पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने "फतवों" को गैर-कानूनी" कहा

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आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
भारत में पनप रहे सैकड़ों मिनी पाकिस्तान और करोड़ों पाकिस्तान समर्थकों को पाकिस्तान से कुछ सीखना चाहिए। दरअसल कमजोर पाकिस्तान की ये ही लोग सबसे बड़ी ताकत भी हैं। पाकिस्तान जाकर नरेन्द्र मोदी को सत्ता से बेदखल करने पाकिस्तान के आगे गिड़गिड़ाते हैं, जो इस बात को भी प्रमाणित करता है कि "गुलाम गुलाम ही रहेगा", जिस तरह नाली के कीड़े को बाहर साफ स्थान पर रख दो, लेकिन उसे नाली पसंद होने के कारण, नाली ही की तरफ जायेगा। ठीक यही स्थिति भारत में पल रहे जयचन्दों यानि पाकिस्तान समर्थकों की है। 
अभी कुछ दिन पूर्व, पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने "फतवों" को गैर-कानूनी कहा -मगर हमारा सुप्रीम कोर्ट "सेक्युलर" है । पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट ने "फतवों" को गैर कानूनी करार कर दिया- अदालत ने दूसरों को नुकसान पहुंचाने के मकसद से जारी किये जाने वाले फतवों को भी गैर-कानूनी करार दिया और कहा कि ऐसे फतवों को जारी करने वालों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाया जाना चाहिए। एक इस्लामिक देश का सुप्रीम कोर्ट शायद हमारे सेक्युलर देश के सुप्रीम कोर्ट से इस्लामिक कानूनों को ज्यादा ही समझता होगा,और उससे हमारे यहाँ भी सीख लेनी चाहिए --मगर कैसे ली जाये जब हमारे सेक्युलर दल इतना भी नहीं समझते कि ट्रिपल तलाक़ पाकिस्तान जैसे इस्लामिक देश में बैन है लेकिन वो हमारे देश में इसे जारी रखने पर आमादा हैं 
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हमारे यहाँ उत्तराखंड हाई कोर्ट के जस्टिस राजीव शर्मा और जस्टिस शरद कुमार शर्मा की बेंच ने फतवों पर अपने 30 अगस्त,2018 के आदेश में प्रतिबंध लगा दिया। अपने आदेश में हाई कोर्ट ने उत्तराखंड की सभी धार्मिक संस्थाओं, वैधानिक पंचायतों और लोगों के अन्य समूहों को "फतवे" जारी करने से प्रतिबंधित कर दिया क्योंकि इससे लोगों के मौलिक अधिकारों और मान सम्मान को ठेस लगती है। मसला एक जनहित याचिका में उठाया गया जिसमे कहा गया कि रूड़की के लक्सर गाँव की लोकल पंचायत ने एक बलात्कार से पीड़ित लड़की के परिवार को गाँव से निष्काषित करने का फतवा जारी कर दिया कर दिया - 11 अक्टूबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की खंडपीठ ने के फैसले पर रोक लगा दी।  मगर अभी निर्णय नहीं हुआ है --इस बीच जस्टिस मदन बी लोकुर रिटायर हो गये हैं। जिस परिवार को गांव से निष्काषित किया गया, उसके बारे में कुछ पता नहीं वो गाँव में है या नहीं। जमीअत उलेमा ए हिन्द ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी सुप्रीम कोर्ट साधारणतया ऐसी अपीलों पर राज्य सरकार को ही नोटिस जारी करता है मगर मजे की बात है इस अपील पर हाई कोर्ट को भी पार्टी बना कर नोटिस जारी किया गया। 
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पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट ने कहा --"दूसरों को नुकसान पहुँचाने के मकसद से जारी फतवा गैर कानूनी है" जिसका सीधा मतलब है वो शरिया के अनुसार न्याय संगत नहीं हैरूड़की परिवार को भी जाहिर है नुकसान ही पहुँचाने के मकसद से फतवा जारी हुआ फिर उसमे कानूनी उधेड़बुन क्यों ? हाई कोर्ट के फैसले के बाद देवबंद के दारुल उलूम ने 2014 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सहारा ले कर कहा कि हाई कोर्ट का फैसला गलत है। ये कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था --"फतवा एक राय है जो एक विशेषज्ञ देता है लेकिन ये संवैधानिक योजनाओं में मान्य नहीं है। ये न्याय करने की एक अनौपचारिक व्यवस्था है जिसका मकसद दो पक्षों के बीच सुलह कराना है
समझ नहीं आता कि पीड़ित परिवार को गाँव से निष्काषित करने में दो पक्षों के बीच कैसे न्याय हो सकता है, और फिर हमारे देश में फतवों के जरिये दी जाने वाली राय तो किसी का सर कलम करने के लिए भी कह देती है --नरेंद्र मोदी का सर कलम करने के लिए 25 लाख का इनाम रख दिया था इमाम बरकती ने --तस्लीमा नसरीन और सलमान रुश्दी का सर कलम करने,  के भी फतवे जारी हो चुके है -ऐसे फतवों से भला कैसे दो पक्षों के बीच सुलह होती है। सुप्रीम कोर्ट को इस विषय में तुरंत फैसला करना चाहिए। फतवे केवल राय ही नहीं रह गए हैं, बल्कि ये सामानांतर न्याय व्यवस्था स्थापित कर रहे हैं जो खुद सुप्रीम कोर्ट के लिए एक बड़ी चुनौती हैं। 

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