यूनिफॉर्म सिविल कोड: गोवा में एक से ज्यादा निकाह नहीं कर सकते मुसलमान

Image result for uniform civil codeसुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता का मसला फिर से चर्चा में आ गया है। भाजपा शुरुआत से ही इसके पक्ष में रही है। वहीं, इसके विरोधियों का कहना है कि यह सब पर हिंदू कानून थोपने जैसा होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने यूनिफॉर्म सिविल पर टिप्पणी करते हुए इस बात पर नाराज़गी जताई है कि अभी तक इसे लागू करने के लिए कोई प्रयास नहीं हुए। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में गोवा से सीख लेने की सलाह दी, जहाँ यूनिफॉर्म सिविल कोड सभी पर लागू होता है, चाहे वो किसी भी धर्म का व्यक्ति हो। जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि गोवा में कुछ बदलावों के साथ पुर्तगाली सिविल कोड ही लागू है। गोवा के स्थानीय निवासी किसी भी अन्य राज्य में भी बसे हों, तब भी वो इसके दायरे में आते हैं।
कोर्ट ने गोवा की चर्चा करते हुए कहा कि वहाँ मुस्लिम नागरिक एक से ज्यादा निकाह नहीं कर सकते और न ही मौखिक तलाक़ ही दे सकते हैं। लेकिन, देश के अन्य हिस्सों में वे अपने पर्सनल लॉ से चलते हैं। जब कभी यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की बात होती है तो इसका मुस्लिम प्रतिनिधि यह कह कर विरोध करते हैं कि यह सब पर हिंदू कानून थोपने जैसा है।
Image result for uniform civil codeसंपत्ति विवाद के एक मामले में टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभी तक देश के सभी हिस्सों में सामान रूप से सिविल कोड लागू करने के लिए किसी भी प्रकार का प्रयास नहीं किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो मामले में अपने फैसले की याद दिलाते हुए कहा कि उसने इस सम्बन्ध में ध्यान भी दिलाया लेकिन तब भी सरकारों ने प्रयास नहीं किए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गोवा में उत्तराधिकार, दहेज़ और संपत्ति मामलों में क़ानून बेहद स्पष्ट है और धर्म इसके आड़े नहीं आता। वहाँ शादी के बाद पति-पत्नी अपनी शादी के पहले और बाद की सम्पत्तियों पर संयुक्त स्वामित्व रखते हैं। अगर तलाक होता है तो इस संपत्ति का बराबर बँटवारा किया जाता है। हाँ, शादी से पहले संपत्ति के सम्बन्ध में मनमाफिक करार किया जा सकता है कि बँटवारा किस प्रकार से होगा?
कोर्ट ने आर्टिकल 44 की चर्चा करते हुए कहा कि इसमें सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता की बात कही गई है लेकिन फिर भी इसकी तरफ़ कोई ध्यान नहीं देता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा
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“लोगों की सोच यह बन गई है कि अगर पर्सनल कोड को लेकर कोई बदलाव होता भी है तो मुस्लिमों को आगे आकर इसकी पहल करनी चाहिए। अभी तक यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर सरकार की तरफ से किसी भी प्रकार की आधिकारिक गतिविधियों की सूचना नहीं है। ये सरकार की ही ज़िम्मेदारी है और विधायिका के पास ही इसे लागू करने की क्षमता भी है।
सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद सोशल मीडिया में भी यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर बहस छिड़ गई। हालाँकि, आरएसएस और भाजपा लम्बे समय से इसे लागू करने की माँग कर रहे हैं। अनुच्छेद 370, एनआरसी और तीन तलाक़ को लेकर अहम निर्णय लेने वाली मोदी सरकार से लोगों ने अपेक्षा जताई है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की दिशा में भी प्रयास किए जाएँगे।

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