दिल्ली : क्या कांग्रेस और आप के बीच गुप्त समझौता हो गया है?


आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
दिल्ली विधानसभा चुनाव के मतदान की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, सियासी तस्वीर स्पष्ट होती जा रही है। बीते एक हफ्ते में दिल्ली की चुनावी हवा का रूख पूरी तरह बदल चुका है। बीजेपी से मिल रही कड़ी टक्कर को देखते हुए आम आदमी पार्टी ने भी अपनी रणनीति बदल दी है और कांग्रेस से अंदरूनी साठगांठ कर ली है। इसकी पुष्टि इस बात से होती है कि इस चुनावी शोरगुल में कांग्रेस की आवाज कहीं गुम हो गई है या फिर ये कहें कि ‘गुम’ कर दी गई है।
यदि इस समाचार में जरा भी सच्चाई है, तो वास्तव में ये पुनः कांग्रेस का आत्मघाती कदम होगा। 2014 में भी गुप्त समझौता होने के कारण कांग्रेस की क्या दुर्गति हुई, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। सेवानिर्वित होने उपरांत एक हिन्दी पाक्षिक को सम्पादित करते विस्तार से शीर्षक "कांग्रेस के गर्भ से निकली आप", प्रकाशित करने पर धमकी मिलने पर अगले ही अंक में शीर्षक "कांग्रेस और आप का  Positive DNA " प्रकाशित की थी। परिणाम सबके सामने हैं कि जिस कांग्रेस के भ्रष्टाचार के विरुद्ध चुनाव लड़ा था, बहुमत न होने पर कांग्रेस ने बिन मांगे अपना समर्थन दे दिया। जबकि दूसरी ओर केजरीवाल अपने बच्चों की कसम खाते हुए कहते थे कि "कांग्रेस का समर्थन नहीं लूंगा", यानि जिस पार्टी के भ्रष्टाचार के विरुद्ध चुनाव लड़ा, भाजपा को सरकार से दूर रखने के लिए बच्चों की कसम को ताक पर रख, समझौता कर लिया। उसका बदला कांग्रेस द्वारा किए घोटालों को दरकिनार कर दिया। 
फिर चुनाव घोषित होने पर कांग्रेस ने भी केजरीवाल सरकार के घोटालों को उजागर करना शुरू कर अपना प्रभुत्व दिखाने का प्रयास किया,  लेकिन CAA के विरोध करने पर जनाधार खिसकते देख, केजरीवाल से गुप्त समझौते की चर्चाएं सुर्ख़ियों में हैं। वैसे CAA के विरोध में कांग्रेस तो क्या समस्त मोदी विरोधियों की हालात ठीक नहीं। विरोध करके इन्होने यह  सिद्ध कर दिया कि घुसपैठियों को घर में घुसाकर उनके आधार, राशन कार्ड और वोटर कार्ड बनवा उन्हीं के वोट के दम पर भारतीयों में अपना रौब दिखाते रहे। 
एक बात और गौर करने की है कि जिस तरह केजरीवाल ने दिल्ली को मुफ्तखोर बनाकर सरकार बनाई और उसी तर्ज पर दुबारा सरकार बनाने का संकल्प लिया है, जबकि देश के अन्य राज्यों ने केजरीवाल की इस मुफ्तखोरी को पूर्णरूप से नकार देने के कारण अधिकांश की जमानत जब्त होने के अलावा कई जगह तो आप को नोटा से भी कम वोट मिले। जो दर्शाता है कि दिल्ली से बाहर आम आदमी पार्टी को कोई स्वीकार करने को तैयार नहीं। 
अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस ने मानी हार    
दिल्ली कांग्रेस के इंचार्ज पीसी चाको केजरीवाल को मार्केटिंग गुरु बता रहे हैं। यानी कांग्रेस, गुरु केजरीवाल के आगे नतमस्तक हो गई है और हथियार डाल दिए हैं। बात सीधी और साफ़ है। चुनाव के सबसे निर्णायक क्षणों में कांग्रेस का अरविंद केजरीवाल को गुरु कहना भर उसका मॉरल बूस्ट करता नजर आ रहा है। बात तब होती जब केजरीवाल से लड़ने के लिए उन्हीं के अंदाज में कांग्रेस अपनी रणनीति बनाती और चुनावों में उनसे कड़ा मुकाबला करती।
टिकट वितरण से पहले दिल्ली प्रदेश कांग्रेस प्रभारी पीसी चाको का ये बयान गौर करने वाला है कि वो चुनाव से पहले तो नहीं, लेकिन चुनाव के बाद जरूर आप के साथ जरूरत पड़ने पर कोई गठबंधन कर सकते हैं। गौर करने वाली बात यह भी है कि चाको पूर्व में भी आप के साथ जाने पर जोर देते रहे हैं।
भाजपा के लिए अच्छे संकेत 
चाको के आप की ओर झुकाव को देखते हुए, पूर्व में भी शीला दीक्षित से लेकर वरिष्ठ नेता तक विरोध कर रहे थे, लेकिन नगाड़े की आवाज़ के आगे तूती की किसी ने नहीं सुनी। परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस को जाने वाला वोट केजरीवाल की झोली में जाने के ही कारण 67 सीटें मिली थी। परन्तु अब जनता तो क्या कांग्रेस कार्यकर्ता भी खिन्न हो चुके हैं, जो भाजपा के लिए अच्छे संकेत माने जा रहे हैं। मोदी विरोधियों द्वारा CAA विरोध ने वोटों का ध्रुवीकरण कर दिया है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता। क्योकि विरोध केवल मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में ही हो रहा है, जबकि समस्त गैर-मुस्लिम भारत से घुसपैठियों को बाहर का रास्ता दिखाने के पक्ष में हैं।   
Image may contain: one or more peopleदूसरे, जवाहर लाल यूनिवर्सिटी में देश-विरोधी नारे लगाने वालों पर पुलिस द्वारा की कार्यवाही को दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने कोई समर्थन नहीं दिया। एक कानूनी प्रक्रिया है कि देशद्रोह के मुक़दमे को चलाने में राज्य सरकार की अनुमति जरुरी होती है, जो केजरीवाल सरकार ने आज तक नहीं दी, उसी का परिणाम है शाहीन बाग़ और जामिया इस्लामिया। 
दिल्ली विधानसभा चुनाव-2020 को लेकर नामांकन प्रक्रिया खत्म होने के बाद कांग्रेस पार्टी ने 40 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की। इसमें पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, शशि थरूर, नवजोत सिंह सिद्धू, शत्रुघ्न सिन्हा को इस सूची में शामिल किया गया है। इसके अलावा, स्टार प्रचारकों की सूची में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के साथ कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को रखा गया है।
चुनावी सरगर्मी के बीच राहुल, प्रियंका और सोनिया गांधी गायब नजर आ रहे हैं। राहुल और प्रियंका दोनों के ही ऑफिस से इस बात की पुख्ता जानकारी सामने नहीं रही है कि उनका दिल्ली में चुनाव रैली का शेड्यूल क्या है। वहीं, राहुल का हाल ही में जयपुर रैली के लिए जाना और अब रैली के लिए केरल जाना संकेत दे रहा है कि कांग्रेस दिल्ली में अपनी हार का अपना मन बना चुकी है।
चुनाव प्रचार में कांग्रेस की टॉप लीडरशिप की खामोशी कांग्रेसी प्रत्याशियों के लिए मुसीबत बनी हुई है। हाल ये है कि प्रत्याशियों के निजी रिश्तों के आधार पर कांग्रेस के कुछ लीडर प्रचार के लिए पहुंच रहे हैं। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा कालकाजी से अपनी बेटी के चुनाव प्रचार में ज्यादा वक्त दे रहे हैं। वहीं, कांग्रेसी नेता राज बब्बर और जितिन प्रसाद ने कुछ जगह जरूर प्रचार किया है। हालांकि कांग्रेस की ओर से टॉप लीडरशिप के बचाव में बार-बार ये कहा जा रहा है कि सीनियर चुनाव अभियान के अंतिम चरण में प्रचार करेंगे।
चुनाव एक्सपर्ट की नजर में कांग्रेस रणनीतिक रूप से बीजेपी को मात देने के लिए ऐसा कर रही है। गौरतलब है कि 2015 दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत दो अंकों तक भी नहीं पहुंचा था, जबकि बीजेपी का वोट प्रतिशत 30 प्रतिशत से ऊपर तब भी रहा था। साफ है कि आप का बढ़ा वोट प्रतिशत दरअसल अधिकतर कांग्रेस के हिस्से से आया था। कांग्रेस पार्टी जानती है कि उसके वोट प्रतिशत में जरा भी उछाल आने का सीधा मतलब है कि आप की सीटें कम होना और बीजेपी की सीटें बढ़ना है, जो वो चाहती नहीं है। इसलिए दिल्ली में कांग्रेस मौन है। इसका फायदा आम आदमी पार्टी को मिलेगा यानी दिल्ली के इस चुनाव में कांग्रेस आप को परदे के पीछे से समर्थन दे रही है ताकि वो बीजेपी से मुकाबला करे।
उधर आम आदमी पार्टी चुनाव प्रचार में आगे नजर आ रही थी, लेकिन जैसे ही बीजेपी मुकाबले में आई केजरीवाल ने अपनी रणनीति बदल दी। इसकी पुष्टि इस बात से होती है कि केजरीवाल के निशाने पर सिर्फ बीजेपी है। वह बीजेपी पर लगातार हमले कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस के खिलाफ उन्होंने कोई बयान नहीं दिया है। 
अवलोकन करें:-

अरफा खानुम किस प्रकार प्लान बता रही है वो आपको गौर से सुनना चाहिए, इन दिनों कट्टरपंथी तत्व जो तिरंगा लहरा रहे है, राष्ट्रगान गा रहे है वो इनकी स्ट्रेटेजी का हिस्सा है, सुनिए क्या कहती है अरफा।
इस देश में काफी सारे सेक्युलर हिन्दू अरफा खानुम और इनके जैसे लोगों का मोदी विरोध में जमकर साथ दे रहे है, अरफा खानुम इन सेकुलरों के सामने तो भाईचारे, दलित, आदिवासी की बात करती है, पर मुस्लिम भीड़ के आगे वो पूरी प्लानिंग समझाती है।
अरफ़ा की इस बात से देश समस्त छद्दम धर्म-निरपेक्षों को अपनी आंखें खोलने चाहिए, जो सेकुलरिज्म का हर वक़्त राग अलापते रहते हैं। वास्तव में हिन्दुओं का छद्दम धर्म-निरपेक्षों द्वारा मूर्ख ही बनाया जा रहा, बल्कि ये लोग स्वयं गजवा हिन्द बनाने में इन कट्टरपंथी स्लीपर सैल्स की मदद कर, भारत को पुनः गुलाम बनाने की ओर धकेल रहे हैं, जो अरफ़ा के बयानों से स्पष्ट झलक रहा है।
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इस बार के चुनाव में जैसा रुख बीजेपी का है वो ये साफ़ बता रहा है कि उसने अपनी पुरानी गलतियों से प्रेरणा ली है। बीजेपी इस बात को भली प्रकार से समझती है कि बिना उग्र हुए चुनाव नहीं लड़ा जा सकता और अपनी नीतियों को अमली जामा पहनाने में वो कोई कसर नहीं छोड़ रही है।

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