आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल की कुर्सी बचाने के लिए आप संविधान बदलने की तैयारी में लगी हुई है। इसके लिए शनिवार(दिसंबर 29) को राष्ट्रीय परिषद की बैठक भी बुलाई गई है। पार्टी के संविधान में यह संशोधन इसलिए किया जा रहा है ताकि मुख्यमन्त्री के रूप में केजरीवाल के कार्यकाल को आगे बढ़ाया जा सके। दरअसल आम आदमी पार्टी के संस्थापक अरविंद केजरीवाल का पार्टी अध्यक्ष के रूप में दूसरा कार्यकाल पूर्ण होने वाला है।
उल्लेखनीय है कि पार्टी अध्यक्ष के रूप में अरविंद केजरीवाल का दूसरा कार्यकाल 2019 में पूर्ण हो रहा है, ये पार्टी अध्यक्ष के रूप में उनका दूसरा कार्यकाल है। क्योंकि पार्टी के अध्यक्ष केजरीवाल को अप्रैल 2016 में तीन साल के लिए अध्यक्ष बनाया गया था। इसी के मद्देनज़र पार्टी अपने संविधान को बदलने की तैयारी में लगी हुई है। पार्टी के संविधान बदलने के पीछे यह कहा जा रहा है कि केजरीवाल के हमेशा के लिए पार्टी अध्यक्ष बनने की सम्भावना है।
जो पार्टी अपने आपको अन्य पार्टियों से अलग बताती रही है, वही पार्टी कांग्रेस के नक़्शे कदम पर चल रही है। जिस तरह कांग्रेस अध्यक्ष पद केवल एक ही परिवार में रहा है, उसी भाँति केजरीवाल भी अपनी पार्टी को अपनी बपौती बनाने में पीछे नहीं। हालाँकि अध्यक्ष पद के लिए पार्टी में कई नेता हैं, लेकिन सबको दरकिनार किया जा रहा है। शायद उनको यह बात ज्ञात है कि जिस दिन मैंने(केजरीवाल) अध्यक्ष पद छोड़ा, पता नहीं कब पार्टी दूध में से मक्खी की तरह निकाल कर बाहर फेंक दे, जिस तरह योगेन्द्र यादव, प्रशान्त भूषण, कपिल मिश्रा आदि को फेंका जा चूका है। यदि यही स्थिति केजरीवाल की हुई, कोई गाजर और मूली के भाव भी लेने को तैयार नहीं होगा।
पार्टी के वर्तमान नियम के अनुसार पार्ट के किसी भी सदस्य को पार्टी अध्यक्ष के रूप में तीन साल के लिए लगातार दो बार से पार्टी अध्यक्ष नहीं बनाया जा सकता है। ऐसे में अगर इस नियम पर पार्टी आगे बढ़ती है तो केजरीवाल की परेशानियां बढ़ जाएंगे क्योंकि 2019 में पार्टी अध्यक्ष के रूप में उनका कार्यकाल समाप्त हो रहा है। अब देखना ये दिलचस्प होगा कि पार्टी के बाकी नेता इस विषय में क्या राय देते हैं और संविधान में संशोधन हो पाता है या नहीं।
यदि पार्टी के वरिष्ठ सदस्य केजरीवाल के इस मकड़जाल में फँसते हैं, उनकी वही स्थिति होगी जो कांग्रेस, समाजवादी, बसपा, लोकजन शक्ति, लालू की राष्ट्रीय जनता दल आदि पार्टी में वरिष्ठ सदस्यों को एक ही परिवार की ओर टिकटिकी लगाए रहना होता है। अब देखना यह है कि "क्या आप के संस्थापक सदस्यों से लेकर अन्य वरिष्ठ सदस्य भी केजरीवाल और केजरीवाल परिवार के अधीन रहकर रहेंगे या फिर आत्मसम्मान के साथ?"
दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल की कुर्सी बचाने के लिए आप संविधान बदलने की तैयारी में लगी हुई है। इसके लिए शनिवार(दिसंबर 29) को राष्ट्रीय परिषद की बैठक भी बुलाई गई है। पार्टी के संविधान में यह संशोधन इसलिए किया जा रहा है ताकि मुख्यमन्त्री के रूप में केजरीवाल के कार्यकाल को आगे बढ़ाया जा सके। दरअसल आम आदमी पार्टी के संस्थापक अरविंद केजरीवाल का पार्टी अध्यक्ष के रूप में दूसरा कार्यकाल पूर्ण होने वाला है।
उल्लेखनीय है कि पार्टी अध्यक्ष के रूप में अरविंद केजरीवाल का दूसरा कार्यकाल 2019 में पूर्ण हो रहा है, ये पार्टी अध्यक्ष के रूप में उनका दूसरा कार्यकाल है। क्योंकि पार्टी के अध्यक्ष केजरीवाल को अप्रैल 2016 में तीन साल के लिए अध्यक्ष बनाया गया था। इसी के मद्देनज़र पार्टी अपने संविधान को बदलने की तैयारी में लगी हुई है। पार्टी के संविधान बदलने के पीछे यह कहा जा रहा है कि केजरीवाल के हमेशा के लिए पार्टी अध्यक्ष बनने की सम्भावना है।
जो पार्टी अपने आपको अन्य पार्टियों से अलग बताती रही है, वही पार्टी कांग्रेस के नक़्शे कदम पर चल रही है। जिस तरह कांग्रेस अध्यक्ष पद केवल एक ही परिवार में रहा है, उसी भाँति केजरीवाल भी अपनी पार्टी को अपनी बपौती बनाने में पीछे नहीं। हालाँकि अध्यक्ष पद के लिए पार्टी में कई नेता हैं, लेकिन सबको दरकिनार किया जा रहा है। शायद उनको यह बात ज्ञात है कि जिस दिन मैंने(केजरीवाल) अध्यक्ष पद छोड़ा, पता नहीं कब पार्टी दूध में से मक्खी की तरह निकाल कर बाहर फेंक दे, जिस तरह योगेन्द्र यादव, प्रशान्त भूषण, कपिल मिश्रा आदि को फेंका जा चूका है। यदि यही स्थिति केजरीवाल की हुई, कोई गाजर और मूली के भाव भी लेने को तैयार नहीं होगा।
पार्टी के वर्तमान नियम के अनुसार पार्ट के किसी भी सदस्य को पार्टी अध्यक्ष के रूप में तीन साल के लिए लगातार दो बार से पार्टी अध्यक्ष नहीं बनाया जा सकता है। ऐसे में अगर इस नियम पर पार्टी आगे बढ़ती है तो केजरीवाल की परेशानियां बढ़ जाएंगे क्योंकि 2019 में पार्टी अध्यक्ष के रूप में उनका कार्यकाल समाप्त हो रहा है। अब देखना ये दिलचस्प होगा कि पार्टी के बाकी नेता इस विषय में क्या राय देते हैं और संविधान में संशोधन हो पाता है या नहीं।
यदि पार्टी के वरिष्ठ सदस्य केजरीवाल के इस मकड़जाल में फँसते हैं, उनकी वही स्थिति होगी जो कांग्रेस, समाजवादी, बसपा, लोकजन शक्ति, लालू की राष्ट्रीय जनता दल आदि पार्टी में वरिष्ठ सदस्यों को एक ही परिवार की ओर टिकटिकी लगाए रहना होता है। अब देखना यह है कि "क्या आप के संस्थापक सदस्यों से लेकर अन्य वरिष्ठ सदस्य भी केजरीवाल और केजरीवाल परिवार के अधीन रहकर रहेंगे या फिर आत्मसम्मान के साथ?"
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