
समय बीतता चला गया और अब स्थिति ये आ गई है कि भाजपा का साथ छोड़ कर शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी के समर्थन से सरकार बनाने का फ़ैसला लिया है। ख़ुद को हिन्दुवादी पार्टी कहने वाली शिवसेना उस पार्टी की शरण में जा पहुँची है, जिसने राम के अस्तित्व को ही नकार दिया था। मीडिया जिसे कट्टर हिन्दुवादी पार्टी की संज्ञा देती थी, जो हिन्दुवादी मामलों में भाजपा से भी दो क़दम आगे थी, आज वही पार्टी मुख्यमन्त्री पद के लिए चिर-विरोधियों से जा मिली है। वो भी तब, जब भाजपा के साथ उसके चुनाव-पूर्व गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिला, सरकार बनाने का जनादेश मिला। एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना के विधायकों ने उद्धव ठाकरे को अपना नेता चुन लिया है।
ये बाल ठाकरे की पार्टी है। उनके ख़ून-पसीने से सींची हुई पार्टी है, जिसके लिए उन्होंने कई मानक तैयार किए थे। ठाकरे जो कांग्रेस के सबसे बड़े विरोधियों में से एक रहे। भाजपा के साथ आने के बाद तो उन्होंने कांग्रेस पर इतने हमले किए कि कांग्रेस नेता उनका नाम भी सुनना पसंद नहीं करते थे। बाला साहब ने दशहरा की एक रैली के दौरान कहा था कि सोनिया के चरणों में तो हिजड़े झुकते हैं। उन्होंने कांग्रेस की सरकार को ‘हिजड़ों का शासन’ बताया था। आज कौन किसके चरणों में झुक कर शासन चलाने जा रहा है, ये बताने की ज़रूरत नहीं है। बाला साहब की परिभाषा वही है, बस किरदार बदल गए हैं। उनका बेटा शासन चलाने जा रहा है और वो भी ‘हिजड़ों का शासन’ चलाने वाली पार्टी के समर्थन से।
कांग्रेस अब ‘इटालियन कांग्रेस’--बाल ठाकरे
राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी को लेकर बाला साहब ठाकरे ने पूछा था कि क्या प्रधानमंत्री पद भिंडी बाजार में रखी गई कोई कुर्सी है? आज फिर से भिंडी बाजार लगा है, बस कुर्सी बदल है। कांग्रेस और बाला साहब का बयान वही है, बस प्रधानमंत्री पद की जगह इस बार मुख्यमंत्री पद ने ले ली है। ठाकरे सोनिया को ‘इटालियन पार्टी’ कहते थे। ठाकरे का कहना था कि कांग्रेस द्वारा ‘इटालियन औरत’ को आगे लाना शर्मनाक है। बाल ठाकरे कहते थे कि कांग्रेस अब ‘इटालियन कांग्रेस’ बन गई है। बाल ठाकरे ने कांग्रेस को ‘2500 सिखों के क़त्ल का जिम्मेदार’ बताया था। बाल ठाकरे के बेटे आज उसी कांग्रेस के साथ शासन चलाएँगे।
जब बात मुख्यमंत्री पद की हो रही है तो उस सम्बन्ध में भी बाल ठाकरे का बयान याद किया ही जाएगा। बाल ठाकरे मानते थे कि कांग्रेस के जितने भी मुख्यमंत्री हैं, वो सभी सोनिया गाँधी के ‘कुरियर सर्विस’ हैं। कांग्रेस के बाहर से समर्थन से सीएम बनने वाले के लिए उनका बयान क्या होता, ये तो उनकी अनुपस्थिति में सिर्फ़ अनुमान ही लगाया जा सकता है। बाल ठाकरे ने कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों की तुलना ‘काकभगोड़ों’ से की थी। आपने भी पढ़ा होगा- “काकभगोड़ा-काकभगोड़ा, जितना लम्बा-उतना चौड़ा“। ये मानव आकार का अस्थायी ढाँचा भर होते हैं, कौवें खेतों में नहीं आते। वो इन्हें असली का आदमी समझ लेते हैं। आज काकभगोड़ा कौन है, यह तो बालासाहब ही बता पाते।
कांग्रेस उस अख़बार को ही जला डालती थी, जिसमें बाला साहब ठाकरे का इंटरव्यू छपा होता था
शिवसेना और बाला साहब के विरोध में कांग्रेस क्या करती थी? कांग्रेस तो उस अख़बार को ही जला डालती थी, जिसमें बाला साहब ठाकरे का इंटरव्यू छपा होता था। क्या अब वही कार्यकर्ता उद्धव को सीएम बनाने के पार्टी के फ़ैसले से ख़ुश होंगे? हाँ, शिवसेना ने ज़रूर 2012 के राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया था और बाला साहब से उनकी मुलाक़ात भी हुई थी, लेकिन इस मुलाक़ात से सोनिया खफा थीं। ख़ुद मुखर्जी ने अपनी पुस्तक में इसका खुलासा किया है। राहुल की ‘माताश्री’ अपनी पार्टी के नेता के ‘मातोश्री’ जाने से ख़फ़ा थीं। अब सोनिया के समर्थन ने ‘मातोश्री’ से सीएम निकलेगा। ठाकरे ने तो जनता से कहा था कि आपने इन अयोग्य लोगों (कांग्रेस) को चुना है तो अब झेलिए। लगता है महाराष्ट्र को भी ‘झेलना’ ही पड़ेगा।
Destroying the Ravan raj of the CONgress and NCP (national Corruption party). Each of these have looted Maharashtra pic.twitter.com/klmrGKy3L0— Aaditya Thackeray (@AUThackeray) February 28, 2014
जब आदित्य ठाकरे कांग्रेस की तुलना रावण से की थी
आज सारे समीकरण पलट गए हैं। बाल ठाकरे ने कहा था कि शरद पवार ने सोनिया गाँधी को ख़ुश करने के लिए एक सड़क का नाम राजीव गाँधी के नाम पर रख दिया। आज सोनिया गाँधी, उनको ‘ख़ुश करने वाले पवार के साथ बाल ठाकरे के बेटे उद्धव सरकार चलाएँगे। कितना अजीब संयोग है न? जिन शब्दों का प्रयोग शिवसेना के संस्थापक और वर्तमान अध्यक्ष, इन दोनों ने पूर्व में किया था, आज वही शब्द वापस आकर उद्धव को घेरेंगे ज़रूर। ख़ुद उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे कांग्रेस की तुलना रावण से कर चुके हैं। अब इस नए ‘रामायण’ में कौन राम है और कौन रावण, कुछ पता नहीं चल रहा। आदित्य की नज़र में कांग्रेस और एनसीपी, दोनों ही ‘महाराष्ट्र के लुटेरे’ हुआ करते थे। इतने कम दिनों में सबकुछ बदल गया।
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