आर.बी.एल.निगम
लिबरल गैंग की राजकुमारी सागरिका घोष ने कश्मीर में शांति-भंग करने का ज़िम्मा अपने कंधों पर ले लिया है। ट्विटर पर एक तीन साल पुरानी रिपोर्ट को शेयर कर सागरिका ने पाकिस्तान का कश्मीरियों के साथ क्रूरता का प्रोपेगंडा आगे बढ़ाया है। इसके ज़रिए ऐसा जताने की कोशिश की कि कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद से शांति नहीं विद्रोह और असंतोष है, और भारतीय सुरक्षा बल उसे क्रूरतापूर्वक कुचल रहे हैं।वास्तव में लिबरल गैंग नहीं चाहता कि कश्मीर में शान्ति स्थापित हो सके, आतंकवाद और पत्थरबाजों पर लगाम लगे।
मोदी सरकार 2014 से पूर्व ऐसे ही पत्रकारों के माध्यम से भारतीय सेना को अवांछित आरोपों से कलंकित किया जा रहा था। जो पाकिस्तान का काम आसान कर, सेना के मनोबल को तोड़ने का भरपूर प्रयास किया गया था। ऐसी पत्रकारिता किस काम की जो अपने ही देश के विरुद्ध काम कर रही हो।
इस सन्दर्भ में स्मरण आता है एक हिन्दी पाक्षिक को सम्पादित करते 2013 में लिखा लेख शीर्षक "सोनिया जी क्या यह राष्ट्र विरोधी नहीं?", जो भाजपा के वर्तमान प्रवक्ता तजेन्द्र सिंह बग्गा के एक रहस्योघाटन पर आधारित था, जिसका आज तक कांग्रेस द्वारा खंडन नहीं हुआ। सोनिया गाँधी जिस कश्मीर विरोधी संस्था से जुडी हैं, समय आ गया है कि उस संस्था से जुड़े समस्त पत्रकारों का संज्ञान लिया जाए।
न केवल सागरिका घोष द्वारा शेयर की गई रिपोर्ट पुरानी थी बल्कि संदर्भ का भी नितांत अभाव जबकि मूल रिपोर्ट, सागरिका की शेयरिंग में भी है। यह रिपोर्ट केवल दुराग्रह से लिथड़ी हुई एकतरफ़ा रिपोर्टिंग है। इसमें यह तो बताया गया है कि सेना और पुलिस वाले कश्मीरियों की भीड़ को तितर-बितर करने के लिए गुलेल से पत्थर, काँच की गोलियाँ और मिर्ची पाउडर इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन यह नहीं बताया जाता है कि भीड़ कोई शांतिपूर्ण गाँधी बाबा के चेलों की नहीं बल्कि हिंसक, पत्थरबाज जिहादियों की थी, और न ही यह बताया जाता है कि गुलेल के अलावा सुरक्षा बलों के पास दूसरा विकल्प पैलेट गन और जानलेवा असॉल्ट राइफलों का था।
लिबरल गैंग की राजकुमारी सागरिका घोष ने कश्मीर में शांति-भंग करने का ज़िम्मा अपने कंधों पर ले लिया है। ट्विटर पर एक तीन साल पुरानी रिपोर्ट को शेयर कर सागरिका ने पाकिस्तान का कश्मीरियों के साथ क्रूरता का प्रोपेगंडा आगे बढ़ाया है। इसके ज़रिए ऐसा जताने की कोशिश की कि कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद से शांति नहीं विद्रोह और असंतोष है, और भारतीय सुरक्षा बल उसे क्रूरतापूर्वक कुचल रहे हैं।वास्तव में लिबरल गैंग नहीं चाहता कि कश्मीर में शान्ति स्थापित हो सके, आतंकवाद और पत्थरबाजों पर लगाम लगे।
मोदी सरकार 2014 से पूर्व ऐसे ही पत्रकारों के माध्यम से भारतीय सेना को अवांछित आरोपों से कलंकित किया जा रहा था। जो पाकिस्तान का काम आसान कर, सेना के मनोबल को तोड़ने का भरपूर प्रयास किया गया था। ऐसी पत्रकारिता किस काम की जो अपने ही देश के विरुद्ध काम कर रही हो।

पुरानी रिपोर्ट, कोई संदर्भ नहीं

इसके अलावा यह रिपोर्ट तीन साल पुरानी थी, और सागरिका घोष ने इसे शेयर करते हुए यह बात नहीं बताई। और-तो-और, गुलेल से भीड़-नियंत्रण के इस तरीके को (तुलनात्मक रूप से) civilized (सभ्य) बताने को ‘ ‘ में डालकर भी उन्होंने सुरक्षा बलों के दानवीकरण (demonization) की कोशिश की।
This report describes how security forces have been using slingshots for “civilised” crowd control https://t.co/BPhYyXg3hx— Sagarika Ghose (@sagarikaghose) August 14, 2019
चोरी के बाद सीनाज़ोरी
सागरिका घोष की बेशर्मी यहीं नहीं रुकी। जब एक ट्विटर यूज़र ने उनके प्रोपेगंडा पर ऊँगली उठाई और रिपोर्ट के पुराने होने का ज़िक्र किया तो भी उन्होंने अपनी गलती नहीं सुधारी। उलटे, वे उसी ट्विटर यूज़र को यह कुतर्क देने लगीं कि यह तो 2009 से ही चल रहा है। अपने इस दावे का भी उन्होंने कोई प्रमाण नहीं दिया।
Dear @AmitShah/@narendramodi@sagarikaghose is using old pic of 2009 & old article of 2016 to spread fake news of violence in #Kashmir to incite local protesters.— Sir Jadeja fan (@SirJadeja) August 14, 2019
Pls take a slingshot action on Intellectual Jihadis on the payroll of Abdul Basit before things get out of control. pic.twitter.com/vPbkWqg5UJ
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