आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
प्रदेश सरकार ने एक बड़ी खुशखबरी छात्रों को दी है. दरअसल कक्षा 9 वीं व 10 वीं के सामान्य वर्ग के छात्रों को भी अब तीन हजार रुपये सालाना छात्रवृत्ति मिलेगी। इतना ही नहीं उनके लिए पात्रता की शर्तों में परिवार की सालाना इनकम भी दो लाख रुपये से बढ़ाकर ढाई लाख रुपये कर दी गई है। इस बारे में शासन द्वारा आदेश जारी कर दिया गया है। बता दे इसका फायदा प्रदेश के तीन लाख से ज्यादा छात्रों को मिलेगा।
प्रदेश सरकार ने एक बड़ी खुशखबरी छात्रों को दी है. दरअसल कक्षा 9 वीं व 10 वीं के सामान्य वर्ग के छात्रों को भी अब तीन हजार रुपये सालाना छात्रवृत्ति मिलेगी। इतना ही नहीं उनके लिए पात्रता की शर्तों में परिवार की सालाना इनकम भी दो लाख रुपये से बढ़ाकर ढाई लाख रुपये कर दी गई है। इस बारे में शासन द्वारा आदेश जारी कर दिया गया है। बता दे इसका फायदा प्रदेश के तीन लाख से ज्यादा छात्रों को मिलेगा।
सरकार का बड़ा फैसला
जानकारी के मुताबिक चुनावी वर्ष में योगी सरकार का यह फैसला छात्रों के लिए बड़ा तोहफा माना जा रहा है। बढ़ाई गई दर पर छात्रवृत्ति चालू वित्त वर्ष से ही दी जाएगी। यहां बता दें कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अनुसूचित जाति व जनजाति के छात्रों के लिए 14 अप्रैल को आम्बेडकर जयंती के अवसर पर वजीफा राशि बढ़ाने की घोषणा की थी। जिसे लागू कर दिया गया है। अब सामान्य वर्ग के छात्रों के लिए भी यह सुविधा दे दी गई है।
जानकारी के मुताबिक चुनावी वर्ष में योगी सरकार का यह फैसला छात्रों के लिए बड़ा तोहफा माना जा रहा है। बढ़ाई गई दर पर छात्रवृत्ति चालू वित्त वर्ष से ही दी जाएगी। यहां बता दें कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अनुसूचित जाति व जनजाति के छात्रों के लिए 14 अप्रैल को आम्बेडकर जयंती के अवसर पर वजीफा राशि बढ़ाने की घोषणा की थी। जिसे लागू कर दिया गया है। अब सामान्य वर्ग के छात्रों के लिए भी यह सुविधा दे दी गई है।
जानकारी के लिए बता दे शासन के आदेश में कहा गया है कि सामान्य वर्ग पूर्वदशम छात्रवृत्ति नियमावली-2018 के तहत यह संशोधन किया गया है। समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों का कहना है कि अभी तक योजना का लाभ लेने के लिए सामान्य वर्ग के दो लाख छात्र आवेदन करते थे, लेकिन आयसीमा बढ़ाए जाने पर यह संख्या बढ़कर तीन लाख होने का अनुमान है।
सपा और बसपा के वोट बैंक पर प्रहार
योगी आदित्यनाथ सूबे की सियासत में नए समीकरण पैदा करने जा रहे हैं। अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की उप-जातियों को भाजपा के पाले में करने के लिए यह उनका मास्टरस्ट्रोक भी हो सकता है। चार सदस्यों वाली सामाजिक न्याय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ओबीसी के लिए आरक्षित कुल 27 प्रतिशत कोटे में से यादव और कुर्मी को केवल सात प्रतिशत आरक्षण दिया जा सकता है। बता दें कि उत्तर प्रदेश सरकार ने ओबीसी के भीतर उप-जातियों के वर्गीकरण के लिए इस समिति का गठन किया है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक समिति की राय है कि यादव और कुर्मी ये दोनों जातियां सांस्कृतिक रूप से ही नहीं बल्कि आर्थिक और राजनीतिक रूप से प्रभाव रखने वाली हैं। यादवों को समाजवादी पार्टी (सपा) का और कुर्मी समाज को भाजपा की सहयोगी पार्टी अपना दल का कोर वोट बैंक समझा जाता है। जस्टिस राघवेंद्र कुमार की अगुवाई वाली समिति ने ओबीसी को 79 उप-जातियों में वर्गीकृत किया है। समिति की इस रिपोर्ट को पिछड़ा कल्याण मंत्री एवं भाजपा की सहयोगी पार्टी एसबीएसपी के मुखिया ओम प्रकाश राजभर विधानसभा के शीतकालीन सत्र में पेश कर सकते हैं।
राजभर ने चुनौती दी है कि लोकसभा चुनावों से पहले समिति की सिफारिशों को यदि लागू नहीं किया गया तो वह बड़े आंदोलन की शुरुआत करेंगे। समिति अपनी रिपोर्ट योगी सरकार को सौंप चुकी है। रिपोर्ट की मानें तो समिति ने लोध, कुशवाहा एवं तेली सहित अत्यंत पिछड़ी जातियों को अधिक राहत पहुंचाने की बात कही है। समिति ने इनके लिए 11 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रस्ताव किया है।
समिति ने 400 पन्ने की अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अत्यंत पिछड़ा वर्ग के लिए रोजगार के अवसर उनकी संख्या के मुकाबले आधे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक ओबीसी की कुछ उप जातियों को नौकरी के अवसर ज्यादा मिल रहे हैं और इन्हें उभरते 'मध्यम वर्ग' की श्रेणी में रखा जा सकता है। रिपोर्ट के अनुसार राजभर, घोसी एवं मुस्लिम समुदाय के कुरैशी जैसी अत्यंत पिछड़ी जातियों को 9 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रस्ताव किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक ये समुदाय या तो तृतीय अथवा चौथी श्रेणी की नौकरियों में हैं या पूरी तरह से नौकरियों में नहीं है।
गत जून में ओबीसी के भीतर संभावित कोटे के आंकलन करने के लिए एक समिति का गठन किया था। योगी का यह कदम अत्यंत पिछड़े वर्ग में भाजपा की पैठ बनाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। यूपी में सपा और बसपा के बीच राजनीतिक गठबंधन होने की बात चल रही है। ऐसे में इस महागठबंधन से मुकाबले के लिए योगी का यह दांव मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकता है।(इनपुट सहित)
सपा और बसपा के वोट बैंक पर प्रहार
योगी आदित्यनाथ सूबे की सियासत में नए समीकरण पैदा करने जा रहे हैं। अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की उप-जातियों को भाजपा के पाले में करने के लिए यह उनका मास्टरस्ट्रोक भी हो सकता है। चार सदस्यों वाली सामाजिक न्याय समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ओबीसी के लिए आरक्षित कुल 27 प्रतिशत कोटे में से यादव और कुर्मी को केवल सात प्रतिशत आरक्षण दिया जा सकता है। बता दें कि उत्तर प्रदेश सरकार ने ओबीसी के भीतर उप-जातियों के वर्गीकरण के लिए इस समिति का गठन किया है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक समिति की राय है कि यादव और कुर्मी ये दोनों जातियां सांस्कृतिक रूप से ही नहीं बल्कि आर्थिक और राजनीतिक रूप से प्रभाव रखने वाली हैं। यादवों को समाजवादी पार्टी (सपा) का और कुर्मी समाज को भाजपा की सहयोगी पार्टी अपना दल का कोर वोट बैंक समझा जाता है। जस्टिस राघवेंद्र कुमार की अगुवाई वाली समिति ने ओबीसी को 79 उप-जातियों में वर्गीकृत किया है। समिति की इस रिपोर्ट को पिछड़ा कल्याण मंत्री एवं भाजपा की सहयोगी पार्टी एसबीएसपी के मुखिया ओम प्रकाश राजभर विधानसभा के शीतकालीन सत्र में पेश कर सकते हैं।
राजभर ने चुनौती दी है कि लोकसभा चुनावों से पहले समिति की सिफारिशों को यदि लागू नहीं किया गया तो वह बड़े आंदोलन की शुरुआत करेंगे। समिति अपनी रिपोर्ट योगी सरकार को सौंप चुकी है। रिपोर्ट की मानें तो समिति ने लोध, कुशवाहा एवं तेली सहित अत्यंत पिछड़ी जातियों को अधिक राहत पहुंचाने की बात कही है। समिति ने इनके लिए 11 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रस्ताव किया है।
समिति ने 400 पन्ने की अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अत्यंत पिछड़ा वर्ग के लिए रोजगार के अवसर उनकी संख्या के मुकाबले आधे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक ओबीसी की कुछ उप जातियों को नौकरी के अवसर ज्यादा मिल रहे हैं और इन्हें उभरते 'मध्यम वर्ग' की श्रेणी में रखा जा सकता है। रिपोर्ट के अनुसार राजभर, घोसी एवं मुस्लिम समुदाय के कुरैशी जैसी अत्यंत पिछड़ी जातियों को 9 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रस्ताव किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक ये समुदाय या तो तृतीय अथवा चौथी श्रेणी की नौकरियों में हैं या पूरी तरह से नौकरियों में नहीं है।
गत जून में ओबीसी के भीतर संभावित कोटे के आंकलन करने के लिए एक समिति का गठन किया था। योगी का यह कदम अत्यंत पिछड़े वर्ग में भाजपा की पैठ बनाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। यूपी में सपा और बसपा के बीच राजनीतिक गठबंधन होने की बात चल रही है। ऐसे में इस महागठबंधन से मुकाबले के लिए योगी का यह दांव मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकता है।(इनपुट सहित)
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