आर.बी.एल.निगम,वरिष्ठ पत्रकार
प्रियंका गांधी वाड्रा सक्रिय राजनीति में आ गई है। उन्हें पार्टी महासचिव बनाते हुए उत्तर प्रदेश-पूर्व की जिम्मेदारी सौंपी गई है। लोकसभा चुनाव (Lok sabha elections 2019) को देखते हुए इसे कांग्रेस का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। देश में जगह-जगह कांग्रेस कार्यकर्ता जश्न मना रहे हैं। कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता कहते दिख रहे हैं कि प्रियंका गांधी के पार्टी में आने से कार्यकर्ता उत्साह से लबरेज हो गए हैं। वहीं एनडीए खेमा प्रियंका के कांग्रेस महासचिव बनने को ज्यादा तवज्जो नहीं देने की बात कह रहे हैं। ऐसे में समझने की कोशिश करते हैं कि क्या प्रियंका गांधी के आने से बीजेपी को नुकसान होगा?
जबकि कांग्रेस सूत्रों के अनुसार प्रियंका वाड्रा को सक्रिय राजनीती में लाने का निर्णय सोनिया गाँधी ने बड़ी सोंची-समझी रणनीति में लिया है। यदि रोबर्ट वाड्रा पर भ्रष्टाचार का मसला नहीं होता, शायद प्रियंका अभी सक्रिय राजनीती में नहीं आती। लेकिन प्रियंका से कांग्रेस को किसी लाभ की कामना भी नहीं करनी चाहिए। कांग्रेस को जो नुकसान हो चुका है, उसकी भरपाई बहुत मुश्किल है। अगर राहुल की बजाए सचिन पायलट या ज्योतिरादित्य सिंधिया को बना दिया होता, कांग्रेस को इतना निराश नहीं होना पड़ता। क्योकि कांग्रेस को सोनिया से ज्यादा नुकसान राहुल से हुआ है, शायद यही कारण है कि उत्तर प्रदेश मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ एवं दूसरे दूरगामी नेता कहते थे,"जितनी जल्दी हो राहुल गाँधी को अध्यक्ष बनाओ।"
युवाओं के बीच कैसे लोकप्रिय होंगी प्रियंका
कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता लगातार कहते रहे हैं कि प्रियंका गांधी में इंदिरा गांधी की झलक दिखती है। यही वजह है कि जनता का उनके प्रति रुझान है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि इंदिरा गांधी आखिरी बार साल 1980 में लोकसभा चुनाव लड़ी थीं। तब से 39 साल बीत चुके हैं. इस हिसाब से अगर 1980 में किसी 21 साल के शख्स ने वोट (उस वक्त वोटिंग की न्यूनतम उम्र 21 साल थी) डाला होगा तो 2019 में उसकी उम्र 60 साल होगी।
अवलोकन करें:--
21वीं सदी के युवा तो इंदिरा गांधी को किताबों और अखबारों के जरिए ही थोड़ा बहुत जानते हैं। दूसरी तरफ पीएम नरेंद्र मोदी सोशल मीडिया के दौर में लोकप्रिय नेता बने हैं। विरोधी भी मानते हैं कि पीएम मोदी अपनी बात जनता तक पहुंचाने और जनता से सीधे खुद को कनेक्ट करने के मामले में अपने दौर के सबसे माहिर नेता हैं। आंकड़ों की मानें तो इस वक्त देश का करीब 70 फीसदी युवा 45 साल से कम उम्र का है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस आज के युवाओं के जेहन में प्रियंका के बहाने कैसे इंदिरा गांधी की छवि को ला पाती है।
इंदिरा के कोर वोटर मायावती के साथ
इंदिरा गांधी के दौर के पत्रकार बताते हैं कि 'गरीबी हटाओ' नारे के जरिए समाज के दबे-कुचले, दलित-शोषित वर्ग के बीच कांग्रेस की लोकप्रियता बढ़ी थी। इस वर्ग के लोगों ने कांग्रेस को बढ़-चढ़कर समर्थन किया था। इस वक्त उत्तर प्रदेश में इस वर्ग के लोगों की राजनीति मायावती करती हैं। ऐसे में इंदिरा की छवि वालीं प्रियंका समाज के किस वर्ग के बीच कांग्रेस को लोकप्रिय बना पाती हैं ये चुनाव परिणाम ही बता पाएगा।
कांग्रेस की मजबूती से सपा-बसपा गठबंधन को हो सकता है नुकसान
उत्तर प्रदेश के रण में बीजेपी को पटखनी देने के लिए धुर विरोधी समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने गठबंधन कर लिया है। पिछले तीन दशक के वोटिंग पैटर्न बताते हैं कि सपा-बसपा और कांग्रेस के वोटरों में काफी समानता है। यूपी में कांग्रेस की पकड़ कमजोर होने के चलते मुस्लिमों ने सपा-बसपा की ओर अपना रुख कर लिया है। इस बार सपा-बसपा गठबंधन के सामने कांग्रेस प्रत्याशी भी प्रियंका के सहारे दमखम दिखाएंगे. पिछले चुनाव परिणाम के आधार पर कहा जा सकता है कि कांग्रेस के मजबूत होने का मतलब है कि सपा-बसपा को नुकसान। त्रिशंकु मुकाबले की स्थिति में बीजेपी को फायदा हो सकता है।
रॉबर्ट वाड्रा के मुद्दे पर घिरेंगी प्रियंका
प्रियंका वाड्रा के प्रति रॉबर्ट वाड्रा कई मुकदमों में घिरे हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने रॉबर्ट वाड्रा के बहाने कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप लगाए थे। अब खुद प्रियंका जब प्रचार मैदान में उतरेंगी तो बीजेपी उनके पति पर लगे आरोपों को जोर-शोर से उठाएगी। प्रियंका के सामने पति पर लगे आरोपों का जवाब देने की चुनौती होगी।
कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह लगभग सभी रैलियों में आरोप लगाते हैं कि कांग्रेस पार्टी में केवल एक परिवार को लाभ पहुंचाया गया। पीएम मोदी हमले करने के लिए लिए नामदार शब्द का प्रयोग करते हैं। अब प्रियंका के आने के बाद उनके हमले तेज होना तय है। प्रियंका के सक्रिय राजनीति में आने की घोषणा के तुरंत बाद केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा ने अपनी पहली प्रतिक्रिया में परिवारवाद का आरोप लगा चुके हैं।
प्रियंका गांधी वाड्रा सक्रिय राजनीति में आ गई है। उन्हें पार्टी महासचिव बनाते हुए उत्तर प्रदेश-पूर्व की जिम्मेदारी सौंपी गई है। लोकसभा चुनाव (Lok sabha elections 2019) को देखते हुए इसे कांग्रेस का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। देश में जगह-जगह कांग्रेस कार्यकर्ता जश्न मना रहे हैं। कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता कहते दिख रहे हैं कि प्रियंका गांधी के पार्टी में आने से कार्यकर्ता उत्साह से लबरेज हो गए हैं। वहीं एनडीए खेमा प्रियंका के कांग्रेस महासचिव बनने को ज्यादा तवज्जो नहीं देने की बात कह रहे हैं। ऐसे में समझने की कोशिश करते हैं कि क्या प्रियंका गांधी के आने से बीजेपी को नुकसान होगा?
जबकि कांग्रेस सूत्रों के अनुसार प्रियंका वाड्रा को सक्रिय राजनीती में लाने का निर्णय सोनिया गाँधी ने बड़ी सोंची-समझी रणनीति में लिया है। यदि रोबर्ट वाड्रा पर भ्रष्टाचार का मसला नहीं होता, शायद प्रियंका अभी सक्रिय राजनीती में नहीं आती। लेकिन प्रियंका से कांग्रेस को किसी लाभ की कामना भी नहीं करनी चाहिए। कांग्रेस को जो नुकसान हो चुका है, उसकी भरपाई बहुत मुश्किल है। अगर राहुल की बजाए सचिन पायलट या ज्योतिरादित्य सिंधिया को बना दिया होता, कांग्रेस को इतना निराश नहीं होना पड़ता। क्योकि कांग्रेस को सोनिया से ज्यादा नुकसान राहुल से हुआ है, शायद यही कारण है कि उत्तर प्रदेश मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ एवं दूसरे दूरगामी नेता कहते थे,"जितनी जल्दी हो राहुल गाँधी को अध्यक्ष बनाओ।"
युवाओं के बीच कैसे लोकप्रिय होंगी प्रियंका
कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता लगातार कहते रहे हैं कि प्रियंका गांधी में इंदिरा गांधी की झलक दिखती है। यही वजह है कि जनता का उनके प्रति रुझान है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि इंदिरा गांधी आखिरी बार साल 1980 में लोकसभा चुनाव लड़ी थीं। तब से 39 साल बीत चुके हैं. इस हिसाब से अगर 1980 में किसी 21 साल के शख्स ने वोट (उस वक्त वोटिंग की न्यूनतम उम्र 21 साल थी) डाला होगा तो 2019 में उसकी उम्र 60 साल होगी।
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इंदिरा के कोर वोटर मायावती के साथ
इंदिरा गांधी के दौर के पत्रकार बताते हैं कि 'गरीबी हटाओ' नारे के जरिए समाज के दबे-कुचले, दलित-शोषित वर्ग के बीच कांग्रेस की लोकप्रियता बढ़ी थी। इस वर्ग के लोगों ने कांग्रेस को बढ़-चढ़कर समर्थन किया था। इस वक्त उत्तर प्रदेश में इस वर्ग के लोगों की राजनीति मायावती करती हैं। ऐसे में इंदिरा की छवि वालीं प्रियंका समाज के किस वर्ग के बीच कांग्रेस को लोकप्रिय बना पाती हैं ये चुनाव परिणाम ही बता पाएगा।

उत्तर प्रदेश के रण में बीजेपी को पटखनी देने के लिए धुर विरोधी समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने गठबंधन कर लिया है। पिछले तीन दशक के वोटिंग पैटर्न बताते हैं कि सपा-बसपा और कांग्रेस के वोटरों में काफी समानता है। यूपी में कांग्रेस की पकड़ कमजोर होने के चलते मुस्लिमों ने सपा-बसपा की ओर अपना रुख कर लिया है। इस बार सपा-बसपा गठबंधन के सामने कांग्रेस प्रत्याशी भी प्रियंका के सहारे दमखम दिखाएंगे. पिछले चुनाव परिणाम के आधार पर कहा जा सकता है कि कांग्रेस के मजबूत होने का मतलब है कि सपा-बसपा को नुकसान। त्रिशंकु मुकाबले की स्थिति में बीजेपी को फायदा हो सकता है।
रॉबर्ट वाड्रा के मुद्दे पर घिरेंगी प्रियंका
प्रियंका वाड्रा के प्रति रॉबर्ट वाड्रा कई मुकदमों में घिरे हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने रॉबर्ट वाड्रा के बहाने कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप लगाए थे। अब खुद प्रियंका जब प्रचार मैदान में उतरेंगी तो बीजेपी उनके पति पर लगे आरोपों को जोर-शोर से उठाएगी। प्रियंका के सामने पति पर लगे आरोपों का जवाब देने की चुनौती होगी।
कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह लगभग सभी रैलियों में आरोप लगाते हैं कि कांग्रेस पार्टी में केवल एक परिवार को लाभ पहुंचाया गया। पीएम मोदी हमले करने के लिए लिए नामदार शब्द का प्रयोग करते हैं। अब प्रियंका के आने के बाद उनके हमले तेज होना तय है। प्रियंका के सक्रिय राजनीति में आने की घोषणा के तुरंत बाद केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा ने अपनी पहली प्रतिक्रिया में परिवारवाद का आरोप लगा चुके हैं।
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