

अपने फैसले में जस्टिस सेन ने आगे कहा कि पाकिस्तान ने खुद को एक इस्लामी देश घोषित कर दिया और धर्म के आधार पर भारत का विभाजन हुआ और जिस तरह पाकिस्तान ने खुद को इस्लामिक देश घोषित किया, उसी तरह भारत को भी खुद को हिंदू राष्ट्र घोषित करना चाहिए था, लेकिन धार्मिक आधार पर विभाजन होने के बावजूद भारत धर्मनिरपेक्ष देश के रूप में बना रहा.
जस्टिस सेन ने अपने फैसले में राष्ट्रीय नागरिकता पंजीकरण (एनआरसी) पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि 'मैं यह भी उल्लेख करता हूं कि वर्तमान में एनआरसी प्रक्रिया मेरे विचार में दोषपूर्ण है, क्योंकि कई विदेशी भारतीय बन जाते हैं और मूल भारतीयों को छोड़ दिया जाता है, जो बहुत दुख की बात है'.
जस्टिस सेन ने अपने फैसले में कहा है कि इन सभी समुदाय के लोग भारत में रहते हैं, ये जिस किसी भी तारीख को भारत आते हैं, उन्हें भारत का नागरिक घोषित किया जाए और भविष्य में इन समुदायों के जो लोग आते हैं उन्हें भारत का नागरिक माना जाए। जज ने आगे कहा है कि वह प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृह मंत्री, कानून मंत्री और सांसदों से अनुरोध करते हैं कि कानून बनाकर पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले इन समुदाय के लोगों को बिना किसी सवाल या 21 दस्तावेजों के भारत में शांतिपूर्वक और सम्मान के साथ रहने की अनुमति प्रदान करें।
पड़ोसी देशों से आने वाले हिंदुओं को
भारतीय माना जाए
उन्होंने प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और विधि मंत्री से एक कानून लाने का अनुरोध किया है ताकि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई, खासी, जयंतिया और गारो लोगों को बिना किसी सवाल या दस्तावेजों के नागरिकता मिले. इसके लिए न्यायमूर्ति ने असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल ए पॉल को फैसले की प्रति पीएम, गृह मंत्री और विधि मंत्री को जल्द से जल्द सौंपने के निर्देश भी दिए.जस्टिस सेन ने उम्मीद भी जताते हुए कहा कि भारत सरकार ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में इस फैसले का ख्याल रखेगी और इस देश और उसके लोगों को बचाएगी.
आदेश में यह भी कहा गया है कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान में आज भी हिंदू, जैन, बौद्ध, ईसाई, पारसी, खासी, जयंतिया और गारो लोग प्रताड़ित होते हैं और उनके लिए कोई स्थान नहीं है.
केंद्र के नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 में अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई लोग छह साल रहने के बाद भारतीय नागरिकता के हकदार हैं, लेकिन अदालती आदेश में इस विधेयक का जिक्र नहीं किया गया है.
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