
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
एक समय था, जब पत्रकारिता को लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ ही नहीं, बल्कि सरकार, नेता और समाज का आईना कहा जाता था। फिल्म लेखन को "पीली पत्रकारिता"(Yellow journalism) कहा जाता था, लेकिन 90 के दशक से पत्रकारिता के अर्थ बदलने लगे। पत्रकार और समाचारपत्र प्रकाशन समूह 'जहाँ दिखे तवा परत, वहीं बिता सारी रात' नीति पर चल निकले। यह कोई आरोप नहीं कटु सत्य है। देखिए प्रमाण :
कल तक युपीए के कार्यकाल तक जो मीडिया 2002 दंगे पर मोदी को, रामजन्मभूमि पर आरएसएस, बजरंग दल, विश्व हिन्दू परिषद्, शिव सेना और अन्य हिन्दू संगठनों को कटघड़े में खड़ा करती थी, आज अधिकतर मीडिया इन्हों को सिर माथे पर बैठाए हुए है। किसी आतंकवादी घटना को "हिन्दू आतंकवाद" और "भगवा आतंकवाद" से जोड़ हिन्दू धर्म को कलंकित कर रहे थे, अधिकतर मीडिया आतंकवादी घटना को पाकिस्तान के छद्दम युद्ध से जोड़ रही है। अब पीली पत्रकारिता का एक और उदाहरण देखिए, आखिर कहाँ जा रहा है, लोकतन्त्र का चौथा स्तम्भ?:-
अपने आप को देश में पत्रकारिता, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता से लेकर राजनीति और देश में पढ़ने-लिखने से जुड़ी हर चीज़ का चौधरी मानने वाले सम्पादकों के समूह एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने आंध्र सरकार की आलोचना करने में बहुत बड़ी बेवकूफ़ी कर दी- आंध्र प्रदेश को तेलंगाना और आंध्र के मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी को तेलंगाना का मुख्यमंत्री बता दिया। यही नहीं, देश के सबसे ज़्यादा छपने और पढ़े जाने वाले अख़बारों में से एक होने का दम भरने वाले Times Of India ने भी वही गलत खबर को आगे बढ़ा दी- यानि देश के सबसे बड़े तोपची सम्पादकों, और ‘सबसे बड़े’ अंग्रेजी समाचारपत्र को चलाने वालों को या तो देश के मुख्यमंत्रियों के बारे में भी ठीक से जानकारी नहीं है, और या फिर एडिटर्स गिल्ड ने गलती की तो की, टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने भी ‘मालिक साहब’ लोगों से आई खबर को छापने से पहले पढ़ने तक की ज़हमत नहीं उठाई।
दो टीवी चैनलों पर अघोषित प्रतिबन्ध का आरोप

यहाँ तक तो बात सही थी, लेकिन गिल्ड ने गड़बड़ यह कर दी कि मूल बयान में आंध्र की जगह तेलंगाना लिख दिया, और उसी का सीएम जगन को बनाकर आलोचना शुरू कर दी।
यह अपने आप में इतनी बड़ी कोई बात न होती, लेकिन इसके बाद Times Of India ने जब उसी, इतनी ‘basic सी’ गलती को जस-का-तस दोहरा दिया तो यही चीज़ एक बड़ी भूल बन गई।
ये भी 'tyranny of distance' है क्या?
Such blatant ignorance and stupidity by the supposed Editors Guild of India. To not have basic knowledge about who is in power in #AndhraPradesh and in #Telangana is unpardonable. Tyranny of distance, much? pic.twitter.com/q5BkvOFRv5— Pooja Prasanna (@PoojaPrasanna4) September 25, 2019
Editors Guild पर तंज़ कसते हुए रिपब्लिक टीवी की दक्षिण भारत ब्यूरो प्रमुख पूजा प्रसन्ना ने कहा कि आंध्र और तेलंगाना के मुख्यमंत्रियों का नाम न पता होना अक्षम्य है। उन्होंने साथ ही तन्ज़ कसा कि क्या यह भी ‘tyranny of distance’ के चलते हुए है। गौरतलब है कि जब लिबरल गैंग को इस बात पर घेरा गया था कि वह दादरी मॉब लिंचिंग को लेकर असहिष्णुता का पुलिंदा गढ़ने में जुटा है, जबकि बंगाल में बशीरहाट दंगों जैसी इस्लामी भीड़ की दर्जनों घटनाओं पर उसका ध्यान नहीं जाता, तो लिबरल गैंग के पत्रकारों ने इस ‘tyranny of distance’ के पीछे छिपने की कोशिश की थी। बहाना दिया था कि चूँकि बंगाल और अन्य कई राज्य उनके चैनलों के दिल्ली स्थित मुख्यालयों से दूर पड़ते हैं, इसलिए वहाँ की खबरें ठीक से कवर नहीं हो पातीं। यह मज़हबी भेदभाव या सेलेक्टिवनेस नहीं, दूरी की मजबूरी (‘tyranny of distance’) है।
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