गौरतलब है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वामी चिन्मयानंद पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों के मामले में अपनी गिरफ्तारी पर रोक लगाने की मांग वाली शाहजहांपुर की पीड़ित छात्रा की अर्जी पर किसी भी तरह की राहत देने से इनकार कर दिया था।
उधर, सितम्बर 20 को गिरफ्तार हुए चिन्मयानंद को सितम्बर 23 को शाहजहांपुर जेल से लखनऊ के एक अस्पताल ले जाया गया जहां उनकी हृदय संबंधी समस्याओं के लिये एंजियोग्राफी की गई। मामले की जांच कर रहे विशेष जांच दल (एसआईटी) ने सीलबंद लिफाफे में दो न्यायाधीशों की पीठ को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।
न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति रानी चौहान की पीठ ने इस मामले में अब तक की जांच पर संतोष जताया और आगे की रिपोर्ट दाखिल करने के लिए 22 अक्टूबर, 2019 की तारीख तय की। चिन्मयानंद से कथित तौर पर जबरन वसूली का प्रयास करने को लेकर एसआईटी के उसके खिलाफ मामला दर्ज करने और तीन लोगों को गिरफ्तार करने के बाद पीड़ित छात्रा ने अपनी गिरफ्तारी पर रोक लगाने की मांग की थी। हालांकि, अदालत ने कहा, ‘यदि पीड़ित छात्रा इस संबंध में कोई राहत चाहती है तो वह उचित पीठ के समक्ष नयी याचिका दायर कर सकती है।'

एक अमीर बिल्डर की बेटी और खुद भी वकालत की उच्च शिक्षा प्राप्त महिला, आखिर क्यों एक नेता के घर उसकी मालिश करने जाती थी ? उसका अपना आलीशान घर चिन्मयानन्द के आश्रम से मात्र 2 किमी दूर था फिर भी आश्रम के हॉस्टल में क्यों रहती थी ?
वहां रहकर कौन सा ज्ञान प्राप्त कर रही थी ? वह उस का मसाज़ क्यों किया करती थी ? जब उसके साथ पहली बार अचानक कुछ गलत हुआ तब ही उसने इसका विरोध क्यों नहीं किया? 43 वीडियो आखिर क्यों बनबाये ? किस बात का इन्तजार था ? जो इस बात को सिद्ध करता है कि मसाज की आड़ में कोई और साज़िश को अंजाम देने के षड़यंत्र किया गया।
बार बार जाने वाली और 43 वीडियो बनबाने वाली महिला, बिना मामले की जांच के मासूम और पीड़ित कैसे घोषित कर दी गयी ? क्या यह जानना आवश्यक नहीं कि वह इस सबके बदले चिन्मयानंद से क्या चाहती थी, जिसके न होने पर वीडियों रिलीज किये गए ?
ऐसी शातिर महिलाओं के कारण वास्तविक मजबूर और पीड़ित लड़कियों का केस कमजोर होता है, जो वास्तव में जबरदस्ती का शिकार होती हैं। इसलिए किसी की मसाज करने से पहले उनको खुद भी सोंच लेना चाहिए।
अवलोकन करें:-
कुछ बर्ष पहले एक महिला वकील की वीडियो तत्कालीन कानून मंत्री अभिषेक मनु संघवी के साथ भी देखी गई थी जो सम्बन्ध बनाने के बदले में जज बनने की रिक्वेस्ट कर रही थी क्या यह मामला भी कुछ बैसा ही नहीं लगता है ?
अवलोकन करें:-
अवलोकन करें:-
गुरुकुल कैसे खत्म हो गये ?
कॉन्वेंट स्कूलों ने किया बर्बाद| 1858 में Indian Education Act बनाया गया। इसकी ड्राफ्टिंग ‘लोर्ड मैकोले’ ने की थी। लेकिन उसके पहले उसने यहाँ (भारत) के शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था, उसके पहले भी कई अंग्रेजों ने भारत की शिक्षा व्यवस्था के बारे में अपनी रिपोर्ट दी थी।
अंग्रेजों का एक अधिकारी था G.W. Litnar और दूसरा था Thomas Munro ! दोनों ने अलग अलग इलाकों का अलग-अलग समय सर्वे किया था। Litnar, जिसने उत्तर भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा है कि यहाँ 97% साक्षरता है और Munro, जिसने दक्षिण भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा कि यहाँ तो 100% साक्षरता है |
मैकोले का स्पष्ट कहना था कि भारत को हमेशा-हमेशा के लिए अगर गुलाम बनाना है तो इसकी “देशी और सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था” को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह “अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था” लानी होगी और तभी इस देश में शरीर से #हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से #अंग्रेज_पैदा_होंगे और जब इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में काम करेंगे| मैकाले एक मुहावरा इस्तेमाल कर रहा है :
“कि जैसे किसी खेत में कोई फसल लगाने के पहले पूरी तरह जोत दिया जाता है वैसे ही इसे जोतना होगा और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी।” इस लिए उसने सबसे पहले #गुरुकुलों को गैरकानूनी घोषित किया जब #गुरुकुल गैरकानूनी हो गए तो उनको मिलने वाली सहायता जो समाज की तरफ से होती थी वो गैरकानूनी हो गयी फिर #संस्कृत को गैरकानूनी घोषित किया
और इस देश के #गुरुकुलों को घूम घूम कर ख़त्म कर दिया उनमें आग लगा दी, उसमें पढ़ाने वाले गुरुओं को उसने मारा- पीटा, जेल में डाला
1850 तक इस देश में ’7 लाख 32 हजार’ गुरुकुल हुआ करते थे और उस समय इस देश में गाँव थे ’7 लाख 50 हजार’ मतलब हर गाँव में औसतन एक गुरुकुल और ये जो गुरुकुल होते थे वो सब के सब आज की भाषा में ‘Higher Learning Institute’ हुआ करते थे उन सबमे 18 विषय पढाया जाता था और ये गुरुकुल समाज के लोग मिलके चलाते थे #न_कि_राजा, महाराजा इन गुरुकुलों में शिक्षा निःशुल्क दी जाती थी। इस तरह से सारे गुरुकुलों को ख़त्म किया गया और फिर अंग्रेजी शिक्षा को कानूनी घोषित किया गया और #कलकत्ता_में_पहला_कॉन्वेंट _स्कूल खोला गया उस समय इसे ‘फ्री स्कूल’ कहा जाता था, इसी कानून के तहत भारत में कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गयी बम्बई यूनिवर्सिटी बनाई गयी, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गयी और ये तीनों गुलामी के ज़माने के यूनिवर्सिटी आज भी इस देश में हैं
मैकोले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी बहुत मशहूर चिट्ठी है वो, उसमें वो लिखता है कि: “इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो #भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से #अंग्रेज होंगे
और इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा इनको अपने #संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने #परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने मुहावरे नहीं मालूम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी।” उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ़-साफ़ दिखाई दे रही हैऔर उस एक्ट की महिमा देखिये कि हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है, #अंग्रेजी में बोलते हैं कि दूसरों पर रोब पड़ेगा, अरे हम तो खुद में हीन हो गए हैं जिसे अपनी भाषा बोलने में शर्म आ रही है, दूसरों पर रोब क्या पड़ेगा। लोगों का तर्क है कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है, दुनिया में 204 देश हैं और अंग्रेजी सिर्फ 11 देशों में बोली, पढ़ी और समझी जाती है फिर ये कैसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। शब्दों के मामले में भी अंग्रेजी समृद्ध नहीं दरिद्र भाषा है।
इन अंग्रेजों की जो #बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे। ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी। अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी समय के #कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी।
संयुक्तराष्टसंघजो अमेरिका में है वहां की भाषा अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है।
जो समाज अपनी मातृभाषा से कट जाता है उसका कभी भला नहीं होता और यही मैकोले की रणनीति थी
अंग्रेजों का एक अधिकारी था G.W. Litnar और दूसरा था Thomas Munro ! दोनों ने अलग अलग इलाकों का अलग-अलग समय सर्वे किया था। Litnar, जिसने उत्तर भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा है कि यहाँ 97% साक्षरता है और Munro, जिसने दक्षिण भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा कि यहाँ तो 100% साक्षरता है |
मैकोले का स्पष्ट कहना था कि भारत को हमेशा-हमेशा के लिए अगर गुलाम बनाना है तो इसकी “देशी और सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था” को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह “अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था” लानी होगी और तभी इस देश में शरीर से #हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से #अंग्रेज_पैदा_होंगे और जब इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में काम करेंगे| मैकाले एक मुहावरा इस्तेमाल कर रहा है :
“कि जैसे किसी खेत में कोई फसल लगाने के पहले पूरी तरह जोत दिया जाता है वैसे ही इसे जोतना होगा और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी।” इस लिए उसने सबसे पहले #गुरुकुलों को गैरकानूनी घोषित किया जब #गुरुकुल गैरकानूनी हो गए तो उनको मिलने वाली सहायता जो समाज की तरफ से होती थी वो गैरकानूनी हो गयी फिर #संस्कृत को गैरकानूनी घोषित किया
और इस देश के #गुरुकुलों को घूम घूम कर ख़त्म कर दिया उनमें आग लगा दी, उसमें पढ़ाने वाले गुरुओं को उसने मारा- पीटा, जेल में डाला
1850 तक इस देश में ’7 लाख 32 हजार’ गुरुकुल हुआ करते थे और उस समय इस देश में गाँव थे ’7 लाख 50 हजार’ मतलब हर गाँव में औसतन एक गुरुकुल और ये जो गुरुकुल होते थे वो सब के सब आज की भाषा में ‘Higher Learning Institute’ हुआ करते थे उन सबमे 18 विषय पढाया जाता था और ये गुरुकुल समाज के लोग मिलके चलाते थे #न_कि_राजा, महाराजा इन गुरुकुलों में शिक्षा निःशुल्क दी जाती थी। इस तरह से सारे गुरुकुलों को ख़त्म किया गया और फिर अंग्रेजी शिक्षा को कानूनी घोषित किया गया और #कलकत्ता_में_पहला_कॉन्वेंट
मैकोले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी बहुत मशहूर चिट्ठी है वो, उसमें वो लिखता है कि: “इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो #भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से #अंग्रेज होंगे
और इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा इनको अपने #संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने #परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने मुहावरे नहीं मालूम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी।” उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ़-साफ़ दिखाई दे रही हैऔर उस एक्ट की महिमा देखिये कि हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है, #अंग्रेजी में बोलते हैं कि दूसरों पर रोब पड़ेगा, अरे हम तो खुद में हीन हो गए हैं जिसे अपनी भाषा बोलने में शर्म आ रही है, दूसरों पर रोब क्या पड़ेगा। लोगों का तर्क है कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है, दुनिया में 204 देश हैं और अंग्रेजी सिर्फ 11 देशों में बोली, पढ़ी और समझी जाती है फिर ये कैसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। शब्दों के मामले में भी अंग्रेजी समृद्ध नहीं दरिद्र भाषा है।
इन अंग्रेजों की जो #बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे। ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी। अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी समय के #कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी।
संयुक्तराष्टसंघजो अमेरिका में है वहां की भाषा अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है।
जो समाज अपनी मातृभाषा से कट जाता है उसका कभी भला नहीं होता और यही मैकोले की रणनीति थी
No comments:
Post a Comment