
अखबार ने दो खुफिया सेवाओं के अधिकारियों के हवाले से बताया है कि अब्दुल रहमान आईएस के संस्थापकों में से एक है। उसके इशारे पर ही इराक और सीरिया में इस्लामिक स्टेट का खिलाफत कायम होने के बाद यजीदी बच्चियों और महिलाओं से रूह कॅंपा देने वाले अत्याचार अंजाम दिए गए थे। उनसे बार-बार रेप किया गया और उन्हें सेक्स स्लेव बनाकर रखा गया।
यही नहीं दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में उसी की देखरेख में ISIS के आतंकी हमलों को अंजाम देते थे। रिपोर्ट के मुताबिक, सल्बी का जन्म इराक के ताल अफरा शहर में हुआ था। तुर्कमेन परिवार के सल्बी ने मोसुल यूनिवर्सिटी से शरिया कानून की डिग्री ली है।
A very interesting reporting from the always excellent @martinchulov, about the identity of the new Islamic State leader Abu Ibrahim al-Hashemi, citing officials from two intelligence services. https://t.co/kgHIjd3AGX— Hassan Hassan (@hxhassan) January 21, 2020
A few comments in the following tweets:
अक्टूबर में विशेष अमेरिकी बलों के हमले में आईएस सरगना अबु बकर अल बगदादी के मारे जाने के बाद संगठन ने अपने सरगना के रूप में अबु इब्राहिम अल हाशिमी अल कुरैशी के नाम का प्रस्ताव दिया था। लेकिन कुछ समीक्षकों का मानना है कि बगदादी को मौत के घाट उतारे जाने के बाद ISIS कोई भी बड़ा खतरा नहीं उठाना चाहता है। यही कारण है कि उनके नए सरगना के बारे में कोई भी जानकारी पुख्ता तौर पर कहीं भी मौजूद नहीं है।
गार्जियन की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बगदादी के मारे जाने के कुछ ही घंटों के भीतर ही ISIS ने आमिर मोहम्मद अब्दुल रहमान अल मवली अल-सल्बी को अपना नया सरगना चुन लिया था। इसलिए ऐसा माना जा रहा है कि Islamic State की पूर्व घोषणा दुनिया को गुमराह करने के मकसद से की गई हो। बता दें, कुरैशी फिलहाल छद्मनाम है जिसकी पुष्टि अन्य सरगनाओं अथवा खुफिया एजेंसियों ने नहीं की हैं।

इस्लामी आतंकियों और सेक्स कुंठा से भरे समाज के कई हिस्सों के बारे में जब कुछ बातें सामने आती हैं तो आश्चर्य होता है कि विरोधाभास और विडम्बना कहाँ तक जा सकती हैं। कल एक वीडियो सामने आया जहाँ यज़ीदी महिलाएँ, जो आईसिस द्वारा सेक्स स्लेव के रूप में हर दिन बलात्कार का शिकार होती रहीं थीं, बुर्कों को जला रही थीं।
काफ़िरों को काट देना चाहिए, ग़ैर-मुसलमानों को बमों से उड़ा देना चाहिए, बलात्कार करना चाहिए
इसके पीछे का कारण यह था कि आईसिस इस्लाम के उन तौर तरीक़ों में पूरी आस्था दिखाता है जो उसकी मर्ज़ी के हों। जैसे कि बुर्क़ा पहनना चाहिए, काफ़िरों को काट देना चाहिए, ग़ैर-मुसलमानों को बमों से उड़ा देना चाहिए, बलात्कार करना चाहिए आदि। बुर्क़ा पहनने के पीछे जो क्यूट कारण बताते हैं ये आतंकवादी, वो सुनकर कान से ख़ून निकल आता है, “ऐसे बाहर मत निकलो। मर्दों के आस-पास ऐसे मत दिखना।”
शब्दों के लिए माफ़ी नहीं माँगूँगा क्योंकि ये सब जानने के बाद और कोई प्रतिक्रिया निकल नहीं पाती। पिछले सप्ताह कई सेक्स स्लेव (बलात्कार करने हेतु ग़ुलाम बनाई गई युवतियाँ और बच्चियाँ) इन आतंकियों के चंगुल से बाहर निकलकर आईं और रेगिस्तान में पंक्तिबद्ध खड़े होकर अपने बुर्क़ो को आग लगाया। हम या आप इन लड़कियों के अनुभव को समझ नहीं कर सकते क्योंकि इनकी यातना शरीर और दिमाग से परे इनकी निश्छल आत्माओं तक है। ये घाव हर स्तर पर गहरे हैं, और इनकी जिजीविषा से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।
इस वीडियो में एक यज़ीदी लड़की कहती है, “जब उन्होंने पहली बार मुझे वह (बुर्क़ा) पहनने के लिए विवश किया, तो मुझे अपना दम घुटता सा लगा। मुझे उसमें काफ़ी परेशानी हो रही थी। मैं बुर्क़ा पहनना नहीं चाहती थी पर उन्होंने इसे उतारने की अनुमति नहीं दी। वो कहते थे कि हर कोई पहन रहा है। जब भी मैं अकेली होती थी तो उसे उतार फेंकती थी। वह कहते थे, ‘ऐसे बाहर मत निकलो।’ ‘मर्दों के आस-पास ऐसे मत दिखना।’ पर जब भी वे मुझे अकेले में छोड़ते थे, मैं उसे उतार देती थी। अब मैं (यहाँ) आ गई हूँ और इसे उतार दिया है, और जला दिया है। यह क़िस्सा ख़त्म कर दिया है, ईश्वर की कृपा से। काश मैं दएश (आईसिस) को यहाँ ला पाती और जला पाती, जैसे मैंने अपने उन कपड़ों को जला दिया है।”
इस विचारधारा की जड़ में इस्लाम को दुनिया पर स्थापित करने की पुरानी ज़िद है। लेकिन आज का विश्व आँख मूँद कर इस आतंक को ‘आतंक का कोई रिलीजन नहीं होता’ कहते हुए शुतुरमुर्ग की तरह नकार रहा है। उनके झंडे पर उनके मज़हब का नारा बुलंद है, उनके कुकर्मों से पहले ‘अल्लाह’ के नाम का जयघोष होता है, और आप कहते हैं कि आतंक का कोई मज़हब नहीं होता!
एक तरफ इस्लाम को स्थापित करने की चाह, एक तरफ बुर्क़ा पहनाकर महिलाओं को यह बताना कि मर्दों के आस-पास शरीर को ढक कर रखना चाहिए, और दूसरी तरफ बलात्कार? दिन-रात बलात्कार कर रहे हों और ज्ञान दे रहे हो कि बाहर बुर्क़े में रहा करो क्योंकि मर्दों के सामने ऐसे नहीं जाना चाहिए! ये उच्च क़िस्म का घटिया नशा है जो शायद इन्होंने एक साथ सीरिया के किसी कच्चे तेल के कुएँ से पीकर पाया होगा, क्योंकि लॉजिक तो घास ही चरता दिख रहा है!
ऐसे ही एक वीडियो देखा था जिसमें कई महिलाएँ (अलग-अलग जगहों पर) हिजाब पहनकर, कई अरबी/ इस्लामी कपड़ों में बैठे मर्दों के बीच उत्तेजक नृत्य कर रही थी। मैं कपड़ों का ज़िक्र कर रहा हूँ क्योंकि वीडियो से मज़हब का पता लगाना मुश्किल है। अंग्रेज़ी में इसे सिडक्टिव डान्स कह सकते हैं। क़ालीन बिछा हुआ है, मर्द घेरे पड़े हैं, टोपियाँ सर पर हैं, लड़की ने हिजाब से सर ढक रखा है और उसके कूल्हे थिरक रहे हैं। ये विचित्र स्तर का मानसिक दिवालियापन है कि सेक्सी नाच भी देखना है, और लड़की के संस्कार भी क़ायम रखने हैं। आप यूट्यूब पर वो वीडियो ख़ुद ढूँढ लीजिए क्योंकि वो इतना घटिया है कि मैं यहाँ रख नहीं सकता। https://www.facebook.com/TryNotToCryDM/videos/575232166330797/
मतलब, समाज और मज़हबी जानकार कहते हैं कि महिला को सर ढक कर रखना चाहिए। इसलिए गर्दन से नीचे टू-पीस बिकिनी चलेगा, सेक्सी नाच चलेगा लेकिन सर तो ढका ही होना चाहिए क्योंकि मौलवी जी ने कहा है! ऐसे उदाहरणों पर आप न तो हँस सकते हैं, न गम्भीर हो सकते हैं। हँस इसलिए नहीं सकते कि हर व्यक्ति की भावनाएँ होती हैं, जज़्बात होते हैं, उन्हें उत्तेजक नृत्य देखना ज़रूरी लगता है, तो वो अपने मज़हबी बातों से रास्ता निकाल कर अपनी इच्छा की पूर्ति करते हैं।
गम्भीर इसलिए नहीं हो सकते कि आख़िर ये हो क्या रहा है! देखना है तो पूरा देख लो ठीक से कि नाचने वाली महिला ही है या किसी ने बुर्क़ा पहनकर पागल तो नहीं बनाया! ये कैसी मानसिकता है जिससे एक तरफ तो मज़हब का भी सम्मान हो रहा है और दूसरी तरफ अपनी ठरक का भी। जी, सही शब्द ‘ठरक’ ही है क्योंकि किसी महिला को उस तरह से घेरकर नचाना आपकी कुंठा की परिणति ही है, न कि आपके अंदर बैठा कला-प्रेमी जाग गया है।
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