
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
आज जिस पार्टी को देखो "महिला आरक्षण","महिला सुरक्षा", "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ"आदि नारों से महिलाओं को आकर्षित कर स्वार्थ सिद्ध कर रही है, लेकिन धरातल पर महिलाओं के साथ क्या हो रहा है, किसी को चिन्ता नहीं। पंचायत से लेकर संसद तक महिलाओं की उन समस्याओं पर सभी चुप्पी साधे हुए हैं, जो प्रमाणित करता है, इन मनलुभावन नारों से जनमानस को महिलाओं की समस्याओं के प्रति दिखावा किया जाता है। किसान भूखा मर रहा है, कर्जे में डूबा है, कर्जे न चूका पाने के कारण आत्महत्या कर रहा है, कोई #metoo, #award vapasi, #moblynching, #not in my name, और न जाने कौन-कौन से गैंग चलाकर, असली मुद्दों से जनता को भ्रमित करते रहते हैं। अभी महाराष्ट्र में प्रथम चरण का चुनाव हो कर चुका है, किसी ने खेतों में महिला मजदूरों के इस जटिल समस्या को नहीं उठाया, क्यों?
खेत महिला मजदूरों पर अत्याचार
शंका है, कर्जे में आत्महत्या करने वाले कहीं यही खेत मजदूर तो नहीं, जिन्हे किसान बता कर देश को नेता भ्रमित कर रहे हैं, और मूल समस्या को जनता से छुपाया जा रहा हो? शंका को बल इसलिए भी मिलता है, जब चुनाव पूर्व एक परिचर्चा में एक चैनल पर महाराष्ट्र मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस से मुंबई में हुए किसान आन्दोलन पर प्रश्न पर मुख्यमंत्री ने कहा था कि "आन्दोलनकारी किसानों से बातचीत करने पर उन्होंने कहा की, उनके पास ज़मीन ही नहीं है, खेतीबाड़ी कहाँ से करेंगे...." आखिर कब तक महिला खेत मजदूरों पर इस तरह के अत्याचार होते रहेंगे? वो कौन-कौन धन्नासेठ किसान है, जो महिला खेत मजदूरों पर इस तरह के अत्याचार कर रहे हैं? क्या नेताओं को इन अत्याचारों के बारे में नहीं मालूम? महिलाओं को मिली इस प्राकृतिक माहवारी को रोकने वाले अत्याचारी कौन होते हैं? ये मुद्दा महिला आरक्षण, "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ", #metoo, #award vapasi, #moblynching, #not in my name आदि से गम्भीर है। कहाँ हैं मानवाधिकार और महिला हितैषी नेता और महिला संस्थान?
महाराष्ट्र का सूखा अपने साथ कई समस्याएं लेकर आता है। एक तरफ यहां के किसान सूखे की वजह से आत्महत्या करने को मजबूर हैं। वहीं दूसरी तरफ मेहनत-मजदूरी करने वाली महिलाओं को चंद रुपए के लिए अपनी कोख की कुर्बानी देनी पड़ती है। महाराष्ट्र के मराठवाडा क्षेत्र के बीड जिले का हाजीपुर ऐसा गांव हैं, जहां की ज्यादातर महिलाएं बिना कोख के हैं।
करीब एक लाख लोग गन्ना कटिंग के काम से हैं जुड़े
दरअसल हाजीपुर गांव की ज्यादातर महिलाएं गन्ना काटने का काम करती हैं। अक्टूबर से मार्च के दौरान हर साल करीब एक लाख से ज्यादा महिला और और पुरुष गन्ना काटने की मजदूरी का काम पाने के लिए पलायन करके पश्चिमी महाराष्ट्र पहुंचते हैं। यह क्षेत्र चीनी उत्पादन के लिए अहम माना जाता है। इस सीजन में यहां गन्ना काटने के काम की काफी डिमांड रहती है। महाराष्ट्र में जिस साल ज्यादा सूखा पड़ता है, उस साल उतने ही ज्यादा संख्या में लोग यहां आते हैं।
माहवारी काम में डालती है बाधा
ठेकेदार महिला और पुरुष को एक यूनिट मानकर गन्ना काटने का काम देते हैं और अगर महिला और पुरुष में से किसी ने भी एक दिन की छुट्टी ली, तो उनसे 500 प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माना वसूला जाता है। ठेकेदार ऐसा मानते हैं कि माहवारी काम में बाधा डालती है। गन्ना कटिंग करने वाली सत्या भामा की मानें तो महिलाएं गर्भाशय़ हटाना बेहतर समझती हैं, क्योंकि इसके बाद माहवारी की दिक्कत नहीं होती है और गन्ना काटने के दौरान कोई ब्रेक नहीं लेना पड़ता है।
ठेकेदार देते हैं गर्भाशय हटाने की सलाह
ठेकेदार दादा पाटिल के मुताबिक माहवारी की वजह से महिलाएं एक से दो दिन की छुट्टी लेती है। इसकी वजह से काम प्रभावित होता है। हमें एक तय समय में काम खत्म करना होता है। ऐसे में हम नहीं चाहेंगे कि गन्ना कटिंग के दौरान किसी महिला को माहवारी हो। हालांकि उनकी मुताबिक वो महिलाओं को गर्भाशय हटाने पर जोर नहीं देते है। ये उनका और उनके परिवार का निर्णय होता है। हालांकि महिलाओं का कहना है कि ठेकेदार उन्हें गर्भाशय हटाने की सलाह देते हैं और उसकी सर्जरी का पैसे उनके मजदूरी से काट लेते हैं।
गर्भाशय हटाने से महिलाएं को होती है गंभीर बीमारियां
गन्ना काटने वाले इस समुदाय पर किए गए सर्वे के मुताबिक माहवारी से बचने के लिए महिलाओं के सर्जरी कराने की वजह से उन्हें कई सारी समस्याओं से गुजरना होता है। उनकी सेहत पर इसका बुरा असर पड़ता है। हार्मोनल इम्बैलेंस की वजह से महिलाओं को मानसिक बीमारियां हो जाती हैं। साथ ही वजन बढ़ने की शिकायत आती है। सर्वे के मुताबिक यंग महिलाएं, जिनकी उम्र 25 साल होती है, तो भी सर्जरी का सहारा ले रही हैं।
गन्ना कटिंग के बाद सालभर नहीं मिलता कोई दूसरा काम
गन्ना कटिंग करने वाली सत्या भामा के पति बंधु उगाले महिलाओं के गर्भाशय हटाने के पीछे की वजह बताते हुए कहते हैं कि पति पत्नी को मिलकर एक टन गन्ना काटने के 250 रुपए मिलते हैं। दोनों मिलकर दिन में करीब 3 से 4 टन गन्ना काटते हैं। इस तरह 4 से 5 माह के पूरे सीजन में करीब 300 टन गन्ना काट लेते हैं। इस सीजन में गन्ना कटिंग से होने वाली कमाई हमारे पूरे साल का खर्च चलता है। गन्ना कटिंग के बाद हमें सालभर हमें कोई दूसरा काम नहीं मिलता है। ऐसे में हमें एक दिन की छुट्टी भी नहीं मंजूर नहीं होती है। हम इस दौरान तबियत खराब होने पर भी गन्ना कटिंग करते हैं। ऐसे में आराम और माहवारी को कैसे सहन नहीं किया जा सकता है।
महिलाएं बिना बाथरुम और टायलेट के रहने को मजबूर
गन्ना काटने के दौरान मजदूरों के खेत में या फिर शुगर मिल के पास टेंट में रहना होता है, जहां कोई बाथरुम और टॉयलेट नहीं होता है। ऐसे में गन्ना कटिंग के सीजन में माहवारी महिलाओं के लिए काफी कष्ट देने वाली होती है। (एजेंसीज इनपुट्स सहित)
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