आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
दफ्तर पहुंचने में लेट लतीफी करने वाले सरकारी कर्मचारियों की अब खैर नहीं। दिल्ली सरकार ने ऑफिस लेट पहुंचने वाले कर्मचारियों पर नकेल कसने के लिए तैयारी कर ली है। सरकार ऑफिस लेट पहुंचने वाले अधिकारी व कर्मचारियों पर कार्रवाई करेगी। अब निर्धारित समय से 10 मिनट तक लेट पहुंचने पर आधे दिन की सीएल काट ली जाएगी, वहीं 3 दिन लेट पहुंचने पर 1 सीएल कट जाएगी।
महिला एवं बाल विकास विभाग ने अक्टूबर में 3 दिन से 17 दिन तक देर से ऑफिस आने वाले 28 लोगों की लीव काटने का आदेश जारी किया है। निदेशक की मंजूरी से जारी आदेश में कहा गया है 'अगर कर्मचारी की सीएल खत्म हो चुकी है तो अर्न लीव यानी ईएल कट जाएगी।'
दफ्तर पहुंचने में लेट लतीफी करने वाले सरकारी कर्मचारियों की अब खैर नहीं। दिल्ली सरकार ने ऑफिस लेट पहुंचने वाले कर्मचारियों पर नकेल कसने के लिए तैयारी कर ली है। सरकार ऑफिस लेट पहुंचने वाले अधिकारी व कर्मचारियों पर कार्रवाई करेगी। अब निर्धारित समय से 10 मिनट तक लेट पहुंचने पर आधे दिन की सीएल काट ली जाएगी, वहीं 3 दिन लेट पहुंचने पर 1 सीएल कट जाएगी।
महिला एवं बाल विकास विभाग ने अक्टूबर में 3 दिन से 17 दिन तक देर से ऑफिस आने वाले 28 लोगों की लीव काटने का आदेश जारी किया है। निदेशक की मंजूरी से जारी आदेश में कहा गया है 'अगर कर्मचारी की सीएल खत्म हो चुकी है तो अर्न लीव यानी ईएल कट जाएगी।'
पहली बार एक साथ 28 कर्मियों की लीव काटने का आदेश
महिला एवं बाल विकास विभाग डिप्टी डायरेक्टर आरएस रुहिल ने निदेश की मंजूरी से जो आदेश जारी किया गया है उसमें 14 अधिकारी एक महीने में 10 दिन से अधिक लेट ऑफिस पहुंचे। चार अधिकारी ऐसे हैं जो 16 से 17 दिन आफिस लेट पहुंचे हैं।
बायो - मैट्रिक्स की वजह से पकड़ी जाती है लेट लतीफी
दिल्ली सरकार ने सभी कर्मचारियों में बायाे- मैट्रिक्स हाजिरी की व्यवस्था शुरू की है। उसमें कार्यालय समय से 10 मिनट के बाद एक सेंकेड भी देरी से पहुंचने पर लेट आने वाले सूचि में अधिकारी या कर्मचारियों का नाम शामिल हो जाएगा।
इसमें दो राय नहीं कि कई सरकारी, दिल्ली प्रशासन या निगम कार्यालयों में कार्यरत कर्मचारियों अथवा अधिकारियों को अपने घर आकर दोपहर का भोजन करना, आराम फरमाने उपरान्त घर के अन्य कामों को करते देख, ऐसा आभास होता था, कि ऐसा किस तरह का प्रशासन है, कि कर्मचारी/अधिकारी अधिकतर समय अपने घर पर ही रहकर, वेतन कैसे ले रहे हैं। कुछ को तो अपना व्यवसाय करते भी देखा। कई कर्मचारियों/अधिकारियों को कोल्हू के बैल की तरह पिलते भी देखा। यह कोई आज नयी बात नहीं है, अपने विद्यार्थी जीवन से देख से अनुभव कर रहा था। लगभग 3 दशक पूर्व की बात है, एक दिल्ली नगर निगम अधिकार का किसी दूसरे जोन में ट्रान्सफर हो गया है, लेकिन बैठते सिटी जोन, आसफ अली रोड, में ही रहे। आदेश भी देते रहे। काम करते और करवाते रहे, लेकिन वेतन उस जोन से लेने जाते थे, जहाँ उनका ट्रान्सफर हुआ था। चलो छोड़िये, इनमें से अधिकतर तो अब तक स्वर्ग भी सिधार चुके हैं। खैर, चलो देर से सही, सरकार की नींद तो खुली।
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