बेरोजगारी : चुनावी रैलियों में झूठलाया, सत्ता आते ही स्वीकारा

                                                                                         साभार 

आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
भारत भले ही विकास के रथ पर सवार हो सरपट दौड़ने को तैयार है लेकिन बेरोजगारी की  हकीकत है जो आने वाले दिनों में देश की इस तस्वीर को धुंधला कर सकती है। इंटरनेशनल लेबर आर्गनाइजेशन की रिपोर्ट मोदी सरकार और देश के युवाओं की चिंता बढ़ाने वाली है।इंटरनेशनल लेबर आर्गनाइजेशन की रिपोर्ट दावा करती है कि 2019 तक देश में बेरोजगारों की संख्या एक करोड़ 90 लाख तक पहुंच सकती है।
बेरोजगारी दर 45 साल के ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है। मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में  इसे आधिकारिक तौर पर स्वीकार कर लिया गया है। जबकि  कुछ महीने पहले लीक हुई इसी रिपोर्ट को खारिज कर दिया था। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, देश में जुलाई 2017 से लेकर जून 2018 के दौरान एक साल में बेरोजगारी  6.1 फीसदी बढ़ी। इससे पहले 1972-73 में बेरोजगारी दर का यही आंकड़ा था। 6.1% का आंकड़ा नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) की जनवरी में लीक हुई रिपोर्ट में भी बताया गया था। लेकिन तब नीति आयोग ने रिपोर्ट खारिज करते हुए कहा था कि यह फाइनल डेटा नहीं, बल्कि ड्राफ्ट रिपोर्ट है और सरकार ने नौकरियों पर कोई डेटा जारी नहीं किया है। हालांकि रिपोर्ट जारी करते हुए सांख्यकी सचिव प्रवीण श्रीवास्तव ने बताया कि सर्वे नए डिजाइन और नए मेट्रिक्स पर आधारित है। इसलिए पिछली रिपोर्टों से तुलना सही नहीं है। 45 साल में सबसे ज्यादा बेरोजगारी की व्याख्या मीडिया की है। 

दो सदस्यों ने दिया था इस्तीफा

गौरतलब है कि रिपोर्ट जारी नहीं करने पर राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के दो सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया था। केंद्र सरकार को महत्वपूर्ण आंकड़ों को रोकने के लिए विपक्षी दलों के आरोपों को झेलना पड़ा था। विपक्ष का आरोप था कि सरकार अपनी नाकामयाबी को जानबूझकर छिपा रही है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, शहरी क्षेत्र में रोजगार की चाहत रखने वाले 7.8 फीसदी युवा बेरोजगार हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्र में यह आंकड़ा 5.3 फीसदी है। बेरोजगारी दर का निर्धारण कुल कार्यबल में बेरोजगार व्यक्तियों की तादाद की गणना फीसदी में करके किया जाता है।

Image result for बेरोजगारीशहरी क्षेत्र में युवा ज्यादा बेरोजगार 

इंटरनेशनल लेबर आर्गनाइजेशन की रिपोर्ट में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इस रिपोर्ट में 15 से 24 साल तक के युवाओं को शामिल किया गया है जो रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं।  रिपोर्ट का दावा है कि साल 2017 में एक करोड़े 83 युवा बेरोजगार हुए हैं और 2019 तक इनकी संख्या में बेतहासा वृद्धि हो सकती है।
एनएसएसओ रिपोर्ट में कहा गया था कि 2017-18 में बेरोजगारी दर ग्रामीण क्षेत्रों में 5.3% और शहरी क्षेत्र में सबसे ज्यादा 7.8% रही। पुरुषों की बेरोजगारी दर 6.2% जबकि महिलाओं की 5.7% रही। इनमें नौजवान बेरोजगार सबसे ज्यादा थे, जिनकी संख्या 13% से 27% थी। 2011-12 में बेरोजगारी दर 2.2% थी। जबकि 1972-73 में यह सबसे ज्यादा थी। बीते सालों में कामगारों की जरूरत कम होने से ज्यादा लोग काम से हटाए गए।

इतने लोगों पर किया गया सर्वे

सरकार के शुक्रवार को यहां जारी आंकड़ों के अनुसार जुलाई 2017 से जून 2018 की अवधि की रिपोर्ट के अनुसार कुल 12 हजार 800 बस्तियों में सर्वेक्षण किया गया। इन बस्तियों में 7024 गांव और 5776 शहर शामिल हैं। एक लाख दो हजार 113 परिवारों में सर्वेक्षण किया गया। इनमें 56 हजार 108 ग्रामीण तथा 46 हजार पांच शहरी परिवार शामिल हैं। सर्वेक्षण में चार लाख 33 हजार 339 लोगों ने हिस्सा लिया। इनमें से दो लाख 46 हजार 809 ग्रामीण और एक लाख 86 हजार 530 शहरी इलाकों से हैं।

नोटबंदी के बाद का पहला सर्वे

यह रिपोर्ट काफी महत्वपूर्ण है। यह जुलाई 2017 से जून 2018 के बीच जुटाए गए डेटा पर आधारित है। यानी यह नोटबंदी के बाद का पहला आधिकारिक सर्वेक्षण है। सरकार पर यही रिपोर्ट दबाने का आरोप लगाते हुए राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के कार्यकारी अध्यक्ष सहित दो सदस्यों ने जनवरी में इस्तीफा दे दिया था। उनका कहना था कि रिपोर्ट को आयोग की मंजूरी मिलने के बाद भी सरकार जारी नहीं कर रही। यह रिपोर्ट दिसंबर 2018 में जारी की जानी थी।
रिपोर्ट में इस बात पर चिंता जाहिर की गई है कि 2019 तक 77 प्रतिशत युवाओं के रोजगार अपने आप खत्म हो जाएंगे। ये ऐसे रोजगार है जिनमें आमदनी बेहद कम है। ऐसे रोजगार में युवाओं को 198 रुपए प्रतिदिन से भी कम की कमाई होती है।   (एजेंसीज इनपुट्स सहित)

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