1993 मुंबई ब्लास्ट: मुस्लिमों को पीड़ित दिखाने मस्जिद में भी ब्लास्ट हुए, तत्कालीन मुख्यमंत्री शरद पवार बेनकाब

शरद पवार झूठ
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
एक कहावत है "झूठ के पैर नहीं होते" जो बदलते समय के साथ-साथ सच्चाई पर डाली गयी कीजड़ साफ होनी प्रारम्भ हो चुकी है। अब तक कांग्रेस भारतीय जनसंघ उर्फ़ भारतीय जनता पार्टी को मुस्लिम विरोधी बताकर डरा-धमका कर सत्ता पर काबिज़ रहे। आतंकियों को बचाने बेकसूर हिन्दुओं, हिन्दू साधु, संत और साध्वियों को "हिन्दू आतंकवाद" और "भगवा आतंकवाद" के नाम से दुष्प्रचार करते रहे। और इस कुकृत्य में "जयचन्दी हिन्दू" एक गुलाम की भाँति तल्लीन रहे। अभी तक हम जयचन्द नाम इतिहासकारों से सुनते थे, लेकिन वर्तमान समय में बिना किसी कारण हिन्दू होते हुए भी हिन्दू धर्म को कलंकित करने में व्यस्त रहने ही जयचन्दों के वंशस हैं। लेकिन हिन्दू विरोधी सोनिया गाँधी के राजनीती में पदापर्ण होने के बाद से इन जयचन्दों की निरन्तर वृद्धि होती गयी। सोनिया के हिन्दू विरोधी होने का उल्लेख भूतपूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुख़र्जी ने अपनी पुस्तक में भी किया है। 
फिर जनता को भारतीय जनसंघ वर्तमान भाजपा के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुख़र्जी की हत्या को मृत्यु बताकर देश की जनता से छल किया गया। यह जनता का ही बलिदान है कि जब जिसका मन हुआ जम्मू या कश्मीर चला जाता है। यदि डॉ मुख़र्जी ने केन्द्रीय उद्योग मन्त्री पद त्याग भरी संसद में नेहरू और शेख अब्दुल्ला को देश में चल रही कुप्रथाओं को समाप्त करने की चुनौती देकर, बिना परमिट जम्मू-कश्मीर के लिए कूच किया था, क्योकि उन दिनों कोई भी बिना परमिट के जम्मू-कश्मीर की सीमा में नहीं घुस सकता था। जबकि हमें पढ़ाया जाता आ रहा है कि "कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है", लेकिन जम्मू-कश्मीर जाने के लिए पहले परमिट लेने की प्रथा थी, जैसे भारत के किसी प्रान्त की बजाए किसी विदेश में जा रहे हैं। फिर जनता स्वयं निर्णय करे और कांग्रेस की दोगली नीति को समझे, "क्या किसी देश में आज तक दो प्रधानमन्त्री होते हैं?" जम्मू-कश्मीर का प्रधानमंत्री था शेख अब्दुल्ला और शेष भारत का जवाहरलाल नेहरू। यह प्रथा भी डॉ मुख़र्जी के बलिदानं से ही समाप्त हुई थी। 
इस सन्दर्भ में निम्न लेखों का अवलोकन करें:-


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भारत के वरिष्ठतम नेताओं में से एक शरद पवार ने 1993 मुंबई बम ब्लास्ट के दौरान कुछ ऐसा किया था, जो आप सोच नहीं सकते। उस दौरान उन्होंने झूठ बोला था, वो भी सिर्फ़ कथित तौर पर सांप्रदायिक सौहार्द्र को बरकरार रखने के लिए। उस समय महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे पवार ने मुस्लिमों को भी पीड़ित दिखाने के लिए बम ब्लास्ट्स की संख्या बढ़ा दी थी। दूसरे शब्दों में कहें तो उन्होंने एक अतिरिक्त बम ब्लास्ट की ‘खोज’ कर ली थी, जो असल में हुआ ही नहीं था। भले ही आपको यह अविश्वसनीय लगे लेकिन यही सच है। 12 मार्च 1993 को मुंबई को दहलाने वाले 12 सीरियल बम धमाके हुए, जिसके बाद महानगर में अराजकता फ़ैल गई और लोगों में भारी खलबली मच गई।
ये ऐसा पहला आतंकी हमला था, जब भारत में आरडीएक्स का इस्तेमाल किया गया हो। 26/11 तरह ये हमले भी पूर्व नियोजित थे और इन्हें काफी प्लानिंग के बाद अंजाम दिया गया था। उन ब्लास्ट्स में 300 के क़रीब लोग काल के गाल में समा गए थे, वहीं 1400 के क़रीब लोग घायल हुए थे। यह भारत की ज़मीन पर आतंकी हमलों में हुई अब तक की सबसे बड़ी क्षति है। इस घातक आतंकी हमले में शिवसेना दफ़्तर को भी निशाना बनाया गया था।
इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री शरद पवार ने हमलों के तुरंत बाद दूरदर्शन स्टूडियो में जाकर बोला था और घोषणा की थी कि कुल 13 धमाके हुए हैं। उन्होंने न जाने कहाँ से एक अतिरिक्त विस्फोट की ‘खोज’ कर ली थी। पवार ने कहा था कि मस्जिद बंदर में 13वाँ विस्फोट हुआ था। चूँकि इस हमले में हिन्दू बहुल क्षेत्रों को निशाना बनाया गया था, ऐसे में पवार ने मस्जिद में विस्फोट की कहानी गढ़ी ताकि मुस्लिमों को भी पीड़ित की तरह पेश किया जा सके। वास्तव में, सभी 12 धमाके हिन्दू बहुल इलाक़े में किए गए थे।
पवार ने दावा किया था कि उनके इस झूठ के लिए उनकी प्रशंसा की गई थी। एनसीपी सुप्रीमो ने इस हमले में मुसलमानों को बराबर पीड़ित दिखाने व सच्चाई को दबाने के लिए झूठ का सहारा लिया था। ऐसा स्वयं पवार ने स्वीकार किया था। उन्होंने इसे ‘संतुलन’ के लिए किया गया प्रयास बताया था। हमले के 22 वर्षों बाद पवार ने पुणे में आयजित 89वीं मराठी साहित्यिक बैठक को सम्बोधित करते हुए स्वीकार किया था कि उन्होंने जानबूझ कर एक अतिरिक्त बम ब्लास्ट की कहानी गढ़ी ताकि मुस्लिमों को पीड़ित दिखा कर सांप्रदायिक तनाव से बचा जाए क्योंकि ‘पाकिस्तान ऐसा ही चाहता था’। उन्होंने कहा कि उन्हें भी यह पता था कि ये सभी धमाके हिन्दू बहुल क्षेत्रों में हुए थे।
पवार ने कहा कि उन्होंने दूरदर्शन स्टूडियो जाकर ऐसा कहा क्योंकि यह सांप्रदायिक तनाव की स्थिति को बचाने के लिए सही था। वे लोगों को इस बात का एहसास दिलाना चाहते थे कि मुसलमान भी इस विस्फोट के शिकार हुए हैं। उन्होंने दावा किया कि न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण आयोग द्वारा उनके इस क़दम की सराहना की गई थी। यहाँ तक की पवार ने उस हमले का दोष लिट्टे पर भी मढ़ा था। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम दंगे रोकने के लिए ऐसा करने का दावा किया। 78 वर्षीय पवार भारत सरकार में केंद्रीय रक्षा व कृषि मंत्री रह चुके हैं। अभी हाल ही में उन्होंने आगामी लोकसभा चुनाव न लड़ने का ऐलान किया है।
12 मार्च 1993 में इन स्थानों पर धमाके हुए थे- मुंबई स्टॉक एक्सचेंज, नरसी नाथ स्ट्रीट, शिव सेना भवन, एयर इंडिया बिल्डिंग, सेंचुरी बाज़ार, माहिम, झावेरी बाज़ार, सी रॉक होटल, प्लाजा सिनेमा, जुहू सेंटॉर होटल, सहार हवाई अड्डा और एयरपोर्ट सेंटॉर होटल। इस धमाके का साज़िशकर्ता दाऊद इब्राहिम और टाइगर मेमन था। इसकी पूरी साज़िश पाकिस्तान में रची गई थी। उस दिन को आज भी ब्लैक फ्राइडे के नाम से जाना जाता है।

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