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साध्वी प्रज्ञा ने आरोप लगाया कि कमलनाथ सरकार के दबाव पर पुलिस विधायक दांगी के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज नहीं कर रही है |
ऐसे में देश के समस्त नेता समाज से प्रश्न : "यदि यही धमकी किसी आम नागरिक ने दी होती, अब तक न जाने कितनी दफाओं में उस पर केस दर्ज हो गया होता, लेकिन मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार ने धमकी देने वाले विधायक को पार्टी से निकालने के साथ-साथ उसके विरुद्ध क्यों नहीं केस दर्ज किया?" इतना ही नहीं कि किसी भी पार्टी ने उस विधायक की अपराध-प्रवित्ति के खिलाफ आवाज़ नहीं उठाई, क्योकि यह धमकी भाजपा सांसद के विरुद्ध थी। महात्मा गाँधी की हत्या के बाद भारत में सबसे भयंकर चितपावन ब्राह्मणों का नरसंहार भी कांग्रेस के राज में हुआ था, 1984 सिख दंगा से कहीं अधिक भयंकर था। नैना साहनी के टुकड़े कर तंदूर में डालने का जघन्य अपराध भी कांग्रेस के राज एवं पदाधिकारी द्वारा किया गया था।
संसद में साध्वी प्रज्ञा द्वारा नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताने की ख़बर आई थी, जिसके बाद विधायक दांगी ने आपत्तिजनक टिप्पणी करते हुए धमकी दी थी। साध्वी प्रज्ञा ने दिसम्बर 7 को भी कमला नगर पुलिस स्टेशन के बाहर धरना दिया था। अधिकारियों ने साध्वी प्रज्ञा से लिखित शिकायत की माँग की, लेकिन साध्वी की ज़िद थी कि बिना आवेदन के पहले एफआईआर दर्ज की जाए। इसके बाद पुलिस अधिकारियों के साथ उनकी तीखी नोक-झोंक हुई। हालाँकि, शनिवार (दिसंबर 7, 2019) को महिलाओं के सम्मान की लड़ाई जारी रखने की बात कह साध्वी ने धरना ख़त्म कर दिया था।
आखिर क्या कारण है आतंकवादी को मारे जाने, फांसी दिए जाने या फिर बलात्कारी को किसी एनकाउंटर में मारे जाने पर मानवाधिकार अपनी रोटियां सेंकने निकल आता है, लेकिन किसी को जिन्दा जलाए जाने की धमकी पर चुप्पी साध लेता है, क्या इसीका नाम मानवाधिकार है? क्यों नहीं मानवाधिकार ने जिन्दा जलाए देने की धमकी पर तत्काल कार्यवाही की? या फिर मानवाधिकार को अपना नाम बदलकर दानवअधिकार रख देना ही उचित होगा।
साध्वी प्रज्ञा ने दी चेतावनी, अगर दर्ज नहीं हुई एफआईआर तो थाने के बाहर देंगे धरना, समाज पर जो भी असर पड़ेगा उसका जिम्मेदार होगा शासन-प्रशासन, कांग्रेस विधायक के खिलाफ दर्ज कराएगी एफआईआर।@mediagaurav pic.twitter.com/0a9euyJKMH— News24 India (@news24tvchannel) December 7, 2019
रविवार को भोपाल की सांसद साध्वी प्रज्ञा फिर से धरने पर बैठीं। कमलनाथ के मंत्री पीसी शर्मा ने साध्वी प्रज्ञा के धरने की तुलना ‘एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी’ वाले कहावत से की है। उन्होंने आरोप लगाया कि गोडसे को महिमामंडित करने के कारण ही साध्वी प्रज्ञा को रक्षा सम्बन्धी संसदीय समिति में शामिल किया गया था। उन्होंने साध्वी के धरने को ‘नौटंकी’ बताते हुए कहा कि उन्हें भोपाल की जगह दिल्ली में धरने पर बैठना चाहिए। वहीं साध्वी प्रज्ञा ने अपने धरने को ‘सत्याग्रह’ का नाम दिया है।
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