
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
5 साल बाद देश में एक बार फिर लोकसभा चुनाव की सरगर्मियाँ दिन-प्रतिदिन तेजी पर हैं। अगले 2 महीने में पता चल जाएगा कि भारतवर्ष को नया प्रधानमंत्री मिलेगा या एक बार फिर नरेंद्र मोदी के हाथ में ही देश का नेतृत्व होगा। लेकिन विरोधियों द्वारा जिस भाषा का इस्तेमाल मोदी के लिए किया जा रहा है, राष्ट्र रक्षा के लिए उठाए जा कदमों के सबूत मांगे जा रहे हैं, मोदी को थाली में सजाकर सत्ता दे रहे हैं। इनके विरुद्ध यह भी विरोधियों द्वारा प्रचार कर जनता को भ्रमित किया जा रहा है कि "मोदी दोबारा आ गया तो देश में कभी चुनाव नहीं होंगें।" या वह दूसरे अर्थों में यह कहने का प्रयास कर रहे हैं कि जिस तरह अब तक जनता को पागल और मूर्ख बनाकर अपनी तिजोरियाँ भरते रहे, वह अवसर हाथ से निकलने को बेक़रार है।
इस सन्दर्भ में फ्रांस ज्योतिष की भविष्यवाणी भी चरितार्थ होती दिख रही कि "2014 में एक अधेड़ उम्र का सख्त प्रशासक भारत का नेतृत्व करेगा, उसके विरोधी भी बहुत होंगे और चाहने वाले भी और वह 2025 तक राज्य कर, भारत को नयी ऊंचाइयों पर लेकर जाएगा...."
नरेंद्र मोदी 2014 में भारत के प्रधानमंत्री बने। इससे पहले वो 2001 से 2014 तक 13 साल गुजरात के मुख्यमंत्री रहे। मोदी को सामने रखकर बीजेपी ने 2014 लोकसभा चुनाव जीता और बहुमत हासिल किया। भारतीय जनता पार्टी को पहली बार इतनी सीटें मिली और 30 साल बाद केंद्र में पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी।
मोदी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे और 1987 में भाजपा से जुड़ गए। एक साल बाद उन्हें गुजरात का महासचिव बनाया गया। उन्होंने पार्टी को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1995 के विधानसभा चुनावों में भाजपा की सफलता में भी मोदी की बड़ी भूमिका रही। 1995 में मोदी को नई दिल्ली में भाजपा के राष्ट्रीय संगठन का सचिव बनाया गया और तीन साल बाद उन्हें इसका महासचिव नियुक्त किया गया। वह तीन साल तक उस कार्यालय में रहे। फिर 2001 में एकाएक उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर गुजरात भेज दिया गया।

इसके बाद मोदी का राजनीतिक करियर गहरे विवाद और उपलब्धियों का मिश्रण बना रहा। 2002 में गुजरात में हुए सांप्रदायिक दंगों के दौरान मुख्यमंत्री के रूप में उनकी भूमिका पर विशेष रूप से सवाल उठाया गया। इन दंगों को इन्होने राज्य की सीमित पुलिस के सहयोग से नियन्त्रित किया, जबकि केन्द्र एवं किसी भी पड़ोसी राज्य ने अतिरिक्त पुलिस सहायता से मना कर दिया था। इनके विरोधी आज तक उन दंगों को लेकर इन्हे मुस्लिम-विरोधी के नाम से कलंकित करते रहते हैं, परन्तु शान्तिप्रिय जनता के नायक बनकर जो ख्याति अर्जित की उसी ने इन्हे मील का पत्थर बना दिया। इनकी निर्भीकता और साहसिक निर्णयों का इनके कट्टर विरोधी तक लोहा मानते हैं। मेरे अनुमान से गुजरात दंगों के इतिहास के शायद यही एकमात्र ऐसा दंगा था, जो बहुत ही अल्प-समय में समाप्त हो गया था।
लेकिन विरोधी अपने वोट बैंक के खातिर इन्हें कलंकित करने का कोई अवसर गँवाना नहीं चाहते थे। वार पर वार करते रहे, विरोधियों को नहीं मालूम की उनका हर वार उन्हें एक कठोर और कुशल प्रशासक बना रहा है। इनके विरोधियों ने अमेरिका को इन्हे वीजा न देने के लिए निरन्तर लिखते रहे। 2005 में अमेरिका ने उन्हें इस आधार पर राजनयिक वीजा जारी करने से मना कर दिया, और यूनाइटेड किंगडम ने भी 2002 में उनकी भूमिका की आलोचना की। लेकिन इस बीच वो लोकप्रियता की ऊंचाई चढ़ते रहे और राज्य में एक के बाद एक विधानसभा चुनाव जीतते रहे।
आज विश्व भारत की सुनता है
जून 2013 में मोदी को 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के अभियान का नेता चुना गया। कुछ समय बाद पार्टी ने उन्हें पीएम पद का उम्मीदवार भी घोषित कर दिया। 282 सीटों के साथ केंद्र में बीजेपी की सरकार बनी और पार्टी के साथ-साथ भारतीय राजनीति में भी मोदी की धमक बढ़ती चली गई।
मोदी का नाम आगे रख बीजेपी ने 2014 के बाद कई राज्यों के चुनाव भी जीते। वर्तमान में उन्हें भारतीय राजनीति का सबसे लोकप्रिय नेता कहा जा सकता है। देश के साथ-साथ विश्व पटल पर भी उनकी छवि एक बड़े राजनेता के रूप में उभरी है। कल तक जो देश भारत की समस्याओं को गम्भीरता से नहीं लेते थे, आज विश्व भारत की बात सुनता ही नहीं अपितु उस समस्या के निवारण के लिए भारत के साथ खड़ा हो रहा है। क्योकि तत्कालीन सरकारें इस्लामिक आतंकवाद को छुपाने के लिए "हिन्दू आतंकवाद" और "भगवा आतंकवाद" नाम देकर हिन्दू समाज को कलंकित किया जाता रहा, ऐसे वातावरण में कौन भारत की समस्या को सुनेगा। समस्या चाहे आतंकवाद की हो या कोई अन्य, भारत को सहयोग देने में संकोच नहीं करते।
वोटबैंक पर प्रहार
यह मोदी का ही देशप्रेम था की विश्व पटल पर आतंकवाद को उछाल विश्व को आतंकवाद पर गंभीरता से लेने को मजबूर कर दिया। अपने वोटबैंक पर प्रहार होता देख, विपक्ष एकजुट होकर 2019 में उनके खिलाफ लोकसभा चुनाव में उतरने जा रहा है। मोदी के विरुद्ध गठबंधन करने वालों न देशहित की चिन्ता है और न जनहित की, विपरीत इसके अपने चरमराते अस्तित्व और बैंड होते काले धन्धों की। इन लोगों ने तुष्टिकरण के पुजारी बन भारतीय इतिहास, भारतीय संस्कृति और हिन्दुओं को कलंकित करते रहे। इन्हे और जयचन्दों को डर है अपनी जन और देश विरोधी हरकतों के उजागर होने का। वहीं भाजपा एक बार फिर उन्हीं के नाम पर चुनाव में उतर रही है और देश की जनता के सामने उनकी मजबूत छवि पेश कर रही है। मोदी की वजह से बीजेपी का विश्वास इतना ऊंचा है कि वो इस बार 2014 से भी बड़ी जीत का दावा कर रही है।
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