भारत में कुछ संस्थाओं और लोगों को केवल हिन्दू त्योहारों पर ही कायदे-कानून याद आते हैं, अन्य धर्मों के त्यौहारों पर कानों में सीसा डाले रहते हैं। अब इन्हें साम्प्रदायिक नहीं कहा जाये तो क्या नाम दिया जाए। करवाचौथ पर कुछ बकवास करती हैं कि "मै क्यों भूखी रहूं", होली पर "पानी की बर्बादी", दीपावली पर "आतिशबाज़ी छोड़ने से प्रदुषण की समस्या" और अब अक्ल से पैदल लोग राखी को भी ले आए। हिन्दू त्यौहारों पर विवादित प्रवचन देने वालों के विरुद्ध हिन्दू संगठन एकजुट होकर क्यों नहीं विरोध करने के साथ-साथ ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार करने की क्यों नहीं धरने एवं प्रदर्शन करते? हिन्दू त्यौहार आये नहीं, इनका रोना-पीटना शुरू हो गया।
पशु अधिकारों के संरक्षण के लिए काम करने का दावा करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था PETA ने गाय के चित्र वाले उस बैनर ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया, जिसमें रक्षाबंधन के दौरान राखी में चमड़े का उपयोग न करने की सलाह दी गई है। दूसरे, यह कि इन फितरती लोगों को नहीं मालूम कि रक्षा बंधन पूरनमासी के दिन मनाया जाता है।
इस बैनर को लेकर जम कर हंगामा हुआ। PETA ने कहा है कि गायों को भी रक्षा की ज़रूरत है। दरअसल, बुधवार (जुलाई 15, 2020) को गुजरात से सोशल मीडिया यूज़र्स ने उस बैनर की तस्वीर शेयर की थी। इसके बाद विवाद खड़ा हो गया था क्योंकि PETA को यह तक पता नहीं कि रक्षाबंधन में चमड़े का उपयोग नहीं होता है। और लोगों ने तो PETA इंडिया से बकरीद पर भी ऐसी ही एक अपील की बात कह कर अपना आक्रोश व्यक्त किया।
सोशल मीडिया पर PETA इंडिया के इस अभियान की अदूरदर्शिता पर भड़के आक्रोश पर अपनी नाराजगी जताते हुए सूर्यवंशी ने कहा, “अभियान से ज्यादा यह अपमानजनक है कि गायों और भैंसों को इतनी ज्यादा संख्या में वाहनों पर लाद दिया जाता है। जिससे उनकी हड्डियाँ झुलस जाती हैं और उनका दम भी घुटने लगता है। जो बच जाते हैं, उनका गला दूसरे गाय भैसों के सामने रेत दिया जाता है। हमें इस हिंसा के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर करनी चाहिए। लेकिन लोग इस हिंसा के प्रति नहीं बल्कि अपना गुस्सा पेटा के खिलाफ निकालते है जब कि हम गायों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं।”
इससे पहले PETA ने लखनऊ में एक बिलबोर्ड लगवाया था। जिसमें एक बकरी की तस्वीर के साथ लोगों को शाकाहारी बनने और लखनऊ में अप्रत्यक्ष रूप से मुस्लिमों द्वारा बकरी की हत्या को रोकने की अपील की गई थी।
जिसके बाद सुन्नी मौलवी ने इसका विरोध किया था। और यह दावा किया कि मुस्लिम इस त्यौहार के मौके पर कुर्बानी देते हैं। यह पोस्टर पूरी तरह आपत्तिजनक है। इस पोस्टर ने हमारी धार्मिक भावनाओं को आहत किया है। बकरी की कुर्बानी हमारे धर्म का एक हिस्सा है।
वहीं इस विरोध के बाद, उस बिलबोर्ड अर्थात होर्डिंग को वहाँ से हटा दिया गया था। जिसे हटाने को लेकर PETA ने दावा किया कि उन होर्डिंग्स को पुलिस अधिकारियों ने हटा दिया था। फिर भी, वे होर्डिंग्स को हटाने से सहमत नहीं थे। हालाँकि, ऑपइंडिया से बात करते हुए, लखनऊ पुलिस ने कहा था कि पेटा ने खुद ही होर्डिंग्स हटा दिए थे।
पशु अधिकारों के संरक्षण के लिए काम करने का दावा करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था PETA ने गाय के चित्र वाले उस बैनर ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया, जिसमें रक्षाबंधन के दौरान राखी में चमड़े का उपयोग न करने की सलाह दी गई है। दूसरे, यह कि इन फितरती लोगों को नहीं मालूम कि रक्षा बंधन पूरनमासी के दिन मनाया जाता है।
इस बैनर को लेकर जम कर हंगामा हुआ। PETA ने कहा है कि गायों को भी रक्षा की ज़रूरत है। दरअसल, बुधवार (जुलाई 15, 2020) को गुजरात से सोशल मीडिया यूज़र्स ने उस बैनर की तस्वीर शेयर की थी। इसके बाद विवाद खड़ा हो गया था क्योंकि PETA को यह तक पता नहीं कि रक्षाबंधन में चमड़े का उपयोग नहीं होता है। और लोगों ने तो PETA इंडिया से बकरीद पर भी ऐसी ही एक अपील की बात कह कर अपना आक्रोश व्यक्त किया।
This is totally appreciated "PETA" campaigning for leadher free Raksha Bandhan.. (God knows either leadher is being used in Rakhi or not !)— विजय ठाकर (@VIJAYTHAKERJI) July 15, 2020
I am waiting this kind of campaigning for Bakrid @PetaIndia #rakshabandhan #jivdaya #bakrid pic.twitter.com/EUfnlqbzAE
What is appreciable in this @PetaIndia have you gone mad . whoever celebrates Rakhsha bandhan , for them Cow is mother. We neither eat them nor kill them. Even Hindus doesn’t eat or use leather of any other animal in Raksha Bandhan. Hindu phobia is at peak.— Manisha Rajput ⚔️ (@manisharajput55) July 16, 2020
@peta क्यों हिंदू त्योहारों को बदनाम कर रहे है ? जानवरो के खून की नदियां कब बहती है सब जानते है । तब आपने पोस्टर लगाए ??— Vinod Zaru (@vinodzaru) July 15, 2020
या फिर आपकी सेटिंग्स है ??
ऑपइंडिया से बात करते हुए PETA इंडिया के इस अभियान की कोऑर्डिनेटर राधिका सूर्यवंशी ने बताया, “रक्षा बंधन हमारी बहनों की रक्षा का समय है, और गाय हमारी बहनें हैं। हमारी तरह, वे भी रक्त, मांस और हड्डी से बनी हैं और जीना चाहती हैं। हमारा विचार प्रतिदिन गायों की रक्षा करने का है और रक्षा बंधन एक बहुत ही अच्छा दिन है। जिसमें हम आजीवन चमड़े से मुक्त रहने का संकल्प ले सकते है। ”कनेक्शन केवल ये है कि गाय की फ़ोटो लगाने से ‘प्रचार’ मिलेगा, बकरे की फ़ोटो लगाने से गाली! https://t.co/GPl9yp7oEp— रोहित सरदाना (@sardanarohit) July 17, 2020
सोशल मीडिया पर PETA इंडिया के इस अभियान की अदूरदर्शिता पर भड़के आक्रोश पर अपनी नाराजगी जताते हुए सूर्यवंशी ने कहा, “अभियान से ज्यादा यह अपमानजनक है कि गायों और भैंसों को इतनी ज्यादा संख्या में वाहनों पर लाद दिया जाता है। जिससे उनकी हड्डियाँ झुलस जाती हैं और उनका दम भी घुटने लगता है। जो बच जाते हैं, उनका गला दूसरे गाय भैसों के सामने रेत दिया जाता है। हमें इस हिंसा के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर करनी चाहिए। लेकिन लोग इस हिंसा के प्रति नहीं बल्कि अपना गुस्सा पेटा के खिलाफ निकालते है जब कि हम गायों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं।”
इससे पहले PETA ने लखनऊ में एक बिलबोर्ड लगवाया था। जिसमें एक बकरी की तस्वीर के साथ लोगों को शाकाहारी बनने और लखनऊ में अप्रत्यक्ष रूप से मुस्लिमों द्वारा बकरी की हत्या को रोकने की अपील की गई थी।
जिसके बाद सुन्नी मौलवी ने इसका विरोध किया था। और यह दावा किया कि मुस्लिम इस त्यौहार के मौके पर कुर्बानी देते हैं। यह पोस्टर पूरी तरह आपत्तिजनक है। इस पोस्टर ने हमारी धार्मिक भावनाओं को आहत किया है। बकरी की कुर्बानी हमारे धर्म का एक हिस्सा है।
वहीं इस विरोध के बाद, उस बिलबोर्ड अर्थात होर्डिंग को वहाँ से हटा दिया गया था। जिसे हटाने को लेकर PETA ने दावा किया कि उन होर्डिंग्स को पुलिस अधिकारियों ने हटा दिया था। फिर भी, वे होर्डिंग्स को हटाने से सहमत नहीं थे। हालाँकि, ऑपइंडिया से बात करते हुए, लखनऊ पुलिस ने कहा था कि पेटा ने खुद ही होर्डिंग्स हटा दिए थे।
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