
सामना ने आगे लिखा है, 'महाराष्ट्र के मेगा रिसाव का सबसे बड़ा फटका पवार की राष्ट्रवादी को पड़ा है. शरद पवार कहते हैं कि जो कोई छोड़कर गया उसकी चिंता मत करो. पार्टी छोड़कर जानेवालों ने अपना स्वाभिमान गिरवी रख दिया है. स्वाभिमान का मतलब क्या होता है पवार साहब? खुद पवार साहब ने स्वाभिमान के मुद्दे पर सोनिया से विवाद किया. कांग्रेस में बगावत की. आज उसी सोनिया के साथ गत डेढ़-दो दशकों से उनकी राजनीतिक ‘गुफ्तगू’ शुरू है.
शिवसेना ने अपने मुखपत्र में लिखा है, 'शिवसेना या बीजेपी के कुछ लोगों को जब कांग्रेस और राष्ट्रवादी ने अपनी पार्टी में शामिल किया था तब उन लोगों ने स्वाभिमान के कौन-से शिखर को फतह किया था? उस दौरान भी उन्होंने स्वाभिमान आदि शब्द की ऐसी-तैसी कर डाली थी. शिवसेना छोड़ते वक्त उन्हें स्वाभिमान का अजीर्ण नहीं हुआ था और आज भी पार्टी बदलते हुए उन्हें स्वाभिमान की डकार नहीं आती...
...पवार साहब का कहना है कि ‘मैं अपने 52 वर्षों के राजनीति जीवन में 27 वर्ष सत्ता से बाहर था. सत्ता के बाहर रहकर मैंने ज्यादा काम किया. अब पार्टी बदलने वाले जब कहते हैं कि वे विकास के लिए जा रहे हैं तब हंसी आती है!’ पवार को ये बात मजाक लगे यही सबसे बड़ा मजाक है.'
सामना में आगे लिखा हैं, 'आदमी और उसकी ताकत देखकर विकास के काम और स्वाभिमान के तार मिलाए जाते हैं. पवार साहब, आज आप जिन्हें भगोड़ा कह रहे हैं वे कल कहीं से भागकर या फूटकर आपके तंबू में घुसे थे.अब आपका तंबू जमींदोज हो गया. स्वाभिमान का नाम क्यों लेते हो? घुमाव से निकला जल फिर वहीं पहुंच गया.'(एजेंसीज इनपुट्स)
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