क्यों बदायूं सीट से प्रत्याशी का नाम वापस लेगी कांग्रेस ?


आर.बी.एल.निगम,वरिष्ठ पत्रकार 
एक तरफ समस्त भारतीय जनता पार्टी विरोधी मोदी को पटकनी देने गठबन्धन कर रहे हैं, किन्तु इन्हीं में इतने मतभेद हो रहे हैं। और सबसे मजे की बात यह है कि कल तक जो पार्टियाँ अपने घोटालों पर पर्दा डाले रखने के लिए 10 सालों तक कांग्रेस के तलवे चाटती दिख रही थीं, आज लगभग वही पार्टियाँ कांग्रेस को हरकाने में लगी हैं। जो प्रमाणित करता है कि ये गठबन्धन केवल जनता को पागल बनाकर अपनी कारगुजारियों को छुपाने के लिए मोदी के विरुद्ध लामबन्द हो रही हैं। इन सभी को नापने के लिए जो जाल बिछाया है, उससे बचना मुश्किल ही नहीं, अति मुश्किल है। इस बात से सभी पार्टियाँ परिचित हैं कि प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी अपने निशाने को साधने के लिए स्वयं निर्णय लेते हैं। यह मोदी की ही कूटनीति थी कि आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में पाकिस्तान को विश्व में बेनकाब कर दिया, जबकि मोदी सरकार से पूर्व रही आतंकवाद और मुस्लिम वोट बैंक की खातिर पाकिस्तान से डरती रहीं।
1971 भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान को विभाजित करने पर, तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी ने कांग्रेस से मुस्लिम वोट खिसकते देख, मुस्लिम पर्सनल बोर्ड का गठन कर दिया। कश्मीर में हुर्रियत नेताओं को सुरक्षा देने के नाम पर कितना धन व्यर्थ किया जा रहा था। कोई दलित के नाम से तो कोई मुस्लिम के नाम से दुकानें खोल, अपनी तिजोरियाँ भर रहे हैं, वह सभी खाली न हो जाएँ, अपनी आने वाली पीढ़ियों के जो धन संचय किया है, कहीं चला न जाये। वह डर गठबन्धन करने वालों को सता रहा है। कांग्रेस का स्तर तो पिछले लगभग 15/16 वर्षों से गिर रहा है।
इस बात से सभी परिचित है कि यदि गठबन्धन मोदी को दुबारा प्रधानमंत्री बनने से रोकने में सफल हो गया, तो बात प्रधानमंत्री पद पर मतभेद होते भी दिख रहे हैं। जो देश को पुनः चुनाव में धकेल सकता है। जिसके डर गठबंधन में अभी से दरारें पड़नी शुरू हो चुकी हैं। कांग्रेस को आँख दिखाए जाना इस बात को सही सिद्ध कर रहा है। मायावती, अखिलेश और जेल में बैठे लालू यादव के अतिरिक्त अन्य दल भी कांग्रेस से दूरी रख रहे हैं, क्यों? बस इस "क्यों" का उत्तर जनता को ही तलाशना है।  
समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव की नाराजगी का असर हो गया है। जानकारी के मुताबिक, अब कांग्रेस एसपी-बीएसपी के पारिवारिक सीट पर उम्मीदवार नहीं उतारेगी। अखिलेश यादव की नाराजगी का असर कुछ ऐसा हुआ कि कांग्रेस अब बदायूं सीट पर भी उम्मीदवार वापस लेने पर विचार कर रही है। 
दरअसल, बदायूं सीट यादव परिवार की पारंपरिक सीट है। धर्मेंद्र यादव बदायूं से सांसद है। साल 2014 में समाजवादी पार्टी ने जो पांच सीटें जीती थी, उसमें धर्मेंद्र यादव की बदायूं सीट भी थी। अखिलेश यादव ने 2019 के चुनावी दंगल में फिर धर्मेंद्र यादव को बदायूं से ही उम्मीदवार बनाया है, लेकिन कांग्रेस ने बदायूं से अपने उम्मीदवार की घोषणा कर दी।  कांग्रेस ने बदायूं से पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ नेता सलीम शेरवानी को प्रत्याशी बनाया है। 
कांग्रेस के बदायूं सीट से उम्मीदवार उतारने के बाद अखिलेश यादव ने साफ कर दिया था कि अगर कांग्रेस बदायूं सीट से अपने प्रत्याशी की नाम वापस नहीं लेता है, तो अमेठी और रायबरेली में भी एसपी-बीएसपी गठबंधन अपने उम्मीदवार खड़ा करेगा। अगर ऐसा होता तो ये कांग्रेस के लिए बड़ी मुश्किल हो सकती है, क्योंकि अमेठी और रायबरेली में कभी भी विपक्ष अपने उम्मीदवार नहीं खड़ा करता है। अखिलेश यादव के इस बयान से हलचल बढ़ी। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस ने इसलिए ही ये फैसला लिया है। 
सोनिया मायावती
किसी भी राज्य में कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करेंगे : मायावती 
जबकि दूसरी तरफ बसपा कांग्रेस के साथ किसी भी राज्य में गठबंधन नहीं करेगी। बसपा सुप्रीमो मायावती ने मंगलवार को कांग्रेस के साथ गठबंधन को लेकर चल रही अटकलों पर विराम लगा दिया। उन्होंने कहा, ''एक बार फिर से यह स्पष्ट कर दूं कि बसपा किसी भी राज्य में कांग्रेस से गठबंधन नहीं करेगी।''
मायावती ने कहा, ''उप्र, उत्तराखंड और मध्यप्रदेश में बसपा और सपा के बीच गठबंधन हुआ है। जबकि हरियाणा और पंजाब में राज्य की स्थानीय पार्टी के साथ बात लगभग तय है। बसपा से चुनावी गठबंधन के लिए कई पार्टियां तैयार हैं, लेकिन चुनावी लाभ के लिए हमें ऐसा कोई काम नहीं करना है जो बसपा के हित में न हो। 



BSP Chief Mayawati: It has been reiterated once again that Bahujan Samaj Party (BSP) will not have any alliance with Congress party in any state, to contest the upcoming elections. (file pic)
अटकलों पर लगा विराम
उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और उत्तराखंड में सपा-बसपा का गठबंधन होने के बाद यह चर्चाएं थीं कि एनडीए के खिलाफ बसपा कुछ और राज्यों में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सकती है। खासकर मध्यप्रदेश, राजस्थान और बिहार में। लेकिन मायावती ने ऐसी अटकलों को सिरे से खारिज कर दिया।
यूपी में 37-38 सीटों पर सपा-बसपा का गठबंधन
लोकसभा चुनाव 2019 के लिए उप्र में बसपा ने सपा के साथ 37-38 सीटों पर गठबंधन किया। सपा-बसपा के इस गठबंधन में रालोद को तीन सीटें मथुरा, मुजफ्फरनगर और बागपत मिली हैं। जबकि इस गठबंधन ने दो सीटों रायबरेली और अमेठी में गठबंधन प्रत्याशी न उतारने की बात कही है। रायबरेली से कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और अमेठी से राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी चुनावी मैदान में उतरेंगे।

मध्यप्रदेश में 26 सीटों पर प्रत्याशी उतारेगी बसपा
मध्यप्रदेश की 3 सीटों पर सपा अपने प्रत्याशी उतारेगी, बाकी 26 सीटों पर बसपा चुनाव लड़ेगी। उत्तराखंड की 5 सीटों में सिर्फ एक सीट पौड़ी गढ़वाल पर सपा लड़ेगी, जबकि 4 सीटें बसपा के खाते में गईं हैं। मध्यप्रदेश की जिन 3 सीटों पर सपा लड़ेगी, उनमें खजुराहो, टीकमगढ़ और बालाघाट शामिल है।
कॉन्ग्रेस-तेदेपा
आंध्रा में TDP ने भी कांग्रेस से पल्ला झाड़ा 
आंध्र प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रघुवीरा रेड्डी ने आगामी चुनावों में किसी भी दल के साथ गठबंधन की संभावना को सिरे से नकार दिया है। आंध्र प्रदेश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होने वाले हैं। रेड्डी ने कहा कि पार्टी राज्य की सभी 25 लोकसभा सीटों और 175 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। ऑल इंडिया कॉन्ग्रेस कमेटी (AICC) के महासचिव व केरल के पूर्व मुख्यमंत्री ओमान चांडी ने भी कहा कि आंध्र में कांग्रेस का तेदेपा के साथ गठबंधन नहीं है।
राज्यों में पतली होती कांग्रेस की हालत 

पिछले कुछ दिनों के ट्रेंड को देखें तो पता चलता है कि कांग्रेस के कई विधायक पार्टी से असंतुष्ट होकर खेमा बदल रहे हैं। गुजरात में तो पार्टी की स्थिति अच्छी ख़ासी बुरी है। कुल मिलाकर देखें तो पिछले 5 सप्ताह में 4 राज्यों में कांग्रेस  के 6 विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया। महाराष्ट्र विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष राधाकृष्ण विखे पाटिल के बेटे सुजय मुंबई में भाजपा में शामिल हुए। नेता प्रतिपक्ष के बेटे के ही पार्टी बदल लेने से कांग्रेस  को राज्य में फ़ज़ीहत का सामना करना पड़ा। सुजय ने भाजपा में शामिल होने के बाद कहा- “मुझे नहीं पता कि मेरे पिता इस फैसले का कितना समर्थन करेंगे, लेकिन भाजपा के नेतृत्व में मैं अपना सब कुछ झोंक दूंगा। ताकि सभी को गर्व हो।” उनके अहमदनगर से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने की संभावना है। भाजपा संसदीय बोर्ड को उनका नाम लोकसभा उम्मीदवारी के लिए भेज दिया गया है। ये जानकारी स्वयं मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने दी।


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के बोलपुर से सांसद और समाजसेवी प्रो.अनुपम हजरा जी, कांग्रेस विधायक श्री दुलाल चंद्रा जी और विधायक खगेन मुर्मू जी ने आज श्री @MukulR_Official जी की उपस्तिथि में @BJP4India की प्राथमिक सदस्यता ली।

आप सभी के आने से भाजपा को मजबूती मिलेगी। @BJP4Bengal
गुजरात में तो कांग्रेस की स्थिति और भी बुरी हो चली है। पिछले पाँच हफ्ते में राज्य के 4 विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया है। हाल ही में विधायक वल्लभ धारविया कॉन्ग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए। धारविया ने जामनगर (ग्रामीण) के विधायक पद से इस्तीफा दे दिया है। भाजपा ने कहा कि यह धारविया के लिए घर वापसी है। 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस में जाने और विपक्षी पार्टी के टिकट पर जीतने से पहले वह भाजपा के साथ थे। उन्होंने भाजपा में शामिल होकर पीएम मोदी के नेतृत्व की प्रशंसा की। उस से पहले 2 विधायकों पुरुषोत्तम सावरिया और जवाहर चावड़ा ने एक ही दिन में कॉन्ग्रेस को डबल झटका दिया था और भाजपा में शामिल हो गए थे। बता दें कि जवाहर चावड़ा और पुरुषोत्तम सावरिया दोनों ही नेताओं की अपने इलाक़े में अच्छी पकड़ रही है।
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आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार एक कहावत है "झूठ के पैर नहीं होते" जो बदलते समय के साथ-साथ सच्चाई पर डाली गयी कीजड़ साफ हो....

जिस तरह बारिशों में मेढक नज़र आते हैं, ठीक वैसे ही चुनावों में बेपेंदी के लोटे यानि अवसरवादी नेता एक पार्टी छोड़ दूसरी पार्टी की ओर जाते दिखने लगते हैं। ऐसे अवसरवादियों को भी जनता क्यों वोट देती है? दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के टिकट पर हारे कुछ भाजपा में इस लालच में आ गए कि मोदी लहर में विधायक बन जाएँगे। लेकिन हुआ बिलकुल उलट, झाड़ू लहर ने सब को झाड़ू से साफ कर 67 सीटें प्राप्त की थी। खैर, उन दिनों आम आदमी पार्टी को झोड़ भाजपा में शामिल हुए प्रत्याक्षी की चुनावी रैली के दौरान जनता की बातें सुन आभास हो गया था कि यह उम्मीदवार हारेगा। हालाँकि मतदाता व्यक्तिगत रूप से भलीभाँति परिचित थे, लेकिन उम्मीदवार के हटने पर उनके कटाक्षों ने परिणाम सुना दिया था।   

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