"किरण बेदी ‘राक्षस’ हैं" : वी नारायणसामी, मुख्यमंत्री पुडुचेरी

इंदिरा गॉंधी-किरण बेदी
कभी इंदिरा मेजबान और किरण बेदी मेहमान थीं
आर.बी.एल.निगम,वरिष्ठ पत्रकार 
एक देश की पहली और इकलौती महिला प्रधानमंत्री। दूसरी, पहली महिला जिसने भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) को चुना। दोनों ही महिला सशक्तिरण की मिसाल। लेकिन, 31 अक्टूबर 2019 को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गॉंधी की पुण्यतिथि पर ही दूसरी महिला यानी पुडुचेरी की उपराज्यपाल किरण बेदी की तुलना ‘राक्षस’ से की गई।
ट्वीट कर इंदिरा को माँ बताने वाला भी कांग्रेसी और बेदी को भरी सभा में राक्षस कहने वाला भी कांग्रेसी। फर्क केवल इतना कि एक नया-नया बना कांग्रेसी, तो दूसरा पार्टी की मुखिया सोनिया गाँधी का पुराना वफादार। दिल्ली कांग्रेसी की प्रचार समिति के अध्यक्ष कीर्ति आजाद ने इंदिरा गॉंधी को श्रद्धांजलि देते हुए उन्हें ‘माँ’ कहा। वहीं, पुडुचेरी के मुख्यमंत्री वी नारायणसामी ने पुण्यतिथि पर कांग्रेसी की ओर से आयोजित एक सभा को संबोधित करते हुए कहा, “हम विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के जरिए लोगों की प्रगति के लिए कड़े प्रयास कर रहे हैं। लेकिन केंद्र ने यहाँ एक ‘राक्षस’ को नियुक्त कर दिया है और वह योजनाओं को लागू करने में बाधा पहुँचा रही हैं।”
इंदिरा गाँधी से आपके वैचारिक मतभेद हो सकते हैं। उनके फैसलों की भी आलोचना हो सकती है। यह भी सच है कि अपने ही सुरक्षाकर्मियों के हाथों उनके मारे जाने के बाद देश भर में सिखों का नरसंहार हुआ था। लेकिन, इस तथ्य को भी झुठलाया नहीं जा सकता कि वे देश की प्रधानमंत्री थीं। उनके नेतृत्व में देश ने कई मुकाम हासिल किए। इसलिए, कीर्ति आजाद की सराहना की जानी चाहिए कि उन्होंने इंदिरा को श्रद्धांजलि देते हुए माँ कहा। वरना, पूर्व मंत्री सलमान खुर्शीद ने दिसंबर 2013 में बकायदा ऐलान किया था, “सोनिया गाँधी सिर्फ राहुल गाँधी की माँ नहीं हैं। वे हमारी भी माँ हैं और पूरे देश की माँ हैं।” गनीमत यह थी कि उस वक्त प्रियंका गाँधी ने खुद को रायरबेली और अमेठी तक ही सीमित कर रखा था। नहीं तो खुर्शीद साहब इस बयान में यकीनन प्रियंका गाँधी का नाम भी जोड़ लेते।
असल में, यही कांग्रेसियों का चरित्र है। उनके लिए नारी सम्मान का मतलब ही मैडम जी की चाटुकारिता है। इसलिए 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' जैसे नारे का मजाक उड़ाने से वे नहीं चूकते। वे एक एयरहोस्टेस की अकाल मौत का इस्तेमाल अपनी सुविधा से राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए कर लेते हैं। चंद दिन ही बीते हैं जब महिला कांग्रेसी की अध्यक्ष सुष्मिता देव ने भाजपा अध्यक्ष एवं गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर पूछा था कि उनके लिए ज्यादा महत्वपूर्ण क्या है? सत्ता या महिला सुरक्षा? सुष्मिता देव ने यह पत्र इस बिना पर लिख दिया था कि एयरहोस्टेस की आत्महत्या के मामले में आरोपित निर्दलीय विधायक ने बिना माँगे भाजपा को समर्थन का ऐलान कर दिया था, जबकि यह निर्दलीय विधायक कांग्रेसी सरकार में मंत्री रह चुका है।



इस निर्दलीय विधायक के समर्थन को ठुकरा कर भाजपा ने साफ कर दिया है कि उसके लिए महत्वपूर्ण क्या है। अब बारी कांग्रेस की है। नारायणसामी के बयान के बाद उसे बताना चाहिए कि कांग्रेस के लिए नारी सम्मान का मतलब क्या है? क्या कांग्रेस का नारी सम्मान गॉंधी परिवार की चौखट तक ही बॅंधा है?
आखिर वो कौन सी सोच हो सकती है जिससे प्रेरित होकर एक मुख्यमन्त्री पद का लिहाज न रखे। मर्यादाओं को भूल जाए। नारी के सम्मान का ख्याल न करे। इंदिरा, सोनिया और आने वाले कल में प्रियंका में माँ तलाशने वाली परंपरा के नेता को यह भी याद नहीं रहा कि जिस महिला को वे राक्षस कह रहे हैं, वह एक बेटी की मॉं भी हैं। शालीनता की कथित प्रतिमूर्ति मनमोहन सिंह की कैबिनेट की शोभा रहे नारायणसामी को शायद यह भी याद नहीं रहा होगा कि जिस महिला की तुलना वे राक्षस से कर रहे हैं, नाश्ते की मेज पर कभी उसकी मेजबानी इंदिरा गॉंधी ने की थी। 1975 में 26 जनवरी की परेड के अगले दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा ने किरण बेदी को नाश्ते पर बुलाया था। बकौल किरण बेदी, “पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी इस बात से खुश थीं कि परेड में एक दस्ते का नेतृत्व महिला कर रही थी।” खैर, परिवार के बाहर की जो सोच लें वो भला कांग्रेसी कैसा!
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जब 2015 में किरण बेदी के ही कारण भाजपा दिल्ली सत्ता से दूर रही 
स्मरण हो, 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा लहर होते हुए, आम आदमी पार्टी की ओर पासा घूम गया, कांग्रेसी बताएंगे क्यों? उसका कारण था किरण बेदी को मुख्यमंत्री घोषित करना। कांग्रेस काल में यही किरण बेदी 'क्रेन बेदी' के नाम ज्यादा चर्चित थीं, क्यों? तत्कालीन कांग्रेस की तुष्टिकरण नीति के कारण बेदी की क्रेन केवल हिन्दू क्षेत्रों से स्कूटर और कारों को ही उठाती थी। दूसरे, वकीलों की हड़ताल में वकीलों पर डंडे बरसाने वाली भी यही किरण बेदी थी। चुनाव के दौरान कृष्णा नगर विधानसभा क्षेत्र में रहने वाले वकीलों--चाहे वह वकील किसी भी पार्टी से हो--ने गुप्त रूप से बेदी के विरुद्ध प्रचार किया था। तीन, तत्कालीन मुख्यमंत्री राधारमण के कार्यकाल में जब रामलीला का रूट बदले जाने के कारण, जब पुराने ही रूट से प्रथम नौरात्रे को रामलीला पुराने रूट से सवारी निकालने पर रथ से गणेश बने कलाकार को जैसे ही जबरदस्ती उतारने पर इसी किरण बेदी को जनता के रोष का सामना करते अपमानित होना पड़ा था, जिस कारण पूरी दिल्ली में चार दिन तक रामलीला मंचन नहीं हुआ था। तब यही किरण बेदी कांग्रेस के लिए 'देवी' थी। तब कांग्रेस की नीतियों का पालन करने वाली किरण बेदी को आज कांग्रेस 'राक्षस' बता रही है।       

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