मुस्लिम समाज को खैरात नहीं उनका हक दें : असदुद्दीन ओवैसी,

asaduddin owaisi
तेलंगाना से आर.बी.एल.निगम 
एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि जब 1947 में देश को आजादी मिली तो उस समय ये सोचा गया है कि हमारे सामने एक नया भारत होगा। वो आजाद भारत होगा। महात्मा गांधी, नेहरू और अंबेडकर की सोच थी कि आजाद भारत में हर एक शख्स की बात सुनी जाएगी। उन्हें उम्मीद है कि मुसलमानों को इस देश में उनका समुचित प्रतिनिधित्व होगा। हम किसी से इमदाद नहीं चाहते हैं। मुस्लिम समाज किसी तरह की खैरात पर नहीं जीना चाहता है। 
बीजेपी पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि आप कांग्रेस या दूसरी धर्मनिरपेक्ष ताकतों को नहीं छोड़ सकते हैं। आप याद रखिए कि कांग्रेस या दूसरी धर्मनिरपेक्ष पार्टियों को दरकिनार नहीं कर सकते हैं। आप को लगता है कि उन्होंने कड़ी मेहनत नहीं की। लेकिन बीजेपी को नुकसान कहां हुआ। अगर पंजाब की बात करें तो वहां सिख समाज था। बीजेपी को दूसरी जगहों पर पराजय का सामना क्यों करना पड़ा। अगर बीजेपी की हिंदी बेल्ट छोड़कर कहीं हार हुई तो वो कांग्रेस की वजह से नहीं बल्कि क्षेत्रीय दलों की वजह से हुई है।
Asaduddin Owaisi, AIMIM: The Congress leader himself lost in Amethi & received victory in Wayanad. Isn't the 40% population of Wayanad Muslim? (09.06.2019)
अगर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की बात करें तो अमेठी में चुनाव हार गए। लेकिन वायनाड में विजय हासिल हुई। क्या ऐसा नहीं है कि वहां पर 40 प्रतिशत से ज्यादा आबादी मुसलमानों की है। ओवैसी ने कहा कि ज्यादातर राजनीतिक दलों ने मुसलमानों को वोट बैंक के तौर पर देखा और उसका असर यह हुआ कि बहुत सी प्रतिक्रियावादी ताकतों ने उसका फायदा उठाया। आज जब हम 21वीं सदी के दूसरे दशक में हैं तो हमें सोचना होगा विकास के सपने को साकार करने के लिए हम किस तरह से आगे बढ़ सकते हैं।
ओवैसी साहब से पूछा जाए कि मुसलमानों को किस चीज से महरूम रखा गया है। ये आप जैसे नेताओं ने ही देश में हिन्दू-मुसलमान का जहर फैलाया हुआ है। 
ओवैसी जैसी मानसिकता वाले नेताओं और उनके समर्थकों को एक चर्चा में दिल्ली के पूर्व विधायक कपिल मिश्रा का यह वीडियो, ज्यादा पुराना नहीं है, जरूर देखना चाहिए:-
मुसलमानों से असुरक्षा का डर कब निकालोगे?
हिन्दू की बात करने में साम्प्रदायिकता दिखती है, और मुसलमान की बात करने में समाजवाद, यदि आप जैसे नेताओं की यही सोंच है तो ऐसा समाजवाद और ऐसी धर्म-निरपेक्षता आपको ही मुबारक हो। आप जैसे नेताओं ने मुसलमानों की राह में सिर्फ और सिर्फ काँटे ही बिछाए हैं, जिसे बेचारा मुसलमान हकीकत समझ दुनियाँ में शर्मिन्दा होता रहता है। आप जैसे कुर्सी के भूखे नेताओं ने मुस्लिम समाज को मुख्यधारा से अलग रख, केवल अपना वोट बैंक बनाकर रख दिया है। और जहाँ तक हक़ की बात है, जितना अधिक्रमण और अवैध निर्माण आदि मुस्लिम क्षेत्रों में है उतना कहीं नहीं। जितनी टूटी-फूटी और गढ्ढों वाली सड़कें मुस्लिम क्षेत्रों में है, हिन्दू बहुल क्षेत्रों में नहीं, कौन है इसका ज़िम्मेदार? जबकि इन क्षेत्रों का पार्षद और विधायक मुस्लिम है। हकीकत यह है कि जिन नेताओं ने मुस्लिमों को केवल अपना वोट बैंक बनाकर रखा हुआ, उन्हीं नेताओं ने इन बेचारों के दिलो-दिमाग में असुरक्षा का डर बनाकर रख दिया है। आखिर कब तक इन्हें डरा-धमका कर रखोगे? क्या ये इन्सान नहीं? क्या इनको निडर होकर जीने का अधिकार नहीं? लेकिन इतना विश्वास है कि जिस दिन आम मुसलमान को यह समझ आ गयी कि "हमें ये कुर्सी के भूखे नेता अपना वोट बैंक समझ डराकर रखते हैं, उस दिन से समझ लेना देश से छद्दमवाद की अर्थी निकल जाएगी। ऐसा व्हाट्सअप पर जून 1 को मोहम्मद नदीम की सोंच प्रस्तुत कर रहा हूँ:-
 "हर शहर के मुस्लिम मोहल्लों में होटलों पर निहारी पाए पेल रही क़ौम...😢😢पान की गुमटी और चाय की दुकानों पर सड़े कप और प्यालों में भिनभिनाती मख्खियों के बीच चाय पीती क़ौम...😢😢सारी रात मुहल्लों की रौनक नौजवान और बच्चों वाली क़ौम...😢😢गालियों की नई नई वैरायटी ईजाद करने वाली क़ौम...😢😢बिना कागज़ात बाइक को हवा में उड़ाते हुवे नई नस्ल के नौजवानों की क़ौम...😢😢😢पकड़े जाने पर मुहल्ले के नेता जी के आगे बाइक छुड़वाने की गुहार लगाती क़ौम....😢😢मामूली सी उजरत पर नज़दीकी थाने और मुक़ामी पुलिस चौकी के मुखबिरों वाली क़ौम...😢😢कोई खास तालीम या हुनर न होने के बावजूद सरकार पर मुसलमानों को नौकरियां न देने का इल्जाम लगाती क़ौम...😢😢हर गली कूचे मुहल्ले और सड़क पर बड़े बड़े युवक, नेताओं के नाम के फ्लेक्स बोर्ड लगाती हुई क़ौम...😢😢जेल और कचहरी में धक्के खाती क़ौम...😢😢बक़राईद पर गलियों में बकरे या कटड़े काटने वाले कसाई के पीछे पीछे चलती सेंकडो बच्चों वाली क़ौम...😢😢और ईद के दिन सिनेमाघरों में सलमान खान की फिल्मों को सुपर हिट का तमगा दिलाने वाली क़ौम
या अल्लाह हमारे और हमारी क़ौम के ऊपर रहम का मामला अता फ़रमा-आमीन

ख़ुदा ने आज तक उस क़ौम की हालत नही बदली,
न हो अहसास जिसको खुद अपनी हालत बदलने का,,

तो ए मुसलमानों तुम पढ़ते क्यों नही??😢अपने खर्चो पर लगाम लगाकर अपने बच्चों को अपनी नस्लो को बेहतरीन आला दर्जे के स्कूलों में पढ़ाते क्यों नही?? ख़ुदारा संभल जाइए, अपनी नहो तो कम से कम अपनी आने वाली नस्लो की तो फिक्र कीजिये"
दक्षिण में बीजेपी नवजात शिशु भी नहीं 
अपने तेलंगाना(हैदराबाद) प्रवास के दौरान गोची बोरी, लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद एक एक्ससर्विस वायु सेना के अधिकारी ने बहुत ही व्यंगात्मक शैली में बोले "क्यों साहब आप हिन्दी बेल्ट वालों ने भाजपा को जितवा दिया। लेकिन साउथ में देखिए किसी ने नहीं पूछा और न ही कभी कोई पूछेगा। कर्नाटक से बाहर कोई बीजेपी और मोदी को नहीं जानता। मोदी ने किया ही क्या है? व्यंगात्मक शैली में दक्षिण में भाषा के आधार पर होने पर भेदभाव आदि पर अपनी बात रखने पर भी संकोच नहीं किया। एक तरफ आप कहते हैं कि साउथ के लोग ज्ञानी होते हुए भी गरीब हैं, लेकिन हमारी दिल्ली के मुकाबले बहुत महँगा है, आखिर इतनी महँगाई में गरीब कैसे निर्वाह करते हैं? क्या है अन्य आय स्रोत? जहाँ तक साउथ में बीजेपी को नकारने की बात है, उसमें कसूरवार मोदी नहीं, यहाँ का बीजेपी यूनिट जिम्मेदार है। उनका प्रचार-प्रसार बिल्कुल वैसा है, जैसा दिल्ली में मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में वहां के स्थानीय नेताओं का। जबकि बीजेपी अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अधिकांश सदस्य तक बीजेपी को वोट नहीं करते। लेकिन प्रकोष्ठ के सदस्य अथवा पदाधिकारी होने के नाते पार्टी की हर सुविधा का भरपूर लाभ उठाते हैं, ठीक वही स्थिति आपके यहाँ बीजेपी के सदस्य और नेताओं की है। लेकिन साहब चिन्ता मत करिये, बहुत जल्द साउथ में भी बीजेपी लहर आएगी।   सर्जिकल और एयर स्ट्राइक आदि पर लोगों को भ्रमित करने की बात कही। बॉर्डर पर आये दिन पाकिस्तान हमारे जवानों को मार रहा है, क्या कर रहा है आपका मोदी? जब पूछा कि क्या बॉर्डर पर मोदी के आने के बाद से ऐसा हो रहा है, क्या पहले नहीं होता था? हाँ अगर सोंच ही बीजेपी और मोदी विरोधी है, तो साहब मै तो क्या प्रधानमंत्री मोदी भी समझा नहीं सकते। इस क्षेत्र में हिन्दी बोलने और समझने वालों की ऐसी ही सोंच है।  
लगभग ओवैसी का भी यही कहना है कि क्षेत्रीय पार्टियों का अधिक बोलबाला है। मुझे उन सज्जन से कोई शिकवा अथवा शिकायत नहीं, उनकी इस सोंच के लिए ज़िम्मेदार यहाँ का स्थानीय बीजेपी यूनिट है। पीछे विधान सभा चुनावों के दौरान भी तेलंगाना प्रवास पर था, जिस क्षेत्र में जाकर रहता हूँ, वहाँ बीजेपी को छोड़ सभी पार्टियाँ के उम्मीदवार अपने प्रचार-प्रसार के लिए क्षेत्रों में आ रहे थे, जबकि बीजेपी उम्मीदवार का केवल लाउड स्पीकर पर टेप चलते हुए टेम्पो। यहाँ से भाजपा उम्मीदवार हर तरह से धन-सम्पन्न था, दैनिक पत्रों में पूरे अथवा आधे पृष्ठ के विज्ञापन छापने से क्या वोट मिलती है?

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