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रोती बहन का सवाल : इस रक्षाबंधन सब सूना, मेरे भाई अंकित को क्यों मारा? : दंगाइयों का बचाव करने वाले बेशर्म लिबरल जवाब दो

अंकित शर्मा, ताहिर, खालिद
दिल्ली दंगों के दौरान ताहिर हुसैन और उसके गुंडों पर आईबी में कार्यरत रहे अंकित शर्मा की बेरहमी से हत्या करने का आरोप है। दंगों की जाँच के बीच रक्षाबंधन भी आ गया है। ऐसे में अंकित शर्मा की बहन इस बार राखी किसे बाँधेंगीं, यही सोच कर वो बार-बार बिलख कर रो उठती हैं। ताहिर हुसैन और खालिद सैफी जैसों ने एक बहन से उसके निर्दोष भाई को छीन लिया और लिबरल गैंग बेशर्म बन उलटा दंगाइयों को बचाने में लगा हुआ है। बेशर्म बन Victim Card खेला जा रहा है। किसी लिबरल गैंग ने मारे गए निर्दोषों के घर जाकर उनके बच्चों और परिवार का दर्द जानने की कोशिश की? क्या उनको इस काम के लिए धन नहीं मिला है? 
‘Kreately’ की ख़बर के अनुसार, अंकित शर्मा की बहन सोनम बार-बार यही पूछते हुए रो उठती हैं कि मेरे भाई को क्यों मारा, इस बार मैं राखी किसे बाँधूँगी? सोनम का कहना है कि इस रक्षाबंधन उनके लिए सब कुछ सूना-सूना सा है। जब कई नेता, पत्रकार और बुद्धिजीवी हत्यारोपित ताहिर हुसैन और खालिद सैफी जैसों को बचाने में लगे हुए हैं, क्या उन्हें एक बहन की चीख नहीं सुनाई दे रही है?

हाल ही में कट्टर इस्लामी पत्रकार राणा अयूब ने ट्विटर पर खालिद सैफी की बेटी की तस्वीर शेयर करते हुए भावनात्मक पोस्ट लिखा और एक अपराधी को ऐसे पेश किया जैसे वो किसी स्वतंत्रता सेनानी के लिए आवाज़ उठा रही हों। अयूब ने इमोशनल कार्ड खेलते हुए पूछा कि ये बच्चे पूछ रहे हैं कि इस ईद पर उनके अब्बू आएँगे या नहीं या फिर उनके जन्मदिन पर वो रहेंगे या नहीं? जबकि सवाल तो यह पूछा जाना चाहिए था कि क्या खालिद ने ऐसा अपराध करने से पहले सोचा था?
जिहादियों के हिमायती दंगे भड़काने वाले, उनकी फन्डिंग करने वाले, और बेरहमी से हत्या करने वालों के बच्चों की तस्वीरें लगा कर ईद की बातें करते हैं और ईमोशनल कार्ड खेल कर माहौल बनाते हैं, क्या उनसे ये सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए कि जिनका वो बचाव कर रहे हैं, उन्हीं के द्वारा बेरहमी से मार डाले गए हिंदुओं के पीड़ित परिवारों का क्या होगा, जो सदा के लिए दूर चले गए?
इसमें कोई शक नहीं कि नाबालिग बच्चे का कोई दोष नहीं। लेकिन, क्या खालिद सैफी जैसों को यह नहीं सोचना चाहिए था कि उसके घर में बच्चे हैं या उसका परिवार है तो वो कोई ऐसा काम ही न करे, जिससे वो अपराधी बन जाए और उसकी करतूतें उसके ही परिवार पर भारी पड़ने लगे? ईद की बात कर के मजहब को बीच में लाया जाता है और अपराधियों को बचाने के लिए ये लिबरल पत्रकार हर बार यह कार्ड खेलते हैं।
क्या आपको पता है कि खालिद सैफी कौन है और उसने किया क्या था? खालिद सैफी (Khalid Saifi) पर आरोप है कि उसने दिल्ली में हिंसा से पहले शाहीन बाग में जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद और पूर्व आम आदमी पार्टी के पार्षद ताहिर हुसैन के बीच मीटिंग करवाई थी। शाहीन बाग में इस साल 8 जनवरी को दोनों की मुलाकात हुई थी। इस मीटिंग में उमर खालिद, ताहिर हुसैन और खालिद सैफी शामिल थे।
प्रोपेगेंडा पत्रकार रवीश कुमार, आम आदमी पार्टी प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल से लेकर सोशल मीडिया पर इस्लामी विचारधारा की समर्थक RJ सायमा सहित न जाने कितनी ही कथित सेक्युलर हस्तियों के साथ उसकी तस्वीरें वायरल हुई थीं। इससे उसकी पहुँच का अंदाज लगता है। जाहिर है, उसके नेटवर्क में शामिल उसके लोग हर क्षेत्र में हैं, जो उसे बचाने के लिए हर जतन करेंगे ही। उसका ‘कर्ज’ चुकाएँगे ही।
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दिल्ली के एक सेशन कोर्ट ने आम आदमी पार्टी के निलंबित पार्षद ताहिर हुसैन की जमानत याचिका खारिज कर दी है। ताहिर हुसै.....
खालिद सैफी वही शख्स है, जिस पर आरोप लगा है कि उसने सिंगापुर सहित मध्य-पूर्व के एक देश से दंगों के लिए धन जुटाया और मलेशिया तक जाकर जाकिर नाइक से मुलाकात की। इसके अलावा उमर खालिद और ताहिर हुसैन की शाहीन बाग में मीटिंग कराने वाला भी यही शख्स था। जिसके संबंध बड़े बड़े मीडिया गिरोह के लोगों से भी थे। राणा अय्यूब जैसों ने आज इस्लामिक आतताइयों के कारनामों को धो-पोंछ कर उन्हें स्मृतियों से मिटाने का बीड़ा उठाया है।

क्या PETA इंडिया में बैठे अधिकारीयों को इतना भी ज्ञान नहीं कि रक्षा बंधन के दिन मांस का प्रयोग नहीं होता?

रक्षाबंधन PETA इंडिया
भारत में कुछ संस्थाओं और लोगों को केवल हिन्दू त्योहारों पर ही कायदे-कानून याद आते हैं, अन्य धर्मों के त्यौहारों पर कानों में सीसा डाले रहते हैं। अब इन्हें साम्प्रदायिक नहीं कहा जाये तो क्या नाम दिया जाए। करवाचौथ पर कुछ बकवास करती हैं कि "मै क्यों भूखी रहूं", होली पर "पानी की बर्बादी", दीपावली पर "आतिशबाज़ी छोड़ने से प्रदुषण की समस्या" और अब अक्ल से पैदल लोग राखी को भी ले आए। हिन्दू त्यौहारों पर विवादित प्रवचन देने वालों के विरुद्ध हिन्दू संगठन एकजुट होकर क्यों नहीं विरोध करने के साथ-साथ ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार करने की क्यों नहीं धरने एवं प्रदर्शन करते? हिन्दू त्यौहार आये नहीं, इनका रोना-पीटना शुरू हो गया।  
पशु अधिकारों के संरक्षण के लिए काम करने का दावा करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था PETA ने गाय के चित्र वाले उस बैनर ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया, जिसमें रक्षाबंधन के दौरान राखी में चमड़े का उपयोग न करने की सलाह दी गई है। दूसरे, यह कि इन फितरती लोगों को नहीं मालूम कि रक्षा बंधन पूरनमासी के दिन मनाया जाता है। 
इस बैनर को लेकर जम कर हंगामा हुआ। PETA ने कहा है कि गायों को भी रक्षा की ज़रूरत है। दरअसल, बुधवार (जुलाई 15, 2020) को गुजरात से सोशल मीडिया यूज़र्स ने उस बैनर की तस्वीर शेयर की थी। इसके बाद विवाद खड़ा हो गया था क्योंकि PETA को यह तक पता नहीं कि रक्षाबंधन में चमड़े का उपयोग नहीं होता है। और लोगों ने तो PETA इंडिया से बकरीद पर भी ऐसी ही एक अपील की बात कह कर अपना आक्रोश व्यक्त किया।



ऑपइंडिया से बात करते हुए PETA इंडिया के इस अभियान की कोऑर्डिनेटर राधिका सूर्यवंशी ने बताया, “रक्षा बंधन हमारी बहनों की रक्षा का समय है, और गाय हमारी बहनें हैं। हमारी तरह, वे भी रक्त, मांस और हड्डी से बनी हैं और जीना चाहती हैं। हमारा विचार प्रतिदिन गायों की रक्षा करने का है और रक्षा बंधन एक बहुत ही अच्छा दिन है। जिसमें हम आजीवन चमड़े से मुक्त रहने का संकल्प ले सकते है। ”
सोशल मीडिया पर PETA इंडिया के इस अभियान की अदूरदर्शिता पर भड़के आक्रोश पर अपनी नाराजगी जताते हुए सूर्यवंशी ने कहा, “अभियान से ज्यादा यह अपमानजनक है कि गायों और भैंसों को इतनी ज्यादा संख्या में वाहनों पर लाद दिया जाता है। जिससे उनकी हड्डियाँ झुलस जाती हैं और उनका दम भी घुटने लगता है। जो बच जाते हैं, उनका गला दूसरे गाय भैसों के सामने रेत दिया जाता है। हमें इस हिंसा के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर करनी चाहिए। लेकिन लोग इस हिंसा के प्रति नहीं बल्कि अपना गुस्सा पेटा के खिलाफ निकालते है जब कि हम गायों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं।”
इससे पहले PETA ने लखनऊ में एक बिलबोर्ड लगवाया था। जिसमें एक बकरी की तस्वीर के साथ लोगों को शाकाहारी बनने और लखनऊ में अप्रत्यक्ष रूप से मुस्लिमों द्वारा बकरी की हत्या को रोकने की अपील की गई थी।
जिसके बाद सुन्नी मौलवी ने इसका विरोध किया था। और यह दावा किया कि मुस्लिम इस त्यौहार के मौके पर कुर्बानी देते हैं। यह पोस्टर पूरी तरह आपत्तिजनक है। इस पोस्टर ने हमारी धार्मिक भावनाओं को आहत किया है। बकरी की कुर्बानी हमारे धर्म का एक हिस्सा है।
वहीं इस विरोध के बाद, उस बिलबोर्ड अर्थात होर्डिंग को वहाँ से हटा दिया गया था। जिसे हटाने को लेकर PETA ने दावा किया कि उन होर्डिंग्स को पुलिस अधिकारियों ने हटा दिया था। फिर भी, वे होर्डिंग्स को हटाने से सहमत नहीं थे। हालाँकि, ऑपइंडिया से बात करते हुए, लखनऊ पुलिस ने कहा था कि पेटा ने खुद ही होर्डिंग्स हटा दिए थे।

रक्षा बन्धन : हर युग में भाई ने निभाया है बहन को दिया वचन, लेकिन पहल बहन ही करती है।

रक्षाबंधन का इतिहास काफी पुराना है, जो सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा हुआ है। वास्तव में रक्षा बंधन की परंपरा उन बहनों ने डाली थी जो सगी नहीं थीं, भले ही उन बहनों ने अपने संरक्षण के लिए ही इस पर्व की शुरुआत क्यों न की हो, लेकिन उसकी बदौलत आज भी इस त्योहार की मान्यता बरकरार है। वैसे हिन्दुओं के किसी भी त्यौहार को देखा, कोई न कोई सामाजिक दायित्व की प्रेरणा देता है, दुर्भाग्य यह है कि पश्चिमी सभ्यता ने हिन्दू सभ्यता को धूमिल कर, त्यौहारों को एक बोझा बना दिया है। होली के महत्व को भी नहीं भुलाया जा सकता। जब बहन होलिका ने अपने भाई हिरणकश्यप के अन्याय का साथ दिया, परिणाम सम्मुख है।  
धार्मिक मान्यता यह भी है कि जब बहन भाई के हाथ राखी अथवा कलावा बाँधती है, सर्वप्रथम वह अपने भाई की इन्द्रियों को केन्द्रित कर उसके उज्जवल भविष्य की कामना करती है, तो मस्तक पर तिलक करके अपने भाई के भाग्य को संवारती है, कि जिस प्रकार यह तिलक यह चमक रहा है, इससे अधिक मेरे भाई का नाम चमके। दूसरे, राखी अथवा कलावा बांधने बाद जो न्यौझावर करती है, वह मात्र एक रूपया अथवा दस नहीं देखती, बल्कि अपने भाई को किसी ऊपरी हवा से बचाने ईश्वर से प्रार्थना करती है, ताकि भाई जीवन में सुख-समृद्धि से अपने जीवन को यश प्राप्त करे, जिसका भाई कोई मूल्य नहीं चुका सकता। राखी अथवा कलावा बांधने उपरांत भाई अगर बहन को हज़ार रूपए भी देता है, बेकार है क्योकि बहन ने तो पहले ईश्वर से इससे कहीं अधिक अपने भाई को देने की प्रार्थना की है। वह भाई बड़े भाग्यवान होते हैं, जो जीवन किसी भी मोड़ पर अपनी बहन को नज़रअंदाज़ नहीं करते। इस अटूट रिश्ते को निभाने बहन भाई से बड़ी होने के बावजूद भाई की गलतियों को माफ़ कर, रिश्ते को बनाए रखने में अपने मान-सम्मान की आहुति देती है। परन्तु जब इस पावन अवसर पर किसी भी कारणवश भाई-बहन नहीं मिल पाते, भाई से अधिक बहन दिल ही दिल रोती है। अपने आंसू और दुःख किसी के आगे व्यक्त नहीं करती। 
आपस में कितना भी लड़ें, कोई और लड़ के देखे 
भाई-बहन आपस में कितना भी लड़-झगड़ लें, लेकिन अगर कोई दूसरा उनमें से किसी एक को भी कुछ बोले तो दूसरा उसे बचाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। जहाँ प्यार होगा, झगड़ा भी होगा।     
इतिहास के पन्नों को देखें तो इस त्योहार की शुरुआत 6 हजार साल पहले माना जाता है। इसके कई साक्ष्य भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। रक्षाबंधन की शुरुआत का साक्ष्य रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं का है।
रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं
मध्यकालीन युग में राजपूत और मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था, तब चित्तौड़ के राजा की विधवा रानी कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख हुमायूं को राखी भेजी थी। तब हुमायूं ने उनकी रक्षा कर उन्हें बहन का दर्जा दिया था।
सिकंदर व पोरस
सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरू को राखी बांध कर अपना मुंहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया । पुरू ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिए हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवनदान दिया।
सिकंदर व पोरस ने युद्ध से पूर्व रक्षा-सूत्र की अदला-बदली की थी। युद्ध के दौरान पोरस ने जब सिकंदर पर घातक प्रहार हेतु अपना हाथ उठाया तो रक्षा-सूत्र को देखकर उसके हाथ रुक गए और वह बंदी बना लिया गया। सिकंदर ने भी पोरस के रक्षा-सूत्र की लाज रखते हुए और एक योद्धा की तरह व्यवहार करते हुए उसका राज्य वापस लौटा दिया।
कृष्ण और द्रोपदी
एक उदाहरण कृष्ण और द्रोपदी का माना जाता है। कृष्ण भगवान ने
राजा शिशुपाल को मारा था। युद्ध के दौरान कृष्ण के बाएं हाथ की उंगली से खून बह रहा था, इसे देखकर द्रोपदी बेहद दुखी हुईं और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की उंगली में बांध दी, जिससे उनका खून बहना बंद हो गया। कहा जाता है तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन स्वीकार कर लिया था। सालों के बाद जब पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में उनका चीरहरण हो रहा था, तब कृष्ण ने द्रोपदी की लाज बचाई थी।
इंद्राणी एवं इंद्र
और पीछे चलें तो भविष्य पुराण की एक कथा के अनुसार एक बार देवता और दैत्यों (दानवों) में 12 वर्षों तक युद्ध हुआ परन्तु देवता विजयी नहीं हुए। इंद्र हार के भय से दु:खी होकर देवगुरु बृहस्पति के पास विमर्श हेतु गए। गुरु बृहस्पति के सुझाव पर इंद्र की पत्नी महारानी शची ने श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिन विधि-विधान से व्रत करके रक्षासूत्र तैयार किए और स्वस्तिवाचन के साथ ब्राह्मण की उपस्थिति में इंद्राणी ने वह सूत्र इंद्र की दाहिनी कलाई में बांधा। जिसके फलस्वरुप इन्द्र सहित समस्त देवताओं की दानवों पर विजय हुई।
रक्षा विधान के समय निम्न लिखित मंत्रोच्चार किया गया था जिसका आज भी विधिवत पालन किया जाता है:
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वां अभिबद्धनामि रक्षे मा चल मा चल।।
इस मंत्र का भावार्थ है कि दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूँ। हे रक्षे! (रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो।
यम और यमुना

भाई और बहन के प्रतीक रक्षा बंधन से जुड़ी एक अन्य रोचक कहानी है, मृत्यु के देवता भगवान यम और यमुना नदी की। पौराणिक कथाओं के मुताबिक यमुना ने एक बार भगवान यम की कलाई पर धागा बांधा था। वह बहन के तौर पर भाई के प्रति अपने प्रेम का इजहार करना चाहती थी। भगवान यम इस बात से इतने प्रभावित हुए कि यमुना की सुरक्षा का वचन देने के साथ ही उन्होंने अमरता का वरदान भी दे दिया। साथ ही उन्होंने यह भी वचन दिया कि जो भाई अपनी बहन की मदद करेगा, उसे वह लंबी आयु का वरदान देंगे।

श्री गणेश और संतोषी मां

भगवान गणेश के बेटे शुभ और लाभ एक बहन चाहते थे। तब भगवान गणेश ने यज्ञ वेदी से संतोषी मां का आह्वान किया। रक्षा बंधन, शुभ, लाभ और संतोषी मां के दिव्य रिश्ते की याद में भी मनाया जाता है। यह रक्षा विधान श्रावण मास की पूर्णिमा को प्रातः काल संपन्न किया गया था तब ही से रक्षा बंधन अस्तित्व में आया और श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने लगा।

आखिर कब तक हिन्दू त्यौहारों का अपमान होता रहेगा?

हिंदू धर्म के त्योहारों के अपमान का सिलसिला जारी है। इस बार ये जिम्मेदारी संभाली है हिंदी अखबार दैनिक भास्कर ने। अखबार ने सोशल मीडिया पर एक कैंपेन शुरू किया कि ‘मैं राखी नहीं बांधूंगी’। ऐसे जैसे कि राखी बांधना कोई घटिया काम हो। त्योहार के पीछे मकसद चाहे जो हो लेकिन ऐसे वक्त में जब भाई-बहन के प्यार का ये प्रतीक लोग खुशी के साथ मना रहे हों, एक अखबार का ये रवैया बेहद असंवेदनशील लग रहा है। रक्षाबंधन ही नहीं, हिंदुओं के तमाम दूसरे त्यौहारों को भी इसी तरह अपमानित करने की कोशिश अक्सर होती रहती है। दैनिक भास्कर अखबार ही इससे पहले दिवाली, होली और शिवरात्रि जैसे त्यौहारों को लेकर भद्दे अभियान चला चुका है।

रक्षाबंधन को लेकर क्या है ऐतराज

रक्षाबंधन पर बहनें भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं। ऐसा कहते हैं कि बदले में भाई उनकी रक्षा का प्रण लेते हैं। हो सकता है कि किसी वक्त के समाज में ऐसा होता रहा हो, लेकिन अब यह बात पूरी तरह सही नहीं है क्योंकि महिलाएं हर क्षेत्र में आगे आ चुकी हैं। कई महिलाएं अपने भाइयों और पूरे परिवार की देख-रेख भी करती हैं।सांकेतिक तौर पर भाई-बहन के प्यार का दुनिया में यह सबसे अनोखा त्योहार है। सवाल यह है कि जब फ्रेंडशिप डे पर दोस्त एक-दूसरे को बिना किसी कारण फ्रेंडशिप बैंड बांध सकते हैं तो रक्षाबंधन से ऐसा कौन सा पहाड़ टूट जाएगा? रक्षाबंधन की नकल पर अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों में पिछले कुछ साल से सिस्टर्स डे मनाया जाता है। यह फेस्टिवल भी अगस्त में ही पड़ता है। 
इस सन्दर्भ में अवलोकन करें:--

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SINCE Independence,what is the position of Hindus in India? They are dishonoured. All rules and laws are against Hindus in the name of secu...

अगर रक्षाबंधन से दिक्कत है तो फिर सिस्टर्स और ब्रदर्स डे से क्यों नहीं? रक्षा बंधन का विरोध करने वाले अपने दिमागी दिवालिएपन को प्रमाणित कर रहे हैं, इन पश्चिमी सभ्यता के पूजकों को नहीं मालूम की इन दोनों का अर्थ एक ही होता है। फिर इस विरोधियों को यह भी ज्ञात होना चाहिए कि जब बहन राखी और भाईदूज के दिन अपने भाई के हाथ में कलावा/राखी बांधती है, तो वह अपने भाई की रक्षा और भलाई की अपने इष्ट देवता से कामना करती है। जबकि पश्चिमी सभ्यता के सिस्टर्स और ब्रदर्स डे पर ऐसा कुछ नहीं होता। फिर हिन्दू त्यौहारों को अपमानित करने वाले पश्चिमी सभ्यता के पुजारी यह बताएँ कि "क्या कारण है कि क्रिसमस दिवस पर रात्रि 11 बजे के बाद गैर-ईसाईयों के चर्च में जाने पर क्यों पाबन्दी होती है?" दूसरे, बकरीद पर सडकों और नालियों में बहने वाले टनों खून के विरुद्ध किसी की आवाज़ नहीं निकलती? 

0001246896-10-1-large2हिन्दू धर्म के खिलाफ ‘ग्लैमरस’ प्रचार

हैरत की बात है कि रक्षाबंधन ने इस अभियान का प्रचार एक मॉडल से करवा कर इस दकियानूसी अपील में ग्लैमर जोड़ने की कोशिश की है। यह अखबार इससे पहले होली न मनाने की अपील जारी करता रहा है। अपने एक पोस्टर में तो इन्होंने होली खेलने को अपराध तक बता दिया था। सवाल यह है कि दैनिक भास्कर वाले रोज लाखों लीटर पानी बर्बाद करने वाले वॉटर पार्कों या दूसरे धर्मों के ऐसे दकियानूसी त्यौहारों के खिलाफ अभियान चलाने की हिम्मत क्यों नहीं करता। किसी धर्म के त्यौहार पर इस तरह की भद्दी टिप्पणी करने का दैनिक भास्कर को किसने अधिकार दे दिया। अगर दिवाली, होली, रक्षाबंधन के खिलाफ अखबार ऐसे कमेंट्स कर रहा है तो बकरीद पर वो चुप्पी क्यों साधे रखता है? यही कारण है कि शक होता है कि अखबार के इस अभियान के पीछे किसी ईसाई या जिहादी संगठन की फंडिंग है।

बाकी हिंदू त्योहारों को लेकर भी छींटाकशी

रक्षाबंधन और होली ही नहीं, दिवाली, करवा चौथ और ऐसे तमाम त्यौहारों को लेकर अपमानजनक टिप्पणियां आम बात हैं। जानी-मानी पत्रकार बरखा दत्त ने कुछ साल पहले ट्विटर पर करवा चौथ को दकियानूसी त्यौहार बताया था। उस वक्त इसे लेकर काफी हंगामा मचा था क्योंकि वो और वैसी कुछ दूसरी महिला पत्रकार बुरखा और बकरीद जैसी बुराइयों को सही ठहराने की कोशिश करती रही हैं। इसी तरह हाल ही में दही-हांडी और जलीकट्टू जैसे हिंदू त्यौहारों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने नियम कायदे तय किए हैं। जबकि दूसरे धर्मों के त्योहारों पर अदालतें हाथ डालने से बचती हैं। नागपंचमी के मौके पर पेटा ने एक अजीबोगरीब अभियान चलाया था। जिसमें लोगों से अपील की गई थी कि वो अपने घरों में नाग लाकर उन्हें न मारें। ऐसी कोशिशें हिंदू धर्म के खिलाफ चल रहे दुष्प्रचार की निशानी नहीं तो और क्या हैं।