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चीनी और इस्लामी कट्टरपंथियों ने फैलाई US के साथ ट्रेड बंद करने की खबर, ताकि लोगों में फैल जाए पैनिक: MEA ने खारिज की अफवाहें

                                                                                                     साभार: MEA Fact check
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ के ऐलान के बाद सोशल मीडिया पर ऐसे पोस्ट की बाढ़ आ गई, जिसमें भारत-अमेरिका के बीच सबकुछ ‘सही’ नहीं होने की बात कही जा रही थी। यही नहीं, दावे ये भी किए जा रहे थे कि अब भारत अमेरिका के साथ कोई संबंध नहीं रखेगा और वो अमेरिका पर पलटवार की तैयारी कर रहा है। भारत अब अमेरिका की ‘शत्रुतापूर्ण आर्थिक नीतियों’ के जवाब में ‘दोगुना’ तक टैरिफ लगा देगा।

भारत-अमेरिका के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देने वाले फर्जी सोशल मीडिया पोस्ट चीन समर्थित या इस्लामी देशों से जुड़े दिखने वाले हैंडल्स से लगातार किए जा रहे थे। ऐसे ही एक हैंडल ‘मिडिल ईस्टर्स अफेयर्स’ की पोस्ट में दावा किया गया कि अगर अमेरिका अपनी ‘होस्टाइल’ नीतियों को नहीं बदलता है, तो भारत सरकार अमेरिका से साथ सभी व्यापारिक समझौतों को रद्द कर सकती है।

इसी तरह से ‘चाइना इन इंग्लिश’ नाम के हैंडल से बाकायदा एक लिस्ट ही जारी कर दी गई, जिसके इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट को लेकर भारत सरकार फैसले लेने वाली है। दावा किया गया कि भारत अमेरिका को देने वाली व्यापार छूटों को खत्म कर देगा।

हालाँकि विदेश मंत्रालय ने उन अफवाहों को सिरे से खारिज कर दिया है। मंत्रालय की फैक्ट चेक यूनिट ने साफ कहा कि ऐसी कोई योजना नहीं है। ये भी साफ कर दिया गया है कि भारत सरकार फिलहाल किसी भी जल्दबाजी में नहीं है। वो अमेरिका को दी गई व्यापारिक छूटों को वापस लेने या समीक्षा करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठा रही।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 25% टैरिफ लगाने की घोषणा की थी, जो 1 अगस्त से लागू हो चुका है। ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘ट्रुथ सोशल’ पर भारत की आलोचना करते हुए कहा था कि भारत के टैरिफ दुनिया में सबसे ज्यादा हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भारत और रूस को अपनी अर्थव्यवस्थाओं के साथ ‘डूब जाना चाहिए।’ ट्रंप का यह बयान भारत द्वारा रूस से तेल और सैन्य उपकरण खरीदने के कारण भी आया, क्योंकि यूक्रेन युद्ध के बीच अमेरिका इससे नाराज है।

इन तनावों के बावजूद भारत और अमेरिका व्यापारिक रिश्तों को बेहतर करने की दिशा में काम कर रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, दोनों देश आपसी सहमति से लाभकारी व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहे हैं। सूत्रों ने बताया कि वर्चुअल मोड में चर्चा चल रही है और 24 अगस्त को अमेरिकी व्यापार वार्ता टीम नई दिल्ली आएगी। इस दौरे में छठे दौर की वार्ता होगी, जिसमें व्यापारिक मुद्दों को सुलझाने पर जोर रहेगा।

इस बीच, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों से ‘स्वदेशी’ अपनाने का आह्वान किया है, ताकि भारतीय उत्पादों को बढ़ावा मिले। वहीं, विदेश मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही गलत खबरें, जैसे कि भारत का ‘कोई सम्मान नहीं तो कोई छूट नहीं’ जैसा बयान, पूरी तरह बेबुनियाद हैं। सरकार का ध्यान व्यापारिक रिश्तों को मजबूत करने पर है, न कि उन्हें तोड़ने पर।

कितने में बिका मीडिया? जो एनसीआरबी 2024 की रिपोर्ट आई तक नहीं, उसका हवाला देकर मीडिया ने किया UP को बदनाम: रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश को बताया अपराध का अड्डा

          मीडिया ने NCRB की गलत रिपोर्ट पेश की ( फोटो साभार- टाइम्स नाउ, जागरण, टाइम्स ऑफ इंडिया)
5 मई को टाइम्स नाउ ने ‘सबसे ज़्यादा अपराध दर वाले शीर्ष 10 भारतीय राज्यों का खुलासा!’ शीर्षक से एक लेख प्रकाशित किया। इसमें दावा किया गया है कि ‘2024 एनसीआरबी की विस्तृत अपराध रिपोर्ट’ में उत्तर प्रदेश में अपराध दर ‘7.4 प्रति व्यक्ति’ है (जिसका मतलब है कि प्रति 1,00,00 जनसंख्या पर 7,40,000 अपराध)। जबकि 2024 के आँकड़े अब तक एनसीआरबी ने जारी ही नहीं किए हैं। नवीनतम आँकड़ा 2022 का है।

टाइम्स ऑफ इंडिया ने भी 6 मई को यही प्रकाशित किया। जागरण ने भी 22 मई को इसे प्रकाशित किया। इन सभी रिपोर्टों में एक जैसे दावे किए गए।

दावा क्या है?

रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश में प्रति व्यक्ति क्राइम रेट 7.4 है। इसका मतलब है कि प्रति 100,000 पर 7,40,000 अपराध होता है। मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया कि यह आँकड़ा 2024 एनसीआरबी रिपोर्ट के हवाले से है। नौ अन्य राज्यों के लिए भी इसी तरह के हाई क्राइम रेट का दावा किया गया है। इसका मतलब है कि देश में अपराध बढ़ा है।

देश में सर्वाधिक क्राइम वाले 10 राज्य

  1. उत्तर प्रदेश – प्रति व्यक्ति 7.4 क्राइम रेट
  2. अरुणाचल प्रदेश – प्रति व्यक्ति 5.8 क्राइम रेट
  3. झारखंड – प्रति व्यक्ति 5.3 क्राइम रेट
  4. मेघालय – प्रति व्यक्ति 5.1 क्राइम रेट
  5. दिल्ली (एनसीटी) – प्रति व्यक्ति 5.0 क्राइम रेट
  6. असम – प्रति व्यक्ति 4.4 क्राइम रेट
  7. छत्तीसगढ़ – प्रति व्यक्ति 4.0 क्राइम रेट
  8. हरियाणा – प्रति व्यक्ति 3.8 क्राइम रेट
  9. ओडिशा – प्रति व्यक्ति 3.8 क्राइम रेट
  10. आंध्र प्रदेश – प्रति व्यक्ति 3.6 क्राइम रेट
रिपोर्ट का आँकलन किया जाए तो पता चलता है कि इन सभी राज्यों में जनसंख्या से ज्यादा अपराध हुए हैं, यानी करीब- करीब हर व्यक्ति क्राइम का शिकार हुआ है। क्योंकि इनमें प्रति व्यक्ति अपराध दर 1 से अधिक है। यही दावा सिविल सेवा से लेकर बैंकिंग परीक्षा की तैयारी कराने वाले PW IAS, Adda 24 7 और Study IQ जैसी संस्थानों ने अपने वेबसाइट पर किया।
रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि आखिर इन राज्यों में क्राइम रेट हाई क्यों हैं? उत्तर प्रदेश में अपराध ज्यादा होने की वजह चोरी , हिंसा, सांप्रदायिक अशांति को बताया गया। वहीं अरुणाचल प्रदेश और मेघालय जैसे राज्यों में कम क्राइम रेट की वजह पहाड़ों पर दूरदराज क्षेत्रों में स्थानीय जनजातीय समुदाय का रहना बताया गया है। इसकी वजह से पुलिस तक शिकायतें कम आती हैं।
झारखंड और छत्तीसगढ़ में, नक्सली हिंसा और अवैध खनन की वजह से क्राइम होता है। दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ अपराध और सड़क पर होने वाली हिंसा काफी है, जिससे क्राइम रेट ज्यादा है। असम में जातीय संघर्ष और सीमा विवाद हिंसक घटनाओं के लिए जिम्मेदार है। हरियाणा और ओडिशा में महिलाओं के साथ अपराध और ग्रामीण असमानता बढ़ रही है, इसलिए सामाजिक तनाव तेजी से बढ़ रहा है। आंध्र प्रदेश में साइबर क्राइम और वित्तीय गड़बड़ियों का मामला सबसे ज्यादा है।

वास्तविकता

राज्यों को लेकर किए गए दावे पूरी तरह से निराधार हैं और NCRB की आधिकारिक रिपोर्ट इसका समर्थन नहीं करता। पहली बात की राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की ‘भारत में अपराध’ रिपोर्ट वर्ष 2022 में होने वाले क्राइम को लेकर दी गई है, न कि 2024 के लिए। इसे 3 दिसंबर 2023 को जारी किया गया था। 2023 या 2024 के लिए कोई भी NCRB रिपोर्ट अभी तक NCRB वेबसाइट पर प्रकाशित नहीं हुई है। हमने NCRB के अधिकारियों से भी इसे लेकर बातचीत की है। उन्होंने साफ कहा है कि 2022 की रिपोर्ट ही वेबसाइट पर मौजूद नवीनतम रिपोर्ट है।

2022 में राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेश में क्राइम रेट के आँकड़े 

एनसीआरबी 2022 की रिपोर्ट

इस रिपोर्ट में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का डेटा है। ये मीडिया रिपोर्टों को झुठलाती हैं। भारत में अपराध 2022 की तालिका 1A.3 के अनुसार, देश में क्राइम रेट प्रति 100,000 जनसंख्या पर 422.2 थी, जबकि उत्तर प्रदेश में अपराध दर प्रति 1,00,000 जनसंख्या पर 322 है। यानी मीडिया रिपोर्ट में किए गए प्रति व्यक्ति 7.4 से काफी कम।
एनसीआरबी के आँकड़ों से साफ पता चलता है कि दिल्ली में क्राइम रेट सबसे ज्यादा है। यहाँ प्रति एक लाख आबादी पर 1512.8 अपराध हुए हैं। जबकि केरल में प्रति 100,000 लोगों पर 1274.8 अपराध दर्ज किए गए। इसकी तुलना उत्तर प्रदेश से की जाए तो ये काफी कम हैं। इतना ही नहीं यूपी में अपराध केरल, हरियाणा, गुजरात, तमिलनाडु आदि कई अन्य राज्यों से कम हुए हैं।
मीडिया में ये दावा किया गया कि उत्तर प्रदेश में अपराध दर प्रति 100,000 पर 7,40,000 है, यानी 24 करोड़ की आबादी वाले राज्य में 170 करोड़ से ज्यादा क्राइम। ये अपने आप में ही गलत आँकड़ा है।
प्रमुख मीडिया वेबसाइटों ने जिस तरह से मनगढ़ंत आँकड़ों का प्रचार किया है ये काफी चिंता की बात है। इससे जनता को गलत जानकारी मिलती है, आधिकारिक आँकड़ों को कमजोर करती है साथ ही राज्य की कानून व्यवस्था की कथित नाकामी को लेकर प्रशासन पर गलत दबाव बनाया जाता है। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े और ज्यादा जनसंख्या वाले राज्य को लेकर गलत रिपोर्ट पेश करना ज्यादा गंभीर मामला है। साथ ही ये पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाती है। इस झूठे आँकड़े को हजार बार कहकर योगी आदित्यनाथ सरकार के अपराध को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति पर सवाल उठाए जाते हैं।

पाकिस्तान की गुलाम कांग्रेस पार्टी के नेता जयराम रमेश ने केवल पाकिस्तानी प्रोपेगेंडा फैलाया: असीम मुनीर को नहीं आया था अमेरिका से कोई बुलावा, सच खुलने पर लग रही लताड़, लोग बोल रहे- माफी माँगो

कांग्रेस नेता जयराम रमेश और पाकिस्तानी फौज का मुखियाजनरल असीम मुनीर (फोटो साभार-newsX/Indiatoday)
समय आ गया है कि जनता को जानना चाहिए कि कांग्रेस स्थापना किसने की और क्यों? कांग्रेस की स्थापना ब्रिटिशर द्वारा भारतीयों का ध्यान आज़ादी आंदोलन से हटाने के लिए की गयी और आज की कांग्रेस पार्टी की स्थापना के उद्देश्य को अपनाते हुए देश की अस्मिता के विरुद्ध जनता को भ्रमित करने का काम कर रही है। पाकिस्तान जाकर रोते हैं "मोदी से बचाओ", इन पागलों से पूछो कि क्या मोदी को हटाने के लिए पाकिस्तान में चुनाव होंगे या भारत में?  

गौरतलब बात है कि कांग्रेस के कार्यकाल में हो रहे आतंकी हमलों पर "हिन्दू आतंकवाद" और "भगवा आतंकवाद" कहकर हिन्दुओं को बदनाम कर अपने आका पाकिस्तान के आतंकियों को बचाने का काम किया जा रहा था। माना अमेरिका पाकिस्तान को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन देता है इसका मतलब यह नहीं कि पाकिस्तान इतनी बड़ी गलती दुनियां में बेनकाब हो जाए।      

पिछले दिनों एक खबर आई थी कि पाकिस्तानी फौज के प्रमुख जनरल असीम मुनीर को अमेरिका ने सेना दिवस के मौके पर अमेरिका आने का निमंत्रण दिया है। खबर उड़ी कि मुनीर को व्हाईट हाउस बुलाया गया है। इसके बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर भारत की आलोचना की थी। अब अमेरिका ने इसे फर्जी खबर करार दिया है। इसके बाद सोशल मीडिया यूजर्स का गुस्सा सामने आ रहा है।

असीम मुनीर के न्यौते पर अपने ट्वीट में जयराम ने पीएम मोदी पर निशाना साधा। लिखा, “यह खबर भारत के लिए कूटनीतिक और सामरिक दृष्टि से एक बड़ा झटका है।”

उन्होंने आगे लिखा, “मोदी सरकार कह रही है कि ऑपरेशन सिंदूर अभी जारी है, ऐसे में पाकिस्तानी सेना प्रमुख का अमेरिकी सेना दिवस में बतौर अतिथि शामिल होना निश्चित ही गंभीर चिंता का विषय है”।

जयराम रमेश ने अमेरिका पर भी सवाल उठाया था और कहा था “यह वही व्यक्ति है जिसने पहलगाम आतंकी हमले से ठीक पहले भड़काऊ और उकसाने वाली भाषा का इस्तेमाल किया था, सवाल उठता है कि अमेरिका की मंशा क्या है?”

हालाँकि कुछ समय बाद ही अमेरिका ने स्पष्ट किया कि असीम मुनीर के न्यौते वाली बात पूरी तरह से अफवाह है। अब, जब पूरी खबर ही झूठी निकल गई तो सोशल मीडिया पर जयराम रमेश को लोगों ने घेरना शुरू कर दिया। एक के बाद एक कई सोशल मीडिया यूजर्स ने पोस्ट कर कहा कि जयराम रमेश को अपने आलोचनात्मक और झूठे बयान के लिए माफी माँगनी चाहिए।

किसी वरिष्ठ नेता की तरफ से इस तरह की खबरें फैलाना और उसी खबर के आधार पर देश के ही खिलाफ सार्वजनिक रूप से अपमानजनक टिप्पणी करना उन पर भी कई सवाल खड़े करता है।

जयराम रमेश ने जब पोस्ट किया था तब कांग्रेस के अन्य नेताओं ने भी भारत के खिलाफ इसी तरह की बयानबाजी की थी। हालाँकि बाद में जो खबर आई वो जयराम के बयान और सोशल मीडिया पर फैली अफवाह से एक रत्ती भी मेल नहीं खा रही है। ऐसे में लोगों का गुस्सा भी जायज है।

‘3 दिन में माँफी माँगो, वरना तुम्हारे पैसे से तुम्हीं पर करेंगे कार्रवाई’ : कांग्रेस को नितिन गडकरी ने भेजा लीगल नोटिस


मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की ओर से कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और महासचिव जयराम रमेश को कानूनी नोटिस भेजा गया है। ये नोटिस इसलिए है क्योंकि कॉन्ग्रेस ने केंद्रीय मंत्री के इंटरव्यू की एक वीडियो से क्लिप काटकर भ्रामक जानकारी प्रसारित करने की कोशिश की थी। इस नोटिस में कहा गया है कि कांग्रेस पार्टी नितिन गडकरी से लिखित में माफी माँगे वरना वो आगे कार्रवाई करेंगे।

केंद्रीय मंत्री के वकील बालेंदु शेखर द्वारा भेजे गए नोटिस में कांग्रेस नेताओं को कहा गया, “ये कानूनी नोटिस आपको एक्स से तुरंत उस पोस्ट को हटाने के लिए कहता है। कानूनी नोटिस मिलने के बाद किसी भी हालत में पोस्ट को अगले 24 घंटे में हटाया जाए। साथ ही तीन दिनों के भीतर मेरे मुवक्किल से लिखित माफी माँगी जाए।” नोटिस में आगे कहा गया, “अगर कांग्रेस द्वारा ऐसा नहीं किया जाता है, तो मेरे मुवक्किल के पास आपके जोखिम और खर्च (At your risk and expense) पर नागरिक एवं आपराधिक (Civil and Criminal) सभी कार्रवाइयों का सहारा लेने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचेगा।”

नितिन गडकरी की ओर से भेजे गए नोटिस में कांग्रेस द्वारा शेयर वीडियो क्लिप को तथ्यात्मक रूप से गलत बताया गया है। साथ ही कहा गया कि कांग्रेस ने ऐसा जानबूझकर किया है ताकि भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों के बीच वैचारिक दरार पैदा हो सके।

नोटिस में कहा गया कि कांग्रेस की ऐसी हरकत से सोशल मीडिया पर बड़े स्तर पर लोगों ने उस वीडियो को देखा जो कि बिलकुल तथ्यात्मक नहीं है। इससे नितिन गडकरी की प्रतिष्ठा में क्षति, मानहानि और विश्वसनीयता में बड़ी हानि हुई है।

इंटरव्यू की वीडियो को तोड़-मरोड़कर, संदर्भहीन और प्रासंगिक अर्थ के बिना पेश किया गया है। कॉन्ग्रेस ने उन हिस्सों को काट दिया, जहाँ बताया गया था कि हालातों को सुधारने के लिए मोदी सरकार द्वारा कितने प्रयास किए जा रहे हैं जिसके वर्तमान में अच्छे परिणाम भी हैं।

क्यों है वीडियो पर विवाद?

कल (1 मार्च 2024) कांग्रेस ने अपने हैंडल पर एक वीडियो शेयर की थी जिसमें नितिन गडकरी को बोलते दिखाया गया था कि आज गाँव, गरीब, मजदूर और किसान दुखी हैं। गाँव में अच्छे रोड नहीं हैं, पीने के लिए शुद्ध पानी नहीं है, अच्छे अस्पताल नहीं हैं, अच्छे स्कूल नहीं।
इस वीडियो को शेयर करते हुए कांग्रेस ने ऐसा दिखाया जैसे नितिन गडकरी ने ये कहकर मोदी सरकार के कार्यों की पोल खोली हो। लेकिन इस वीडियो में हकीकत में जो पूरी बात केंद्रीय मंत्री ने कही थी वो थी कि- “कृषि पर जो पॉपुलेशन डिपेंड है वो 65 प्रतिशत है जब गाँधी जी थे जब 90% की आबादी गाँव में रहती थी और धीरे-धीरे 30% पलायन क्यों हुआ। इसका मतलब है कि आज गाँव गरीब, मजदूर, किसान दुखी है। इसका कारण है कि जल जंगल जमीन और जानवर… ये जो ग्रामीण इकोनॉमी है यहाँ अच्छे रोड नहीं है, पीने के लिए पानी नहीं है, अच्छा अस्पताल नहीं है, अच्छा स्कूल नहीं है, किसान के फसल को अच्छे भाव नहीं है… ऐसा नहीं है कि यहाँ विकास नहीं हुआ, लेकिन जिस हिसाब से बाकी जगह हुआ है उतना नहीं है। हमारी सरकार आने के बाद हम इसपर बहुत काम कर रहे हैं। ऐसे ब्लॉक निकाले गए हैं जहाँ विशेष रूप से कार्य करने की जरूरत है।”
वीडियो से साफ था कि गडकरी के बयान पर जो संदेश फैलाने का काम हो रहा है वो सरासर भ्रामक है। असल में केंद्रीय मंत्री ये बता रहे थे कि पलायन इसलिए हुआ क्योंकि ग्रामीणों को अच्छे संसाधन नहीं मिले और उनकी सरकार इस मुद्दे पर महत्वपूर्ण रूप से काम कर रही है। न कि वो ये कह रहे हैं कि मोदी सरकार में देश के ये हालात हैं।

कांग्रेस की इसी हरकत पर उन्हें नोटिस भेजा गया है। लेकिन अभी नोटिस का उनकी ओर से कोई जवाब नहीं आया।

तमिलनाडु : सनातन विरोधी DMK की सरकार ने फेक न्यूज के उस्ताद जेहादी मोहम्मद जुबैर को दिया अवाॅर्ड

     तमिलनाडु सरकार ने गणतंत्र दिवस के मौके पर मोहम्मद जुबैर को किया सम्मानित (फोटो साभार : X_mkstalin)
तमिलनाडु में सनातन विरोधी पार्टी DMK सत्ता में है। इसके एक मंत्री ने हाल ही में सनातन को मिटाने की बात की थी। अब तमिलनाडु सरकार ने हिंदुओं के खिलाफ प्रोपेगेंडा और फेक न्यूज फैलाने वाले मोहम्मद जुबैर को सम्मानित किया है। गणतंत्र दिवस पर ‘सांप्रदायिक सद्भाव’ बढ़ाने और सांप्रदायिक वैमनस्यता को रोकने में मदद करने के नाम पर जुबैर को पुरस्कृत किया गया है।

जुबैर ‘सर तन से जुदा’ गैंग के लिए खाद-पानी का काम करता रहा है। इसके एडिटेड वीडियो से देश भर के कट्टरपंथी सड़कों पर उतर जाते हैं। भाजपा की पूर्व नेता नूपुर शर्मा के मामले में सारी दुनिया ये देख चुकी है कि तरह से वह एकतरफा प्रोपेगेंडा फैलाता है, जिसके कारण बड़े पैमाने पर हिंसा हो जाती है। जुबैर को सनातनियों की ऑनलाइन लिंचिंग करने वाले गिरोह का मुख्य सरगना कहा जाता है।

तमिलनाडु सरकार ने जुबैर को ‘कोट्टई अमीर सांप्रदायिक सद्भाव पुरस्कार‘ प्रदान किया है। हालाँकि, ये कोई हैरान करने वाली खबर नहीं है, क्योंकि डीएमके के कई नेता-मंत्री भी सनातन विरोध में आगे रहे हैं। वहीं, मोहम्मद जुबैर इस्लामिक कट्टरपंथियों का साथ लेकर सनातनियों के खिलाफ माहौल तैयार करता रहता है।

तमिलनाडु सरकार से सम्मान मिलने पर जुबैर के फॉलोवर सोशल मीडिया पर भौकाल बना रहे हैं। उसके एक फॉलोवर ने X पर लिखा, “तमिलनाडु सरकार ने फैक्ट चेकर और ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर को कोट्टई अमीर सांप्रदायिक सद्भाव पुरस्कार से सम्मानित किया है। बधाई!! आशा है कि ऑल्ट न्यूज़ सभी दलों के फर्जी समाचार फैलाने वालों के तथ्यों की जाँच जारी रखेगा!”

इसी तरह का एक और ट्वीट अरविंद गुनासेकर नाम के एक ‘पत्रकार’ ने साझा किया है। यह व्यक्ति जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) से जुड़ा रहा है। उसने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर एक ऑफिशियल डॉक्यूमेंट्स शेयर है। इस डॉक्यूमेंट मोहम्मद जुबैर को दिए गए सम्मान का विवरण दिया गया है।

इसमें लिखा है, “जुबैर ने ऑल्ट न्यूज़ नाम से एक वेबसाइट बनाई है और वह सोशल मीडिया पर आने वाली खबरों की सत्यता का विश्लेषण करते रहे हैं और अपनी वेबसाइट पर केवल वास्तविक खबरें ही प्रकाशित करते हैं। उनका काम समाज में फर्जी खबरों के कारण होने वाली हिंसा की घटना को रोकने में मदद करता है।”

डॉक्यूमेंट में आगे लिखा है कि जुबैर ने मार्च 2023 में राज्य के खिलाफ फैलाए जा रहे झूठ को ‘पर्दाफाश’ करने में प्रमुख भूमिका निभाई थी। डॉक्यूमेंट में कहा गया है कि मार्च 2023 में सोशल मीडिया पर तेजी से प्रसार हुआ कि तमिलनाडु में प्रवासी श्रमिकों पर हमला किया जा रहा है, जिसका एक वीडियो फुटेज भी वायरल हुआ था।

इसमें आगे लिखा है, “वीडियो फुटेज की प्रामाणिकता की पुष्टि करने के बाद जुबैर ने अपनी वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ पर प्रकाशित किया कि जो वीडियो फुटेज पोस्ट किया गया था, वह घटना वास्तव में तमिलनाडु में नहीं हुई थी। उनकी रिपोर्ट ने तमिलनाडु के खिलाफ अफवाहों के प्रसार को रोक दिया और तमिलनाडु में जाति, धर्म, नस्ल और भाषा के कारण होने वाली हिंसा को रोकने के लिए काम किया।”

मार्च 2023 में कई मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया था कि तमिलनाडु में काम करने वाले बिहार के श्रमिकों के खिलाफ हिंसा की घटनाएँ हुई हैं। हालाँकि, जुबैर ने अपनी वेबसाइट पर एक लेख में बताया था कि तमिलनाडु में मजदूरों पर हमले के जो वीडियो शेयर किए जा रहे हैं, वो गलत हैं। हालाँकि उसने सही खबरों के बारे में कभी नहीं बताया।

इस दौरान तमिलनाडु में प्रवासियों के खिलाफ डीएमके नेताओं की बयानबाजी लगातार जारी रही। तमिलनाडु के कई मंत्रियों ने उत्तर भारतीय लोगों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियाँ कीं। उन्हें ‘वडक्कन’, ‘पानी पुरी वाला’ और ‘पानपराग वायाँ’ कहकर अपमानित किया गया। डीएमके नेताओं ने उत्तर भारतीयों के प्रति नफरत फैलाने वाली नस्लवादी भाषा का इस्तेमाल किया। मुख्यमंत्री स्टालिन के बेटे ने तो सनातन को मिटाने वाले बयान भी दिए।


दाऊद इब्राहिम को ‘अज्ञात’ ने जहर देकर नहीं मारा, अनाम रिश्तेदार द्वारा मौत की खबरों को गलत बताना एक गहरा षड़यंत्र, जबकि ट्वीट प्रधानमंत्री का था

इस्लामी आतंकी और अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम को कराची में अज्ञात व्यक्ति द्वारा जहर दिए जाने को लेकर सोशल मीडिया पर किए जा रहे दावे सही नहीं हैं। यह उसके एक रिश्तेदार ने बताया है। इससे पहले 17 दिसम्बर 2023 को सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ था कि दाऊद को जहर दिया गया है और अस्पताल में उसकी मौत हो गई है।

रिश्तेदार द्वारा दाऊद की मौत का खंडन करना, लेकिन प्रधानमंत्री के ट्वीट को फेक बताना, क्या कोई गहरा षड़यंत्र है? कोई न कोई तो राज है? क्योकि बिना चिंगारी के कभी धुआँ नहीं होता। शंका व्यक्त की जा रही है, कि एक, समाचार में वजन है या फिर अज्ञात हत्यारों का डर इतना है कि दाऊद को अज्ञातवास में गुमनामी की मौत करने के छुपा दिया है।  जिस तरह भारत के most wanted आतंकियों की आए दिन अज्ञात लोगों द्वारा हत्या होने के डर से उनके सरगनाओं को ISI संरक्षण में रखे हुए है, क्या उसी तरह दाऊद को किसी अज्ञात जगह पर छिपाया गया है? दाल में कुछ काला तो जरूर है। प्रधानमंत्री द्वारा ट्वीट करना, सरकारी स्तर पर उसका खंडन नहीं होना और ये कहना कि fake account है, यदि fake account है तो किसने किया? क्योकि किसी देश के प्रधानमंत्री के twitter account से कुख्यात तस्कर के मौत की खबर आना अपने आपमें बहुत कुछ स्पष्ट कर रहा है।  

इन दावों में कहा गया था कि दाऊद इब्राहिम को जहर किसी अज्ञात आदमी ने दिया और इसके बाद उसे कराची स्थित एक अस्पताल में भर्ती करवाया गया। वहाँ गंभीर हालत में दो दिन रहने के बाद उसकी मौत हो गई। हालाँकि, ना ही दाऊद के परिवार ने और ना ही किसी अन्य आधिकारिक स्रोत से इसकी पुष्टि हुई थी।

दरअसल, वर्ष 1993 में मुंबई में हुए सीरियल बम धमाके करवाने वाला दाऊद इब्राहिम पाकिस्तान के कराची के बेहद पॉश एवं सुरक्षित क्लिफ्टन इलाके में रहता है। भारतीय एजेंसियाँ लंबे समय से इसकी बारे में कहती रही हैं। हालाँकि, 1993 के बाद से उसकी कोई भी फोटो बाहर तक नहीं आई है।

अब सोशल मीडिया पर किए जा रहे इन दावों को लेकर समाचार वेबसाइट रिपब्लिक ने एक रिश्तेदार के हवाले से कहा है कि दाऊद इब्राहिम को जहर दिए जाने की खबर सही नहीं है। रिपब्लिक ने दाऊद के रिश्तेदार का नाम स्पष्ट नहीं किया है। उसने रिश्तेदार के हवाले से बताया है कि दाऊद को जहर देने की बात अफवाह है।

उस कथित रिश्तेदार ने यह भी बताया कि दाऊद अभी कहाँ है, इसके बारे में उसे जानकारी नहीं है। सोशल मीडिया पर वायरल खबरों में यह भी कहा गया था कि दाऊद की मौत के चलते पाकिस्तान में इन्टरनेट भी बंद कर दिया गया था। दाऊद की मौत पर पाकिस्तान के कार्यवाहक प्रधानमंत्री अनवार उल हक काकड़ के नाम से एक ट्वीट भी वायरल हुआ था।

हालाँकि, सामने आया था कि पाकिस्तान में इन्टरनेट में आ रही समस्याओं का सम्बन्ध 18 दिसम्बर 2023 को पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की ‘तहरीक-ए-इन्साफ'(PTI) की एक वर्चुअल रैली से था। PTI का कहना था कि सरकार उनकी रैली को रोकने के लिए इन्टरनेट में रुकावट डाल रही है।

अवलोकन करें:-

मर गया ‘मानवता का मसीहा’ दाऊद इब्राहिम, पाकिस्तानी PM ने किया ट्वीट : सोशल मीडिया पर वायरल खबर की

वही, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अनवार उल हक काकड़ के नाम पर वायरल किए गए ट्वीट की जाँच करने पर पता चला था कि यह ट्वीट एक फर्जी अकाउंट से किया गया था। यह पाकिस्तान के कार्यवाही प्रधानमंत्री के नाम पर बनाया गया था। बाद में इस अकाउंट का नाम भी बदल दिया गया।


‘मंत्री को देख PM मोदी गुस्से में, प्लेन से नहीं उतरे… उपराष्ट्रपति से हुए खुश’ – जेहादी पत्रकार मोहम्मद जुबैर ने फैलाई फर्जी खबर

                                                        मोहम्मद जुबैर है फर्जी खबरों की फैक्ट्री
प्रधानमंत्री मोदी जब BRICS समिट में हिस्सा लेने दक्षिण अफ्रीका पहुँचे तो वहाँ का कोई छोटा मंत्री उनकी स्वागत में एयरपोर्ट पर आया। पीएम मोदी को गुस्सा आ गया। वो प्लेन से उतरे ही नहीं। जब दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति ने उपराष्ट्रपति को एयरपोर्ट भेजा तो प्रधानमंत्री मोदी प्लेन से नीचे उतरे।

यह एक खबर है। खबर फेक है। एक आदमी है, नाम है – मोहम्मद जुबैर। खुद को फैक्ट चेकर कहता है। इसने ही यह फेक खबर भारत में फैलाई। अपने चंटू-बंटू को खुश करने के लिए दक्षिण अफ्रीका के एक झंडु से वेबसाइट Daily Maverick का लिंक और उसकी बनाई खबर को भी शेयर किया।

ऐसे जेहादी पत्रकारों पर सूचना प्रसारण और गृह मंत्रालय कब सख्ती से पेश आएगा? नूपुर शर्मा के जीवन के पहले ही खिलवाड़ करने के चक्कर समस्त भारतीय मुसलमानों को विश्व में बदनाम कर चूका है। क्यों नहीं इसके बैंक खातों की जाँच की जाती? अब मामला देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का है। यह देश के प्रधानमंत्री का अपमान है। आखिर किन कट्टरपंथियों के इशारे पर फेक खबरे चला कर कब तक देश में अराजकता फैलाता रहेगा? कार्यवाही करने पर इसका समर्थन करने वाली पार्टियों और नेताओं पर भी सख्ती से पेश आना होगा, क्योकि बिना किसी के समर्थन से फेक न्यूज़ फैक्ट्री नहीं चल सकती।  

मोहम्मद जुबैर जो नहीं कर पाया, वो था फैक्ट चेक। ना तो भारत का सरकारी पक्ष जानने की कोशिश की, ना ही दक्षिण अफ्रीका का… लेकिन कहलाता है वो फैक्ट चेकर।

मोदी प्लेन से कब और कैसे उतरे?

भारत सरकार से जुड़ी खबर है तो देखते हैं कि प्रधानमंत्री के ऑफिस ने क्या कुछ कहा है, इस घटना को लेकर। 22 अगस्त को 6 बजकर 27 मिनट पर प्रधानमंत्री ऑफिस ने जो ट्वीट किया है, उसके अनुसार दक्षिण अफ्रीका के उप-राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री मोदी का एयरपोर्ट पर स्वागत किया।
कट्टर इस्लामी मानसिकता के कारण अपने ही देश भारत और यहाँ की सरकार से नफरत करने वाला मोहम्मद जुबैर शायद इस ट्वीट को न देख पाया हो। पूरे दिन की 5 बार नमाज पढ़ने में ज्यादा समय लग गया होगा, इसलिए शायद 23 अगस्त को किए अपने ट्वीट में भी उसने बिना फैक्ट चेक किए ही फेक न्यूज फैला दी।
घटना चूँकि दक्षिण अफ्रीका में हुई है, इसलिए वहाँ की सरकार का भी जरा पक्ष जान लेते हैं। दक्षिण अफ्रीकी उपराष्ट्रपति के प्रवक्ता वुकानी एमडे ने Daily Maverick वेबसाइट में छपी खबर को फेक खबर बताया। फैक्ट को चेक करने के लिए मोहम्मद जुबैर यहाँ तक भी नहीं पहुँच पाया।

AltNews: फैक्ट चेकर नहीं, फेक न्यूज प्रचारक

जहाँ की घटना है, वहाँ से कोई आई सूचना को क्रॉस चेक नहीं किया। जिससे संबंधित घटना है, उससे बात करने या उसका पक्ष जानने की कोशिश नहीं की। फिर किस आधार पर फैक्ट चेक करते हो? इस्लाम की कट्टर विचारधारा में ऐसी ही ट्रेनिंग होती होगी शायद – अपने ही देश से नफरत करो, अपने ही लोगों को मूर्ख बनाओ, अपने ही लोगों को टोपी पहना कर उनसे पैसे ऐंठ लो, खुद उनके पैसे पर ऐश करो।
“हम AltNews हैं, हम फैक्ट चेक करते हैं, हमें पैसा दो” – हर महीने ऐसा रोना रोने वाला मोहम्मद जुबैर खुद कितना बड़ा फेक न्यूज प्रचारक है, यह खबर एक छोटा सा उदाहरण भर है। गिनती कितना करे कोई? 2 साल पहले ऑपइंडिया ने इसके 35 फेक खबरों की लिस्ट बनाई थी। कट्टर इस्लामी मानसिकता और वामपंथी कौम वाले चंटू-बंटू अगर इस लिस्ट को पढ़ लेते तो इसके बहकावे में नहीं आते, अपनी गाढ़ी कमाई इस पर नहीं लुटाते।

सोरेस की टूलकिट की आरफा, जुबैर, लल्लनटॉप ऐसे बचा रहे इस्लामी कट्टरपंथियों को: FIR से लिबरल गैंग बेनकाब, पत्थरबाजों पर Shoot at sight के आदेश कब ?

मुस्लिम दंगाइयों को कवर देने में लगे पड़े हैं लिबरल गैंग
हरियाणा के मेवात के नूहं में 31 जुलाई 2023 को हिंदुओं की जलाभिषेक यात्रा पर मुस्लिम भीड़ ने हमला किया। करीब 800-900 हथियारबंद इस्लामवादियों ने मंदिर में जल चढ़ाने आए हजारों भक्तों पर हमला किया। इससे मंदिर के कुछ हिस्से छतिग्रस्त हो गए। हालाँकि वामपंथी लिबरल कट्टरपंथियों को बचाने की कोशिश में लगे हुए हैं।

अब चर्चा यह है कि आखिर मुंह ढककर या खुले मुंह पत्थरबाज़ी करने वालों पर जब तक Shoot at sight के आदेश नहीं होंगे, टूलकिट वाले अशांति फैलाते रहेंगे। इसमें शामिल चाहे बच्चे हो, महिलाएं हो या फिर व्यस्क किसी को नहीं बख्शना चाहिए। जब तक इस तरह के कानून नहीं बनेंगे, दंगाई अशांति फैलाते रहेंगे। दूसरे, यह कि पत्थर सप्लाई करने वाला कौन है और इस काम के लिए कितने पैसे मिले और किसने दिए? 

इस्लामवादियों के काले चेहरे को छिपाने में ऑल्ट न्यूज के मोहम्मद ज़ुबैर का नाम न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। जुबैर ने ‘लल्लनटॉप’ की मंदिर के पुजारी के बयान वाली रिपोर्ट से 21 सेकंड की क्लिप के जरिए यह बताने की कोशिश की कि दंगाइयों ने मंदिर पर हमला नहीं किया था। हालाँकि इस मामले में ड्यूटी मजिस्ट्रेट मुकुल कथूरिया की शिकायत पर दर्ज FIR कुछ और ही कहती है।

इस्लामी भीड़ द्वारा मंदिर पर पथराव, गोलियाँ: FIR

नूहं हिंसा को लेकर दर्ज की गई कई एफआईआर ऑपइंडिया के पास है। ड्यूटी मजिस्ट्रेट के रूप में तैनात सिंचाई और जल संसाधन विभाग, हरियाणा के कार्यकारी इंजीनियर मुकुल कथूरिया की शिकायत के आधार पर दर्ज की गई एफआईआर में से एक में साफ तौर पर कहा गया है कि 800-900 इस्लामवादियों ने मंदिर में मौजूद भक्तों पर पथराव किया और गोलियाँ चलाईं। हमले में मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया।
हमले के समय डीएम कथूरिया, उनके ड्राइवर खुर्शीद, इंस्पेक्टर राजबाला और अन्य लोग जलाभिषेक यात्रा के दौरान ड्यूटी के लिए नल्हड़ मंदिर में तैनात थे। जब भक्त मंदिर में भगवान शिव की पूजा कर रहे थे, तभी स्थानीय मेवाती और राजस्थानी बोलने वाली इस्लामवादियों की भीड़ प्लानिंग के हिसाब से पास के खेतों और पहाड़ों से मंदिर की ओर आई।
(साभार:हरियाणा पुलिस)
कथूरिया ने दर्ज कराया है कि दंगाइयों के हाथों में डंडे, पत्थर और अवैध हथियार थे। वे अल्लाह-हू-अकबर के नारे लगा रहे थे। भीड़ ने मंदिर में पहुँचकर पूजा में खलल डालने के लिए पथराव और गोलीबारी शुरू कर दी। ड्यूटी मजिस्ट्रेट के तौर पर उन्होंने स्थिति को शांत करने की कोशिश की और इस्लामिक भीड़ से पीछे हटने का अनुरोध किया। लेकिन दंगाइयों ने उनकी बात नहीं सुनी। वे अल्लाह-हू-अकबर के नारे लगाते हुए मंदिर के करीब जाने लगे। इस दौरान फिर एक बार हिंदुओं को निशाना बनाकर फायरिंग की।
यह FIR भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 147, 148, 149, 323, 332, 353, 186, 188, 295 ए, 153 ए, 452, 427, 307 और शस्त्र अधिनियम की धारा 25 के तहत दर्ज की गई। एफआईआर में आदिल, तामिल, अरसाद, अजहरुद्दीन, कासिर, सकील, जुनैद, सलामुद्दीन, इकबाल, आजाद, इलियास, अकबर, राहुल पुत्र जूना, सलीम, इक्का उर्फ काला, तौहीद, याहाय, जावेद, शाहरुख, हारीस, अहमद, आसिफ, शोएब समेत कई दंगाइयों को नामजद किया गया।

वामपंथियों और लिबरलों का दावा: मंदिर पर हमला हुआ ही नहीं

मंदिर में हमले की खबरों के बीच ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर ने ‘लल्लनटॉप’ की रिपोर्ट की 21 सेकंड की क्लिप को रीट्वीट किया। इस क्लिप में मंदिर के पुजारी दीपक शर्मा ने कहा कि हमला मंदिर के करीब नहीं हुआ था।
दिलचस्प बात यह है कि जब ऑपइंडिया ने 4 मिनट से अधिक के वीडियो को देखा तो सामने आया कि पुजारी ने साफ तौर पर कहा था कि हमले के दौरान प्रशासन ने उन्हें बाहर आने से मना किया था। इसलिए वह बाहर नहीं आए। उन्होंने यह भी कहा था कि मंदिर के अंदर तक उन्होंने आवाजें सुनी थी। लेकिन हमला मंदिर से एक-डेढ़ किलोमीटर दूर हुआ। पुजारी के ये दावे किसी भी तरह से मेल नहीं खाते।
मंदिर के पुजारी ने जो कहा, उसमें से 3 मूल बातों को पढ़िए:
  1. पुजारी ने यह भी कहा, “मुझे इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है क्योंकि हमें अंदर रहने के लिए कहा गया था। श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता था। मैं बाहर नहीं गया।”
  2. पहाड़ों से हो रही पत्थरबाजी के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने फिर कहा, “मैं फिर कहना चाहता हूँ कि मैं बाहर नहीं आया। मैं एक पुजारी हूँ। हम अंदर ही रहते हैं।”
  3. यह पूछे जाने पर कि उन्हें अंदर रहने के लिए क्यों कहा गया था, उन्होंने बताया, “लगभग 4,000 लोग अंदर फँसे हुए थे। इनमें महिलाएँ और लड़कियाँ भी शामिल थीं। अंदर रहना ही बेहतर था। मंदिर के अंदर कुछ नहीं हुआ। मंदिर से एक-डेढ़ किलोमीटर दूर जो कुछ भी हुआ हो।”
‘लल्लनटॉप’ के एक अन्य वीडियो में, रिपोर्टर ने मंदिर के पास मचाए गए आतंक को दिखाया है। जब वह जले हुए वाहनों, पथराव और टूटी हुई काँच की बोतलों के निशान दिखाते हुए सड़क पर जा रहे थे, तो यह स्पष्ट था कि दंगे मंदिर से एक-डेढ़ किलोमीटर दूर नहीं हुए। यही नहीं, इस वीडियो में ‘लल्लनटॉप’ ने मंदिर में भंडारे के लिए प्रसाद बनाने आए लोगों से भी बात की। उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि वे घण्टों तक मंदिर में ही फँसे थे। इसके बाद सुरक्षा बलों द्वारा उन्हें बचाया गया।
 
‘द वायर’ की संदिग्ध पत्रकार आरफ़ा ख़ानम शेरवानी भी कहाँ पीछे रहने वाली थीं। आरफा ने कहा कि हरियाणा के गृह मंत्री कह रहे हैं कि मंदिर में भक्तों को बंधक बनाया गया था। लेकिन पुजारी दावों का खंडन कर रहे हैं।
‘द वायर’ ने पुजारी के हवाले से कहा, “लोगों को बंधक क्या बनाएँगे? वे परमात्मा की शरण में थे। अचानक पता चला की माहौल खराब है। इन लोगों को बंधक कैसे बनाया जा सकता है? वे सर्वशक्तिमान की शरण में थे। लेकिन उन्हें अचानक पता चला कि बाहर की स्थिति अच्छी नहीं है। चूँकि बाहर की स्थिति खराब हो गई थी, इसलिए लोग अंदर फँस गए।”
वामपंथी मीडिया रिपोर्टिंग को अगर हम फिर से पढ़ें तो पुजारी ने कहा है कि लोग मंदिर के अंदर फँसे हुए थे क्योंकि बाहर की स्थिति खराब थी। यह तो ठीक ऐसा ही हुआ कि लुटेरों द्वारा हमला किए गए बैंक में लोगों को ‘बंधक’ नहीं बनाया गया था, बल्कि वे सिर्फ ‘अंदर फँस गए’ थे।
दूसरी और महत्वपूर्ण बात – किसी भी 21 सेकंड के वीडियो के जरिए मेवात में हुई हिंदू विरोधी हिंसा को नहीं दिखाया जा सकता। पूरे वीडियो को देखें तो इस्लामिक भीड़ द्वारा मचाए गए आतंक से हुए नुकसान का जिक्र करते हुए रिपोर्टर ने कहा है कि हमला प्री-प्लान्ड लगता है। मतलब साफ है कि इस्लामिक भीड़ ने हमला किया था। लेकिन उन्हें बचाने की जल्दी में ज़ुबैर, आरफा जैसे लोगों ने पूरी बात पर ध्यान नहीं दिया… क्योंकि इन्हें फैलाना है प्रोपेगेंडा, मुस्लिमों को दिखाना है पीड़ित।

‘500 रूपए देकर हमें वोट देने से रोका गया’: पुराना वीडियो शेयर कर ‘जनसत्ता’ के पूर्व संपादक ने फैलाया झूठ

                                         जनसत्ता के पूर्व संपादक ओम थानवी ने फैलाई फेक न्यूज
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के बीच योगी सरकार की छवि धूमिल करने के लिए रोज सोशल मीडिया पर अलग-अलग हथकंडे आजमाए जा रहे हैं। इसी क्रम में जनसत्ता के पूर्व संपादक व लेखक ओम थानवी ने भी ट्विटर पर वीडियो डालकर भारतीय लोकतंत्र पर तंज कसा है, जिसकी पोल चंदौली पुलिस ने खोली।

वीडियो में दिखता है कि एक शख्स कुछ लोगों के साथ इकट्ठा होकर आरोप लगा रहा है कि भाजपा के कुछ लोग उन्हें जबरन स्याही लगाकर, पैसे देकर वोट देने से मना कर रहे हैं। वीडियो में युवक को स्पष्ट तौर पर भारतीय जनता पार्टी का नाम लेते भी सुना जा सकता है। इसके बाद इसी वीडियो में एक अन्य शख्स बताता है कि बीजेपी प्रत्याशी महेंद्र द्वारा लोगों को पैसे बाँटे जा रहे हैं, उन लोगों की उंगलियों पर निशान लगाया जा रहा है और वोट देने से उन्हें रोका जा रहा है। ऐसी घटना कई जगहों से सामने आई है। इसलिए वो ऐसे लोगों के साथ धरने पर बैठे हैं जिनकी उंगलियों पर जबरन इंक लगाया गया और वोट देने से रोका गया। वीडियो में एक महिला ने भी आरोप लगाया कि उनके हाथ में भी जबरन स्याही लगाई गई और 500 रुपए देकर कहा गया कि वो वोट देने न जाएँ।

इसी वीडियो को ओम थानवी ने अपने ट्वीट पर 4 मार्च को 8:30 बजे शेयर किया और इस पर लिखा- ‘दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र।’ इसके बाद इसी वीडियो के मद्देनजर यूपी पुलिस फैक्ट चेक टीम का ट्वीट आया। इस ट्वीट में उन्होंने बताया प्रकरण लोकसभा चुनाव 2019 से संबंधित है जिसमें तत्समय आवश्यक विधिक कार्यवाही की जा चुकी है। चंदौली पुलिस  द्वारा इस भ्रामक पोस्ट का खंडन किया गया है। कृपया बिना सत्यापन के भ्रामक पोस्ट कर अफवाह न फैलाएँ। पुलिस ने इकोनॉमिक टाइम्स की खबर का लिंक भी शेयर किया। देख सकते हैं कि ये खबर 19 मई 2019 को पब्लिश हुई थी।

ओम थानवी द्वारा शेयर वीडियो के पुरानी होने की पुष्टि के बाद लोग अब बेवजह अफवाह उड़ाने वालों के विरुद्ध कार्रवाई की माँग कर रहे हैं। यूजर्स की माँग है कि इस मामले में कार्रवाई हो क्योंकि हजारों की संख्या के बीच भ्रामकता फैलाई गई है। दिलचस्प बात ये है कि यूपी पुलिस द्वारा फैक्ट चेक किए जाने के बाद और सैंकड़ों लोगों की आलोचना के बाद भी ये वीडियो ओम थानवी द्वारा डिलीट नहीं किया गया है।

त्रिपुरा में मस्जिद तो जली नहीं, शांतिप्रिय और मजलूम गरीबियों ने महाराष्ट्र जला दिया

                            महाराष्ट्र में त्रिपुरा की घटना को लेकर लगातार बवाल हो रहा है। (साभार: ट्विटर)
महाराष्ट्र का अमरावती जिला 12 नवंबर (शुक्रवार) से जल रहा है। वहाँ पथराव और सार्वजनिक एवं निजी संपत्तियों को नुकसान पहुँचाने की घटनाएँ लगातार सामने आ रही हैं। अतिरिक्त पुलिस आयुक्त संदीप पाटिल ने हालात को सँभालने के लिए सीआरपीसी की धारा 144(1), (2), (3) के तहत शहर में चार दिन का कर्फ्यू लगा दिया है। आदेश के अनुसार, सिर्फ मेडिकल इमरजेंसी वाले लोग ही घर से बाहर निकल सकते हैं। साथ ही एक जगह पर पाँच से ज्यादा लोग नहीं इकट्ठा हो सकते हैं।
महाराष्ट्र सरकार को दंगा प्रभावित क्षेत्र आर्मी के सुपुर्द कर देना चाहिए। इनके घरों और मस्जिदों की तलाशी करवाकर हथियार एवं अन्य हथियारों को जब्त कर कड़ी से कड़ी कार्यवाही की जाए ताकि उनकी आने वाली पुश्तों की दंगा करने से पहले रूह कांपने लगे। तभी देश में दंगाइयों का सफाया होगा। इतने हथियार और पत्थर कहाँ से आए? दंगे में मरने वाला बेगुनाह ही होता है। 

त्रिपुरा में एक मस्जिद को जलाने की कथित घटना के विरोध में मुस्लिम संगठनों द्वारा शुक्रवार को आयोजित की गई रैलियों के दौरान इन घटनाओं का सिलसिला शुरू हुआ। अमरावती के अलावा नांदेड़, मालेगाँव, वाशिम और यावतमाल में रैलियाँ आयोजित की गई थीं। इन रैलियों के लिए पुलिस की इजाजत भी नहीं ली गई थी। इस बीच अब त्रिपुरा पुलिस ने भी स्पष्ट किया है कि जिस कथित घटना को लेकर महाराष्ट्र में हिंसा हो रही है वो घटना हुई ही नहीं है।

गृह मंत्रालय ने की शांति बनाए रखने की अपील

इस घटना का संज्ञान लेते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने लोगों से त्रिपुरा की फर्जी रिपोर्ट से गुमराह नहीं होने और हर हाल में शांति बनाए रखने की अपील की है। इस घटना को लेकर शनिवार को जारी एक प्रेस रिलीज कहा गया, “ऐसी खबरें फैलाई जा रही हैं कि त्रिपुरा में गोमती जिले के काकराबन इलाके की एक मस्जिद में तोड़-फोड़ की गई है। ये खबरें फर्जी हैं और तथ्यों को गलत तरीके से पेश किया गया है। काकराबन के दरगाबाजार इलाके की मस्जिद को कोई नुकसान नहीं हुआ है। गोमती जिले में शांति बनाए रखने के लिए त्रिपुरा पुलिस काम कर रही है।”
इसमें आगे कहा गया है, “त्रिपुरा में हाल के दिनों में किसी भी मस्जिद या अन्य ढाँचों पर हमले नहीं किए गए हैं। इन घटनाओं में किसी व्यक्ति को चोट लगने, किसी के साथ बलात्कार होने या किसी की मृत्यु होने की कोई खबर नहीं है, जैसा कि सोशल मीडिया पर दावा किया जा रहा है। इसलिए लोगों को शांति बनाए रखते हुए झूठी खबरों से गुमराह नहीं होना चाहिए। जैसा कि महाराष्ट्र में हो रहा है। वहाँ से हिंसा की खबरें आ रही हैं और लोगों द्वारा आपत्तिजनक बयान दिए जा रहे हैं। यह बहुत ही चिंताजनक है।”
त्रिपुरा में पिछले महीने हुई घटना को लेकर शुक्रवार को महाराष्ट्र के अमरावती, नांदेड़, मालेगाँव, वाशिम और यवतमाल में कट्टरपंथी मुस्लिमों संगठनों ने रैली निकाली और हिंदुओं को टार्गेट कर पथराव किया। शुक्रवार को हुई उस वारदात के मामले में पुलिस ने दंगा भड़काने समेत विभिन्न आरोपों के तहत 20 केस दर्ज करते हुए 20 लोगों को गिरफ्तार किया है और 4 लोगों को हिरासत में लिया है।

क्या हुआ अमरावती में?

शुक्रवार को 8,000 मुस्लिमों की भीड़ अमरावती के जिलाधिकारी कार्यालय में ज्ञापन सौंपने के लिए निकली थी। यह भीड़ त्रिपुरा में मुस्लिमों के खिलाफ कथित अत्याचारों के खिलाफ कार्रवाई की माँग कर रही थी। लौटने के दौरान भीड़ ने कॉटन मार्केट और चित्रा चौक के बीच कई जगहों पर हिंसा को अंजाम दिया।
इस दौरान एक विचलित करने वाला वीडियो भी सामने आया, जिसमें एक मुस्लिम बच्चा भी इस प्रोपेगेंडा में शामिल दिखा। ट्विटर यूजर MVAgovt ने एक वीडियो शेयर किया, जिसमें साफ देखा जा सकता है कि इस्लामी टोपी पहना एक छोटा बच्चा हाथ में एक पोस्टर लिए हुए था और दुकानदार से दुकान बंद करने के बारे में पूछ रहा था। पोस्टर में लिखा था, “क्या आप रसूलल्लाह की इज्जत के लिए अपनी दुकान और कारोबार 12 नवंबर को बंद रख सकते हैं?”
इतना ही नहीं, सोशल मीडिया पर ऐसे कई वीडियो भरे पड़े हैं, जिसमें स्पष्ट दिख रहा है कि कट्टरपंथी मुस्लिमों की भीड़ हिंदुओं को टार्गेट कर उनकी दुकानों में तोड़फोड़ और पथराव कर रही है। इसी तरह के एक वीडियो में एक हिंदू के मथुरा भोजनालय के बाहर मुस्लिमों की भीड़ ‘अल्लाह हू अकबर’ चिल्ला रही है।
पहले पार्ट में भीड़ नारेबाजी करती नजर आ रही है। दूसरे भाग में एक किराना की दुकान दिख रही है, जिसका मालिक यह कह रहा है कि उसकी दुकान में 20 दंगाई जबरदस्ती घुस गए थे। वहीं एक अन्य व्यक्ति ने उन्मादी भीड़ पर बच्चों को पीटने का आरोप लगाया। साझा किए गए एक अन्य वीडियो में दिख रहा है कि सैकड़ों मुस्लिमों की भीड़ बाजार में घूम-घूमकर हिंदुओं की दुकानों में तोड़फोड़ करते हुए उसे बंद करा रही है। वीडियो में बैकग्राउंड से आ रही आवाज में सुना जा सकता है कि जिस दुकान पर हमला हुआ, वह गुप्ता नाम के एक व्यक्ति की थी। खास बात यह है कि इस दौरान पुलिस नदारद रही।
कुछ तस्वीरें भी शेयर की जा रही हैं, जिसमें देखा जा सकता है कि उन्मादी भीड़ गाड़ियों में तोड़फोड़ कर रही है। हिंदू भी घायल दिख रहे हैं।
एक अन्य यूजर ने एक वीडियो शेयर किया, जिसमें दिख रहा है कि कुछ लोग हाथों में तलवार लेकर घूम रहे हैं। यूजर ने लिखा, “महाराष्ट्र के अमरावती में मुस्लिम भीड़ हिंदुओं पर हमला करने के लिए जा रही है।”
इसी तरह के दृश्य कई अन्य वीडियो में भी दिख रहे हैं।
बीजेपी नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र में उन्मादी मुस्लिमों की भीड़ द्वारा मचाए गए उत्पात की निंदा करते हुए कहा, “त्रिपुरा में जो घटना ही नहीं घटी, उसको लेकर जिस तरह से महाराष्ट्र में दंगे हो रहे हैं, ये बिल्कुल गलत है। त्रिपुरा में जिस मस्जिद को जलाए जाने की अफवाह उड़ाई गई, वहाँ की पुलिस ने उस मस्जिद की फोटो जारी की है।” उन्होंने राजनीतिक दलों से भी भड़काऊ भाषण से बचने की अपील की है।

‘कोरोना सीजनल बीमारी, सिर्फ खाँसी-जुकाम है’: महिला प्रोफेसर के दावों से उठे WHO पर सवाल

WHO द्वारा कोरोना को एक मौसमी बीमारी बताने से यह भी स्पष्ट हो रहा है कि चीन का WHO पर कितना अधिक प्रभाव है, जो यह मानने को तैयार नहीं कि यह चीन द्वारा छोड़ा गया वायरस है। जैसाकि पूर्व में शंका व्यक्त की जा रही थी कि चीन ने WHO पर अपना अधिकार किया हुआ है, यदि WHO की ही बात को सच माना जाए तो WHO विश्व को बताए कि किस आधार पर इसे महामारी बताया था? विश्व के समस्त देशों को इस मुद्दे पर लामबंद होकर WHO की विश्वसनीयता पर प्रश्न करना चाहिए। 

कोरोना संक्रमण के खतरनाक प्रकोप को झेलने के बावजूद सोशल मीडिया पर दावे किए जा रहे हैं कि ये एक मौसमी बीमारी है और इससे घबराने की कोई जरूरत नहीं है। इन दावों को सही साबित करने के लिए डोलोरेस काहिल नाम की महिला प्रोफेसर का वीडियो शेयर हो रहा है।

बिना दावों की सच्चाई जानें फेक न्यूज फैलाने वालों का कहना है कि कोरोना संक्रमण पर दी जानकारी पर WHO ने अपनी गलती मान कर इसे एक सीजनल वायरस बताया है जिसमें मौसमी बदलाव के कारण खाँसी-जुकाम और गला दर्द रहता है।

वायरल होते संदेशों के मुताबिक WHO के हवाले से ये भी कहा जा रहा है कि कोरोना रोगी को न तो अलग रहने की है और न ही जनता को सोशल डिस्टेंसिंग की जरूरत है। यह एक मरीज से दूसरे व्यक्ति में भी नहीं फैलता। इस संदेश के साथ WHO पर गुस्सा दिखाते हुए इस वीडियो को देखने को कहा जा रहा है। संदेश में लिखा है, “सबके 2 साल खराब करने के बाद इन्होंने तो पल्ला झाड़ लिया अब कर लो क्या करना है, इनका देखिए WHO की प्रेस कॉन्फ्रेंस।”

वीडियो और संदेश की सच्चाई क्या है। इसे पीआईबी फैक्ट चेक के जरिए पहले ही बताया जा चुका है कि संदेश में किए गए दावे फर्जी हैं। कोरोना कोई सीजनल बीमारी नहीं है। इसमें शारीरिक दूरी और आइसोलेशन जरूरी है। यह एक संक्रामक रोग है जिसमें कोविड के अनुकूल व्यवहार अपनाना जरूरी है।

इसके अलावा बात करें वीडियो में नजर आने वाली महिला प्रोफेसर डोलोरेस काहिल की तो गूगल सर्च से पता चलता है कि महिला डबलिन में स्कूल ऑफ मेडिसिन की एक प्रोफेसर हैं। उनका यह वीडियो 19 अक्टूबर 2020 को बर्लिन में हुए वर्ल्ड डॉक्टर अलायंस का है। जहाँ कोरोना संक्रमण पर भ्रामक दावा करने के कारण इस पर फॉल्स इन्फॉर्मेशन का टैग लगा दिया गया है।

अवलोकन करें:-

वुहान लैब : 730395 अरब रुपए पूरी दुनिया को दे चीन: डोनाल्ड ट्रंप

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वुहान लैब : 730395 अरब रुपए पूरी दुनिया को दे चीन: डोनाल्ड ट्रंप

इसके अलावा ये बात भी गौर करने वाली है कि डोलोरेस WHO की कोई अधिकारी नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस महामारी को 11 मार्च 2020 को महामारी घोषित किया था। इसके कारण अब तक 37 लाख से ज्यादा मौतें हुई हैं। इसलिए सिर्फ एक वीडियो पर ये मानना कि कोरोना कोई संक्रामक बीमारी नहीं है, समझदारी का काम नहीं है।