साभार |
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
1951 में पहली बार देश की पहली लोकसभा के लिए चुनाव कराए गए।489 संसदीय सीटों पर अपनी किस्मत आजमाने वाले 1874 उम्मीदवारों का फैसला 10.59 करोड़ से अधिक मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग करके किया।इस चुनाव में जहां कुल मतदाताओं की संख्या करीब 17.32 करोड़ थी, वहीं मतदान करने वाले मतदाताओं का प्रतिशत 44.87 था। इस चुनाव में एक संसदीय सीट ऐसी भी थी, जहां एक भी मतदाता ने अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं किया। जी हां, संसदीय सीट का नाम था बिलासपुर।चुनावनामा में अब विस्तार से बात करते हैं बिलासपुर रियासत की।
दरअसल, देश के पहले चुनाव के दौरान बिलासपुर एक रियासत का नाम था। इस रियासत के राजा थे आनंद चंद्र।1951 के पहले लोकसभा चुनाव में राजा आनंद चंद्र ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर अपना नामांकन दाखिल किया था। इस चुनाव के दौरान बिलासपुर रियासत में कुल मतदाताओं की संख्या 68,130 थी। मतदान के दिन इस रियासत में रहने वाले किसी भी मतदाता ने अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं किया। जिसके चलते चुनाव आयोग ने इस संसदीय क्षेत्र के चुनाव को रिटर्न अनकंटेस्टेड घोषित कर दिया था। राजा आनंद चंद्र को इस लोकसभा सीट से निर्विरोध सांसद चुना गया। 1951 से लेकर 1954 इस रियासत की यही स्थिति बनी रही। 1 जुलाई 1954 को बिलासपुर रियासत का विलय हिमाचल प्रदेश में हो गया और बिलासपुर को हिमाचल प्रदेश का नया जिला घोषित कर दिया गया।
बिलासपुर की तरह कोयंबटूर और यादगीर संसदीय क्षेत्र में भी नहीं हुआ मतदान
चुनाव आयोग के दस्तावेज खंगालने पर पता चला कि बिलासपुर देश का इकलौता संसदीय क्षेत्र नहीं था, जहां पर लोकसभा चुनाव के दौरान मतदान नहीं हुआ। बिलासपुर रियासत की तरह मद्रास की कोयंबटूर और हैदराबाद का यादगीर संसदीय क्षेत्र में भी किसी भी मतदाता ने अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं किया. 3.46 लाख मतदाताओं वाले कोयंबटूर से टीए रामलिंगा इकलौते प्रत्याशी थे। टीए रामलिंगा कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे। वहीं, हैदराबाद रियासत के अंतर्गत आने वाली यादगीर संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस की टिकट पर कृष्ण चंद्र जोशी इकलौते प्रत्याशी थे। इस संसदीय क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या करीब 3.62 लाख थी। इन दोनों संसदीय क्षेत्र को चुनाव आयोग ने रिटर्न अनकंटेस्टेड घोषित किया था।इस चुनाव में कांग्रेस के दोनों उम्मीदवारों को निर्विरोध सांसद चुन लिया गया था।
इसी चुनाव में कांग्रेस ने लोकतन्त्र की निर्मम हत्या भी की थी
अब जब तानपुरे पर उँगलियाँ पहुँच गयीं हैं, फिर क्यों न तानपुरे की ध्वनि का भी आनंद लिया जाए। 70 के दशक में फिल्म आयी थी "यादगार", और इसका तानपुरे पर एक गीत बहुत चर्चित है,"एक तारा बोले सुन सुन, क्या कहे ये तुमसे सुन सुन...।" जो सुर इस तानपुरे से न निकल पाए, सुनिए वह सुर:
यह चुनाव देश का प्रथम चुनाव ही नहीं, वरन कई कारणों से याद भी किया जाएगा। जिस तरह आज "गरीबी हटाओ", "भ्रष्टाचार मिटाओ", "लोकतन्त्र बचाओ" और "महँगाई दूर करो" आदि मुद्दों पर लड़ा जाता है, उसी भाँति इसी प्रथम चुनाव में मुद्दा था "हिन्दू-मुस्लिम" यानि जब धर्म के आधार पर भारत का बटवारा हुआ है, फिर किस आधार पर मुस्लिमों को भारत में रोक, हिन्दू राष्ट्र घोषित क्यों नहीं किया गया?" और इस चुनाव में हिन्दू महासभा ने भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था।
आज जब कांग्रेस लोकतन्त्र की दुहाई देती है, तो हँसी आती है। जिस पार्टी ने देश के प्रथम चुनाव में ही लोकतन्त्र की बड़ी बेरहमी से निर्मम हत्या कर दी हो, उस पार्टी के मुँह से लोकतन्त्र की बात करना शोभा नहीं देता।
फूलपुर से जवाहर लाल नेहरू के विरुद्ध हिन्दू महासभा के उम्मीदवार थे प्रभुदत्त ब्रह्मचारी और रामपुर से नेहरू के प्यारे अबुल कलाम आज़ाद के विरुद्ध थे सेठ विशन। और उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री थे, नेहरू के लाडले गोबिन्द बल्लब पन्त। नेहरू तो चुनाव जीत गए, लेकिन रामपुर से उनके प्यारे और दुलारे कलाम लगभग 6000 से अधिक मतों से पराजित होने का समाचार जैसे ही नेहरू को मिला, गुस्से में इतना तिलमिला गए कि तुरन्त मुख्यमन्त्री पन्त को फोन पर कहा कि "किसी भी कीमत पर मुझे संसद में आज़ाद चाहिए।"
नेहरू का फ़ोन सुनते ही पन्त के पैरों से नीचे मानो ज़मीन ही खिसक गयी। पन्त ने तुरन्त जिला मजिस्ट्रेट और कलेक्टर को परिणाम बदलने को कहा। और जब तक अधिकारी हरकत में आते, तब तक विजयी विशन सेठ अपना विजयी जुलुस लेकर सड़क आ चुके थे। बीच जुलुस में से विजयी विशन को अगवा कर मतगणना स्थल पर ले जाकर, उनके बक्से की वोटें आज़ाद के बक्से में मिलाकर हारे हुए उम्मीदवार आज़ाद को 3000 के लगभग वोटों से विजयी घोषित कर दिया गया था। विशन सेठ चीखते-चिल्लाते रहे लेकिन उनकी किसी ने नहीं सुनी। उन्हें केवल यही कहा "सेठ साहब हम अपनी नौकरी बचा रहे हैं।" ये रहस्योघाटन उत्तर प्रदेश के तत्कालीन सुचना निदेशक शम्भुनाथ टंडन ने अपने एक लेख मे किया है।
उन्होंने अपने लेख "जब विशन सेठ ने मौलाना आजाद को धुल चटाई थी भारतीय इतिहास की एक अनजान घटना " में लिखा है की भारत मे नेहरु ही बूथ कैप्चरिंग के पहले मास्टर माइंड थे। उस ज़माने में भी बूथ पर कब्जा करके परिणाम बदल दिये जाते थे और देश के प्रथम आम चुनाव मे सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही कांग्रेस के 12 हारे हुए प्रत्याशियों को जिताया गया। देश के बटवारे के बाद लोगो मे कांग्रेस और खासकर नेहरु के प्रति बहुत गुस्सा था लेकिन चूँकि नेहरु के हाथ मे अंतरिम सरकार की कमान थी इसलिए नेहरु ने पूरी सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल करके जीत हासिल थी।
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(एजेंसीज इनपुट्स सहित)
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