रक्षा बन्धन : हर युग में भाई ने निभाया है बहन को दिया वचन, लेकिन पहल बहन ही करती है।

रक्षाबंधन का इतिहास काफी पुराना है, जो सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा हुआ है। वास्तव में रक्षा बंधन की परंपरा उन बहनों ने डाली थी जो सगी नहीं थीं, भले ही उन बहनों ने अपने संरक्षण के लिए ही इस पर्व की शुरुआत क्यों न की हो, लेकिन उसकी बदौलत आज भी इस त्योहार की मान्यता बरकरार है। वैसे हिन्दुओं के किसी भी त्यौहार को देखा, कोई न कोई सामाजिक दायित्व की प्रेरणा देता है, दुर्भाग्य यह है कि पश्चिमी सभ्यता ने हिन्दू सभ्यता को धूमिल कर, त्यौहारों को एक बोझा बना दिया है। होली के महत्व को भी नहीं भुलाया जा सकता। जब बहन होलिका ने अपने भाई हिरणकश्यप के अन्याय का साथ दिया, परिणाम सम्मुख है।  
धार्मिक मान्यता यह भी है कि जब बहन भाई के हाथ राखी अथवा कलावा बाँधती है, सर्वप्रथम वह अपने भाई की इन्द्रियों को केन्द्रित कर उसके उज्जवल भविष्य की कामना करती है, तो मस्तक पर तिलक करके अपने भाई के भाग्य को संवारती है, कि जिस प्रकार यह तिलक यह चमक रहा है, इससे अधिक मेरे भाई का नाम चमके। दूसरे, राखी अथवा कलावा बांधने बाद जो न्यौझावर करती है, वह मात्र एक रूपया अथवा दस नहीं देखती, बल्कि अपने भाई को किसी ऊपरी हवा से बचाने ईश्वर से प्रार्थना करती है, ताकि भाई जीवन में सुख-समृद्धि से अपने जीवन को यश प्राप्त करे, जिसका भाई कोई मूल्य नहीं चुका सकता। राखी अथवा कलावा बांधने उपरांत भाई अगर बहन को हज़ार रूपए भी देता है, बेकार है क्योकि बहन ने तो पहले ईश्वर से इससे कहीं अधिक अपने भाई को देने की प्रार्थना की है। वह भाई बड़े भाग्यवान होते हैं, जो जीवन किसी भी मोड़ पर अपनी बहन को नज़रअंदाज़ नहीं करते। इस अटूट रिश्ते को निभाने बहन भाई से बड़ी होने के बावजूद भाई की गलतियों को माफ़ कर, रिश्ते को बनाए रखने में अपने मान-सम्मान की आहुति देती है। परन्तु जब इस पावन अवसर पर किसी भी कारणवश भाई-बहन नहीं मिल पाते, भाई से अधिक बहन दिल ही दिल रोती है। अपने आंसू और दुःख किसी के आगे व्यक्त नहीं करती। 
आपस में कितना भी लड़ें, कोई और लड़ के देखे 
भाई-बहन आपस में कितना भी लड़-झगड़ लें, लेकिन अगर कोई दूसरा उनमें से किसी एक को भी कुछ बोले तो दूसरा उसे बचाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। जहाँ प्यार होगा, झगड़ा भी होगा।     
इतिहास के पन्नों को देखें तो इस त्योहार की शुरुआत 6 हजार साल पहले माना जाता है। इसके कई साक्ष्य भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। रक्षाबंधन की शुरुआत का साक्ष्य रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं का है।
रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं
मध्यकालीन युग में राजपूत और मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था, तब चित्तौड़ के राजा की विधवा रानी कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख हुमायूं को राखी भेजी थी। तब हुमायूं ने उनकी रक्षा कर उन्हें बहन का दर्जा दिया था।
सिकंदर व पोरस
सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरू को राखी बांध कर अपना मुंहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया । पुरू ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिए हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवनदान दिया।
सिकंदर व पोरस ने युद्ध से पूर्व रक्षा-सूत्र की अदला-बदली की थी। युद्ध के दौरान पोरस ने जब सिकंदर पर घातक प्रहार हेतु अपना हाथ उठाया तो रक्षा-सूत्र को देखकर उसके हाथ रुक गए और वह बंदी बना लिया गया। सिकंदर ने भी पोरस के रक्षा-सूत्र की लाज रखते हुए और एक योद्धा की तरह व्यवहार करते हुए उसका राज्य वापस लौटा दिया।
कृष्ण और द्रोपदी
एक उदाहरण कृष्ण और द्रोपदी का माना जाता है। कृष्ण भगवान ने
राजा शिशुपाल को मारा था। युद्ध के दौरान कृष्ण के बाएं हाथ की उंगली से खून बह रहा था, इसे देखकर द्रोपदी बेहद दुखी हुईं और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की उंगली में बांध दी, जिससे उनका खून बहना बंद हो गया। कहा जाता है तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था। सालों के बाद जब पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था, तब कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाई थी।
इंद्राणी एवं इंद्र
और पीछे चलें तो भविष्य पुराण की एक कथा के अनुसार एक बार देवता और दैत्यों (दानवों) में 12 वर्षों तक युद्ध हुआ परन्तु देवता विजयी नहीं हुए। इंद्र हार के भय से दु:खी होकर देवगुरु बृहस्पति के पास विमर्श हेतु गए। गुरु बृहस्पति के सुझाव पर इंद्र की पत्नी महारानी शची ने श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन विधि-विधान से व्रत करके रक्षासूत्र तैयार किए और स्वस्तिवाचन के साथ ब्राह्मण की उपस्थिति में इंद्राणी ने वह सूत्र इंद्र की दाहिनी कलाई में बांधा। जिसके फलस्वरुप इन्द्र सहित समस्त देवताओं की दानवों पर विजय हुई।
रक्षा विधान के समय निम्न लिखित मंत्रोच्चार किया गया था जिसका आज भी विधिवत पालन किया जाता है:
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वां अभिबद्धनामि रक्षे मा चल मा चल।।
इस मंत्र का भावार्थ है कि दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूँ। हे रक्षे! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो।
यम और यमुना

भाई और बहन के प्रतीक रक्षा बंधन से जुड़ी एक अन्य रोचक कहानी है, मृत्यु के देवता भगवान यम और यमुना नदी की। पौराणिक कथाओं के मुताबिक यमुना ने एक बार भगवान यम की कलाई पर धागा बांधा था। वह बहन के तौर पर भाई के प्रति अपने प्रेम का इजहार करना चाहती थी। भगवान यम इस बात से इतने प्रभावित हुए कि यमुना की सुरक्षा का वचन देने के साथ ही उन्होंने अमरता का वरदान भी दे दिया। साथ ही उन्होंने यह भी वचन दिया कि जो भाई अपनी बहन की मदद करेगा, उसे वह लंबी आयु का वरदान देंगे।

श्री गणेश और संतोषी मां

भगवान गणेश के बेटे शुभ और लाभ एक बहन चाहते थे। तब भगवान गणेश ने यज्ञ वेदी से संतोषी मां का आह्वान किया। रक्षा बंधन, शुभ, लाभ और संतोषी मां के दिव्य रिश्ते की याद में भी मनाया जाता है। यह रक्षा विधान श्रावण मास की पूर्णिमा को प्रातः काल संपन्न किया गया था तब ही से रक्षा बंधन अस्तित्व में आया और श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने लगा।

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