महाराष्ट्र में शिवसेना ने अब मोदी सरकार को घेरा, कहा- इतना सन्नाटा क्यों है भाई?

सत्ता बंटवारे के 'घमासान' के बीच भाजपा-शिवसेना निर्दलीयों को अपने पाले में करने में जुटीं
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
साझे की हांड़ी बीच चौराहे पर ही फूटती है, जो महाराष्ट्र में घटित होता दिख रहा है। कल तक भारतीय जनता पार्टी के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर चल रही शिव सेना उन अपवादों को उजागर कर रही है, जिन्हे भुनाने में विपक्ष पूर्णरूप से असफल रहा। बरहाल, सत्ता में रहते शिव सेना भी उन अपवादों के बराबर की जिम्मेदार थी। राजनीतिक विश्लेषणों का मानना है कि जिन अपवादों को आज मुख्यमंत्री बनने की लालसा में उजागर किया जा रहा है, जनहित में यदि समय रहते ही उजागर किया होता और उनके चलते मध्यावर्ती चुनाव होने की स्थिति में बाज़ी शिव सेना के ही हाथ लगती। और राजस्थान एवं मध्य प्रदेश भाजपा के हाथ से निकलने के साथ-साथ महाराष्ट्र और हरियाणा भी निकल जाते। वैसे पूर्ण बहुमत से बनी भाजपा की पूर्व सरकार आज लंगड़ी सरकार बनने पर खुश हो रही है। 
वास्तव में सत्ता के नशे में स्थानीय स्तर पर भाजपा इतनी चूर है, जिस ओर शीर्ष नेतृत्व का बिलकुल भी ध्यान नहीं। ये लोग केवल मोदी-योगी-अमित के कन्धों पर सवार होकर झूम रहे हैं। 2014 में केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के आने से इस्लामिक आतंकवाद को बचाने के लिए जिस तरह हिन्दुओं को जो "हिन्दू आतंकवाद" और "भगवा आतंकवाद" के नाम से भारत ही नहीं, बल्कि विश्व में हिन्दुओं को बदनाम किया जा रहा था, हिन्दू त्यौहारों अपमानित करने का प्रयास हो रहा था, हिन्दू समाज को खोई प्रतिष्ठा प्राप्त होने के साथ-साथ विश्व में भारत का नाम ऊँचा कर, जिस पाकिस्तान से भारत भयभीत था, उसे विश्व में आतंकवाद की पनाहगाह सिद्ध कर अलग-थलग कर दिया, विपक्ष भी इस सच्चाई को भलीभांति समझते हुए, दिल से मोदी को चाहते हैं। लेकिन स्थानीय स्तर नेतृत्व मोदी की दिशा में नहीं चल रहा। प्रमाण जगजाहिर है कि राजस्थान और मध्य प्रदेश जाने के अलावा हरियाणा और महाराष्ट्र अधर में लटक गए। जिसके लिए जिम्मेदार मोदी नहीं, स्थानीय स्तर है। 
महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी के साथ सरकार बनाने से पहले शिवसेना ने मोदी सरकार पर निशाना साधा है।पार्टी के मुखपत्र सामना में कहा गया है कि बैंकों का दिवाला, जनता की जेब के साथ सरकारी तिज़ोरी भी ख़ाली है। गौरतलब है कि महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना का गठबंधन होना है और इसी बीच सामना में आई यह टिप्पणी अहम है। शिवसेना के मुखपत्र सामना लिखा गया है कि किसानों, खेतीहरों के हिस्से में वेतन, बोनस का सुख नहीं। केंद्र की माई-बाप सरकार कहती है कि किसानों की आय दोगुनी करेंगे। प्राकृतिक आपदा से लागत जितनी भी आमदनी नहीं लेकिन इस पर कोई कुछ उपाय नहीं बताता है। देश भर में आर्थिक मंदी, बाज़ार में धूम-धड़ाका नहीं दिख रहा है मंदी की वजह से ख़रीदारी में 30-40% की कमी आई है।नोटबंदी, जीएसटी से आर्थिक हालात दिनों-दिन बदतर हो रहे हैं, कारखाने खतरे में, उद्योग-धंधे बंद, रोज़गार निर्माण ठप हैं
सामना में आगे लिखा है, 'बैंकों का दिवाला, जनता की जेब के साथ सरकारी तिज़ोरी भी ख़ाली, रिज़र्व बैंक से सुरक्षित रक़म निकालने की अमानवीयता, हमारे जमा सोने को तोड़ना चाहता है रिज़र्व बैंक, आर्थिक क्षेत्र में दिवाली का वातावरण नहीं दिख रहा, ऑनलाइन शॉपिंग से विदेशी कंपनियों के ख़ज़ाने भर रहे हैं, दिवाली के मुहाने पर महाराष्ट्र चुनाव में धूम-धड़ाका कम, सन्नाटा, ज़्यादा, एक ही सवाल गूंज रहा है, इतना सन्नाटा क्यों है भाई?
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भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना गठबंधन को महाराष्ट्र में भले ही स्पष्ट बहुमत मिला है, लेकिन सरकार बनाने को लेकर अभी .....

गौरतलब है कि महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना मिलकर भले ही सरकार बनाने की बात कर रही हैं लेकिन सत्ता में साझेदारी को लेकर बयानबाजी जारी है। शिवसेना, बीजेपी से ढाई-ढाई साल वाले फॉर्मूले पर लिखित में आश्वासन मांग रही है तो बीजेपी चाहती है कि पूरे पांच साल उसी के पास सीएम पद रहे। वहीं शिवसेना के नेताओं का कहना है कि उद्धव ठाकरे के पास ही सरकार का कंट्रोल होगा

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