2010 में कांग्रेस समर्थित यूपीए सरकार ने 25 आतंकवादी क्यों छोड़े थे?

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आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी एवं दूसरे भारतीय जनता पार्टी विरोधी भाजपा पर कंधार विमान अपहरण कांड को लेकर खूब प्रहार कर रहे हैं। एक रैली में राहुल गाँधी ने आरोप लगाया कि भाजपा के ही कार्यकाल में मसूद अज़हर को छोड़ा गया था। दिसम्बर 1999 में पाकिस्तानी आतंकवादियों ने एयर इंडिया का विमान IC814 का विमान अपहरण कर काठमांडू ले गए थे। विमान में फंसे लगभग 150 यात्रियों को सुरक्षित छुड़ाने के लिए तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने 3 आतंकवादियों को छोड़ा था, जिसमे एक आतंकवादी मसूद अज़हर भी था। 
Image result for कंधार कांडइस कांड को लेकर हर भाजपा विरोधी भाजपा पर प्रहार करता रहता है। लेकिन मनमोहन सिंह सरकार के दौरान सदभावना दर्शाते 25 पाकिस्तानी आतंकवादियों को छोड़ा गया था। इन्ही में से एक आतंकवादी ने पठानकोट एयरबेस पर हुए हमले को अंजाम दिया था। वाजपेयी सरकार ने तो लगभग 150 यात्रियों की जान बचाने के लिए 3 आतंकवादियों को छोड़ा, लेकिन मनमोहन सिंह सरकार ने किन लोगों को बचाने के लिए 25 आतंकवादियों को छोड़ा था? इस सद्भावना रिहाई पर समस्त भाजपा विरोधी क्यों खामोश हैं?
इस घटना के एक दशक पहले कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद का आतंकियों ने अपहरण कर लिया था, जिसे छुड़ाने के लिए तत्कालीन केंद्र सरकार ने पाँच आतंकियों को रिहा किया था। लोगों के मन में वो यादें ताज़ा थी। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार पर देश भर में दबाव था और चर्चा चल रही थी कि अगर एक बड़े नेता की बेटी को छुड़ाने के लिए आतंकियों को रिहा किया जा सकता है तो 150 के क़रीब आम लोगों को छुड़ाने के लिए ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता? सर्वदलीय बैठक में सभी पार्टियों की सहमति से निर्णय लिया गया कि तीनों आतंकियों को छोड़ा जाएगा। उस बैठक में सोनिया गाँधी ने भी हिस्सा लिया था। इतना ही नहीं, डॉक्टर मनमोहन सिंह भी उस बैठक में शामिल थे।
Image result for कंधार कांड2010 में मनमोहन सिंह सरकार ने 25 आतंकवादियों को छोड़ा था
Image result for कंधार कांडआज़ाद भारत में आतंकवादियों को यूँ ही छोड़ देने की यह सबसे बड़ी घटना थी। तब पाकिस्तान से सम्बन्ध सुधारने के नाम पर 25 बर्बर आतंकवादियों को रिहा किया था। लेकिन सम्बन्ध आज तक नहीं सुधरे। उन छोड़े गए आतंकवादियों में अधिकतर पाकिस्तानी थे, जिन पर भारत में कत्लेआम मचाने और बम धमाकों जैसे गम्भीर आरोप थे। ये सभी आतंकवादी हिज़्बुल मुजाहिदीन और लश्करे तोएबा से थे। तब मनमोहन सरकार ने इन सभी आतंकवादियों को सरकारी गाड़ी में बैठा कर बाइज़्ज़त पाकिस्तान सेना के सुपुर्द किया था।
In 2010, Congress freed 25 terrorists including Shahid Latif as goodwill gesture, who did Pathankot attack 2016.

In 2013, Congress leader Jairam Ramesh sought release of same Maoist Mahesh Raut, who's now arrested for Koregaon violence.

Rahul Gandhi need to look in the Mirror.
दरअसल 7 जून 2010 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कश्मीर दौरे पर जाने वाले थे। और उससे पहले 28 मई को पाकिस्तान के लिए सद्भावना दिखाने के नाम पर बेहद जल्दीबाज़ी में यह फैसला लिया गया था। तब कहा जा रहा था कि केन्द्र सरकार के इस सद्भावना प्रयास के चलते हुर्रियत नेता बातचीत के लिए तैयार हो जाएंगे, लेकिन समस्या आज तक पाकिस्तान और हुर्रियत की वही भारत-विरोधी गतिविधियाँ जारी रहीं। इतना ही नहीं, इन छोड़े गए आतंकवादियों के बदले पाकिस्तान में कैद के भी भारतीय के रिहाई की कोई शर्त नहीं रखी।
जिन आतंकवादियों को छोड़ा गया था उनमे प्रमुख थे, शाहिद लतीफ़, नूर मोहम्मद, अब्दुल राशिद, नज़ीर मोहम्मद, मौहम्मद शफी, रहीम दीन, मौहम्मद शरीफ मलिक, करामात हुसैन और सुहेल अहमद जैसे आतंकी कमांडर शामिल थे। ये सभी देश भर की जेलें में बंद थे।
Image result for कंधार कांडImage result for कंधार कांडबाद में सरकारी अधिकारीयों ने भी पुष्टि की थी कि आतंकवादियों को छोड़ने का फैसला सेना और सुरक्षा एजेंसियों से सलाह किये बिना किया गया था। यहाँ तक कि प्रधानमन्त्री कार्यालय के बड़े अफसरों से भी इससे छुपाया गया था। इसी आधार पर यह दावा किया जाता है कि यह निर्णय मनमोहन सिंह का नहीं, बल्कि सोनिया गाँधी का था। छोड़े जाने वाले आतंकवादियों की लिस्ट भी सोनिया गाँधी से ही दी गयी थी। इस समय तक राहुल गाँधी का राजनीती में पदापर्ण हो चूका था। जाहिर है उनको भी इस बात की जानकारी रही होगी।
पठानकोट हमले के पीछे शाहिद लतीफ़ ही था
2016 में पठानकोट में हुए आतंकी हमले में छोड़े गए आतंकी शाहिद लतीफ़ का नाम आया था। 2010 में रिहाई के समय 47 वर्ष का हो चूका आतंकी शाहिद 11 सालों से जेल सड़ रहा था। पाकिस्तान वापस जाकर, उसने ही जैश-ए-मोहम्मद की फिदायीन ब्रिगेड तैयार की। समरण हो, 1999 में कंधार विमान अपहरण के समय जिन 35 आतंकवादियों की लिस्ट दी गयी थी, उसमे आतंकी शाहिद लतीफ़ का नाम भी शामिल था। तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने सौदेबाज़ी करके 35 में से केवल 3 ही आतंकवादियों को छोड़ने का निर्णय लिया था। शाहिद आज भी एक युवा की भाँति सक्रीय है। माना यह भी जा रहा है कि 2010 के बाद से भारत में जितने भी आतंकी हमले हुए हैं, उनमे कहीं न कहीं शाहिद का हाथ शामिल है।
पुलवामा आतंकी हमले में भी मास्टरमाइंड यही शाहिद लतीफ़ था। 2010 में कांग्रेस द्वारा जिन 25 आतंकवादियों को छोड़ा गया था, शाहिद के अलावा बाकी दूसरे आतंकवादी ही भारत में अब तक आतंकी हमलों की साज़िश में सक्रीय रहे हैं।
गुप्त रखा गया था आतंकियों को छोड़ने का प्लान
इस पुरे ड्रामे को सोनिया-मनमोहन सिंह सरकार ने पूर्णरूप से गोपनीय रखा। 2008 मुंबई आतंकी हमले से भारत अभी उभरा भी नहीं था कि 18 महीने बाद ही 25 आतंकियों को रिहा किए जाने का फैसला आज तक एक रहस्य बना हुआ है। भारत की किसी भी सुरक्षा एजेंसी और पार्टी, चाहे विपक्षी भाजपा हो या समर्थक पार्टी किसी को कोई जानकारी नहीं दी। किसी तरह जब मीडिया को भनक पड़ी, तो समाचार ऐसे चलाया "मानो यह सरकार द्वारा लिया गया बहुत ही सद्भावना का कदम और भारतीय जेलों में बंद ये सभी आतंकी सरकार पर एक बोझा बन रहे थे।" जिस कारण, विपक्ष(भाजपा) और कांग्रेस समर्थक किसी भी पार्टी ने गुप्त रूप बिना किसी परामर्श के 25 आतंकियों के छोड़े जाने को अभी तक गंभीरता से नहीं लिया। भारतीय जनता पार्टी द्वारा किये जा रहे विरोध को समस्त मीडिया ने सरकार के प्रलोभन के लालच में लगभग पूर्णरूप से बॉयकॉट कर दिया। हालाँकि, उस समय सोशल मीडिया आ चूका था, लेकिन पहुँच न होने के कारण, आतंकियों की गुप्त रिहाई दब कर रह गयी।
आज वही मीडिया है, जो मसूद अज़हर को लेकर सरकार पर वार कर रही है, लेकिन यूपीए सरकार के कार्यकाल में गुप्त रूप से छोड़े गए 25 आतंकियों पर आज भी चुप्पी साधे हुए हैं, क्यों? क्यों नहीं मीडिया कांग्रेस और पिछली सरकार में सहयोगी रही पार्टियों से पूछती कि "आखिर किस की रिहाई के बदले 25 आतंकियों को रिहा किया गया था, वह भी गुप्त रूप से?", "पिछली यूपीए सरकार का  पाकिस्तान और आतंकियों से क्या रिश्ता था?"
             कांग्रेस का आतंकी प्रेम 
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आतंकी कसाब 
2010 में चुपके से पाक पहुंचाने वाली कांग्रेस ने कहीं अफजल और कसाब को भी पाकिस्तान निर्यात तो नहीं कर दिया!   
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मुंबई हमले के बाद उर्दू पत्रकार अज़ीज़ बर्नी
ने छद्दम देशभक्तों के सहयोग से लिखी
पुस्तक का विमोचन
महेश भट्ट और दिग्विजय सिंह द्वारा
किया गया था 
लोकसभा-2014 का चुनाव नजदीक आ रहा था! मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए ‘हिंदू आतंकवाद’ और ‘भगवा आतंकवाद’ की अवधारणा देने से लेकर लश्कर आतंकी इशरत जहां को शहीद का दर्जा देने तक की कवायत कांग्रेस कर रही थी! मक्का मस्जिद व मालेगांव ब्लास्ट में एटीएस ने सिमी के जिन आरोपियों को पकड़ा था, उसे छोड़ा जा चुका था!
ऐसे में जब यह सूचना आई कि कांग्रेस संचालित यूपीए सरकार ने 2001 में संसद पर हमले के आतंकी व सुप्रीम कोर्ट द्वारा करीब सात साल से मौत की सजा पाए अफजल गुरु को अचानक से 9 फरवरी 2013 को तिहाड़ जेल में फांसी की सजा दी है तो यकीन नहीं हुआ! शक तो इससे तीन महीने पहले 21 नवंबर 2012 को भी हुआ था, जब मुंबई हमले में पकड़े गए एक मात्र आतंकी अजमल कसाब को भी चुपके से यूपीए सरकार द्वारा फांसी देने की खबर मीडिया में चली थी! मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए आतंकियों को छोड़ने और ‘हिंदू आतंकवाद’ की एक नई अवधारणा गढ़ने वाली कांग्रेस अफजल गुरु और अजमल कसाब को केवल तीन महीने के अंतराल पर फांसी दे और वह भी चुपके से तो शक होना लाजिमी था! लेकिन उस समय कुछ लिखना उचित नहीं लगा, क्योंकि केवल संदेह के आधार पर कुछ लिखना मूर्खता होती!
Image result for इशरत जहां एनकाउंटर केस
इसी आतंकी इशरत को कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने
"भारत की बेटी" के नाम से सम्बोधित कर
तत्कालीन गुजरात मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी पर
एक बाद एक वार कर रहे थे। 
यूपीए सरकार द्वारा पठानकोट हमले के आरोपी लतीफ को चुपके से पाकिस्तान पहुंचाने की खबर की पुष्टि के बाद भी लगा कि हो न हो अफजल व कसाब को भी फांसी की झूठी खबर उड़ा कर पाकिस्तान पहुंचा दिया गया हो! आखिर किसी ने फांसी के बाद अफजल व कसाब के शव को देखा तो है नहीं? आखिर यूपीए सरकार को इन आतंकियों के शव को चुपके से दफनाने की नौबत क्यों आयी? महाराष्ट्र की भाजपा सरकार ने तो मुंबई ब्लास्ट के आतंकी याकूब मेनन को कई दिन पहले दुनिया को बताकर फांसी दिया! तभी तो उसकी फांसी को रोकने के लिए उसके समर्थक रात दो बजे में सुप्रीमकोर्ट तक खुलवा पाए! और बाद में सरकार ने उसके शव को उसके परिवार वालों को भी सौंप दिया, जिसके बाद आतंकवादी समर्थकों न उसके जनाजे में हिस्सा भी लिया! शायद भाजपा सरकार के पास छुपाने के लिए कुछ नहीं था और कांग्रेस चालित यूपीए सरकार के पास छुपाने के लिए बहुत कुछ था! यही यूपीए को संदेह के घेरे में लाता है!
Related imageआज जब यह राज खुला है कि पठानकोट पर हमला करने वाले आतंकी शाहिद लतीफ सहित करीब 20 पाकिस्तानी कैदियों को कांग्रेस ने अपने शासनकाल में चुपके से पाकिस्तान पहुंचा दिया तो अब कम से कम मेरा शक यकीन में बदलता जा रहा है कि कहीं अफजल गुरु और अजमल कसाब भी किसी पाकिस्तानी हमले के सूत्रधार के रूप में भविष्य में सामने न आ जाएं!
मौलाना आजाद की पुस्तक ‘इंडिया विन्स फ्रीडम’ पढ़िए कि किस तरह से जवाहरलाल नेहरु ने भारत बंटवारे की रेखा खींची! भारत का बंटवारा राजनीति ने किया था, उसी जवाहरलाल नेहरू के वंश ने फांसी की सजा पाने के सात साल बाद तक आतंकवादी अफजल में भी मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति ही देखा था! तो अचानक वह राजनीति और उसी वंश के नेतृत्व वाली सरकार चुनाव से ठीक पहले उसे गुपचुप तरीके से फांसी कैसे दे रही थी? शक होना तो लाजिमी है!
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अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले में भी यह सामने आ गया है कि यूपीए सरकार को जब यह अहसास हो गया कि 2014 में उसकी सत्ता जाने वाली है तो आनन-फानन में इसकी जांच के आदेश दिए गए और जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में मई 2014 में सरकार आ गई तो 3 जून 2014 को उस घोटाले से जुड़ी सारी फाइल को जलाकर नष्ट करने तक का प्रयास किया गया!
चुनाव से केवल एक-डेढ़ साल पहले कहीं यूपीए सरकार को यह तो नहीं लग गया था कि अगली सरकार अफजल और कसाब को फांसी देने से पहले कुछ पूछताछ कर सकती है? फांसी तो पक्की ही दे सकती है! इसलिए अच्छा है कि गुमनाम फांसी के बहाने इन्हें इनके आकाओं तक पहुंचा दिया जाए! ताकि यदि कांग्रेस का कोई राज हो तो वह भी दफन हो जाए और पाकिस्तानी आकाओं को भी खुश कर दिया जाए, जैसे लतीफ को भेज कर खुश किया गया था!
आज पठानकोट हमले की जांच से पता चल रहा है कि जिन चार आतंकियों ने पठानकोट एयरबेस पर हमला किया था, उन्हें पाकिस्तान के 47 साल के शाहिद लतीफ से मदद मिली थी और शाहिद लतीफ को साल 2010 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली तत्कालीन यूपीए सरकार ने जेल से रिहा किया था! पठानकोट हमले में सेना के सात जवान शहीद हुए थे! क्या कांग्रेस और तब की यूपीए सरकार इन सुरक्षाकर्मियों की कातिल नहीं हुई? यूपीए द्वारा छोड़े गए लतीफ के कारण ही तो इन सुरक्षाकर्मियों को अपनी जान गंवानी पड़ी है!
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ज्ञात हो कि 2 जनवरी 2016 को पठानकोट में हुए आतंकी हमले को संचालित करने वाले पाकिस्तानी शाहिद लतीफ को वर्ष 1996 में जम्मू में आतंकवाद और ड्रग्स तस्करी मामले में गिरफ्तार किया गया था। वह जैश-ए-मोहम्मद का आतंकी था। वही जैश-ए-मोहम्मद जिसका प्रमुख मौलाना मसूद अजहर है, और जिसे भारत सरकार ने जांच में पठानकोट हमलों का मास्टरमाइंड पाया है। कांग्रेस का तर्क है कि पाकिस्तान से संबंध सुधारने के प्रयास में लतीफ के साथ करीब 20 अन्य पाकिस्तानी आतंकियों व कैदियों को रिहा किया गया था! तो क्या यह संभव नहीं है कि पाकिस्तान से तथाकथित संबंध सुधारने के लिए ही कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने अफजल गुरु व अजमल कसाब को भी चुपके से पाकिस्तान पहुंचा दिया हो और उसके फांसी की झूठी सूचना प्रेस के लिए जारी कर दी हो? आखिर इन दोनों की फांसी और इनके लाश को किसने देखा है?
ज्ञात हो कि शाहिद लतीफ इतना खतरनाक था कि 1999 में जब इंडियन एयरलाइंस के विमान आईसी-814 का अफगानिस्तान के कंधार में अपहरण हुआ था तो आतंकियों ने उसकी रिहाई की भी मांग की थी। वाजपेयी सरकार ने उसकी रिहाई की मांग को स्वीकार नहीं किया था। विमान में सवार 189 यात्रियों की सकुशल रिहाई के लिए तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने मसूद अजहर सहित दो अन्य आतंकियों को रिहा किया था।
लतीफ की रिहाई के वक्त तो ऐसे किसी विमान का अपहरण भी नहीं हुआ था? तो क्या कारण है कि किसी विमान हाईजैक या किसी वीआईपी या उसके बच्चों के अपहरण के संकट के बिना ही कांग्रेस की यूपीए सरकार ने पाकिस्तानी आतंकियों को छोड़ दिया? कहीं न कहीं, यह पाकिस्तानी आतंकियों से कांग्रेसी सांठगांठ को उजागर कर रहा है! वैसे भी लश्कर आतंकी इशरत को अपना बनाने के लिए कांग्रेस जिस तरह से मरी जा रही थी, वह इस पार्टी की 2004-2013 तक की पूरी गतिविधि को संदिग्ध बनाता है!
उचित तो यही होगा कि वर्तमान मोदी सरकार इसकी जांच करानी थी। क्योंकि देश की इतनी बड़ी पार्टी यदि आतंकवादियों के समर्थक के रूप में लगातार कई कुकृत्यों को अंजाम दे रही हो तो यह देश को कभी भी गंभीर संकट में डालने वाला साबित हो सकता है!(एजेंसीज इनपुट्स सहित)

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