लेकिन जब नेहरू के हिंदू विरोधी काम पर अंकुश लगाने के लिए सरदार वल्लभ भाई पटेल नहीं रहे तो नेहरू पूरी बेशर्मी से इस काम में जुट गए।
के सुब्रह्मण्यम लिखते हैं कि, ” मैं जन्म से हिंदू हूं, लेकिन जब मै खुद को हिंदू बताता हूं तो भारत सरकार ( नेहरू सरकार) मुझे कम्यूनिष्ट समझती है। हिंदुओं को अपने आप पर शर्मिंदा होना पड़ता है और वो इस पर सार्वजनिक रुप से चर्चा नहीं कर सकता। सभी हिन्दुओं की तरह मैं मानता हूं कि सभी पंथ अंत में ईश्वर की तरफ जाते हैं। लेकिन बाकी धर्मा के लोग ऐसा नहीं मानते। वो हिंदुओं को अपने धर्म में मिलाना चाहते हैं। हिंदू अपने देवी-देवताओं, आस्था का मज़ाक उड़ते देखने के लिए अभिशप्त है।”
के. सुब्रह्मण्यम लिखते हैं कि, “हिंदू धर्मस्थानों का मैनेजमेंट तो सरकार ने अपने हाथ में ले लिया है। लेकिन दूसरे धर्मों के धर्मस्थान में कोई दखल नहीं दे सकती। सरकार हिंदुओं के जीवन को तो कंट्रोल कर रही है। लेकिन अल्पसंख्यकों को कुछ भी करने की छूट है। देश में भगवान राम और कृष्ण का जन्मदिन राष्ट्रीय पर्व नहीं है। लेकिन पैगंबर मौहम्मद का जन्मदिन राष्ट्रीय पर्व घोषित कर दिया गया है। सहिष्णु हिंदू इसका कोई बुरा नहीं मानते और अकेले ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम गाते रहते हैं।”
के. सुब्रह्मण्यम ने हिंदुओं के द्वेषी अंबेडकर की तुलना में अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर, बीएन राव जैसे दूसरे हिंदू संविधान निर्माताओं को कम महत्व देने के लिए नेहरू को जिम्मेदार माना था। के. सुब्रह्मण्यम इस बात से भी दुखी थे कि वेद और हिंदू धर्मग्रन्थों का अनुवाद करने वाले अग्रेज़ मैक्सम्यूलर का भी सरकार गुणगान करती है। जबकि वो इनके ज़रिए हिंदुओं को पिछड़ा और ईसाई धर्म की सर्वोच्चता स्थापित करना चाहते हैं। उन्होंने ये भी कहा कि धर्मनिरपेक्ष ता के नाम पर सरकार हिंदुओं का अहित और अल्पसंख्यकों को बढ़ावा दे रही है। अग्रेज़ तो चले गए लेकिन हमारी सरकार अब भी उनकी नीतियों पर ही चल रही है।
मुस्लिम तुष्टिकरण के नाम पर कांग्रेस हमेशा से हिंदू विरोध की मानसिकता से ग्रस्त रही है। नेहरू खानदान शुरू से ही हिन्दुओं से नफरत करता रहा है और हिन्दुओं को तोड़ने का प्रयास करता रहा है। देखिए हिंदुओं से नफरत के 17 सबूत-
7 फरवरी, 1916
जवाहर लाल नेहरू और कमला नेहरू की शादी में नेहरू ने तीन कार्ड छपवाए थे। तीनों कार्ड अंग्रेजी के अलावा सिर्फ अरबी लिपि और फारसी भाषा में छपे थे। तीनों ही कार्ड में किसी भी हिन्दू देवी देवता का नाम नहीं लिखा गया था। न ही उन कार्ड पर हिन्दू धर्म से जुड़ा कोई श्लोक लिखा था। हिन्दू संस्कृति या फिर संस्कृत भाषा का कार्ड में कोई नामोनिशान तक नहीं था।(जवाहरलाल नेहरू की शादी के दोनों कार्ड, तनवीर अहमद, के शीर्षक "जवाहर लाल नेहरू की शादी का उर्दू में दावतनामा" नवजीवन के नवंबर 14, 2017 को प्रकाशित लेख से साभार)
सबूत नंबर – 2
आजादी के बाद जब बल्लभ भाई पटेल ने सोमनाथ मंदिर के दोबारा निर्माण की कोशिश शुरू की तो महात्मा गांधी ने इसका स्वागत किया, लेकिन जवाहर लाल नेहरू इसका लगातार विरोध करते रहे। यहां तक कि जब तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद वहां गए तो उन्होंने बकायदा उन्हें जाने से मना किया और विरोध भी दर्ज कराया।
सबूत नंबर – 3
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दू शब्द रखने पर जवाहर लाल नेहरू को घोर आपत्ति थी, उन्होंने इस शब्द को हटाने के लिए कहा था। पंडित मदन मोहन मालवीय पर दबाव भी डाला था। हालांकि उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में मुस्लिम शब्द रखने पर कभी आपत्ति नहीं जताई।
सबूत नंबर – 4
वंदे मातरम को राष्ट्रगीत बनाने पर जवाहर लाल नेहरू ने आपत्ति जताई थी। उन्हीं की आपत्ति के बाद मुस्लिमों का मनोबल बढ़ा, जिससे आज तक मुस्लिम वंदे मातरम गाने का विरोध करते हैं।
सबूत नंबर – 5
7 नवंबर, 1966 को दिल्ली में हजारों नागा साधु इकट्ठा होकर ये मांग कर रहे थे कि – गाय की हत्या बंद होनी चाहिए, इंदिरा गांधी किसी भी कीमत पर गौ हत्या बंद करने के मूड में नहीं थी। फिर क्या था, दिल्ली में ही इंदिरा गांधी ने जालियावाला कांड दोहराया और जनरल डायर की तरह हजारों नागा साधुओं के ऊपर गोलियां चलवा दीं, इस गोलीबारी में 6 साधु की मौत हो गई, यही नहीं उस समय गौभक्त माने जाने वाले गुलजारी लाल नंदा को इंदिरा ने गृहमंत्री पद से हटा दिया। इस घटना के बाद इंदिरा गांधी कई राज्यों में चुनाव हार गई थीं।
सबूत नंबर – 6
26 फरवरी, 1968
हिन्दू साधुओं पर गोली चलाने से चुनाव हार चुकी इंदिरा गांधी ने राजीव गांधी की शादी में हिन्दी में कार्ड तो छपवाया… लेकिन कार्ड में कहीं भी हिन्दू देवी देवता के नाम से परहेज किया गया। इसमें भगवान गणेश का भी नाम नहीं था ।
सबूत नंबर – 7
नेहरू-गांधी परिवार ने कभी कोई हिन्दू त्यौहार पारंपरिक रूप से नहीं मनाया। जिस प्रकार रमजान में ये परिवार हर साल इफ्तार पार्टी का आयोजन करता है, वैसा आयोजन आज तक कभी नवरात्रि में उनके घर पर नहीं हुआ। कभी कन्याओं को भोजन नहीं कराया गया। कभी किसी ने दिपावली में दीये जलाते नहीं देखा।
सबूत नंबर – 8
राहुल गांधी की उम्र 48 साल है, जबकि प्रियंका गांधी की 46 साल। कभी राहुल को प्रियंका गांधी से किसी ने राखी बंधवाते नहीं देखा। जबकि हिन्दुओं में भाई-बहन का रिश्ता बहुत ही पवित्र माना जाता है। कोई भी हिन्दू परिवार रक्षा बंधन से परहेज नहीं करता।
सबूत नंबर – 9
राहुल गांधी सिर्फ मोदी को हराने के लिए हिन्दू बने हैं… वर्ना पूरे नेहरू परिवार का कभी भी हिन्दू धर्म से नाता नहीं रहा है। यहां तक कि हिन्दु पर्व त्योहारों में बधाई देना भी अपमान माना जाता है। उदाहरण के लिए इस साल पहली बार कांग्रेस दफ्तर में होली मनाई गई, इससे पहले अघोषित बैन था। राहुल गांधी ने पहली बार लोगों को 2017 में दिवाली की शुभकामनाएं दी।
सबूत नंबर – 10
नेहरू गांधी परिवार कभी भी राम मंदिर निर्माण का समर्थन नहीं करता। बल्कि राम मंदिर के निर्माण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई में भी कांग्रेसियों ने रोड़े अटकाने का काम किया है। कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि राम मंदिर की सुनवाई जुलाई 2019 तक टाल दी जाए – ताकि लोक सभा चुनाव हो सके। ताकि कांग्रेस हिन्दुओं को बरगला कर सत्ता में आ जाए और राम मंदिर के निर्माण पर हमेशा के लिए रोक लग जाए।
सबूत नंबर – 11
2007 में कांग्रेस सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा था कि राम, सीता, हनुमान और वाल्मिकी काल्पनिक किरदार हैं, इसलिए रामसेतु का कोई धार्मिक महत्व नहीं माना जा सकता है।
सबूत नंबर – 12
कांग्रेस ने ही पहली बार मुस्लिमों को हज में सब्सिडी देने और अमरनाथ यात्रा पर टैक्स लगाने का पाप किया। गौरतलब है कि दुनिया के किसी भी देश में हज में सब्सिडी नहीं दी जाती है, सिर्फ कांग्रेस ने भारत में ये शुरू किया। मोदी सरकार ने इसे खत्म कर दिया।
सबूत नंबर – 13
कांग्रेस ने ही सबसे पहले दुनिया भर में हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए हिन्दू आतंकवाद नाम का शब्द गढ़ा। एक ऐसा शब्द ताकि मुस्लिम आतंकवाद की तरफ से दुनिया का ध्यान भटकाकर हिन्दुओं को आतंकवादी सिद्ध किया जा सके।
सबूत नंबर – 14
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक बयान के जरिए देश की बहुसंख्यक आबादी को चौंका दिया, जब उन्होंने कहा कि मंदिर जाने वाले लोग लड़कियों को छेड़ते हैं। हिन्दू धर्म में मंदिर जाने वाले लोग लफंगे होते हैं।
सबूत नंबर – 15
तीन तलाक पर सुनवाई के दौरान राहुल गांधी के करीबी कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने इस्लामी कुरीति की तुलना राम से कर दी। उन्होंने ये तुलना जान बूझकर की थी।
अवलोकन करें:--
राहुल गांधी ने विदेश जाकर ये फैलाने की कोशिश की कि लश्कर से भी ज्यादा कट्टर आतंकी हिन्दू होते हैं। जबकि आज तक कभी ये सामने नहीं आया कि कोई हिन्दू आतंकी बना हो।
सबूत नंबर – 17
राहुल गांधी ने जर्मनी जाकर फिर से हिन्दू धर्म को बदनाम करने का प्रयास किया। राहुल ने कहा कि भारत में महिलाओं के खिलाफ जो अत्याचार होते हैं, उसकी वजह भारतीय संस्कृति है।
सबूत नंबर - 18
भारतीय संस्कृति को धूमिल करने की नींव
नेहरू द्वारा भारत में हुए प्रथम आम चुनाव में लोकतन्त्र की निर्मम हत्या कर दी थी, जब हिन्दू महासभा के उम्मीदवार विशन सेठ ने रामपुर संसदीय क्षेत्र से नेहरू के लाडले मौलाना आज़ाद को लगभग 6000 मतों से पराजित होता देख, तुरन्त उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमन्त्री जी.बी.पन्त को परिणाम बदल आज़ाद को संसद भेजने को कहा। जिसके परिणामस्वरूप नेहरू के आदेश का पालन करते, पन्त ने कलेक्टर को आदेश का पालन करने को कहा, कलेक्टर ने विशन को उनके विजयी जुलुस से अगवा कर, उनके मतों को मौलाना आज़ाद के मतों में मिलवाकर लगभग 3000 मतों से विजयी उम्मीदवार सेठ को पराजित घोषित करवा दिया। मौलाना आज़ाद को शिक्षा मन्त्री बनाकर भारतीय संस्कृति को धूमिल कर, मुग़ल शासन का गुणगान करने में नेहरू का योगदान रहा।
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