क्या इस तरह के विकास की लगाई थी आस?

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आर.बी.एल निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
आज जब दिल्ली की हवा में प्रदूषण के स्तर ने विश्व के सभी रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए तो इस बात को समझ लेने का समय आ गया है कि यह आज एक समस्या भर नहीं रह गई है। आज जब एयर प्यूरीफायर की मार्किट लगातार बढ़ती जा रही है तो यह संकेत है कि प्रदूषण किस कदर मानव जीवन के लिए ही एक चुनौती बन कर खड़ा है, खासतौर पर भारत में। आगर आप सोच रहे हैं कि ऐसा कुछ नहीं है तो आपके लिए डब्लूएचओ की रिपोर्ट के कुछ अंश जान लेने आवश्यक हैं। इस रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि वायु प्रदूषण की वजह से सम्पूर्ण विश्व में हर साल लगभग 70 लाख लोगों की मौत हो जाती है। विश्व की आबादी का 91% हिस्सा आज उस वायुमंडल में रहने के लिए विवश है जहाँ की वायु की गुणवत्ता डब्लूएचओ के मानकों के अनुसार बेहद निम्न स्तर की है।
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भारत में स्थिति की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2016 में हमारे देश में एक लाख दस हजार बच्चे वायु में मौजूद प्रदूषण के बेहद बारीक कण पीएम के कारण अकाल काल के ग्रास बन गए। लेकिन इससे अधिक विचारणीय विषय यह है कि जहाँ कुछ समय पहले तक चीन की राजधानी बीजिंग विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में अव्वल थी अब इस सूची से गायब है। अब भारत के एक नहीं बल्कि 14 शहरों ने इसकी जगह ले ली है। और जिस दिल्ली के प्रदूषण ने सर्दियों की दस्तक से पहले ही देश के अखबारों की सुर्खियां बटोरनी शुरू कर दी हैं वो विश्व स्वस्थ संगठन की इस सूची में छठे नंबर पर है। डब्लूएचओ की विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों की इस सूची में कुछ शहर क्रमानुसार इस प्रकार हैं, कानपुर, फरीदाबाद, वाराणसी, गया, पटना, दिल्ली, लखनऊ।
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यह सूची जहाँ एक तरफ हमें चिंतित करती है वहीं एक उम्मीद की किरण भी दिखती है। चिंता की बात यह है कि भारत के लगभग14 शहर विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों में अव्वल हैं। और उम्मीद का विषय यह है कि अगर चीन कुछ ही वर्षों में बीजिंग के माथे से प्रदूषण का दाग हटा सकता है तो यह काम हमारे लिए भी असंभव नहीं है। जरूरत है कुछ ठोस नीतियों और दृढ़ इच्छाशक्ति की।
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आज आवश्यकता इस बात की है कि हमारी सरकारें एक दूसरे पर दोषारोपण करने के बजाए देश हित में ठोस कदम उठाऐं। लेकिन अफसोस की बात है कि इस गंभीर विषय को भी इतने सालों में सरकार केवल कुछ तात्कालिक उपायों के सहारे ही हल करना चाहती है। दिल्ली सरकार तो प्रदूषण का सारा दोष पराली जलाने वाले किसानों को देकर ही इतिश्री कर लेती है। यह वाकई में हास्यास्पद है कि दिल्ली में पंजाब और हरियाणा से ज्यादा प्रदूषण है जबकि वहाँ जहाँ पराली जलाई जाती है यानी पंजाब और हरियाणा, वहां दिल्ली के मुकाबले हवा साफ है। कहने का मतलब यह नहीं है कि पराली जलाने से प्रदूषण नहीं होता बल्कि यह है कि पराली जलाना ही प्रदूषण का "एकमात्र कारण" नहीं है।
दरअसल अगर हमारी सरकारें वाकई मे प्रदूषण से लड़ना चाहती है तो उन्हें इस समस्या के प्रति एक परिपक्व और ईमानदार नजरिया अपनाना होगा। समस्या की जड़ को समझ कर उस पर प्रहार करना होगा, एक नहीं अनेक उपाय करने होंगे,लोगों के सामने हल रखने होंगे, उन्हें विकल्प देने होंगे न कि तुगलकी फरमान। तात्कालिक उपायों के साथ साथ दीर्घकालिक लेकिन ठोस उपायों पर जोर देना होगा। जैसे,
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1. पराली के धुएं से हवा दूषित होती है तो सरकार को यह बात समझनी चाहिए कि एक गरीब किसान जो ज्यादा पढ़ा लिखा भी नहीं होता उससे यह अपेक्षा करना कि वो प्रदूषण के प्रति जागरूक हो जाए और पराली जलाने पर उससे जुर्माना वसूला जाए, ऐसी सोच ही बचकानी है। इसकी बजाय सरकार किसानों को विकल्प सुझाए। उन्हें पराली से छुटकारा पाने के जलाने से बेहतर तरीके बताए। जैसे उसे जैविक खाद में परिवर्तित करने के तरीके बताए। अगर किसानों के पास जगह और समय की समस्या हो,तो सरकार किसानों से पराली खरीद कर जैविक खाद बनाने का संयत्रों को प्रोत्साहित कर सकती है। इस प्रकार जब किसान पराली से कमाएंगे तो जलाएंगे क्यों?
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2.इसी प्रकार देश की सड़कों पर हर साल वाहनों की बढ़ती संख्या भी प्रदूषण के बढ़ते स्तर के लिए जिम्मेदार है।परिवहन विभाग के नवीनतम डाटा के अनुसार राजधानी दिल्ली में रजिस्टर्ड वाहनों की संख्या एक करोड़ 5 लाख 67 हज़ार 712 हो गई है। आंकड़ों के मुताबिक राजधानी की सड़कों पर हर साल 4 लाख से अधिक नई कारें आ जाती हैं। प्रदूषण में इनका योगदान भी कम नहीं होता। इसके लिए सरकार तत्कालिक उपायों के अलावा दीर्घकालिक उपायों पर भी जोर दे। जैसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट की संख्या, सुविधाजनक उपलब्धता और उसकी गुणवत्ता में सुधार करे ताकि लोग उनका अधिक से अधिक उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित हों।
3. इसके अलावा बैटरी अथवा बिजली से चलने वाले वाहनों के अनुसंधान और निर्माण की दिशा में शीघ्रता से ठोस कदम उठाए और धीरे धीरे पेट्रोल और डीज़ल से चलने वाले वाहनों के निर्माण को बंद करने के लिए कढ़े कदम उठाए।
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4. इसी प्रकार पराली और वाहनों से निकलने वाले धुंए से भी खतरनाक होता है उद्योगों से निकलने वाला प्रदूषण। क्योंकि इनमें ईंधन के रूप में पेट कोक इस्तेमाल होता है जिससे डीज़ल के मुकाबले 65000 गुना अधिक प्रदूषण होता है इसलिए इसे दुनिया का डर्टी फ्यूल यानी सबसे गंदा ईंधन भी कहा जाता है और अमरीका से लेकर चीन तक में प्रतिबंधित है। लेकिन भारत में यह अगस्त 2018 तक ना सिर्फ विश्व के लगभग 45 देशों से आयात होता था, बल्कि इसे टैक्स में छूट के अलावा जीएसटी में रिफंड भी हासिल था। लेकिन अब सरकार जाग गई है और भारत के उद्योगों में ईंधन के रूप में इसके उपयोग को प्रतिबंधित कर दिया गया है। अब यह आवश्यक है कि इस आदेश का पालन कढ़ाई से हो और उद्योगों में इसका उपयोग पूर्ण रूप से बंद हो।
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5. अब शायद हम यह समझ चुके हैं कि मानव ने विकास की राह में विज्ञान के सहारे जो तरक्की हासिल की है और प्रकृति की अनदेखी की है, उसकी कीमत वो अपने और अपने परिवार के स्वास्थ्य से चुका रहा है। इसलिए अब अगर वो अपनी आने वाली पीढ़ियों को एक खूबसूरत दुनिया और बेहतर जीवन देना चाहता है तो अब उसे उस प्रकृति की ओर ध्यान देना होगा। अब तक तो हमने प्रकृति का केवल दोहन किया है। अब समर्पण करना होगा। जितने जंगल कटे हैं उससे अधिक बनाने होंगे, जितने पेड़ काटे उससे अधिक लगाने होंगे, जितना प्रकृति से लिया, उससे अधिक लौटना होगा। प्रकृति तो माँ है, जीवनदायिनी है, दोनों हाथों से अपना प्यार लुटाएगी। इस धरती को हम जरा सा हरा भरा करेंगे, तो वो इस वातावरण को एक बार फिर से ताजगी के एहसास के साथ सांस लेने लायक बना देगी।
महात्मा गाँधी से लेकर नरेन्द्र मोदी तक चले कोई "सफाई अभियान"  रेलवे लाइन और नालों के किनारे शौच बंद नहीं करवा पाया। साफ सडकों पर झाड़ू लगाने वालों का नाटक दिल्ली में हुई सफाई कर्मचारियों की हुई हड़ताल में सामने आ गया। किसी में साहस नहीं हुआ कि गलियों में बहती नालियों और गन्दी पड़ी सडकों पर झाड़ू लगा दें। 

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