क्या अपने संग हुई प्रताड़ना को भुला दें प्रज्ञा?

आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
क्या कोई देश की जनता को समझा सकता है कि आखिर भारतीय जनता पार्टी द्वारा यह जो राष्ट्रभक्ति को इतना बड़ा मुद्दा बनाया जा रहा है, क्या कारण है? भाजपा ने जिसे अपने घोषणापत्र में ही शामिल कर लिया है। पुलवामा के शहीदों का बदला लेने के लिए पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक कर युद्ध जैसा माहौल खड़ा किया गया, और अब हेमंत करकरे की शहादत का साध्वी प्रज्ञा द्वारा खुलेआम मजाक उड़ाया जा रहा है। क्या भाजपा द्वारा लोकसभा चुनावों में उतारी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के लिए शहीद और शहादत के मायने अलग हैं? जिस शहीद करकरे के अंतिम संस्कार में उनकी पत्नी और बेटी के चेहरों को देखकर पूरा देश रोया था और बाद में इस सदमे के बाद टूट चुकीं उनकी पत्नी के देहांत की खबर भी लोगों को रुला गई थी। आज उनकी बेटी के मन में साध्वी के ऐसे कड़वे बोल सुन कैसी राष्ट्रभक्ति का जज्बा उमड़ रहा होगा?
आतंकवादियों से लड़ते हुए शहीद हो जाने वाले जांबाज पुलिस अफसर के बारे में क्या कोई यह कहने की हिम्मत कर सकता है कि अच्छा हुआ, जो आतंकियों के हाथ मारा गया। मगर साध्वी प्रज्ञा ने बेखौफ ऐसा कहा। अब इसे क्या कहा जाए कि एक ओर पाकिस्तान के पक्ष में नारे लगाने के इल्जाम में सरकार किसी के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज कर रही है और दूसरी ओर खुद कथित आतंकी हमले के आरोपों को झेल रही एक महिला, जो पाकिस्तानी आतंकियों के खिलाफ लड़ते हुए शहीद होने वाले एक पुलिस अधिकारी की मौत पर खुशी जाहिर कर रही है। 
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अभी इन प्रताड़ितों में जीवित के श्रीमुख
से प्रताड़ना का दर्द व्यक्त करना शेष है। 
दूसरे, साध्वी द्वारा अपनी दर्दभरी प्रताड़ना को तुष्टिकरण पुजारी यानि छद्दम धर्म-निरपेक्षता का रोना वाले वोट ध्रुवीकरण का आरोप लगा रहे हैं, लेकिन मुस्लिम संगठनों द्वारा भाजपा के विरुद्ध वोट देने के फतवों पर चुप्पी साधे हुए हैं,, क्यों? क्योकि फतवे इनके वोट पक्के कर रहे हैं, यह दोगली निति क्यों? आखिर कब तक इन दोगली निति से जनता को पागल बनाया जाएगा? 
तीसरे, साध्वी को जबरदस्ती आतंकवाद का आरोप स्वीकार करवाने के लिए जिस तरह उन्हें और अन्य बेकसूरों को प्रताड़ित किया गया था, काश ऐसी प्रताड़ना किसी मुस्लिम के साथ हुई होती, #metoo, #intolerance, #not in my name, #mob lynching, #award vapsi आदि आदि जितने भी गैंग हैं, सबके सब सडकों पर आकर हेमंत करकरे के विरुद्ध प्रदर्शन कर उनको ऐसा निर्दयी निर्देश करने वालो को फांसी की माँग कर रहे होते। आधी रात को अदालतें खुलवा दी जाती। परन्तु, अफ़सोस, यह प्रताड़ना किसी मुस्लिम के साथ नहीं बल्कि एक हिन्दू के साथ हुई। आतंकवादियों को खूब बिरयानी खिलाई जाती थी, और बेकसूरों को बेल्टों से पिटाई और भूखा रखा जाता था?       
काश! आज हेमंत जीवित होते, बताते प्रताड़ित करवाने वालों के नाम 
हिन्दू धर्म तो मृतात्माओं का सम्मान करने को कहता है। रावण की मृत्यु के बाद भगवान श्री राम ने उन्हें बाकायदा प्रणाम किया था और लक्ष्मण समेत दूसरों को भी उन्हें प्रणाम करने को कहा था, क्योंकि हिन्दू धर्म मृतकों का इसी तरह सम्मान करना सिखाता है। उसके बावजूद एक साध्वी एक मृतक को कलंकित कर रही है, क्यों? बल्कि चुनाव उपरान्त साध्वी प्रज्ञा को हेमंत करकरे की फाइल खुलवाने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों को मजबूर करना चाहिए। करकरे एक अफसर थे और उन्हें आदेशों को पालन करना था, जिस कारण वह बलि का बकरा बन गए और उनको आदेश देने वाले मालपुए खा रहे हैं। काश! आज हेमंत करकरे जीवित होते। राजनीति में भूचाल नहीं बवंडर आ गया होता, जब "हिन्दू आतंकवाद" और "भगवा आतंकवाद" के नाम पर बेकसूरों को प्रताड़ित करवाने वालों के नाम बोलते। वोट बैंक की राजनीति में देश की संस्कृति से खिलवाड़ किया गया और लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी छूट गए। इसके लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को देश से माफी मांगनी चाहिए। 
सबसे पहले ‘हिन्दू आतंकवाद’ शब्दावली का इस्तेमाल करने वाले दिग्विजय सिंह के खिलाफ साध्वी को उतारकर वह सीधे-सीधे हिन्दुओं को अपनी ओर कर लें। बीजेपी का यह पासा सफल भी हो रहा है, क्योंकि देश में वोट देने वाली बहुसंख्य जनता भावनाओं में बह सकती है, खासकर तब जबकि बात धर्म की आड़ में कही जा रही हो। 
भोपाल सीट से बीजेपी उम्मीदवार साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने हाल ही में 26/11 मुंबई आतंकी हमलों में शहीद हेमंत करकरे को लेकर एक बयान तुष्टिकरण की सियासत करने वालों को जरुरत से ज्यादा बेचैन कर दिया है। साध्वी ने कहा, ‘हेमंत ने कहा था कि मैं कुछ भी करूंगा, मैं सबूत लेकर आऊंगा। कुछ भी करूंगा, बनाऊंगा करूंगा, इधर से लाऊंगा, उधर से लाऊंगा लेकिन मैं साध्वी को नहीं छोड़ूंगा। यह उसकी कुटिलता थी। यह देशद्रोह था, यह धर्मविरुद्ध था। तमाम सारे प्रश्न करता था। ऐसा क्यों हुआ, वैसा क्यों हुआ? मैंने कहा कि मुझे क्या पता, भगवान जाने। तो क्या ये सब जानने के लिए मुझे भगवान के पास जाना पड़ेगा? मैंने कहा, बिलकुल। अगर आपको आवश्यकता है तो अवश्य जाइए। आपको विश्वास करने में थोड़ी तकलीफ होगी, देर लगेगी लेकिन मैंने कहा, तेरा सर्वनाश होगा।’ साध्वी ने आगे कहा, ‘उन लोगों ने इतनी यातनाएं दीं, इतनी गंदी गालियां दीं जो असहनीय थीं, सिर्फ मेरे लिए नहीं, किसी के लिए भी। मैंने कहा तेरा सर्वनाश होगा। ठीक सवा महीने में सूतक लगता है, जब किसी के यहां मृत्यु होती है या जन्म होता है। जिस दिन मैं गई थी, उस दिन इसके सूतक लग गया था। ठीक सवा महीने में जिस दिन इसको आतंकवादियों ने मारा, उस दिन सूतक का अंत हो गया।’
आपने कई समाचारों में पढ़ा होगा। एक व्यक्ति जिसने देश पर आतंकी हमला करने वालों की गोली से अपनी जान गंवाई, उसे हम एक भारतीय के तौर पर, एक देशभक्त के तौर पर शहीद मानते हैं। उस शहीद के परिवार के बारे में सोचकर आत्मा रो देती है कि वह परिवार, उस परिवार के बच्चे कैसे रह रहे होंगे। मेरा मत है कि किसी की शहादत पर राजनीति कतई नहीं होनी चाहिए। एक नेता को या किसी राजनीतिक दल से जुड़े व्यक्ति को ऐसे विषयों पर फायदे या नुकसान की दृष्टि से कुछ नहीं बोलना चाहिए। ऐसे में अब सवाल यह उठता है कि क्या किसी शहीद के ‘कुकर्मों’ पर सवाल नहीं उठाना चाहिए? क्या साध्वी प्रज्ञा को खुद पर हुए अत्याचारों के बारे में देश को बताने का कोई अधिकार नहीं है? क्या कांग्रेस के नेताओं द्वारा गढ़ी गई हिन्दू आतंकवाद की मनघडंत कहानी पर सवाल नहीं पूछना चाहिए?
हम जिस देश में रहते हैं, उसकी परंपरा तो ईश्वर पर भी सवाल उठाने की अनुमति देती है जिसने हम सभी का सृजन किया है तो क्या हम किसी के कुकृत्यों पर सिर्फ इसलिए सवाल उठाना बंद कर देंगे क्योंकि उसकी मौत आतंकवादियों की गोली से हुई है? इतना ही नहीं, जब बाटला हाउस एनकाउंटर में पुलिस अधिकारी महेश चंद शर्मा की आतंकवादियों ने जान ले ली थी, क्यों उनकी मृत्यु पर क्यों प्रश्नचिन्ह लगाए थे? कौन थे वो लोग? क्या महेश चंद शर्मा शहीद की श्रेणी में नहीं आते? जब जेएनयू में भारत विरोधी नारे लगाने वालों की अभिव्यक्ति की आज़ादी का नाम दिया गया था, तो क्या एक नागरिक के तौर पर ‘पीड़ित’ साध्वी प्रज्ञा पर हुई प्रताड़ना की व्यथा पर आपत्ति करना क्या उनके अधिकारों का हनन नहीं? 
सेना ने दी क्लीन चिट, फिर भी कर्नल पुरोहित को बताया हिन्दू आतंक का चेहरा!
मालेगांव ब्लास्ट को लेकर जिन लोगों को आरोपी बनाया गया था, उनमें एक नाम कर्नल पुरोहित का था। वह भी तो सेना के जवान थे। मालेगांव ब्लास्ट को लेकर सेना ने अपनी कोर्ट ऑफ इन्क्वॉयरी में कहा था कि कर्नल पुरोहित ने मिलिटरी इंटैलिजेंस और आतंरिक आतंकवाद से जुड़ी कई बैठकों में हिस्सा लिया था जो भोपाल और फरीदाबाद में हुई थीं। जांच के मुताबिक, पुरोहित अपनी ड्यूटी के तहत इंटैलिजेंस इकट्ठा कर रहे थे। सेना की ओर से कर्नल पुरोहित को क्लीन चिट दी जा चुकी है। न्याय व्यवस्था सेना से ऊपर है लेकिन अगर सेना ने क्लीनचिट दे दी तो क्या हमारे देश के तथाकथित सेक्युलर लोगों ने एक ‘आरोपी’ को ‘आतंकी’ कहना बंद कर दिया था? नहीं, उसे हिंदू आतंकवाद के चेहरे के तौर पर पेश किया जा रहा था।
पिता के सामने बेटी का रेप करने की दी जाती थीं धमकियां!
एक अन्य आरोपी मेजर रमेश उपाध्याय ने बेल पर बाहर आने के बाद बताया कि जेल में उनसे फर्जी बयान देने को कहा जा रहा था। उनसे वह अपराध कबूल करने को कहा जा रहा था जो उन्होंने किया ही नहीं था। उपाध्याय के मुताबिक, उन्हें कहा जा रहा था कि अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया तो उनकी बेटी को उठाकर उनके सामने लाया जाएगा और फिर उनके सामने ही उनका रेप किया जाएगा। उनकी पत्नी को नंगा करके घुमाने की बात की जा रही थी, शरीर के लगभग हर हिस्सों में करंट लगाया जा रहा था। यहां तक कि प्राइवेट पार्ट में भी करंट लगाया जाता था, गुप्तांगों में जलन वाला तेल डाला जाता था। उपाध्याय ने कहा कि उनके सामने ही साध्वी को अश्लील ऑडियो सुनाया गया था। पुलिस ने उपाध्याय के घर जाकर उनके मकान मालिक से कहा कि तुमने एक आतंकी को घर दिया है, उनके घरवालों को निकाल दिया गया। इतना ही नहीं, उपाध्याय की बेटी की नई-नई शादी हुई थी। उनकी ससुराल में पुलिस गई और घर की तलाशी ली। यह सब सेना के एक ऑफिसर के साथ हो रहा था। इन सारे ही लोगों को साबित होने से पहले ही आतंकी घोषित कर दिया गया।
सुधाकर चतुर्वेदी को भी मालेगांव ब्लास्ट में आरोपी बनाया गया था। वह अभिनव भारत संस्था से जुड़े थे। मालेगांव ब्लास्ट के बाद 23 अक्टूबर 2008 को सुधाकर को नासिक से गिरफ्तार करके मुंबई ले जाया गया था। सुधाकर चतुर्वेदी के मुताबिक, उन्हें तीन दिनों तक खाना नहीं दिया गया। बाथरूम में करंट लगाकर रखा और पूरा नंगा कर पैरों के तालू पर लाठी से मारा गया।
जब कलावा बांधकर आए थे आतंकी, सोचिए क्यों?
बात करते हैं 26/11 हमले की। जरा सोचिए कि अगर कसाब पड़ता न गया होता तो क्या होता? यदि तुकाराम ओंबले ने कसाब को जिंदा नहीं पकड़ा होता तो कांग्रेस ने 26/11 आतंकी हमले का आरोप हिन्दुओं पर मढ़ दिया होता क्योंकि सभी आतंकवादी अपने हाथों में कलावा और गले में हिन्दू भगवानों के लॉकेट बांधकर आए थे। पूरा प्लान था कि सामान्य तौर पर आतंकवाद को जिस मजहब से जोड़कर देखा जाता है, वह खत्म हो जाए और ‘हिन्दू आतंकवाद’ की रचना हो जाए।
आतंकी सैयद जबीउद्दीन अंसारी उर्फ अबु जुंदाल ने जो खुलासे किए, उन्हें भी जानना बेहद जरूरी है। अंसारी ने जांच अधिकारियों को बताया कि उसने 26/11 के हमलावरों को पाकिस्तान में हिन्दी सिखाई थी, उन्हें हिन्दी मैगजीन पढ़ने के लिए दी थीं और कराची छोड़ने से पहले उनके लिए ऐसे विशेष सेशन्स चलाए थे जिससे उनकी हिन्दी अच्छी हो सके। उसने आतंकियों को यह भी सिखाया था कि भारत में लोगों से कैसे घुल-मिल जाएं, लोगों से ‘नमस्ते’ करें और भी कई सारी बातें। इन आतंकियों ने अपनी कलाई पर लाल धागा बांधा था, सभी आतंकियों के पास हैदराबाद के अरुणोदय कॉलेज का फर्जी आईडी कार्ड भी था। इतना ही नहीं, इन लोगों ने अपना हिन्दू नाम भी रख लिया था। अजमल कसाब ने अपना नाम समीर चौधरी, इस्माइल खान ने अपना नाम नरेश वर्मा रखा था। मालेगांव ब्लास्ट में हिन्दू आरोपियों को गिरफ्तार करके जिस पटकथा की प्रस्तावना लिखी जा चुकी थी, उसे अंतिम रूप 26/11 के मुंबई हमले से दिया जा रहा था।
26/11 को बताया था हिन्दू आतंकवाद
इससे पहले मालेगांव ब्लास्ट से संबंध को लेकर जब कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और स्वामी असीमानंद को गिरफ्तार किया गया था तो भारत के उर्दू मीडिया के बड़े वर्ग ने हमले के लिए यहूदी-आरएसएस को जिम्मेदार बताना शुरू कर दिया था। यह एक नया ऐंगल था। जरा देखिए, मुंबई हमले और मालेगांव ब्लास्ट को लेकर क्या-क्या लिखा गया:
यह संघ परिवार और मोसाद का संयुक्त आतंकी अभियान है: उर्दू टाइम्स (30 नवंबर, 2008) 
मुंबई हमले के पीछे हिन्दू आतंकवादियों का हाथ: अखबार-ए-मशरिक (6 दिसंबर, 2008)
काबिले यकीन कौन? दहशतगर्द ‘कसाब’ या शहीद करकरे: रोजनामा (5 दिसंबर)
रोजनामा ने इस खबर में संकेत दिया था कि 26/11 का हमला हिन्दू कट्टरपंथियों द्वारा किया गया और यह करकरे को खत्म करने की उनकी सोची-समझी योजना थी।
इतना ही नहीं, सितंबर 2009 में महाराष्ट्र पुलिस के एक रिटायर्ड आईजी एस.एम. मुशरिफ ने अपनी किताब ‘हू किल्ड करकरे?’ में आरोप लगाया कि 26/11 के हमलों के पीछे आईबी और हिन्दू कट्टरपंथियों का हाथ था।
‘हिन्दू आतंकवाद’, ‘भगवा आतंकवाद’ जैसे नाम उछालकर नया सिद्धांत गढ़ने की कोशिश की गई। 6 दिसंबर, 2010 को दिग्विजय सिंह ने 26/11 हमले पर लिखी किताब, ’26/11: आरएसएस की साजिश’ का लोकार्पण किया। इस किताब में आरोप लगाया गया था कि 26/11 की घटना को अंजाम देने की पूरी साजिश आरएसएस ने रची थी। दिग्विजय सिंह ने इसके बाद दावा किया कि मुंबई हमले से दो घंटे पहले मुंबई के जांबाज पुलिस अफसर हेमंत करकरे ने उन्हें फोन कर बताया था कि मालेगांव धमाके की जांच के कारण उनकी जान को खतरा है क्योंकि जांच के दौरान इस मामले में कुछ ऐसे हिंदू संगठनों के नाम आए हैं जिनके तार आरएसएस से जुड़े हैं। अब सवाल यह है कि दिग्विजय सिंह ऐसे कौन से पद पर थे कि एटीएस चीफ उन्हें फोन लगाकर कुछ कहेगा?
आरवीएस मणि ने किया था साजिश का खुलासा
यूपीए सरकार के दौरान अंडर सेक्रेटरी रहे आरवीएस मणि ने ‘हिन्दू आतंकवाद’ पर की जा रही पूरी साजिश सामने ला दी। उन्होंने बताया, ‘हिन्दू आतंकवाद जैसा कोई मामला नहीं था लेकिन मेरे ट्रांसफर के बाद मंत्रालय में हिन्दू आतंकवाद की कहानी गढ़ी गई। गृह मंत्रालय ने हवा देकर हिन्दुओं को बदनाम करने की साजिश रची थी।’ उन्होंने कहा था कि इस साजिश में साथ नहीं देने के लिए ही उनका गृह मंत्रालय से ट्रांसफर कर दिया गया था। इसके बाद सरकार के इस रुख से परेशान होकर उन्होंने रिटायरमेंट के 22 महीने पहले की स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी। उन्होंने यह भी कहा था कि मंत्रालय में काम करने का मतलब था कि राजनेताओं का काम करना, इसलिए एक निष्पक्ष ब्यूरोक्रेट के तौर पर काम करना उनके लिए संभव नहीं था।




Seed of Hindu terrorism was sowed in Home Ministry only after my transfer. I have left govt & have no selfish motives. I'm standing with truth. I took voluntarily retirement 22 months before date. Running after posts is politicians' job, not mine: RVS Mani, MHA former Under Secy
आखिर क्यों चुप रहें साध्वी प्रज्ञा?
एक महिला, जिसने वर्षों तक सरकार प्रायोजित प्रताड़ना को सहा लेकिन देश की परंपरा और संस्कृति पर आंच न आए, इसलिए झूठ नहीं बोला। लोग कहते हैं कि महिला कमजोर होती है। अरे, अगर महिला कमजोर होती तो झुक जातीं साध्वी प्रज्ञा, उन्हें क्या फर्क पड़ता था अगर ‘हिन्दू आतंकवाद’ की थिअरी मार्केट में प्रचलित हो जाती लेकिन नहीं। उन्होंने सत्य का साथ नहीं छोड़ा। इतने वर्षों तक जेल में रहने के बाद अगर उस दौरान हुई ज्यादतियों के बारे में समाज को बता रही हैं तो क्यों परेशानी हो रही है कि वह किसी राजनीतिक दल से प्रत्याशी हैं। एक नागरिक के तौर पर यह उनका अधिकार है कि एक ‘सरकार’ ने किस तरह भारतीयता पर हमला करने की नाकाम साजिश रची, उसे समाज को बताया जाए। क्यों नहीं प्रज्ञा पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाले यूपीए और इसको समर्थन दे रही पार्टियों से बेकसूरों पर हुई निर्दयता का जवाब माँग, ऐसे बेदर्दों पर कार्यवाही की माँग क्यों नहीं करते?  
हमारी सेना सर्जिकल स्ट्राइक करके आई, आपने सबूत मांगे। हमारी सेना एयर स्ट्राइक करके आई तो आपने कहा कि वहां सिर्फ पेड़ गिरे। बटला हाउस एनकाउंटर में शहीद हुए मोहन चंद्र शर्मा की शहादत पर भी आपने सवाल उठाए तो भी आपको शर्म नहीं आई लेकिन यदि एक महिला 9 वर्षों तक जेल में रहने के बाद अपने अनुभव साझा कर रही है तो आपको शहादत का सम्मान याद आ रहा है? साध्वी ने एक प्रत्याशी के तौर पर पहली बार कोई खुलासा नहीं किया था, वह पहले भी मीडिया के सामने यह सब बताती आई हैं लेकिन तब खबरों में नहीं छाईं। इस बार इसलिए इतना चर्चित हुईं क्योंकि वह चुनावी मैदान में हैं और उनके सामने दिग्विजय सिंह हैं। उन्हें हिन्दू आतंकवाद को प्रचारित करने के लिए मोहरा बनाया गया और दिग्विजय ने हिन्दू आतंकवाद को गढ़ा। जाहिर है, मीडिया को मसाला मिलना तय था, सो मिल गया।
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भारत के थल सेनाध्यक्ष बिपिन रावत की अगुवाई में हमारी सेना ने पिछले 15 दिनों में 44 पाकिस्तानी आतंकियों को ठोंका है, हर...

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आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार झूठ बोलना और झूठ छुपाना कोई कांग्रेस से सीखे। इतने वर्षों से चर्चा में रहे बाटला हाउस ...

साध्वी प्रज्ञा ने जो कहा, किसी की शहादत को लेकर नहीं कहा बल्कि अपने साथ हुए अत्याचार को समाज के सामने रखा। भारत में तुष्टिकरण करने वालों की नाकाम चाल को बेनकाब किया। उन्हें यह कहने का अधिकार था, तरीका गलत था, उसकी आलोचना करिए, किसी को कष्ट हुआ तो माफी भी मांग ली, इसकी तारीफ भी करिए लेकिन किसी महिला पर हुए अत्याचार को ताले में बंद करवाकर रखने का दबाव मत डालिए। ये वही मीडिया है, जो अपनी TRP बढ़ाने के लिए क्या "हिन्दू आतंकवाद" और "भगवा आतंकवाद" को प्रसारित नहीं कर रही थी? 
जब कांग्रेस भूतपूर्व सांसद संदीप दीक्षित कश्मीर में आतंकवादियों पर कार्यवाही करने पर सेना प्रमुख को "सड़क का गुंडा" बोल सकने की क्षमता रखने वालों पर कोई कार्यवाही नहीं होती, उस पार्टी और उसके समर्थक हिन्दू होते हुए भी "हिन्दू आतंकवाद" और "भगवा आतंकवाद" के नाम से हिन्दू धर्म और भारतीय संस्कृति को कलंकित करने में संकोच नहीं कर रहे, ऐसे लोगों के संस्कार को क्या कहा जा सकता है?   

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