अयोध्या विवाद : अपने ही जाल में फंसा बाबरी पक्ष

अयोध्या मामला
एक शेर है:
सच्चाई छुप नहीं सकती, कभी                    बनावट के असूलों से 
खूशबू आ नहीं सकती, कभी                          बनावट के फूलों से 
जो बाबरी मस्जिद के पक्षकारों पर शत-प्रतिशत चरितार्थ हो रही है। पहले इन्ही लोगों ने खुदाई में मन्दिर के समस्त सबूत यानि मन्दिर के अवशेषों को कोर्ट से छुपा कर मासूम मुसलमानों को गुमराह कर, देश का सौहार्द ख़राब करते रहे, लेकिन आज अप्रत्यक्ष रूप से यह स्वीकार कर कि यह विवादित नहीं, बल्कि पुरुषोत्तम श्रीराम का है। वहाँ पूजा-पाठ होती थी।  
अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में लगातार सुनवाई हो रही है। हिंदू पक्ष अपनी दलीलें रख चुका है और मुस्लिम पक्ष द्वारा इन दिनों अपनी दलीलें दी जा रही हैं। लेकिन इसी बीच सुनवाई के 19वें दिन यानी बुधवार(सितम्बर 4) को कोर्ट में कुछ ऐसा हुआ जिसने मुस्लिम पक्ष के वकील को उनकी ही बातों में फँसा दिया। दरअसल, अपनी दलीलें पेश करते-करते मुस्लिम पक्ष की ओर से स्वीकार कर लिया गया कि वहाँ पर पहले हिंदू पूजा करते थे और वह (मुस्लिम पक्ष) इसका विरोध नहीं करते बल्कि उनके (हिंदुओं) हकदार होने के दावे को स्वीकारते हैं।
अब जैसे ही धवन ने अपनी ये दलील कोर्ट के सामने रखी, पीठ के न्यायाधीशों ने उन पर सवालों की झड़ी लगा दी और कहा कि इसका मतलब है कि आप मान रहे हैं कि विवादित जमीन पर मस्जिद के साथ मंदिर था।
जिसके बाद धवन ने खुद को घिरा हुआ देखकर ये कह डाला कि निर्मोही अखाड़ा बाहर चबूतरे पर पूजा करते थे। उन्होंने कहा कि पहले बाबरी मस्जिद के आँगन में राम की मूर्ति थी, जिसकी पूजा अखाड़ा करता था, लेकिन दिसंबर 1949 को वो मूर्ति मस्जिद के बीच गुंबद के नीचे रख दी गई। जिस पर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने उनसे पूछा कि मतलब आप अखाड़ा के सेवा और पूजा अधिकारों को मान रहे हैं और ये कह रहे हैं कि पूजा बाबरी मस्जिद के बाहरी प्रांगण में होती थी, वहाँ मूर्ति थी।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने भी उनकी दलील पर प्रतिक्रिया दी और कहा, “आपने अपने मुकदमे में दो माँगे की हैं – एक तो उसे मस्जिद घोषित किया जाए और दूसरा, दिए गए नक्शे के पूरे क्षेत्र पर मालिकाना हक दिलाया जाए। आपकी दूसरी माँग में पूरा क्षेत्र शामिल है, लेकिन अगर आप निर्मोही अखाड़ा का सेवा-पूजा का अधिकार स्वीकार कर रहे हैं मतलब, आप वहाँ का एक हिस्सा उन्हें दे रहे हैं। ऐसे में पूरी जगह पर अकेला आपका दावा नहीं रह जाता।”
अब न्यायाधीशों के सवाल में लगातार खुद को फँसता देख धवन ने कहा कि निर्मोही सिर्फ सेवा-पूजा का अधिकार माँग रहे हैं, वह मालिकाना हक नहीं माँग रहे। वे सुविधा के अधिकार के तहत वहाँ पूजा करते थे, लेकिन मस्जिद पर मालिकाना हक वक्फ और मुस्लिम का ही था।  धवन ने ये भी कहा कि हिंदू-मुस्लिम एक साथ हो सकते हैं, लेकिन ये हमारी संपत्ति है। फिर भी अगर लोग यहाँ आकर प्रार्थना करना चाहते हैं तो हम इसकी अनुमति दे देंगे।
इस सुनवाई के बीच में जस्टिस चंद्रचूड़ ने उनसे स्पष्ट करके कहा कि अगर आप अखाड़े के पूजा अधिकारों को मान रहे हैं, तो आप भगवान के अधिकारों को भी मान रहे हैं, क्योंकि बिना भगवान के पूजा अधिकारों की बात नहीं आ सकती। अगर आप मानते हैं कि हिंदुओं को मस्जिद के अंदर चबूतरे में पूजा करने का अधिकार है तो क्या फिर भी कुरान के कानून के हिसाब से वो मस्जिद रह जाएगा?
इस बीच न्यायाधीश नजीर ने धवन से यह भी पूछा कि क्या हिंदू मुस्लिम एक साथ प्रार्थना कर सकते हैं? भारतीय संदर्भ में जहाँ सूफियों का वर्चस्व रहा, इसे लेकर इस्लामिक कानून क्या है? इस पर धवन ने कहा, “ये सच है कि कुरान का कानून एक आदर्श कानून है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय को तय करना है कि क्या ये समकालीन संदर्भ में प्रयुक्त होगा या नहीं।” जिसके बाद न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने उन्हें टोकते हुए कहा कि मतलब आप विवादित जमीन पर अपने अधिकारों के लिए नहीं बल्कि हिंदुओं के साथ सह अस्तित्व की वकालत कर रहे हैं?

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