Delhi Air Pollution: दिल्ली में नहीं सुधरे हालात

Delhi air pollutionदिवाली के लगभग 48 घंटे बाद भी दिल्ली के हालात नहीं सुधरे हैं। राजधानी में नवम्बर 9  सुबह भी प्रदूषण का स्तर बेहद गंभीर स्तर पर रहा और यहां वायु गुणवत्ता 'खतरनाक' श्रेणी की रही। दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बढ़ने से परेशान लोग मॉर्निग वॉक पर भी मास्क लगाकर निकले। नवम्बर 9 की सुबह आनंद विहार में एयर क्वॉलिटी इंडेक्स  585, अमेरिकी दूतावास के पास 467 और आरके पुरम में 343 रिकॉर्ड किया गया।
ताजा आंकड़ों के अनुसार दिल्ली-एनसीआर का अधिकांश हिस्सा अत्यधिक खराब हवा की गुणवत्ता से जूझ रहा है। पिछले साल की बुरी हालत को देखते हुए इस बार सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में पटाखे फोड़ने को लेकर सख्त दिशानिर्देश जारी किए थे। बावजूद इसके राजधानी दिल्ली में जमकर पटाखे फोड़े गए जिसके बाद हवा की क्वालिटी लगातार खराब बनी हुई हैं। इससे पहले भी दिल्ली की वायु गुणवत्ता नवम्बर 7 को ‘खराब’ से ‘बहुत खराब’ श्रेणी के बीच में बनी रही।
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बावजूद लोग तय समय सीमा से ज्यादा देर तक पटाखे फोड़ते दिखे। वहीं इस मामले को गंभीरता से लेते हुए दिवाली की रात राजधानी के विभिन्न इलाकों से 1705 किलो पटाखे जब्त किए गए हैं वहीं सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का उल्लंघन करने के मामले में 562 एफआईआर दर्ज की जा चुकी हैं।

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's Anand Vihar at 585, area around US Embassy at 467 and RK Puram at 343 - all under 'Hazardous' category in Air Quality Index (AQI).
चौंकाने वाली है WHO की रिपोर्ट
दिल्ली प्रदूषण पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट चौंकाने वाली है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण की वजह से हर साल करीब 30 हजार लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ रही है।
इन लोगों के शरीर पर प्रदूषित हवा का बेहद खतरनाक प्रभाव पड़ रहा है। प्रदूषित हवा का शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है- शरीर के जो अंग सबसे ज्यादा प्रदूषण से होते हैं वे हैं- त्वचा, नाक, आंख, गला, लीवर, फेफड़े, हृदय, किडनी।
प्रदुषण की बढ़ती समस्या के लिए खेतों की जगह बनते मॉल, गगन-चुम्बी इमारतें, घर, दुकान, ऑफिस, कार और बसों में चल रहे ए सी पर अंकुश लगाना होगा। आज देश में इतने अधिक ए सी चल रहे हैं, उनसे निकलने वाली गैस आसपास के वातावरण को भी दूषित करती है। उसके दबाव के कारण प्राकृतिक हवा भी प्रभावहीन हो जाती है। जब अपने बाल्यकाल को स्मरण करते है, उन दिनों दशहरा से गंगा नहान तक आतिशबाज़ी होती थी, और खूब होती थी, कोई शोर नहीं मचा। जबकि उन दिनों घर-घर चूल्हे जलते थे। लेकिन पिछली सरकार के कार्यकाल से जो हिन्दू विरोधी लहर चली, आज तक नहीं थमीं। दिवाली पर पटाखे मत जलाओ, प्रदुषण फैलता है; होली पर रंग मत फेंको, पानी की बर्बादी होती है; शिव रात्रि पर शिव को दूध चढ़ाने से दूध की बर्बादी होती है, आदि आदि। लेकिन शब्बे रात पर मुस्लिम क्षेत्रों में बिना लाइसेंस के पटाके बिकते हैं, 15 अगस्त की संध्या से मुस्लिम क्षेत्रों में कितनी आतिशबाज़ी होती, कोई नहीं बोलता, क्यों? इतना ही नहीं, बकरीद के मौके मुस्लिम क्षेत्रों में गलियों में कटते ऊंट और भैसों के कटने से क्या प्रदुषण नहीं फैलता? कोई नहीं बोलता, कोई न्यूज़ चैनल इन बातों को नहीं दिखाता, क्यों? आखिर ये दोहरे मापदंड कब तक चलेंगे?   

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