दिल्ली विधानसभा चुनाव : AAP के 200 पर कांग्रेस देगी 600: अब विकास पर नहीं, ‘कौन कितना देगा FREE’ पर टिकी

दिल्ली कॉन्ग्रेस अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
दिल्ली की सत्ता पर लगभग 15 साल तक काबिज रहने वाली कांग्रेस पार्टी की हालत अब पस्त है। पार्टी की स्थिति ये हो चुकी है कि उन्हें सत्ता में लौटने के लिए केजरीवाल सरकार की नीतियों को अपनाना पड़ रहा है। क्योंकि, साल 2014 में जिस तरह महंगाई की मार झेल रहे दिल्लीवासियों को केजरीवाल सरकार ने फ्री बिजली-फ्री पानी देने का वादा कर लुभाया था। उसी तरह अब कांग्रेस सत्ता वापस पाने के लिए 600 यूनिट तक बिजली में राहत देने पर उतर आई है।
चुनावों के मद्देनजर अभी कुछ दिन पहले केजरीवाल सरकार ने 200 यूनिट तक बिजली फ्री देने का वादा जनता से किया था। और, अब 600 यूनिट तक बिजली फ्री की बड़ी घोषणा खुद दिल्ली के कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा ने दिसम्बर 25 को वजीरपुर में एक रैली के दौरान की है।
उन्होंने ऐलान किया है कि अरविंद केजरीवाल सरकार दिल्ली वासियों को केवल 200 यूनिट बिजली फ्री दे रही है। लेकिन उनकी सरकार अगर दिल्ली में आई तो 600 यूनिट फ्री बिजली देगी। साथ ही छोटी इंडस्ट्रीज को भी कांग्रेस 200 यूनिट बिजली मुफ्त में देगी और इन सबका जिक्र उनके मेनिफेस्टो में होगा।


अब हालाँकि, सुभाष चोपड़ा ने अपने बयान में साफ किया है कि वे ऐसा चुनावों के कारण नहीं कह रहे हैं बल्कि इसलिए कह रहे हैं क्योंकि जनता के पैसा से जनता को ही लाभ होना चाहिए। लेकिन समझने वाली बात ये है कि दिल्ली की राजनीति जो पिछले कुछ समय तक केवल बिजली पानी के ईर्द-गिर्द घूमती थी। वो अब कौन कितना फ्री देगा इस पर आ टिकी है।
पिछले विधानसभा चुनावों केजरीवाल सरकार ने दिल्लीवासियों की कमजोर नब्ज पकड़ी थी और अभी भी वे उसी को पकड़े-पकड़े अपने अगले चुनावों की तैयारी में जुट गए हैं। लेकिन हैरानी की बात है कि केजरीवाल सरकार से सीखकर कांग्रेस भी उसी रास्ते पर चल पड़ी है और बड़े-बड़े वादे कर दिल्ली की कुर्सी पर वापसी की उम्मीद लगाए बैठी है।
2013 में लिखा लेख 
ज्ञात हो, 2013 में जब बिजली कंपनियों को 3577 करोड़ रूपए का लाभ होने पर तत्कालीन अध्यक्ष बृजेन्द्र सिंह ने 10% टैरिफ कम करने को कहा था, लेकिन तत्कालीन कांग्रेस की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने 20%टैरिफ बढ़ाने को कहा और अपनी बात को उचित ठहराने के लिए बिजेंद्र सिंह को हटा पी.सी.सुधाकर को अध्यक्ष बना 3577 के लाभ को 603 करोड़ रूपए घाटे में परिवर्तित करवा दिया था यानि 3577+603=4180 रूपए घोटाला। जिस पर आज तक वर्तमान आम आदमी पार्टी सरकार और न ही विपक्ष(भाजपा) ने मुद्दा उठाया, क्यों? इन सभी जनहित की बात करने वाली पार्टियों को नहीं मालूम कि 20%टैरिफ नहीं बल्कि 20+10=30% दाम अधिक देने को मजबूर होना पड़ा था। अब तेज भागते मीटरों की कोई पार्टी बात नहीं करती। खैर, बिजली कंपनियों को हुए लाभ को घाटे में दर्शाने वाली कांग्रेस जब 600 यूनिट फ्री की बात हास्यप्रद लगती है।  
इन सियासतखोरों को नहीं मालूम कि 200 यूनिट फ्री होने के चक्कर में दिल्ली में कितनी बिजली चोरी बढ़ है? अक्सर अपने लेखों में लिखता रहा हूँ कि "यदि दिल्ली से बिजली चोरी बंद हो जाए, हर उपभोक्ता को सस्ती बिजली उपलब्ध होगी।" बिजली विभाग को कोई अधिकारी नहीं कहा सकता कि "हमें नहीं मालूम की कहाँ चोरी हो रही है?" बस लाभ को घाटे में परिवर्तित करने, कभी पीली तार, कभी खम्बों पर बोर्ड लगाने, फिर उन्ही बोर्डों को हटाकर 5/6 घरों के तारों को एक साथ जोड़ देना, फिर मीटर घरों से बाहर लगाने में धन की बर्बादी की जा रही है। क्या किसी भी राजनीतिक पार्टी ने बिजली कंपनियों से पूछा "क्या सबके मीटर बाहर लग गए, यदि नहीं तो क्यों?" क्या यह कोई घोटाला तो नहीं?
जनता को इस कटु सच्चाई को भली-भांति समझना होगा कि 'तेल तिलों से ही निकलेगा', यानि मुफ्त में बिजली, पानी, बस यात्रा और निर्वाचित सदस्यों को हर माह मिलती मुफ्त सुविधाएं और पेंशन आदि पर जो करोड़ों रूपए खर्च हो रहा है, उसे एक वर्ष और फिर पांच वर्षों के गुणा करने का प्रयत्न करें, यदि यह सब बंद हो जाएं, महंगाई भी कम होगी। क्या किसी कर्मचारी को एक माह काम करने उपरांत नौकरी छोड़ने अथवा मृत्यु होने पर पेंशन मिलती है, लेकिन निर्वाचित सदस्य शपथ लेते ही पेंशन का अधिकारी बन जाता है। 
फिर जनता को इस बात को भी सोंचना चाहिए कि एक तरफ तो संसद कैंटीन को मिलने वाली करोड़ों की सब्सिडी ख़त्म की जा रही है, दूसरी तरफ मुफ्त में रेवड़ियां बांटी जा रही हैं, दर्शाता है दाल में कुछ काला नहीं, बल्कि सारी ही दाल काली है, जिस पर जनता को मुफ्त में बिजली, पानी और बस यात्रा का जो सरकारी खर्चे पर खेल खेला जा रहा है। यानि महंगाई कम नहीं और बढ़ेगी।         
कहना गलत नहीं होगा कि अलग-अलग राज्यों में राजनैतिक पार्टियाँ अब एक दूसरे से होड़ करने के लिए विकास के मुद्दे को कई कोसों पीछे छोड़ चुकी हैं। क्योंकि अगर वाकई 600 यूनिट दिल्ली वासियों को फ्री देने के पीछे यही वजह है कि जनता के पैसे का लाभ जनता को दिया जाए, तो पंजाब, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान जैसे राज्यों में तो कांग्रेस ही विराजमान है। फिर ये मुद्दा वहाँ मेनिफेस्टो का हिस्सा क्यों नहीं रहा?
कुछ लोगों का सोशल मीडिया पर कहना है, “कांग्रेस जो कहती है सो करती है, वो पाँच साल खत्म होने का इंतजार नहीं करती। सरकार बनते ही जनता, जवान, किसान ओर महिलाओं के हक के लिए काम करना शुरू कर देती है।” ऐसे में सोचिए, अगर वाकई ऐसा होता, तो दिल्ली से क्या कभी कांग्रेस जाती? और वर्तमान में जिन राज्यों में कांग्रेस सरकार है, वहाँ उनकी आलोचनाएँ होती?
आज राजस्थान, मध्यप्रदेश जैसे कांग्रेस शासित राज्यों में पॉयलट और सिंधिया जैसे पार्टी के चेहरे अपनी ही सरकार की नीतियों के विरुद्ध बोलते और सरकार की गलतियों को स्वीकारते पाए जाते हैं। लेकिन, फिर भी पार्टी अन्य राज्यों में चुनावों की बात आते ही कांग्रेस दूसरी पार्टियों पर हमलावर हो जाती है।
हास्यास्पद बात देखिए, दिल्ली की सबसे हालिया समस्या प्रदूषण पर कोई राजनैतिक पार्टी बात नहीं करती। क्योंकि अब राष्ट्रीय राजधानी की सत्ता हथियाने का पैमाना केवल ‘फ्री-फ्री’ की राजनीति पर आ टिका है। और दिल्ली की जनता भी इस बात को भली भाँति जान चुकी है। तभी सोशल मीडिया पर सुभाष चोपड़ा का बयान आने के बाद उनसे कई सवाल करने में जुटी है। जिसमें शीला सरकार में हुए कॉमनवेल्थ घोटाले से लेकर महंगाई तक का मुद्दा शामिल है।

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