
दरअसल, कुछ समय पहले एक खबर आई कि दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने पराली जलाने पर चिंता जाहिर की। साथ ही इस संबंध में केंद्र सरकार और राज्य सरकार को फटकार भी लगाई गई। जिसपर भारतीय किसान यूनियन की ओर से प्रतिक्रिया दी गई है। उनकी ओर से पंजाब के महासचिव हरिंदर लाखोवाल ने अपने बयान में कहा कि हम प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से अपने लिए सब्सिडी माँग रहे हैं जब तक किसानों के खाते में सब्सिडी नहीं आएगी तब तक हम ऐसे ही पराली जलाते रहेंगे।
अब चूँकि प्रदूषण मुद्दे पर इतना गैर-जिम्मेदाराना बयान आया तो इस पर हर मीडिया हाउस में रिपोर्ट की जानी आम बात है। लेकिन बीबीसी ने इस पूरी रिपोर्ट को करके आखिर में अपनी अजेंडापरस्त पत्रकारिता का फिर उदाहरण दे दिया। दरअसल, रिपोर्ट के अंत में लिखा गया कि ‘भारतीय किसान यूनियन’ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध संगठन है। जबकि वास्तविकता में ये संगठन आरएसएस से जुड़ा हुआ ही नहीं है।
ये बात सच है कि आरएसएस से किसानों का बहुत बड़ा संगठन जुड़ा हुआ है, लेकिन उसका नाम भारतीय किसान यूनियन नहीं है, बल्कि भारतीय किसान संघ है। जिसकी स्थापना श्री दत्तोपंथ जी थेंगड़ी द्वारा 4 मार्च 1979 में की गई थी।
जबकि भारतीय किसान यूनियन की स्थापना चौधरी महेंद्र सिंह टिकैट द्वारा की गई थी। जिसकी पुष्टि स्वयं भारतीय किसान संघ ने पिछले साल अपने एक बयान में की थी और बताया था कि दोनों संगठन अलग-अलग हैं।

लेकिन, ऐसी स्थिति में भी बीबीसी को ये समझने की जरूरत है कि जब आप किसी मामूली खबर में जबरन अपने संस्थान के अजेंडे को परोसने की कोशिश करते हैं, तब ये गलती भूल नहीं, उतावलापन कहलाती है। उस समय साफ पता चलता है कि ये जल्दबाजी में किसी की छवि धूमिल करने का एक प्रयास है। इसके लिए जरूरी है कि रिपोर्ट में झूठी पुष्टि करने से पहले तथ्यों की छानबीन की जाए। ताकि पाठक और विरोधी आप पर, आपकी पत्रकारिता पर, आपके संस्थान की नीतियों पर सवाल न उठा पाएँ?
बीबीसी की भाँति ही हिंदी मीडिया के जाने-माने संस्थान जनसत्ता ने भी इस खबर को इसी एँगल से पेश किया है।
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