चुनाव आयुक्त अशोक लवासा की पत्नी का काला साम्राज्य

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चुनाव आयुक्त अशोक लवासा द्वारा प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के विरुद्ध हुई आचार संहिता के उल्लंखन पर आयोग द्वारा क्लीन चिट दिए जाने का विरुद्ध उन्होंने बड़े ही सुन्योजित ढंग से विरुद्ध किये जाने पर, उनके बारे में जो जानकारी सामने आई है इससे उनकी ईमानदारी का चोला उतर गया है। मुख्य चुनाव आयुक्त समेत दो आयुक्तों के फैसलों पर सवाल उठाकर उन्होंने चुनाव आयोग को सवालों के घेरे में ला दिया है। माना जाता है कि लवासा ने कांग्रेस और लेफ्ट-लिवरल गैंग के कहने पर ऐसा किया है। लोकतांत्रिक संस्थाओं को बदनाम करने की कांग्रेस की पुरानी आदत रही है। कांग्रेस और लेफ्ट-लिबरल गैंग ने इस बार अशोक लवासा को अपना नया हथियार के रूप में उपयोग किया है। असंतुष्ट चुनाव आयुक्त लवासा का कांग्रेसी नेता पी चिदंबरम के साथ और उनकी पत्नी नोवेल सिंघल लवासा के लिंक के बारे में कई दिलचस्प विवरण सामने आए हैं। कांग्रेस के साथ पुराना लिंक होने के कारण ही लवासा ने चुनाव आयोग की कार्यशैली पर सवाल उठाया है। गौरतलब है कि यूपीए-2 सरकार में गृह मंत्री रहे पी चिदंबरम ने 2009 में ही लवासा को गृह मंत्रालय में संयुक्त सचिव बनाया था।
नौकरी छुड़ा कर चीनी मिल की डायरेक्टर बना दिया 
अशोक लवासा की पत्नी एसबीआई में नौकरी करती थी। लेकिन उतनी अच्छी नौकरी छोड़कर आईएएस अधिकारियों की पत्नी के एक एसोसिएशन को संभालना शुरू कर दिया। जैसे ही अशोक लवासा  पर्यावरण मंत्रालय में सचिव बने वैसे ही उन्होंने ने अपनी पत्नी नोवेल सिंघल लवासा को बलरामपुर चीनी मिल की डायरेक्टर बना दिया। यहां से इनकी आगे चढ़ने की सीढ़ियां शुरू हुई।
देखा जाए तो ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, हर सरकार अपने चहितों को प्रवक्ता और किसी न किसी कम्पनी या पब्लिक सेक्टर में निदेशक बनवाकर अपने अनुरूप काम करवाती रहती है। और इस काम से भाजपा भी अछूती नहीं है। जिस कारण छोटे से मकान में रहने वाला/वाली आलीशान बंगलो के मालिक बन जाते हैं।  
वित्त सचिव बनते ही 12 कंपनियों की डायरेक्ट बनवा दिया 
जैसे जैसे अशोक लवासा का तबादला या मंत्रालय बदलता गया नोवेल सिंघल लवासा की गोद में डॉयरेक्टर पद गिरता चला गया। जब अशोक लवासा वित्त सचिव बने उस समय उनकी पत्नी नोवेल सिंघल लवासा 12 कंपनियों की डॉयरेक्टर थीं।
लोकतांत्रिक संस्थाओं को बदनाम करती रही है कांग्रेस
देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं को अपने हित में बदनाम करने की कांग्रेस की पुरानी आदत रही है। अपनी हार को चुनाव आयोग पर फोड़ने के लिए कांग्रेस पहले से ही तैयारी कर चुकी है। कांग्रेस मुख्य चुनाव आयुक्त पर हमला करना चाहती थी। इसलिए कांग्रेस ने अशोक लवासा को अपने हथियार के रूप में उपयोग किया है।
जनता भी कांग्रेस द्वारा लोकतान्त्रिक संस्थाओं के दुरूपयोग को भूल जाती है। 1975 में इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी को अयोग्य घोषित किए जाने पर भारत में आपातकाल लगाना क्या सत्ता का दुरूपयोग नहीं था? फिर आपातकाल में संजय गाँधी की तूती बोलती थी, कुछ न होते हुए भी किसी सेवक(चपरासी) से लेकर केन्द्रीय मन्त्री में संजय गाँधी की किसी बात का विरुद्ध करने का साहस नहीं था। संजय के श्रीमुख से निकले बोल ही किसी आदेश से कम नहीं होते थे।    




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