आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
शाहीन बाग़ में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर चल रहे अलगाववादी और हिन्दू विरोधी नारों का धरना ड्रामा केवल चुनाव तक चलाकर भाजपा के विरुद्ध माहौल बनाना ही एक मात्र उद्देश्य है। हर चुनाव से पहले कभी #metoo कभी #award vapsi, #not in my name, #intolerance तो कभी #mob lynching गैंग सक्रीय होते रहे हैं, तब भी इसी ब्लॉग पर लिखा था, अगले चुनाव में अब किस नाम से ये गैंग अवतरित होगा, पता नहीं। खैर, पहले गैंगों का तो भांडा फूट नहीं पाया कि आखिर कौन है इन गैंगों के पीछे, आखिर बकरे की माँ कब तक खैर मनाती, वो अब सामने आ गयी।
लगभग अलगाववादी अपने बिलों से बाहर आ चुके हैं, अब काम केंद्र सरकार का है कि इन अलगाववादियों और इन्हें राजनीतिक संरक्षण देने वाले नेताओं पर भी ऐसी नकेल डाले की भविष्य में पुनः देश की एकता और सौहार्द को बिगाड़ने की सोंच भी न पनपने पाए। दिल्ली भाजपा सरकार बने या न बने, दिल्ली मुख्यमंत्री पर इतना दबाव बनाया जाए कि दिल्ली पुलिस एवं अन्य सुरक्षा एजेंसियों को इन अलगाववादी ताकतों के विरुद्ध कार्यवाही करने में मदद मिले। देशहित सर्वोपरि है।
शाहीन बाग़ में सीएए के विरोध के नाम पर चल रहे प्रदर्शन के देशविरोधी गुट से कनेक्शन जैसे-जैसे सामने आ रहे हैं, वैसे-वैसे इस प्रदर्शन को ख़त्म करने के पीछे बहाने ढूँढने की प्रक्रिया तेज हो गई है। अब दारुल उलूम देवबंद ने शाहीन बाग प्रदर्शन खत्म करने की गुजारिश की है। उसने कहा कि सरकार ने एनआरसी न लाने की बात कही है, इसे लोगों को अपनी जीत समझना चाहिए। दारुल उलूम देवबंद के ठंडे पड़े तेवर को शाहीन बाग़ प्रदर्शन पर लगे कई आरोपों से जोड़ कर देखा जा रहा है।
शरजील इमाम के गिरफ़्तार होने के बाद से शाहीन बाग़ विरोध प्रदर्शन पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। शरजील ने महात्मा गाँधी को सबसे बड़ा फासिस्ट नेता बताया था और उत्तर-पूर्व को देश से अलग करने के लिए लोगों को भड़काया था। शरजील के इस बयान से शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारियों के ‘टुकड़े-टुकड़े’ वाली मानसिकता का पता चलता है। प्रवर्तन निदेशालय भी पीएफआई को विदेश से फंडिंग मिलने की जाँच कर रही है, जिसकी आँच आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह तक जा पहुँची है।
हाल ही में उत्तराखंड आंदोलन के संस्थापक स्वामी दर्शन भारती ने आरोप लगाया था कि सीएए के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शनों के लिए पीएफआइ व दारुल उलूम को सऊदी अरब से फंडिंग की जा रही है। उनका कहना था कि शाहीन बाग से भी बड़े मॉडयूल भारत में तैयार करने के लिए कई मुस्लिम देशों से फंडिंग की जा रही है। साथ ही उन्होंने देवबंद की तुलना तालिबान से भी की थी। भाजपा विधायक संगीत सोम ने भी शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारियों को विदेश से फंडिंग मिलने की बात कही थी।
अवलोकन करें:-
शाहीन बाग़ विरोध प्रदर्शन से वहाँ के लोगों को भी ख़ासी परेशानी हो रही है। एलजी से बातचीत के बाद भी प्रदर्शन ख़त्म नहीं किया गया। अब जब इस प्रदर्शन की एक-एक कर के पोल खुल रही है, तब इन उपद्रवियों के ऊपर बैठे आकाओं में बेचैनी का माहौल है। इसकी बानगी तब भी देखने को मिली थी, जब शाहीन बाग़ के एक धड़ा ख़ुद को शरजील से अलग दिखा रहा था, वहीं दूसरा धड़ा उसका बचाव कर रहा था।
शाहीन बाग़ में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर चल रहे अलगाववादी और हिन्दू विरोधी नारों का धरना ड्रामा केवल चुनाव तक चलाकर भाजपा के विरुद्ध माहौल बनाना ही एक मात्र उद्देश्य है। हर चुनाव से पहले कभी #metoo कभी #award vapsi, #not in my name, #intolerance तो कभी #mob lynching गैंग सक्रीय होते रहे हैं, तब भी इसी ब्लॉग पर लिखा था, अगले चुनाव में अब किस नाम से ये गैंग अवतरित होगा, पता नहीं। खैर, पहले गैंगों का तो भांडा फूट नहीं पाया कि आखिर कौन है इन गैंगों के पीछे, आखिर बकरे की माँ कब तक खैर मनाती, वो अब सामने आ गयी।
लगभग अलगाववादी अपने बिलों से बाहर आ चुके हैं, अब काम केंद्र सरकार का है कि इन अलगाववादियों और इन्हें राजनीतिक संरक्षण देने वाले नेताओं पर भी ऐसी नकेल डाले की भविष्य में पुनः देश की एकता और सौहार्द को बिगाड़ने की सोंच भी न पनपने पाए। दिल्ली भाजपा सरकार बने या न बने, दिल्ली मुख्यमंत्री पर इतना दबाव बनाया जाए कि दिल्ली पुलिस एवं अन्य सुरक्षा एजेंसियों को इन अलगाववादी ताकतों के विरुद्ध कार्यवाही करने में मदद मिले। देशहित सर्वोपरि है।

शरजील इमाम के गिरफ़्तार होने के बाद से शाहीन बाग़ विरोध प्रदर्शन पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। शरजील ने महात्मा गाँधी को सबसे बड़ा फासिस्ट नेता बताया था और उत्तर-पूर्व को देश से अलग करने के लिए लोगों को भड़काया था। शरजील के इस बयान से शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारियों के ‘टुकड़े-टुकड़े’ वाली मानसिकता का पता चलता है। प्रवर्तन निदेशालय भी पीएफआई को विदेश से फंडिंग मिलने की जाँच कर रही है, जिसकी आँच आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह तक जा पहुँची है।
#JUSTIN— NBT Hindi News (@NavbharatTimes) February 7, 2020
दारुल उलूम देवबंद ने शाहीन बाग प्रदर्शन खत्म करने की गुजारिश की। उन्होंने कहा कि सरकार ने एनआरसी न लाने की बात कही है, इसे लोगों को अपनी जीत समझना चाहिए
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हाल ही में उत्तराखंड आंदोलन के संस्थापक स्वामी दर्शन भारती ने आरोप लगाया था कि सीएए के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शनों के लिए पीएफआइ व दारुल उलूम को सऊदी अरब से फंडिंग की जा रही है। उनका कहना था कि शाहीन बाग से भी बड़े मॉडयूल भारत में तैयार करने के लिए कई मुस्लिम देशों से फंडिंग की जा रही है। साथ ही उन्होंने देवबंद की तुलना तालिबान से भी की थी। भाजपा विधायक संगीत सोम ने भी शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारियों को विदेश से फंडिंग मिलने की बात कही थी।
अवलोकन करें:-
अक्सर फतवों के बारे में पहले भी कई बार लिखा जा चूका है कि फतवों की राजनीती का चुनाव आयोग को संज्ञान लेकर कोई सख्त कार्यवाही करनी चाहिए। एक तरफ पार्टियां अपने आपको समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष कहती हैं, फिर किस आधार पर फिरकापरस्ती के कंधे चुनाव जीतने का प्रयास करते हैं? यह इस बात को भी प्रमाणित करता है कि फतवों की राजनीती करने वाले सबसे बड़े साम्प्रदायिक हैं और इन फतवों के सहारे चुनाव जीतने वाले उनसे भी बड़े साम्प्रदायिक। इसका मतलब है कि ये सभी छद्दम धर्म-निरपेक्ष 'गंगा-यमुना तहजीब' के नाम पर हिन्दुओं को पागल बनाते हैं।
शाहीन बाग़ विरोध प्रदर्शन से वहाँ के लोगों को भी ख़ासी परेशानी हो रही है। एलजी से बातचीत के बाद भी प्रदर्शन ख़त्म नहीं किया गया। अब जब इस प्रदर्शन की एक-एक कर के पोल खुल रही है, तब इन उपद्रवियों के ऊपर बैठे आकाओं में बेचैनी का माहौल है। इसकी बानगी तब भी देखने को मिली थी, जब शाहीन बाग़ के एक धड़ा ख़ुद को शरजील से अलग दिखा रहा था, वहीं दूसरा धड़ा उसका बचाव कर रहा था।
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