रिजर्व बैंक ने सरकार को अपना रिजर्व देने से किया मना

modi government wants to utilise rbi contingency fundकेंद्र सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के टकराव की खबरें छन-छनकर बाहर आ रही थीं। लेकिन अब इस टवराव की असल वजह खुलकर सामने आ गई है। दोनों के बीच तल्खी की वजह सरकार का एक प्रस्ताव रहा, जिसमें केंद्र सरकार ने आरबीआई से रिजर्व पूंजी में से सरप्लस के 3.6 लाख करोड़ रुपए देने का प्रस्ताव रखा था, जो कि कुल सरप्लस 9.59 लाख करोड़ का एक तिहाई है। आरबीआई ने सरकार के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और दलील दी कि इससे माइक्रो इकोनॉमी को खतरा हो सकता है। 
फंड ट्रांसफर का सिस्टम है पुराना 
केंद्र सरकार ने सुझाव दिया था कि सरप्लस को सरकार और आरबीआई दोनों मिलकर मैनेंज करें, क्योंकि वित्त मंत्रालय की नजर में आरबीआई का फंड ट्रांसफर से जुड़ा सिस्टम काफी पुराना है। वहीं आरबीआई का मानना है कि सरकार की आरबीआई से इस तरह से इकोनॉमी पर बुरा असर पड़ेगा। साथ ही अर्जेंटीना जैसी आर्थिक हालात में सरप्लस की रकम मददगार साबित होगी। आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने 26 अक्टूबर की अपनी स्पीच में इस मुद्दे का जिक्र किया था। 
आरबीआई का निर्णय एकतरफा
वित्त मंत्रालय के मुताबिक सरप्लस ट्रांसफर करने का मौजूदा फ्रेमवर्क एकतरफा था, जिसे आरबीआई की ओर से जुलाई 2017 में लागू किया है। वित्त मंत्रालय का कहना है कि जिस सरप्लस ट्रांसफर के मुद्दे पर मीटिंग हुई, उस वक्त सरकार की ओर नॉमिनेटेड दोनों सदस्य शामिल नहीं थे। ऐसे सरकार इस फ्रेमवर्क को मानने से इनकार कर रही है और आरबीआई से इस मामले में चर्चा करना चाहती है। सरकार की मानें तो आरबीआई के पास कैपिटल रिजर्व जरूरत से ज्यादा है। ऐसे में उससे 3.6 लाख करोड़ रुपए सरकार दो दिए जाएं।
बैंकों के हालात सुधारने में मिलेगी मदद
सरकार का कहना है कि आरबीआई को 2017-18 के सरप्लस को सरकार को देना देना चाहिए। सरकार सरप्लस की रकम से अपना चालू खाता घाटा(CAD) कम करना चाहेगी। साथ ही पब्लिक सेक्टर की बैकों के हालत सुधारने में मदद मिलेगी। बता दें कि आरबीआई की ओर से 2017-18 में सरकार को 50 हजार करोड़ रुपए सरप्लस ट्रांसफर किया गया था। इसी तरह 2016-17 में 30 हजार करोड़ सरप्लस ट्रांसफर किया था। हालांकि आरबीआई की दलील है कि सरप्लस को आपात स्थिति या फिर वित्तीय जोखिम के लिए बचाककर रखा गया है। यूएस, यूके, अर्जेंटीना, फ्रांस, सिंगापुर की केंद्रीय बैंकों में अपनी कुल संपत्ति का कम से कम कैपिटल रिजर्व रखा जाता है, जबकि मलेशिया, नार्वे और रूस भारत से ज्यादा रिजर्व रखती हैं। 

RBI के 2.5 लाख करोड़ पर है मोदी सरकार की नजर

मोदी सरकार की नजर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के 2.5 लाख करोड़ रुपए पर है। मोदी सरकार रिजर्व बैंक के इस आपात फंड से अपना वित्तीय घाटा पूरा करना चाहती है। हालांकि रिजर्व बैंक मोदी सरकार के इस प्लान से सहमत नहीं है। रिजर्व बैंक मानना है कि सरकार के इस कदम से देश की अर्थव्यवस्था कमजोर होगी और वैश्विक निवेशकों का भरोसा भी अर्थव्यवस्था से कम होगा। इसी वजह से रिजर्व बैंक और मोदी सरकार के बीच टकराव बढ़ गया है। सीनियर इकोनॉमिक जर्नलिस्ट एमके वेणु ने moneybhaskar.com से रिजर्व बैंक और सरकार के बीच जारी टकराव के मुद्दे पर बातचीत की है। 
रिजर्व बैंक के काम में दखल दे रही है सरकार 
एमके वेणु का कहना है कि आरबीआई के पास लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपए का कांटिजेंसी फंड है। सरकार इस फंड का इस्तेमाल वित्तीय घाटा कम करने में करना चाहती है। सरकार ने इसके लिए आरबीआई एक्ट के सेक्शन 7 के तहत रिजर्व बैंक को तीन पत्र लिखे हैं। ऐसा लगता है कि इसके बाद ही रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने अपनी स्पीच में रिजर्व बैंक के काम काज में सरकार के दखल का मामला उठाया है। डिप्टी गचर्नर की स्पीच को लेकर गवर्नर उर्जित पटेल की भी सहमति थी। वेणु का कहना है कि इसीलिए विरल आचार्य ने अर्जेंटीना का उदाहरण दिया कि किस तरह से वहां की सरकार ने सेंट्रल बैंक के काम में दखल दिया जिससे अजेंटीना की अर्थव्यवस्था पर काफी बुरा असर पड़ा। 
बड़े इंडस्ट्री समूह के डिफॉल्ट पर सख्त एक्शन चाहता है रिजर्व बैंक 
एमके वेणु के मुताबिक देश के शीर्ष 6-7 इंडस्ट्री ग्रुप पर 6 लाख करोड़ रुपए का लोन बकाया है। इसमें से लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपए से अधिक का लोन डिफॉल्ट हो चुका है। रिजर्व बैंक ने इस डिफॉल्ट पर सख्त एक्शन चाहता है। रिजर्व बैंक ने इन इंडस्ट्री ग्रुप को साफ कर दिया है कि या तो लोन चुकाएं या आपका मामला एनसीएलटी में जाएगा। वहीं सरकार 2019 चुनाव से पहले बड़े औद्योगिक घरानों के खिलाफ सख्त कदम नहीं उठाना चाहती है। वेणु का कहना है कि सरकार एक तरफ आईबीसी कोड को अपनी उपलिब्ध बता रही है कि इसके जरिए बड़े कारोबारियों से कर्ज की वसूली होगी। वहीं सरकार बड़े औद्योगिक घरानों के मामले को एनसीएलटी में नहीं ले जाना चाहती है। वहीं रिजर्व बैंक इस मसले पर कंप्रोमाइज नहीं करना चाहता है।
आरबीआई को मजबूर किया गया तो और खराब हो सकते हैं हालात 
वेणु का कहना है कि अब भी सरकार के पास समय और उसे मौजूदा समय में जारी टकराव से पीछे हट जाना चाहिए, क्योंकि अगर सरकार सेक्शन 7 के तहत रिजर्व बैंक के सिर पर बंदूक रखकर अपनी बात मनवाती है तो इसके बहुत बुरे नतीजे हो सकते हैं। अगर पूरी दुनिया में यह मैसेज चला गया कि भारतीय रिजर्व बैंक का तंत्र मजबूत नहीं है और वह अपने हिसाब से काम नहीं कर पा रहा है तो इससे विदेशी निवेशकों का विश्वास कमजोर होगा। साथ ही पूरी दुनिया में भारत को लेकर नकारात्मक इमेज बनेगी। (साभार)

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