
हालांकि, राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन की अन्य साझेदार राकांपा ने कहा कि वोटिंग का बहिष्कार करके शिवसेना ने यह संदेश दिया कि वह प्रस्तावित कानून के विवादास्पद पहलुओं पर भाजपा जैसे विचार नहीं रखती है। राज्यसभा में विधेयक के पक्ष में 125 मत और विरोध में 105 मत पड़े. शिवसेना ने कुछ मुद्दों पर स्पष्टीकरण मांगते हुए सदन से वॉकआउट किया।
महाजन ने फेसबुक पोस्ट में कहा, 'दुखद, दुर्भाग्यपूर्ण... क्या संजय राउत का विधेयक पर भाषण इस मुद्दे पर शिवसेना के भ्रम का संकेत है या सभी विकल्पों को खुला रखने का विचार है? स्पष्टीकरण के नाम पर कार्यवाही का बहिष्कार करने का उनका कदम बचाव लायक नहीं है और यह मानना बेवकूफी होगी कि उसे नहीं समझ आया कि बहिष्कार करने से सत्तारूढ़ पार्टी को मदद मिलेगी।
हालांकि, राकांपा प्रवक्ता नवाब मलिक ने कहा, 'उनके (शिवसेना) वॉकआउट का मतलब था कि वह विधेयक के मुद्दे पर भाजपा जैसे विचार नहीं रखते हैं।' अन्य राकांपा नेता ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा कि अगर शिवसेना ने वोट किया भी होता तो उसके तीन मतों से विपक्ष को कोई फायदा नहीं होता।
कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि राज्य सभा से कार्यवाही पर शिवसेना कुछ भी कहे, परन्तु इतने वर्षों से जिन राष्ट्रीयता के मुद्दे पर बालासाहब ठाकरे से लेकर उद्धव ठाकरे तक शिवसेना लड़ती रही है, उसे किस आधार पर दरकिनार कर सकती थी। विरोध में वोट देने से शिवसेना का जनाधार काम होता। इस गणित को शिवसेना कांग्रेस की अपेक्षा अधिक जानती है। जहाँ तक कांग्रेस की बात है, यह तो उजागर हो चूका है कि कांग्रेस सत्ता पाने के लिए तुष्टिकरण तो क्या किसी भी दलगत नीति को अपना कर मुँह में राम बगल में छुरी लेकर चलने में लेशमात्र भी संकोच नहीं करती है।
फिर विपक्ष में रहते ममता बनर्जी ने बंगाल में बढ़ती पाकिस्तान और बांग्लादेशियों के अवैध रूप से बसने पर केन्द्र और तत्कालीन कम्युनिस्ट सरकार को घेरती रही थी। लेकिन मुख्यमंत्री बनते ही उन्हें ये सभी हम प्याला हम निवाला दिखने लगे।
फिर कांग्रेस को यह भी ज्ञान होना चाहिए कि बहुमत न होने के बावजूद राज्यसभा में बिल पारित हुआ, क्यों? क्योकि दिल से हर भाजपा विरोधी भी इस बिल का समर्थन कर रहे थे। प्रश्न यह था कि बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन, और उसे मोदी सरकार ने कर दिखाया कि यदि देशप्रेम भावना हो तो हर कठिन काम भी आसान बन जाता है।
सिटी सेंटर: नागरिकता संशोधन बिल लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी पास
नागरिकता संशोधन विधेयक में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के कारण 31 दिसंबर 2014 तक भारत आए गैर मुस्लिम शरणार्थी - हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने का पात्र बनाने का प्रावधान है।(इनपुट्स सहित)
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